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#drtarang #cancerdoctor #cancer
Unplugged ft. Dr. Tarang Krishna | Cancer | Symptoms, Treatment | Chemotherapy | Cancer Doctor
#cancertreatment #health #yuvrajsingh #irfankhan #sushilkumarmodi #helthtips #cancerawareness #healthbook
Shubhankar Mishra: A journalist who navigates the spectrum from Aajtak to Zee News, now independently exploring social media journalism, with a knack for engaging political figures in insightful podcasts.
Shubhankar Mishra has been diving deep into political debates, spiritual podcasts, Cricket Podcast, Bollywood Podcast.
Time Stamp
00:00:00- Teaser
00:02:38- Introduction
00:04:50- Is cancer more dangerous than any other diseases?
00:06:18- If cancer is diagnosed, what should be done first?
00:08:00- How can cancer be prevented? Causes of cancer ?
00:14:12- Symptoms of cancer appear in the body, what should be done first?
00:15:39- How can cancer be detected through a normal blood test?
00:16:15- Can cancer be fully cured?
00:16:30- Can only rich people recover from cancer?
00:22:00- Where does India stand in cancer treatment?
00:23:46- What is cancer ? How and why does it start?
00:27:05- Can stress cause cancer?
00:28:15- Does smoking, drinking, and eating red meat increase the chances of getting cancer?
00:33:37- Does vaping cause cancer in the younger generation?
00:37:27- If cigarette packs warn about cancer, why still smoke?
00:39:19- Why do people smoke by copying actors?
00:40:52- Is cancer a genetic diseases ?
00:42:05- Does pollution cause cancer?
00:45:46- Is there a risk of getting cancer from gym supplements?
00:46:24- How many types of cancer?
00:48:25- Difference between tumor and cancer?
00:49:15- Is cancer more common in women or in men?
00:51:21- Why is cancer detected at the last stage?
00:53:36- Does a married man have a higher chance of getting cancer?
00:56:13- Difference between cancer in children and cancer in adults?
00:57:01- Is there any way to check for cancer at home?
00:58:27- Myth about cancer
00:59:08- Are there cancer treatments other than chemo?
01:04:32- About Navjot Singh Sidhu’s wife cancer treatment story
01:08:06- Can cancer spread through touch or living together?
01:10:42- Drinking water from plastic bottles or glasses cause cancer?
01:14:02- Is ghee better than oil?
01:15:27- Eating sugar or sugar-free items cause cancer?
01:16:04- Kitchen items that can cause cancer?
01:17:47- Which food good and bad for cancer ?
01:22:03- Positive manifestation help in curing cancer?
01:25:04- AI make cancer treatment easier in the future?
01:25:53- Chances of getting cancer higher during pregnancy?
2027 तक आते-आते शुभांकर हर 10 में से सात लोगों को कैंसर होने का खतरा है। कैंसर क्या है और कैसे क्षमा शरीर में आता है? कैंसर हमेशा अंदर रहता है। लेकिन वो तब बाहर आता है जब आपका इम्यून सिस्टम कॉम्प्रोमाइज हुआ। एंड देन कैंसर ने बाहर विकराल रूप ले लिया। किसी व्यक्ति को पता लगता है कि उसे कैंसर हो गया। क्या करना चाहिए सबसे पहले? जितना रोना है एक दिन रो लो। जितना डरना है एक दिन डर लो। कभी भी हॉस्पिटल के नाम से मत जाओ। डॉक्टर के नाम से जाओ। कैंसर बाकी बीमारियों से ज्यादा खौफनाक, खतरनाक क्यों हो जाती है? कैंसर मतलब मरना निश्चित है। मुझे लगता है कि हिंदुस्तान में ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं चलता कि कैंसर हो