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Modi–Putin–Xi Jinping in One Frame | America’s Worst Nightmare Begins !

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Shubhankar Mishra: A journalist who navigates the spectrum from Aajtak to Zee News, now independently exploring social media journalism, with a knack for engaging political figures in insightful podcasts.

Shubhankar Mishra has been diving deep into political debates, spiritual podcasts, Cricket Podcast, Bollywood Podcast.

मुस्कुरा कर जब वह गैरों के साथ चलते हैं तो दिल में आग के शोले जल उठते हैं। और यह शोले इस वक्त डोनल्ड ट्रंप चाचा के दिल में भड़क रहे होंगे क्योंकि चाचा चौधरी बनने के चक्कर में अनहोनी को उन्होंने होनी कर दिया। वो जो दुश्मन थे उनको एक कर दिया और एक ही फ्रेम में अमर, अकबर, एंथोनी यानी मोदी, पुतिन और शिजनपिंग को इकट्ठा कर दिया। अब इस अनहोनी के लिए ट्रंप चाचा को क्रेडिट दिया जाए या फिर उनका प्रिय नोबल यह फैसला आप तय कर लीजिए क्योंकि बवाल जो है वो सारा यहीं से शुरू हुआ था। हालांकि एक चीज हम कह सकते हैं कि इस तस्वीर ने अमेरिका के मानसिक दिवालियेपन को उजागर कर दिया। फिलहाल वो बचा नहीं पा रहे। भारत आने से मना कर दिया है ट्रंप ने। लेकिन दूसरी तरफ उनके ट्रेड सलाहकार कह रहे हैं कि भैया भारत में जो ब्राह्मण है वह रूसी तेल खरीद कर मुनाफा कमा रहा है। हमको नहीं पता था कि अंबानी साहब ब्राह्मण है। आप जानते थे पता नहीं हो सकता है। हो सकता है हमारे यहां से किसी ने धीरज से कह दिया हो कि हमारे यहां जातपात बहुत बढ़िया चलता है। आप भी चलाओ मजा आएगा। डिवाइड एंड रूल अंग्रेजों ने किया था। आप गोरे हो आप भी कर सकते हो। पहले भी टेस्टेड एंड ट्राइड मॉडल है। हालांकि इन सबके बीच में असली पंडित जिसको मुनाफा हुआ है वो तो हमारे ये वाले पंडित हैं। इनका बड़ा मुनाफा हो रहा है। अमेरिका इनको बर्बाद करने तुला था लेकिन अब दोस्त पे दोष मिल रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तस्वीरें मानसिक संतुलन हिलाने वाली थी और बनता भी था क्योंकि जो नजारा था वो फिल्मी था। हिंदी बोलने वाले मोदी जी, रूसी बोलने वाले पुतिन साहब और चीनी बोलने वाले शनपिंग तीनों जो एक दूसरे की भाषा नहीं समझते वो एक दूसरे से ट्रांसलेटर को रखकर बीच में हंस रहे थे। मुस्कुरा रहे हो सकता है थोड़ा इमोशंस दाएं बाएं निकल गया हो क्योंकि हिंदी में यार अपनी भाषा में समझने का मजा अलग होता है। लेकिन फिर भी वो यह समझ रहे थे कि यह तस्वीर जब डोन्ड ट्रंप देखेंगे तो उनके सीने पर सांप लौट जाएगा और तस्वीरों में दिखा कि गले मिला जा रहा है। अब दिल मिला नहीं मिला यह तो वक्त बताएगा। लेकिन तस्वीर का संदेश बड़ा स्पष्ट था कि डॉनल्ड ट्रंप जो टेरिफ यज्ञ कर रहे थे। अब उस यज्ञ में अपना ही खून जलाकर आहुति दे डाले वो। हालांकि इस पूरे टेंशन के बीच में शहबाज चाचा ही पीछे नहीं रहे। शहबाज चाचा की भी वो वाली तस्वीर ऐसे वाली गजब वायरल हो रही है। अलग-अलग मीम बना रहा है। कोई हाथ में कटोरा पकड़ा रहा है तो कोई फटा हुआ कपड़ा पहना रहा है। दुनिया कह रही है कि साहब इधर भी देख लीजिए क्योंकि शहबाज साहब भी मानो मोदी और पुतिन से कह रहे हो कि सर प्लीज इधर आई एम आल्सो हियर सर। ओल्ड फ्रेंड पुराने वीडियोस भी उनके जा रहे हैं। वैसे शबाज साहब को जब भी हम देखते हैं तो हमको उनका वही पुराना डायलॉग याद आता है कि हम कहीं जाते हैं तो लोगों के मन में एहसास होता है कि मांगने आ गए। ये शबाज साहब ने कहा था। बताया था कि लोग हमको मांगने वाला सोचते हैं। फोन करो तो सोचते हैं कुछ मांगने आया होगा। अब पाकिस्तान की इमेज है। खैर उनकी कहानी वो उधर अलग है। लेकिन हम कहानी की बात करते हैं एसइओ समिट की क्योंकि ये मुलाकात खास थी। मुलाकात खास इसलिए थी क्योंकि यह वो समय चल रहा है जब टेंशन चरम पर है। अमेरिका ने भारत और बाकी देशों पर भारीभरकम टेरिफ ठोक दिया। भारत पर 50% टेरिफ है और हमको पूरी उम्मीद है कि 100% ये टेरिफ होने वाला है क्योंकि जो तस्वीरें आई हैं वो डॉनल्ड ट्रंप को और उकसाने वाली है। या तो वो सुधर जाएंगे या बिल्कुल बवाल काट लेंगे। रूस से तेल खरीदने को लेकर डॉनल्ड ट्रंप भारत को दंडित करना चाह रहे थे। लेकिन पुतिन और मोदी जो हैं ऐसा लगता है उनके इरादे अलग हैं। वो गलबियां भी कर रहे हैं। साथ में गाड़ी में घूम भी रहे हैं। एक दूसरे को संदेश भी दे रहे हैं और पुतिन यूक्रेन वॉर को लेकर मोदी जी को स्थिरता बनाए रखने के लिए थैंक यू भी कह रहे हैं। कुल मिलाकर कहें तो पोख कर रहे हैं पुतिन और मोदी मिलकर डॉनल्ड ट्रंप को। ट्रंप का क्या होगा वो देखने वाली बात होगी। उस पर भी बात करेंगे। लेकिन चीन और भारत का मिलना बड़ा महत्वपूर्ण है क्योंकि 2020 में गलवान में जो कुछ हुआ था उसके बाद हमारे रिश्ते खराब थे। इनफैक्ट तीन महीने पहले पहलगाम में भी जो युद्ध हुआ था उसके लिए हिंदुस्तान में हम और आप चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे थे। हम यह मान रहे थे कि चीन की वजह से ही सब कुछ हुआ। हम यह कह रहे थे कि पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है और अब 7 साल बाद प्रधानमंत्री का चीन का दौरा शी जिनपिंग से उनकी दो-दो मुलाकात एक रविवार दोपहर को और एक एससीओ भोज से पहले इस बात का संकेत देती है कि चाहे जरूरी वक्त की मांग को देखते हुए या मजबूरी अमेरिका की दुश्मनी को देखते हुए फिलहाल दोनों देश कड़वाहट को छोड़कर नई शुरुआत करना चाह रहे हैं। है ना कमाल की बात? सियासत और डिप्लोमेसी में गुरु कब क्या कहां हो जाए आप कुछ कह नहीं सकते और इसीलिए बड़े बूढ़े कह गए हैं कि नेवर से नेवर इन पॉलिटिक्स एंड डिप्लोमेसी कभी भी यहां कुछ भी हो सकता है क्योंकि 3 महीने पहले चाइना हमारा सबसे बड़ा दुश्मन था। चाइना से हम मार किए बैठे थे। हम सब कह रहे थे कि भैया पाकिस्तान से तो निपट लेंगे। चाइना से निपटने की तैयारी करो। अमेरिका हमारा दोस्त था। पाकिस्तान हमारा बिछड़ा हुआ लौंडा। वो बदमाश लड़का। अब समस्या क्या है कि लड़का जो है वो अभी बदमाश है, बिछड़ा हुआ भी है। लेकिन दोस्त जो है वो दुश्मन बन गया और दुश्मन जो है वो दोस्त बन गया है। और लड़का भी इस बीच में अपने पापा को बदल लिया है। वैसे बदले बहुत लोग हैं। बीजेपी वाले बदल गए हैं और एंटी बीजेपी वाले बदले हैं। क्योंकि बीजेपी और एंटी बीजेपी वालों ने भी यूटर्न ले लिया है। जो अमेरिका को दोष बता रहे थे वो अमेरिका को गाली दे रहे हैं और जो चाइना को दोष बता रहे थे वो चाइना को गाली दे रहे हैं। खैर इनका तो चलता रहेगा लेकिन जनता क्योंकि अकेले छूट