गया। इरफान खान साहब, एप्पल वाले स्टीव जॉब, बीजेपी के नेता सुशील मोदी जी। ये सब वो लोग थे जिनके आसपास डॉक्टर्स की टीम रही होगी, सक्षम लोग होंगे। इसके बावजूद कैंसर से क्यों नहीं जीत पाए? पैसे से आप कैंसर नहीं जीत सकते। बट कास्टेंट इरिटेशन कॉजेस कैंसर। ये चार वर्ड्स अगर आपने जिंदगी में याद कर लिए, आपको भविष्य में कैंसर नहीं छू सकता। हमारी रसोई में कौन-कौन सी चीज है जो कैंसर की तरफ बढ़ावा देती है? एलुमिनियम के बर्तन किचन से उठाकर फेंक दीजिए। आज के दौर में भारत का हेल्थ सिस्टम या आप जैसे डॉक्टर सबसे ज्यादा स्ट्रांग है। सबसे ज्यादा फास्ट है। जरूरत नहीं है आपको बाहर जाने की। अगर हम खुश रहते हैं बॉडी से और मेंटली तो क्या हम कैंसर से बच सकते हैं? बिल्कुल बच सकते हो। तंबाकू, सिगरेट, शराब इनमें सबसे ज्यादा कैंसर होने के चांसेस कैसे होते हैं? जो लोग अपनी जुबान केसरी करते हैं उन्हें बिल्कुल कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। मतलब मैं ये कह लूं कि जो एक्टर्स तंबाकू या मसाले का ऐड करते हैं ये एक्चुअली में मौत बांट रहे हैं। एक्चुअली में मौत बांट रहे हैं। अच्छा जो कि कॉलेज के बच्चे वेप करते हैं या स्कूल के बच्चे जो वेप करते हैं। लगता है ये तो नॉर्मल है। इससे कुछ खराब नहीं होता। उनके पेरेंट्स से यही हाथ जोड़कर गुजारिश करूंगा कि वो अपने बच्चों को समझाएं। उनको वेप छुड़वा दें। अच्छा सिगरेट पीने से आदमी कहता है कि सारी बीमारी होती है। क्या पोल्यूशन भी कैंसर होने का खतरा पैदा करता है? 1 लाख% हल्दी और अदरक अगर डेली सुबह अगर आपने ले लिया आप पोलशन से बच सकते हो। कितने टाइम पे कैंसर होते हैं? सैकड़ों। कितनी स्टेज होती है कैंसर की? चार। फोर्थ स्टेज लास्ट होती है। ऐसा क्यों होता है कि ज्यादातर केसेस में कैंसर जो है वो आखिरी स्टेज में ही पता चलता है। फिल्मों में भी जो दिखाते हैं वो फोर्थ स्टेज ही दिखाते हैं। फिल्मों में तो आपने ये भी देखा है कि कैंसर में एंड रिजल्ट ये होता है। एक पेशेंट मर जाता है। रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता। क्या घर पर खुद से कैंसर के शुरुआती लक्षण जांचने का कोई तरीका है? है। कैंसर के बारे में सबसे बड़ा मिथ क्या है? कि कैंसर ठीक नहीं हो सकता। कीबो के बिना भी इलाज संभव है कैंसर का? कैंसर से आदमी नहीं मरता। कैंसर के इलाज में जो टॉर्चर होता है उससे आदमी टूट जाता है। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनते ही मन में सवालों का तूफान आ जाता है। डर पैदा हो जाता है। लेकिन अब इस डर से आपको डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि कैंसर को लेकर जितने भी आपके मन में सवाल हैं आज उन सारे सवालों का जवाब हम आपको दिलाएंगे। उस शख्स से दिलाएंगे जिसने 10/10 के एक छोटी सी क्लीनिक से 20 साल पहले शुरुआत की थी और आज उसके 20 सेंटर हैं। तीन अस्पताल उसके हैं। 18 से 20 साल के एक्सपीरियंस उसके पास है। जिसने कैंसर को लेकर तमाम नए-नए तरह के प्रयोग किए हैं और देश दुनिया में तमाम लोगों कीिंदगियां बचाई हैं। तो कैंसर से डरिए मत। आज हमारे साथ उस यात्रा पर चलिए जो ना सिर्फ आपको जानकारी देगी बल्कि आपकी हिम्मत आपके हौसले को बढ़ाएगी और जितने भी आपके मन में कैंसर को लेकर मिथ हैं, सवाल हैं, डर है, खौफ हैं उन सबका जवाब भी दे जाएगी। हमारे साथ हैं डॉक्टर तरंग कृष्णा। बहुत-बहुत स्वागत सर। थैंक यू। थैंक यू शुभांकर। 