गई है इसलिए बिना देर किए हमें लगा कि हम अपनी जिम्मेदारी समझें और आपको गंभीरता से यह समझाएं इस मजाक की तरह कि मोदी पुतिन जिनपिंग की मुलाकात पर सबकी नजरें क्यों टिकी है? आपको समझाएं कि मोदी, पुतिन और जिनपिंग के एक साथ खड़े होने के मायने क्या है? और अगर भारत और चीन रूस की तरफ झुके तो फिर अमेरिका का क्या नुकसान होगा? क्या अमेरिका इन तस्वीरों को देखने के बाद नरम पड़ेगा या फिर गरम होगा? क्या वह इंडिया की तरफ लौटेगा? क्या डोनाल्ड ट्रंप टेररिफ को लेकर नरम होंगे? चीन और पाकिस्तान की जो दोस्ती है, वह भारत के बीच में कैसे आएगी? क्या भारत चीन पर भरोसा कर सकता है? और सबसे महत्वपूर्ण सवाल जो सबके मन में है कि मोदी पुतिन जिनपिंग का साथ आना सिर्फ फोटो खिंचवाना है या इससे वाकई में कुछ मिलेगा या केवल हवाबाजी लफाजी में खत्म हो जाएगा? तो आप भी अब गंभीरता से एक एक सवाल का जवाब सुनना शुरू कर दीजिए और हमारे WhatsApp चैनल को भाई साहब सब्सक्राइब कर दीजिए। आपके लिए दुनिया भर की खबरें लाते हैं और उससे जुड़े रहेंगे आप तो सीधे आपको वीडियो मिल जाया करेगा। इतनी छोटी सी बात के लिए क्यों मेहनत करवाते हो यार जाओ सब्सक्राइब करो तुरंत अभी। कमेंट सेक्शन में डाल रखा है। डिस्क्रिप्शन में भी डाल रखा है। सब्सक्राइब कर लेना WhatsApp चैनल को। अब शुरू करते हैं शुरू से। मोदी पुतिन जिनपिंग साथ आने से क्या होगा? तो देखो भाई साहब रूस के साथ भारत के रिश्ते पहले से मजबूत है। आप याद करो 1971 वॉर अमेरिका हमारे खिलाफ हो गया था तब भी रूस ही था। रूस के साथ रूस एक्चुअली एक भरोसेमंद पार्टनर है जिस पर आप भरोसा कर सकते हो। और पुतिन के साथ जो मुलाकात है गले मिलना, कार में सफर करना वो बता रहा है कि यह दोस्ती सिर्फ हवाबाजी नहीं है। दिल से दिल तक की है। असली खेल जो है वो है बाकी तीनों की मुलाकात का। क्योंकि दुनिया कह रही है महाशक्तियों का मिलन है और महत्वपूर्ण इसलिए है कि अमेरिका का वर्चस्व अकेले है। अब ट्रंप ने जो टेरिफ लगाया है अमेरिका को ग्रेट बनाने के लिए बाकी लोगों में खुराफात करना शुरू किया उसमें देखने लायक है कि भारत और चीन कैसे गर्माहट लाते हैं। क्योंकि 2020 में गलवान झड़प के बाद भारत और चीन के रिश्ते खराब हो गए थे। 7 साल बाद इनकी मुलाकात जिस तरीके से चाइना के अंदर हो रही है वो बता रहा है कि दोनों जानते हैं कि डिप्लोमेसी में नेवर से नेवर और इसीलिए दोनों शुरुआत कर रहे हैं। हां भारतीय होने के नाते हमको ये लगता है कि चीन पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि चीन का इतिहास है वो भारत को दोस्त बनाता है और फिर भारत के पीठ पर खंजर घोंप देता है। पाकिस्तान का भी वो खास है। लेकिन क्योंकि अमेरिका की मजबूरी है दुश्मनी वाली। इसलिए चीन जो है वह इंडिया और चाइना को हाथी और ड्रैगन की दोस्ती कह रहा है। मोदी साहब भी कह रहे हैं कि 2.8 अरब लोगों का कल्याण जो है इसी रिश्ते जुड़ा है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली सीमा पर शांति आतंकवाद को लेकर जिस तरह से कंडेम किया गया कि पहलगाम में जो कुछ हुआ वो खराब था। पाकिस्तान की मौजूदगी में कहा गया कि इस पर कारवाई होनी चाहिए। ये सब बता रहा है कि चीन भी आगे बढ़ रहा है और चीन भी कोशिश कर रहा है। भारत और चीन के बीच में डायरेक्ट यात्रा की शुरुआत भी की जा रही है। तो ये सारी चीजें संकेत दे रही हैं कि हम हाथ मिलाने हाथ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। उधर रूस और चीन का रिश्ता जो है वो बीते कुछ सालों से गहरा है। अमेरिका दोनों कॉमन दुश्मन है और इसीलिए दोनों दोस्त हैं। जिंगपिंग ने भी एसइओ में 84 बिलियन डॉलर से अधिक के निवेश और एक एसइओ डेवलपमेंट बैंक बनाने की बात कही जो डॉलर और अमेरिका के वर्चस्व को कम करने के लिए साथ ही अमेरिका को संदेश देने के लिए क्योंकि इस मुलाकात का सबसे बड़ा निशाना अमेरिका और ट्रंप की नीतियां थी। डॉनल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने और चीन के साथ व्यापार बढ़ाने को लेकर कई बार निशाना साधा। उनके सलाहकार जो मानसिक दिवालियापन का सबूत देते हुए बयान दिया वो सब बता रहा है कि मोदी पुतिन जिनपिंग का एक साथ हंसना गले मिलना उनको परेशान कर रहा है। कई सारे एक्सपर्ट्स भी मानते हैं कि मुलाकात अमेरिका को दिखाने की कोशिश थी कि भारत के पास विकल्प है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि भारत का अमेरिका से रिश्ता खत्म हो गया या चाइना से बहुत पक्की दोस्ती हो गई। दोनों ही नहीं है। लेकिन संदेश यही है कि अगर अमेरिका भारत को अलग-थलग करने की कोशिश करता है तो भारत अपनी नीतियों को देखते हुए दूसरे दोस्त बना सकता है। और इसीलिए यह तस्वीरें ट्रंप के टेरिफ को चुनौतियां देती हैं। बल्कि बताती है कि भारत विदेश नीति जो है वो स्वतंत्र रूप से तय करेगा। यह नहीं हो सकता कि अमेरिका हमको सिखाए कि उससे दोस्ती करो, उससे ना करो। हमारे लिए सस्ता कर दो और बाकी से दोस्ती काट लो। भारत के लिए एक मौका था अपनी स्थिति को मजबूत करने का और वही भारत ने यहां पर किया। लेकिन सवाल जो महत्वपूर्ण है वो ये कि ये केवल शब्दों तक रहेगा या इसका ठोस परिणाम निकलेगा। अब इसी में सवाल उठता है कि अगर ये तीनों साथ आ जाते हैं तो अमेरिका को क्या नुकसान पहुंचेगा? तो जवाब है बिल्कुल। टेरिफ की रणनीति फेल हो जाएगी। अगर ये तीनों साथ आते हैं और अगर को हम कोट कर रहे हैं क्योंकि एक रात में डिप्लोमेसी में आप उत्साह नहीं जता सकते। बहुत सारे लोगों का मानना है कि भारत और चीन के रिश्ते ठंडे पड़ गए थे। अब वो नॉर्मल हो रहे हैं। अच्छे अभी तय नहीं है। नॉर्मल हो रहे हैं। लेकिन अगर यह गर्मजोशी वाले हो जाते हैं तो डॉन्ड ट्रंप का टेरिफ प्लान जो था वो फेल हो जाएगा। डॉन्ड ट्रंप का मकसद था भारत और चीन को दबाना। लेकिन अगर भारत और चीन आपस में व्यापार बढ़ा लेते हैं और भारत रूस से तेल और हथियार खरीदना जारी रखता है तो अमेरिका का पूरा गेम बिगड़ जाएगा। डॉलर की बादशाहत पर खतरा आ जाएगा। एसइओ और ब्रिक्स जैसे मंच डॉलर की जगह अपनी मुद्राओं में व्यापार करना चाहते हैं। अगर भारत इसमें शामिल हो गया तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर सीधा असर पड़ेगा क्योंकि उसकी ताकत उसके डॉलर पर टिकी है। इसके अलावा अमेरिका ने क्वाड बनाया था जिसमें अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत थे ताकि चीन को रोका जा सके। अगर भारत चीन के करीब गया तो अमेरिका की वो रणनीति भी कमजोर हो जाएगी। रूस मजबूत हो जाएगा। अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से दूरी बनाए। लेकिन अगर इतना घनिष्ठ संबंध बना जैसा कि तस्वीरों में