10/10 से 20 साल में 20 सेंटर तीन अस्पताल। जी। ऊपर वाले की मेहर है। भगवान का आशीर्वाद है। नियत साफ है और बहुत ईमानदारी से काम करता हूं। बहुत अच्छी नियत से काम करता हूं। दो वर्ड्स हैं जो मेरे लाइफ के पिलर्स हैं। ऑनेस्टी एंड इंटेग्रिटी। ये मैं कभी नहीं छोड़ता। और शायद यही रीज़न है कि भगवान जब देखता है ईमानदारी भगवान जब इंटेग्रिटी देखता है तो आई थिंक वो हमेशा उसको ग्रो कराता है। वो हमेशा फिर फैलाता है। और शायद यही रीज़न है कि जिस मरीज को हम ट्रीट करते हैं। जिस मरीज को हम जिसको डॉक्टर्स जवाब दे चुके होते हैं। शुभांकर मेरे पास तो ऐसे-से मरीज आए हैं जिसमें डॉक्टर्स ने कह दिया था कि इसको घर ले जाओ, सेवा करो, कुछ नहीं हो सकता। हिंदू फैमिली के हिसाब से बोल दिया कि गाय दान कर चुके हैं। ऐसे ऐसे मरीज मेरे यहां 7-सा साल से जिंदा है। ऐसे-ऐसे मरीज 8आ साल के जिंदा है। तो सोचो जिसमें एक मरीज जिसको लोगों ने जवाब दे दिया। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया कि ये नहीं बचेगा। अगर उसको आपने बचा लिया तो वो अकेला मरीज नहीं बचा। उसका पूरा परिवार बचा तो वो मरीज की दुआएं लगेंगी ना। तो वो दुआएं ही मिलती हैं। और शायद इन ब्लेसिंग्स की वजह से ग्रो कर रहे हैं। अगर आप आज इतने अच्छे पॉडकास्टर हो। आज आप इतना ग्रो कर रहे हो। इतनी अमेजिंग टीम है, इतनी बड़ी टीम है तो शायद ये आपके ब्लेसिंग्स ही है ना जिसकी वजह से आप ग्रो कर रहे हो। अच्छे काम को हमेशा अगर ब्लेसिंग सपोर्ट करे देयर इज नो लुकिंग बैक। आप कभी नहीं रुकोगे। मेरे को सर आप एक बात बताओ। दुनिया में कोई बहुत सारी बीमारियां हैं। जी अलग-अलग बीमारियां हालांकि सारी बीमारियां जो है वो डराती हैं। जी। कैंसर बाकी बीमारियों से ज्यादा खौफनाक, खतरनाक, डरावनी क्यों हो जाती है? लोगों ने वो डर पैदा किया हुआ है। कैंसर मतलब डेथ, कैंसर मतलब मौत। उसका पर्याय बना दिया मृत्यु का कि कैंसर मतलब मरना निश्चित है। और प्रॉब्लम यह होती है जैसे ही कैंसर का डायग्नोसिस होता है यहां पर फिगर आ जाता है कि अब तो मरना ही है। अब तो एंड है। अब तो ये होता है कि जब किसी को डायग्नोसिस बताया जाता है तो बेटे को किनारे ले जाते हैं और उसको धीरे से बोलते हैं बेटा इनकी जो भी एफडी वगैरह तुड़वानी है तुड़वा लो। अगर तुम्हारी शादी नहीं हुई है तो शादी कर लो। इनके समय रहते हुए जो भी करना है कर लो। बिकॉज़ इनकी लाइफ इतनी है और डॉक्टर्स लाइफ बता देते हैं कि अब इनको इतने समय जीना है और वहीं पर ही जब आपको फीड किया जाता है डर और डर सारे इमोशंस में अगर जितने भी इमोशंस हैं लव, रेज, एंगर, जेलसी, फियर, फियर सारे इमोशंस में वर्स्ट इमोशन है। तो अगर आप वर्स्ट इमोशन के साथ सोच रहे हो तो डिसीजन आप सही नहीं लोगे। सो यहां से शुरुआत होती है और कभी भी कैंसर में अगर आप ट्रीटमेंट के लिए भी जाओगे तो जब फियर इमोशन आपके साथ है तो जो डिसीजन होगा वो गलत होगा। जो आउटकम होगा वो गलत होगा। बिकॉज़ सोच अगर नकारात्मक हो तो रिजल्ट नकारात्मक आता है। तो आपने तो शुरुआत ही नकारात्मक तरीके से करी। अरे मैं तो नहीं बचूंगा। तो जब नहीं बचूंगा तो फिर आउटकम भी वही है ना। तो मान लो किसी व्यक्ति को पता लगता है कि उसे कैंसर हो गया। आई एम श्योर जैसा आपने कहा डर लगता है। क्या करना चाहिए सबसे पहले। अगर पता लग गया। जितना रोना है एक दिन रो लो। जितना डरना है एक दिन डर लो। अगले दिन सुबह उठो। कागज पेंसिल लेकर बैठ जाओ। क्या-क्या ऑप्शंस हैं? क्या ट्रीटमेंट करना चाहिए? कितनी ओपिनियंस लेनी चाहिए? किस-किस को कंसल्ट करना चाहिए? व्हाट आर द थिंग्स टू बी डन? किस हॉस्पिटल में जाना चाहिए? किस डॉक्टर से जाना चाहिए? कभी भी हॉस्पिटल के नाम से मत जाओ। डॉक्टर के नाम से जाओ। इफ यू आर गोइंग टू गेट योरसेल्फ ट्रीटेड। अगर आपको अपना ट्रीटमेंट कराना है तो आप डॉक्टर के पास जाइए कि क्या इसकी सर्जरी की रिक्वायरमेंट है? कीमोथेरेपी की रिक्वायरमेंट है? रेडियोथरेपी की रिक्वायरमेंट है या फिर इम्यूनथरेपी की रिक्वायरमेंट है या ये सब नहीं कराना अल्टरनेटिव ट्रीटमेंट कराना है। जो भी कराना है आप कागज पेंसिल लेकर बैठ जाइए। देन सी दैट आउटकम बिकॉज़ कैंसर में एक ट्रायड जरूरी होता है। एक ट्रायंगल होता है जिसमें एक कोने पर होता है स्ट्रांग विल पावर। दूसरे में सपोर्ट सिस्टम। उस आपके रिश्तेदार आपके साथ कितने खड़े हैं और तीसरा होता है सही इलाज। अगर इलाज सही है, अगर आपके में विल पावर है और आपका सपोर्ट सिस्टम स्ट्रांग है, आप कैंसर से नहीं हार सकते। आप कैंसर से नहीं हार सकते। अगर आपका माइंड स्ट्रांग है कि मुझे जीतना है, मुझे जीतना है, मुझे जीतना है, मुझे जीतना है। आप नहीं हार सकते। अगर आपके साथ आपके रिश्तेदार खड़े हैं, आपका घर वाले खड़े हैं। जो घर में आकर आपके सामने नेगेटिव इमेज नहीं लेकर आ रहे। जब घर वाले आपसे मिलने आ रहे हैं, जब रिश्तेदार आपसे मिलने आ रहे हैं, वो यह लेकर नहीं आ रहे। ओ जैसे कोई अगर नहीं बचता या कोई अगर बहुत दुख की बात है। ये प्रॉब्लम है। उन रिश्तेदारों को घर में एंट्री बंद करा दो इफ यू हैव टू गेट योरसेल्फ ट्रीटेड अगर आपको ठीक होना है तो। व्हाई? बिकॉज़ जब आप नेगेटिव थिंकिंग के साथ शुरुआत करते हो तो रिजल्ट और आउटकम नेगेटिव ही आता है। अगर आप पॉजिटिव थिंकिंग के साथ शुरुआत करते हो तो पॉजिटिव ही आता है। अब यहां पर मेरे मन में एक सवाल आता है कि कई बार यह एहसास ही नहीं होता कि उस व्यक्ति को कैंसर हो सकता है। जैसे मैं मुझे याद है 2011 का वर्ल्ड कप चल रहा था। युवराज सिंह साहब बढ़िया खेल रहे थे। इंडिया के लिए मैच मैच जीता रहे थे। फिर खबर आती कि उन्होंने कैंसर हो गया। और हम सब हैरान थे कि एक आदमी जो एथलेटिक इतना गेम खेलता है जो फिजिकली फिट है। क्रिकेट में मेंटल टफनेस भी होती है। पॉजिटिव भी लाइफ में है। लाइफ में सब अच्छा चल रहा है। मुझे लगता है कि हिंदुस्तान में ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं चलता कि कैंसर हो गया। जैसे युवराज के केस में हुआ। उन्हें भी नहीं एहसास था और वो काफी आगे बढ़ गया। तो ये इससे कैसे बचें? यह बहुत स्केरी लगता है। जैसे आज मैं आपसे बात कर रहा हूं। कल को मान लीजिए निकल आया। अरे ऐसा नहीं बोलो। मैं एक बात कह रहा हूं। ऐसे बहुत लोगों में निकलता होगा। तो इसके लिए क्या करना चाहिए? कोई भी चीज अगर आपके शरीर में कांस्टेंटली इरिटेट कर रही है। ओके? तो वो कैंसर का रूप ले सकती है। ये चार वर्ड्स अगर आपने जिंदगी में याद कर लिए आपको भविष्य में कैंसर नहीं छू सकता। कॉन्सेंट इरिटेशन कॉजेस कैंसर। इरिटेशन किस-किस कॉन्टेक्स्ट में? हर कॉन्टेक्स्ट में। फिजिकल इरिटेशन, मेंटल इरिटेशन, इमोशनल इरिटेशन, स्पिरिचुअल इरिटेशन। मैं एक-एक करके सब बताता हूं। फिजिकल इरिटेशन मतलब अगर आपके गालों के बीच में दांतों के बीच में गाल आ रहा है एंड इट इज़ लीडिंग टू अ वाइट स्पॉट देयर। अगर लग रहा है कि अंदर कोई वाइट स्पॉट बन गया क्योंकि आपका बार-बार गाल कट रहा है। तो कॉन्सेंटली इरिटेट कर रहा है। इट माइट लीड टू कैंसर। कोई बार-बार आपको डायरिया, फिर कॉन्स्टिपेशन, फिर डायरिया, फिर कॉन्स्टिपेशन। अल्टरनेट चल रहा है। और हर बार कहा जाता है अरे इसका पेट ठीक नहीं रहता। कैन लीड टू कैंसर। बार-बार छाती में गांठ फील हो रही है और पीरियड्स के टाइम पर दर्द बढ़ जा रहा है। लग रहा है कि अरे ब्रेस्ट की तो वैसे ही पेन होता है पीरियड्स के टाइम पर तो कहीं नॉर्मल पेन ना हो। एंड वो पेन बढ़ता जा रहा है। आप उसको ओवरलुक कर रहे हो। इग्नोर कर रहे हो। कैन लीड टू कैंसर। पेट में दर्द उठा चला गया। अगले दिन फिर हुआ चला गया। फिर ठीक हुआ। अरे गैस बन रही होगी। वो जो छोटा-मोटा सोच लेते हो ना। आप अरे गैस बन रही होगी। अरे सर दर्द हो रहा होगा। कैन लीड टू कैंसर। चल रहे थे। चक्कर आए लगा कि अरे हो सकता है सर्वाइकल स्पॉन्डिसिस हो उसकी वजह से चक्कर ना आया हो। एंड देन फिर वापस नॉर्मल फिर एक महीने बाद आया कैन लीड टू ब्रेन ट्यूमर। सो अंदर बीमारी हमेशा सिग्नल देती है। लेकिन आप उसको पकड़ नहीं पाते। इमोशनल इरिटेशन मतलब बार-बार इरिटेशन फ्रस्ट्रेशन दिखाना, जेलसी दिखाना, दूसरों के घर में क्या चल रहा है उसकी जेलसी दिखाना। दिस इरिटेशन आल्सो लीड्स टू हमारे हिंदुस्तान में आधे लोग करते हैं। तो तभी तो कैंसर इतना ज्यादा फैल रहा है। सब