दिखाने की कोशिश की गई है तो फिर अमेरिका के लिए सरदर्दी बढ़ जाएगी और इस सबका असर दुनिया की पॉलिटिक्स पर पड़ेगा क्योंकि अमेरिका की ताकत घटेगी इससे। इस मुलाकात ने बताया कि ग्लोबल साउथ जिसमें एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका अमेरिका के इशारों पर नहीं चलेगा। नई शक्ति की शुरुआत हो सकती है। हालांकि यह सब हाइपोथेटिकल है। एक रात में कुछ नहीं होने वाला। भारत को इसमें देखना पड़ेगा कि क्या कहानी और अगला कदम जो है वो अमेरिका के कदम पर भी निर्भर करेगा। अमेरिका का प्रभाव कम हो जाएगा अगर यह सब कुछ अच्छा हो गया। लेकिन सवाल फिर वही कि अमेरिका क्या करेगा इसके बाद? क्या डॉन्ड ट्रंप साहब भारत लौटेंगे भारत की तरफ? क्योंकि ट्रंप और अमेरिका बीते कुछ सालों में भारत के दोस्त रहे हैं। दोनों ने गलबियां की हैं। दोनों एक दूसरे के साथ बड़े होना चाह रहे थे। भारत और बढ़ना था और अमेरिका सुपर पावर बने रहना चाह रहा था। लेकिन ट्रंप की आक्रामक नीति ने भारत को रूस और चीन ने करीब ला दिया है। भारीभरकम टेरिफ, रूस से तेल खरीद पर दबाव और बार-बार अमेरिका फर्स्ट, अमेरिका फर्स्ट का हवाला देकर उन्होंने इंडिया को यह एहसास कराया कि आप वाशिंगटन पर पूरी तरह डिपेंडेंट नहीं रह सकते हैं। हालांकि ट्रंप यह जानते हैं कि भारत ना सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है बल्कि अमेरिका के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है, रणनीतिक साझेदार है। चीन को रोकने के लिए भारत का साथ बहुत जरूरी है। और अगर भारत अमेरिका से हटकर एसइओ या ब्रिक्स जैसे मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत करता है तो फिर अमेरिका के लिए भी मुश्किलें होगी। ऐसे में संभव हो सकता है कि डॉन्ड ट्रंप आने वाले दिनों में थोड़ी ढील दे दे या भारत को लुभाने के लिए नए व्यापारिक और रक्षा सौदे पेश कर दे। हालांकि याद रखना होगा कि इतना आसान भी नहीं है क्योंकि उन्होंने काफी ज्यादा बोल दिया है। काफी ज्यादा बोल दिया है और अमेरिका फर्स्ट फर्स्ट करके काफी सारे स्टैंड लिए हैं। ऐसे में भारत के पास यही ऑप्शन है कि वो देखें वेट एंड वॉच करें और अमेरिका के अगले कदम के हिसाब से अपनी दोस्ती यारी आगे बढ़ाएं। अब सवाल यह है कि क्या ट्रंप टेरिफ पर नरम पड़ेंगे 50% टेरिफ? ट्रंप की टेरिफ पॉलिसी भारत और चीन दोनों के लिए बड़ी चुनौती है। अमेरिका का मकसद है इन दोनों देशों को दबाव में लाकर अपने हिसाब से व्यापार करना। लेकिन तस्वीरें बदल रही हैं। भारत और चीन आपस में व्यापार बढ़ाने की दिशा में सोच रहे हैं। और अगर अपनी-अपनी मुद्राओं में लेनदेन को बढ़ावा तो अमेरिकी टेरिफ का असर कमजोर पड़ जाएगा और ट्रंप को मजबूरन नरमी दिखानी पड़ेगी क्योंकि उनके देश से भी इसका विरोध शुरू हो जाएगा। वो भारत पर दबाव बनाए रखने और पूरी तरह खोने से बचाने दोनों के बीच में संतुलन साधने की कोशिश करेंगे और यह आपको आगे आने वाले दिनों में दिखेगा क्योंकि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो रूस के साथ तेल खरीदना बंद नहीं करेगा। चीन के साथ भी संबंधों को बढ़ाने पर गंभीरता से विचार होगा। इसका सीधा मतलब यही है कि भारत अमेरिका दबाव के आगे झुकेगा नहीं। नतीजा ट्रंप को ही अपने आप को नए सिरे से अपडेट करना पड़ेगा। तस्वीरों से कम से कम यही