अपने पड़ोसी घर में देखते रहते हैं क्या चल रहा है? तो कैंसर का कारण ही यही है। मेंटल, फिजिकल, इमोशनल, स्पिरिचुअल इरिटेशन। तो इमोशनल अगर एक लेडी आई मेरे पास। मैंने इसका एग्जांपल पहले भी दिया है। एक लेडी आई मेरे पास। बिल्कुल हिमाचल में रहती हुई और पहाड़ों में रहती थी। सूरज ढलने से पहले खाना खा लेती थी और उसने मेरे पास आई। रोते हुए बोली कि डॉक्टर साहब ऐसे-ऐसे हैं। मैंने तो कभी कुछ नहीं किया। मेरे सब कुछ अच्छा था। मैंने तो समय रहते हुए खाना खाया। हमेशा वेज खाना खाया। कोई प्योर मैं पहाड़ों में रही हूं। कभी कुछ नहीं हुआ। मुझे कैसे हो गया? और डिग किया और डिग किया। केस टेकिंग के टाइम पर सारा पूछा। जब वो प्रेग्नेंट थी तो प्रेग्नेंट होने के टाइम पर उसके हस्बैंड का अफेयर चल रहा था। और उसका हस्बैंड वापस आकर उसको वो शक की नजरों से उसको देखती थी, बोलती थी। उसको शक हो गया था। तो वो आकर उसको हमेशा मारता था और उसको यह था कि भाई मेरे पेट में बच्चा है मैं कुछ नहीं कर सकती छोड़ के भी नहीं जा सकती पति को भी नहीं छोड़ सकती मैं क्या करूं| उसके साथ वो सहती रही जब हुआ डिलीवरी हुई 2 साल बाद 4 साल बाद आई बिलीव छह साल बाद बच्चा छह साल का था कैंसर डायग्नोस हुआ भले आप पहाड़ पर रहते थे प्योर खाना खाते थे साथ सोच थी सब कुछ था लेकिन इमोशनल इरिटेशन था पति के धोखा झेल रही थी कैंसर ये सारी प्रॉब्लम होती है तो बहुत स्केरी फिर अगर आपको सात्विक तभी कहते हैं कि चार चीजें हमेशा बहुत जरूरी है। अच्छा माइंडसेट, अच्छा हेल्थ सेट जैसे आपने कहा जिम जाना और बाकी सारा वर्कआउट्स अच्छा सोल सेट और अच्छा इमोशनल सेट, हार्ट सेट। अगर दिल प्योर है, अगर दिमाग प्योर है, अगर सोच अच्छी है। मुझे आने में यहां 2 घंटे लगे। मुझे कोई इरिटेशन नहीं हुई। कोई इरिटेशन नहीं। आगे एक ट्रक फंसा पड़ा था। चीजें थी, अटक रहे थे। कोई ड्राइवर परेशान हो रहा था रेस्टलेस। सर हम लेट हो जाएंगे, लेट हो जाएंगे। कुछ नहीं। क्या कर लोगे आप? सोचो आप कि आप एक प्लेन में बैठे हो। प्लेन में टर्बुलेंस है। पायलट है। पायलट चला रहा है। आप थोड़े ना जाकर कॉकपिट पर बैठ जाओगे। जस्ट रिलैक्स। क्या करोगे इरिटेशन करके? बट दैट्स वै स्केरी। क्योंकि ये चार जो आपने परेशानियां बताई इनमें तो ऑलमोस्ट हर इंसान किसी ना किसी चीज से सफर कर रहा है। तो वही तो ऑफ बॉडी से कर रहा है, कोई इमोशनल कर रहा है, कोई अलग लेवल पे कर रहा है। लिटिल स्ट्रेस ना शुभांकर लाइफ में बहुत अच्छे होते हैं। बिकॉज़ आप अपने पीक परफॉर्मेंस पे आते हो। जब ये स्ट्रेस लगातार पर्सिस्ट करता है ना दैट्स वेयर इट इज बैड। वो गलत हो जाता है। छोटे-छोटे स्ट्रेस स्पर्ट्स ऑफ स्ट्रेस अच्छे हैं। बट जब वो स्ट्रेस लगातार चलते हैं ना वहां प्रॉब्लम होती है। तो ये अगर कोई भी अगर इन सब चीजों से डील कर रहा है चाहे फिजिकल इरिटेशन से चाहे मेंटल इरिटेशन से चाहे इमोशनल इरिटेशन से। लाइफ में हर चीज का एक ऑप्शन है जिसको आप फॉलो कर सकते हो। जिससे आप एटलीस्ट वापस रिसेट बटन दबा सकते हो। इरिटेशन आता है, फ्रस्ट्रेशन आता है। आपके हर चीज आपके अनुसार नहीं चलती। हर चीज आपके जैसा आप अच्छा सोच रहे हो। जरूरी नहीं है कि आपका जिसके साथ आप डील कर रहे हो वो अच्छा सोचे। बट व्हिच इज़ फाइन। आप वापस रिसेट करके जो भी इमोशन है जैसा भी है आप उसको डील करना सीखो ना। अब जैसे मेरी मेरी बाई आंख के ऊपर लगातार फड़फड़ाना शुरू हुआ है। बीते कुछ दिनों से वो लगातार इरिटेशन होना शुरू हो गया है। शुरू में मुझे लगा अच्छा चश्मे का इशू होगा। मैंने किया थोड़ा बेहतर हुआ। अभी भी आ रहा है। तो क्या मुझे स्केयर होकर टेस्ट करवाना चाहिए? नहीं। स्केयर इज अ रॉन्ग वर्ड। स्केयर गलत वर्ड है। मैंने बताया ना सारे इमोशन में फियर नहीं होना चाहिए। डर नहीं होना चाहिए। एक नॉर्मल ब्लड प्रेशर भी तो चेक कराओ। बिकॉज़ उसकी वजह से भी यहां पर जो आप कह रहे हो आंखें फड़फड़ाना