साफ हो रहा है। अब डॉनल्ड ट्रंप क्या भारत को पूरी तरह खोना चाहेंगे? अपनी जिद के आगे अमेरिका फर्स्ट क्या वो टकराव करना चाहेंगे? ये देखने वाली बात है। ये इंटरेस्टिंग होने वाला है। ट्रंप के सामने दुविधा है क्योंकि ट्रंप समझते हैं कि भारत को पूरी तरह खोना अमेरिका के लिए गलती होगी। संभावना है कि शायद आगे आने वाले वक्त में टेरिफ में थोड़ी ढील दे या नए सौदे पेश करें या बैकडोर से बातचीत हो। भारत क्योंकि स्पष्ट है। भारत विदेश पॉलिसी अमेरिका के हिसाब से नहीं करेगा। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल जो है वह यह नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण सवाल है कि ये जो मुलाकात हुई है ये क्या सिर्फ तस्वीरें खुचाने के लिए है या इससे कुछ वाकई में ठोस होगा? कोई नाटो जैसा गठबंधन बनेगा या सिर्फ फोटो ऑप्टिक्स है? मोदी, पुतिन, शजनपिंग एक साथ तस्वीरें जब खिंचवाते हैं तो यह वर्ल्ड पॉलिटिक्स में हलचल मचा देती है। सारी दुनिया की निगाहें आती है। इसी के चलते वो ब्राह्मण वाला बयान अमेरिका ने दिया है जो उनके मानसिक दिवालियापन को दिखा रहा है कि कैसे उनका दिमाग थोड़ा ढीला हो गया। वो चाहते हैं कि भारत में इंटरनल लड़ाई हो जाए। लेकिन अब धीरे-धीरे धीरे-धीरे भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि भारत अमेरिका पर टोटली डिपेंडेंट नहीं है और ये बहुत स्ट्रांग चीज है। डॉन्ड ट्रंप के लिए ये तस्वीरें जो है फोटो ऑप्टिक से ज्यादा है क्योंकि ये उनके टेरिफ और दबाव की पॉलिटिक्स को चुनौती थी। लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे इंडिया, चाइना, रशिया कुछ निकालेंगे? अ अगेन संभावनाएं बहुत कम है। जो कि मैंने पहले भी कहा कि एक रात में डिप्लोमेसी चेंज नहीं होती। चाइना ट्रस्टवर्दी नहीं है। इंडिया यह जानता है। यह तस्वीरें परेशान करने वाली अमेरिका के लिए हो सकती हैं। भारत के लिए उम्मीद देने वाली हो सकती है। इसीलिए शायद प्रधानमंत्री मोदी ने भी बार-बार ट्रस्ट की बातें कही। साथ मिलकर डेवलप होने की बातें कही। और ट्रस्ट दिखाने के लिए इसीलिए शायद चीन के अंदर जब एसइओ का एक कॉमन स्टेटमेंट आया तो उसमें पहलगाम हमले को लेकर निंदा की गई ताकि भारत को थोड़ा और ट्रस्ट में लिया जाए। बट फिलहाल क्या कोई बड़ा राजनीतिक या सैन्य गठबंधन बनेगा? इसकी संभावनाएं कम है। क्योंकि इंडिया और चाइना के बीच में सीमा विवाद है। चीन का पाकिस्तान के साथ गहरा रिश्ता है जो भारत को परेशान करता है और सतर्क करता है। भारत अपनी विदेश नीति को ताकत बना रहा है। रणनीतिक स्वतंत्रता को छोड़ने वाला नहीं है। हां, अगर अमेरिका का दबाव बढ़ता है तो भारत एससीएओ और ब्रिक्स जैसे मंचों पर खुलकर सक्रिय होगा। लेकिन भारत को सबसे बड़ी चुनौती चीन और पाकिस्तान की दोस्ती से मिलती है। चीन ने कई मौकों पर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की है। चाहे संयुक्त राष्ट्र जैश मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठन को बचाने की कोशिश हो या पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य दे। पाकिस्तान और चीन ना केवल ऑल वेदर फ्रेंड है बल्कि चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर सीपेक जैसे प्रोजेक्ट्स में उनकी अहमियत और बढ़ गई है। यानी भले ही मोदी और जिनपिंग