वो भी होता है। सो एक बार ब्लड प्रेशर चेक करा सकते हो। एक नॉर्मल लिपिड प्रोफाइल और थायरॉइड प्रोफाइल चेक करा सकते हो। एक लिपिड प्रोफाइल चेक करने पर आपको ट्राइग्लिसराइड्स, कोलेस्ट्रॉल सारी चीजें पता चलेंगी। एंड गेट योर सीबीसी चेक। तो चलिए मैं इसको और जनरलाइज करता हूं। जैसे आपने कहा कि अगर आपकी बॉडी इरिटेट कर रही है तो आप वो कैंसर के लक्षण हो सकते हैं। मेरी बॉडी मान लीजिए कोई एक्स व जेड पर्सन है उसको एहसास होता है कि उसकी बॉडी में कुछ इश्यूज आ रहे हैं या मेंटल या जो भी आपने चार इमोशनल बात कही। अब ये एहसास होने के बाद पहला स्टेप क्या होना चाहिए? ब्लड टेस्ट। सबसे पहले ब्लड टेस्ट। कंप्लीट ब्लड काउंट, एलएफटी, लिवर फंक्शन टेस्ट, किडनी फंक्शन टेस्ट, लिपिड प्रोफाइल, ब्लड शुगर फास्टिंग, एचबी एवन सीसी जो पिछले तीन महीने की शुगर बताता है और पुरुषों के हिसाब से पीएसए सीरम पीएसए लेवल। 30 साल के ऊपर लोग आजकल कहते हैं 60 साल के ऊपर मैं नहीं मानता। 30 साल के ऊपर जिस हिसाब से कैंसर फैल रहा है, 30 साल के ऊपर पीएसए टेस्ट करा लेना चाहिए। हम महिलाओं में सीबीसी कंप्लीट ब्लड काउंट एलएफटी केएफटी लिपिड प्रोफाइल थायराइड प्रोफाइल और इसके साथ-साथ एचबी1 सी जो तीन महीने की ब्लड शुगर है ब्लड शुगर फास्टिंग और तीन कैंसर मार्कर्स सीए 15.3 सीईए एंड सीए 125 ये अपने टेस्ट में शामिल कराना ही कराना चाहिए। एटलीस्ट आप समय रहते हुए अगर आप यह हर साल कराते रहोगे। सो गॉड फॉरबिट अगर कुछ भी कोई चेंजेस दिखते हैं या कुछ भी अगर दिखता है वेरिएशन है तो आप समय रहते हुए आपने डायग्नोस कर लिया। अर्ली डायग्नोसिस मींस अर्ली क्योर। जितनी जल्दी डायग्नोस होगा, बिना सिम्टम के डायग्नोस होगा, बिना कुछ कहते हैं स्टेज वन में डायग्नोस होगा, आप उतनी जल्दी ठीक। जैसे मेरे पास कुछ लोगों ने सवाल भेजे थे कैंसर की शुरुआती जांच या जो नॉर्मल ब्लड टेस्ट या बाकी टेस्ट होते हैं, उसमें से कैसे पता लगेगा कि कैंसर के संकेत हैं। ब्लड टेस्ट तो लोग करवाते रहते हैं। अगर उसमें कहीं पे भी वेरिएशन आया है, फिर उसके बाद नेक्स्ट लेवल टेस्ट कराए जाएंगे। बट इनिशियल फर्स्ट लेवल पर ये वाले टेस्ट कराने हैं जिसमें सीबीसी एलएफटी केएफटी प्लस सीए मार्कर्स सीए 72.4 एक मार्कर होता है जो आपको स्टमक कैंसर और इंटेस्टाइनल कैंसर पहले ही बता देता है। तो अगर आप ये टेस्ट कराओगे ये अपने टेस्ट में इंक्लूड करोगे C19.9 पैंकक्रिएटिक कैंसर का मार्कर है। वो तभी बढ़ेगा ना जब आपको कोई पैंकक्रियास पैंकक्रियाज में शिकायत होगी। सो इट्स बेटर टू गेट इट डन। कैंसर जड़ से खत्म हो सकता है। कैंसर बिल्कुल जड़ से खत्म हो सकता है। अगर समय रहते हुए आपने उसको ट्रीट करा दिया। जब आपके अंदर हिम्मत है, इच्छाशक्ति है ठीक होने की। एक सपोर्ट सिस्टम है पूरे परिवार का और इलाज सही है। कैंसर बिल्कुल ठीक हो सकता है। कैंसर से सिर्फ अमीर आदमी ठीक हो सकता है? नहीं नहीं। क्या ये सिर्फ अमीरों के लिए है क्योंकि एक परसेप्शन है। कैंसर का इलाज बहुत महंगा है। बहुत पैसा खर्चा होता है। गरीब आदमी अफोर्ड नहीं कर सकता। नहीं ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं है। कैंसर पहली बात तो कोई कलर, क्रीड, कास्ट, कोई जाति, कोई पैसा, कैंसर अगर पैसा देखकर पैसा जो अमीर आदमी है अमीर आदमी ही केवल ठीक हो रहे होते तो आज स्टीव जॉब्स जिनको पैंकक्रिएटिक कैंसर था वो जिंदा होते। तो ऐसा नहीं है। इट इज अगर आपके अंदर पूरा उसको लड़ने का वो सक्षमता है। अगर इलाज सही है, अगर प्रॉपर अर्ली डायग्नोसिस हुआ है, अगर रिकवरी अच्छी आ रही है, अगर रिसोंड किया है ट्रीटमेंट को लेके तो रिकवरी आती है। देखो कैंसर में ना अकेले ठीक होने से ज्यादा एक जर्नी इंपॉर्टेंट होती है। वो जर्नी क्या होती है कि सबसे पहले क्वालिटी ऑफ़ लाइफ। अगर डायग्नोस हुआ है तो सबसे पहले जरूरी है कि भाई जितना जीना है पहले अच्छे से जियो। क्वालिटी