की मुस्कुराहट तस्वीरों में दिखाई पड़े लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है और यही भारत के हितों के लिए बड़ा रोड़ा है। यही भारत को चीन पर भरोसा करने से रोकता है। सतर्क करता है। चीन की रणनीति भारत को हमेशा सतर्क रहने और एसइओ जैसे मंचों पर भी सावधानी के साथ कदम बढ़ाने के लिए कहती है। साफ है। रूस, चीन की तड़ी नाटो जैसी पक्की तो नहीं है अभी कम से कम। हां, यह तस्वीरें संदेश जरूर देने का काम करती हैं। लेकिन असली खेल भारत की कूटनीति है। जहां उसे दोस्ती और सतर्कता दोनों का बैलेंस बनाकर चलना होगा। अब सवाल है भविष्य किशोर। नरेंद्र मोदी पुतिन और जिनपिंग की मुलाकात ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचाई है। यह सिर्फ फोटो ऑप से थोड़ी ज्यादा लग रही है। तीन अलग-अलग महत्वाकांक्षाओं को रिप्रेजेंट करे। भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, चीन का ग्लोबल साउथ में नेतृत्व लीडरशिप करने का सपना और रूस का पश्चिम के खिलाफ रणनीतिक जुगन। इन तस्वीरों ने अमेरिका खासतौर पर ट्रंप को चेतावनी दी है कि भारत, रूस और चीन अगर चाहे तो दुनिया की ताकत को वो मिलकर पलट सकते हैं। लेकिन सवाल यही है कि क्या यह गठबंधन सच में मजबूत होगा या सिर्फ दिखावे तक सीमित रहेगा? इसका जवाब दो बातों पर निर्भर करता है। भारत और चीन के रिश्तों पर और अमेरिका के रुख पर। अगर ट्रंप नरम पड़ते हैं और भारत को साधने की कोशिश करते हैं तो फिर भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक बार फिर से गर्माहट आ सकती है। लेकिन अगर वही टेरिफ और दबाव की पुरानी नीति जारी रहती है तो भारत एससी और ब्रिज जैसे मंशों पर अपनी रणनीति को मजबूत कर सकता है। इसे सहारा बना सकता है। हां, इस गंभीर डिप्लोमेसी में थोड़ा मजाक भी जरूरी था और वो काम हमारे शहबाज चाचा ने कर दिया। उनके मीम्स ने कर दिया जहां पर ऐसे खड़े होके प्लीज सर प्लीज सर तो वो जो मीम्स बने वो याद भी दिलाते हैं कि चाहे राजनीति कितनी भी पेचीदा क्यों ना हो जनता को हंसाने और हंसने का या सोचने का कारण हमेशा मिल जाता है। खैर मजाक से तर पाकिस्तान तो हाल टल जाएंगे। उनके कई पापा हैं। कभी अमेरिका पापा या चाइना पापा में कहीं से वो भीख मांग लेंगे। लेकिन भारत के डिप्लोमेसी में भविष्य की तस्वीर अभी भी सुन ली है। हां, इतना जरूर तय है कि भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वो किसी एक धुरी पर नहीं है। वो अपनी जगह खुद बनाएगा। कभी ट्रंप को चढ़ाकर, कभी पुतिन को गले लगाकर, कभी शी जिनपिंग से हाथ मिलाकर। भारत अपने लिए सोचेगा, अपनों के बारे में सोचेगा और अपनी इंडिपेंडेंट पॉलिसी बनाएगा। एंड आई थिंक दैट इज द बेस्ट थिंग राइट नाउ। हम अपनी सोच से आगे बढ़ रहे हैं। कोई और हमें यह नहीं बताएगा कि तुमको ऐसा करना है। और इसीलिए शायद वहां से लड़ाई हो रही है। ब्राह्मण सारे पैसे खा रहे हैं। अंबानी को ब्राह्मण बना दिया। कमाल करते आप ट्रंप चाचा तुम्हारे लिए हवन हुआ था यार। मतलब वो भी समझने के लिए काफी है कि अतिशयोक्ति में विदेशी लोगों को इतना मत अपना। एनीवेज व्हाट डू यू थिंक इंडिया, चाइना, रशिया मिलकर कुछ करेंगे या सिर्फ तस्वीरों पे खत्म हो जाएंगे। जो भी है कमेंट सेक्शन में बताओ और पाकिस्तान की बेइज्जती पर भी दो शब्द लिख के चले जाओ। नहीं