ऑफ़ लाइफ के साथ जियो। एक बार ये अचीव हो जाए। फिर नेक्स्ट स्टेप होता है लोंजिविटी। मतलब आपको देखकर ना लगे कि आप कैंसर से पीड़ित हो। आपको देखकर लगे कि कोई आपकी उम्र प्रिडेट ना कर सके। अरे ये तो नहीं बचना। बिकॉज़ कहीं ना कहीं आपको दिख जाता है कि समबडी हु इस नॉट गोइंग टू सर्वाइव। वो आपको दिख जाएगा कि ये कमजोर दिख रहे हैं। राइट? तो लोंजिविटी मतलब इन्हें देखकर लग रहा है कि हां ये लंबा जिएंगे। फिर स्टेबिलिटी आए कि जब आप स्कैन कराओ, जब आप पेट सिटी स्कैन कराओ, पेटसिटी एक स्कैन होता है जो कैंसर के लिए कराया जाता है। तो जब आप स्कैन कराओ तो उसमें आपको दिखे कि हां बीमारी रुकी हुई है। फिर अगली बार जब आप स्कैन कराओ तो उसमें दिखे कि बीमारी कम हो रही है। व्हिच इज़ रिग्रेशन और फिर फाइनली नेक्स्ट स्टेप है क्योर। फिर फाइनली ठीक हो जाए। एंड रिजल्ट है आपको पता है कि आपको जीतना है। बट आप पहले ओवर में नहीं जीत सकते। अगर आप बैटिंग सेकंड कर रहे हो और आपको एक टारगेट चस करना है। पहले ओवर में नहीं जीत सकते। जर्नी की तरह लोग कैंसर के इलाज को। और वो जर्नी में यह सोचो कि हां मुझे जीतना है। लेकिन हर एट स्टेप जरूरी है। पहला स्टेप कम से कम अच्छे से जिए। हम दूसरा स्टेप लंबा जिए। देख के ना लगे कि हां मैं बीमार हूं। तीसरा स्टेप बीमारी रुकी हुई आए। चौथा स्टेप बीमारी कम हो जाए। पांचवा स्टेप जीत जाओ। ठीक हो जाओ। यह कैंसर की जर्नी होती है। और अगर हर पेशेंट यह जर्नी को समझ ले या हर इंसान चाहे किसी भी चीज में यह छोटी-छोटी जीत इंपॉर्टेंट होती है। हर मुकाम पर वो अलग-अलग जीत मिलना वो इंपॉर्टेंट होती है। बॉलीवुड से इरफान खान साहब एप्पल वाले स्टीव जॉब या बीजेपी के नेता सुशील मोदी जी। जी ये सब वो लोग थे जिनके आसपास डॉक्टर्स की टीम रही होगी। सक्षम लोग होंगे। अमीर थे। पैसों की कोई कमी नहीं थी। इसके बावजूद कैंसर से क्यों नहीं जीत पाइए? क्योंकि पैसा आपको नहीं जीताता। बट अगर कैंसर से जीतना है तो कई सारे कॉम्बिनेशंस होते हैं जिसमें काम करते हैं। कोई किसी की लाइफ में क्या चल रहा होता है आप को नहीं पता होता। वो क्या स्ट्रगल फेस कर रहा होता है नहीं पता होता। ट्रू। अगर आपके साथ वो दोस्त खड़ा है जो आपको लगातार पुश कर रहा है कि तुझे जीतना है तो आप जीत जाओगे। अगर आपके साथ वो एनवायरमेंट है कि जहां पर कोई नेगेटिविटी की एंट्री ही नहीं है तो आप जीत जाओगे। अगर आपके साथ वो इलाज है जिसमें वो डॉक्टर वो टीम आपके साथ खड़ी है जिसमें आपको वो हारने का मौका ही नहीं दे रही तो आप जीत जाओगे और अगर आपने मन में ये ठान लिया कि चाहे आप बीच में कितना कमजोर हो चाहे शरीर में कितना भी दर्द हो चाहे कंडीशन कितनी भी वर्स हो नहीं मैं बेहतर हूं आप पॉजिटिव मैनिफेस्ट कर रहे हो पॉजिटिव एक्सपेक्ट कर रहे हो और पॉजिटिव आउटकम आ रहा है तो ऐसा होगा नहीं कि आप ना जीतो देखो कैंसर के आउटकम में आप ऐसा नहीं हो सकता क्या वजह रही होगी जो ये तीनों लोग सर्वाइव नहीं कर पाए ऐसे कहना बहुत मुश्किल है कि इनका क्या जनरलाइज ट्रीटमेंट अगर आपको देना हो ये काफी देर से डायग्नोस हुआ यह वजह हो सकती है पावर कम थी रही होगी क्या वजह लगती है लेट डायग्नोसिस हमेशा एक कारण होता है जब बीमारी अपनी जगह से स्टार्ट होकर लिवर में लंग्स में बोनस में ब्रेन में फैल जाए तो ऑब्वियसली प्रोग्नोसिस जो मतलब उसका आउटकम होता है वो हमेशा डिफरेंट होता है जब अर्ली स्टेज होती है तो रिकवरी बहुत सक्षमता होती है बहुत अच्छी परसेंटेज होती है जितना जितना जितना बीमारी फैलती जाती है स्टेज फोर पे आ जाती है। जब बीमारी एक स्टेज पे आ जाती है जब ऑलमोस्ट ऑर्गन्स इनवॉल्व कर लिए और वो ऑर्गन्स से रिवर्सिबल नहीं हो पा रही बीमारी तो आप एक्सपेक्ट करो कि भले ही ना क्योर हो लेकिन क्वालिटी ऑफ़ लाइफ रहे। क्वालिटी ऑफ़ लाइफ मेंटेंड रहे। लोंजिविटी आ जाए। जिसको शायद एक हफ्ते का मेहमान बताया वो एक साल जी जाए