44 Comments

  1. पाँच महाद्वीप हैं, और हर एक अलग-अलग देशों से मिलकर बना है। किसी भी देश का नाम पूरे महाद्वीप के नाम पर नहीं रखा जाना चाहिए, मानो वह अकेला ही हो। जैसे भारत का नाम सिर्फ़ एशिया के नाम पर नहीं रखा जा सकता, मानो वह उस महाद्वीप का एकमात्र देश हो, वैसे ही नई पीढ़ियों में अज्ञानता फैलने से रोकने के लिए हर देश को उसके नाम से पुकारना बेहतर है। और यह सच है कि भारत एक महाशक्ति बनेगा। यह मेगा कहलाने वाला पहला देश होगा।

  2. Nahi sir Chin trust aur ummid dono rakhane layak nahi hai kai baar pith pichhe khanjhar maare hai chin ne india k💔💔 but agar Rasia , India aur Chin ki gehri hoti jaa rahi 🤞dosti 🤞se Trump ko jalan ho rahi hai to hum to aur chahenge yeh dosti aur parvaan chadhe kyu ki jalane mai aur maza aata hai aur Trump chacha ki to aur bhi jyada 😍💯😜 Om Fat Swaha…. Aahaaaa👍👌🙊🙊😉😉😂😂😂

  3. Sabse jyada to tu palta

    Operation m digitally content se chap0 liye daba kei

    Ab china pei khud soft gaya

    Palturamon n apna naam bhi bata deta

  4. par modi ji ki lgta apne latesr tweet nhi dekha kio bjp k chkr mei khud ki itni bezati kra rhe ho kl video bnaoge k trum humara dost h

  5. Puchhana ye tha bhai ki chainij saman kharidna hai ki nahi😮😮
    Pahale bahishkar karane ke liye bolte hai ab unhi ke sath haath mila rahe hai

  6. बेचारे भिखारी को भिखारी भी कह दो तो बेचारे गुस्सा हो जाते हैं

  7. 💪💪💪💪🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇷🇺🇷🇺🇷🇺🇨🇳🇨🇳🇨🇳🇮🇱🇮🇱🇮🇱💪💪💪💪

  8. ❤❤❤🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇷🇺🇷🇺🇷🇺🇮🇱🇮🇱🇨🇳🇨🇳🇨🇳❤❤💪💪💪💪👍👍👍

  9. इस इंसाको गिरनेइंसान की बोलो बेकार है बोलनेकी तमीज।भुलाया बिहारी को तमीज नही कैसे बोलते बिहारियों का खाने कुछ खिलाया बिहारियों ये बोलता ने इस की बोली में कोई कुछ मिलकर सre बिहारियों को जलन होती बिहारियों ने

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