इट इज़ एन अचीवमेंट। और अच्छे से जिए। इट इज़ एन अचीवमेंट। मुझे कहना नहीं चाहिए। बट मेरे पास ऐसे कुछ लेटर्स आते हैं जिसमें मुझे पेशेंट कहते हैं कि उनके रिलेटिव्स ने लेटर्स दिए हैं और उसमें लिखा है कि दो मेरे माय फादर इज़ एक्सपायर्ड। मैं हिंदी में बताता हूं कि मेरे फादर की डेथ हो गई है और मुझे पता है कि आप उन्हें नहीं बचा पाए। लेकिन मैं आपके पास तब आया था जब मुझे एक हफ्ते की लाइफ बताई थी मेरे फादर की। और वो डेढ़ साल जिए और आखिरी दिन भी उन्होंने पूरी मांग के खाई है। उन्हें पूड़िया बहुत पसंद थी। तो आखिरी दिन भी उन्होंने पूरी मांग के खाई है। तो मैं आपको दिल से शुक्रिया अदा करता हूं कि एटलीस्ट जिसको एक हफ्ते की लाइफ बताई थी आपने उसे डेढ़ साल जिया। अब मैं हमेशा ये कहता हूं कि मैंने कुछ नहीं किया। करने वाला ऊपर वाला है। ऊपर वाले ने हर किसी को जितनी उम्र दी है वो उतना जीता है। केवल हम लोग एक माध्यम मात्र बन जाते हैं। शायद ऊपर वाले ने उनकी उम्र उतनी लिखी थी हमारे थ्रू वो ट्रीटमेंट के थ्रू और ऑब्वियसली सपोर्ट सिस्टम के थ्रू वो उतना जी गए। कैंसर कैंसर के इलाज में भारत कहां अखाड़ा? क्योंकि जब हम बड़े लोगों का नाम सुनते हैं तो जैसे ही पता लगता है कि कैंसर डायग्नोस हुआ है। पता लगता है वो विदेश में चले गए अपना इलाज करवाने के लिए। ज्यादातर जो बड़े नाम सुनाई पड़ते हैं मुझे कि ये व्यक्ति बाहर चला गया। युवराज सिंह का मैंने जिक्र किया। इरफान साहब का जिक्र किया। ये सब विदेश चले गए। ऋषि कपूर साहब भी बाहर गए थे। ऋषि कपूर साहब बाहर गए। तो ऐसा नहीं होता कि बाहर जाने पर आप ठीक हो जाते हो। तो यही मैं जानना चाह रहा हूं कि भारत कहां खड़ा है? कैंसर के इलाज में आज के दौर में भारत का हेल्थ सिस्टम या आप जैसे डॉक्टर सबसे ज्यादा स्ट्रांग है। सबसे ज्यादा फास्ट है। सबसे ज्यादा ताकतवर है। और जिस तरह जिस तरह प्राइम मिनिस्टर मोदी जी ने मेक इन इंडिया कैंपेन दिया। हर एक चीज में इंडिया को आगे किया है। वैसे ही मैं हमेशा कहना चाहूंगा हील इन इंडिया कैंपेन। हील इन इंडिया मतलब आपको जरूरत नहीं है बाहर जाने की। इंडिया अकेले हील करने में सक्षम है। इंडिया के पास वो पद्धतियां हैं, इंडिया के पास वो ट्रीटमेंट्स हैं जो आप शायद बाहर भी लोगे उससे बेहतर मिलेंगी। इंडिया से ही योगा शुरू हुआ है। इंडिया से ही नेचुरोपैथी शुरू हुआ है। तो क्यों आपको बाहर जाना है? अगर एक कॉम्बिनेशन किया जाए जहां पर कॉम्प्लीमेंट्री ट्रीटमेंट, अल्टरनेटिव ट्रीटमेंट और मॉडर्न मेडिसिन ये सब मिलकर कोलैबोरेट कर कर ट्रीट करके पेशेंट को अगर बाहर निकालती है तो व्हाई नॉट? आज शायद जो पद्धतियां हैं आयेदा, होम्योपैथी, नेचुरोपैथी, योगा ये जितना आयुष वाली ट्रीटमेंट्स हैं ये सब अगर आप मॉडर्न मेडिसिन के साथ कंबाइन करो तो एक पेशेंट को एक अच्छा ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। एक 360° अप्रोच दी जा सकती है। जहां पर पूरे तरीके से आपको ये उम्मीद नहीं करनी कि क्या ट्रीटमेंट से पेशेंट ठीक होता है। इट डजंट मैटर। आउटकम से फर्क पड़ना चाहिए कि चाहे जिससे भी ठीक हुआ हो, पेशेंट रिकवर हुआ। चाहे जिससे भी ठीक हुआ हो एटलीस्ट रिकवरी दिखी इंप्रूवमेंट आया बेहतर हुआ आई थिंक आउटकम इज मोस्टेंट कैंसर क्या है और हमारे शरीर में कैसे और क्यों शुरू होता है क्यों तो बता दिया आपने कैसे क्षमा शरीर में आता है कैंसर में हर एक सेल बहुत तेजी से मल्टीप्लाई करते हैं। कैंसर में क्या होता है? जब डीएनए लेवल पर जब चेंजज़ आते हैं तो एक सेल जनरली एक कोई भी एक सेल होगा शरीर में तो वो 1 * 2, 2:4, 4:8, 8:16 ऐसे रूटीन में मल्टीप्लाई करता है ताकि वो डीजनरेट ना हो, डिक ना हो। अब जब डीएनए में चेंजेस आते हैं, जब सेल्यूलर चेंजज़ आते हैं तो ये जो मल्टीप्लिकेशन है, ये गड़बड़ा जाती है। मैं बहुत ही सिंपल शब्दों से समझा रहा हूं। और इसमें फिर माइटोसिस शुरू होती है जिसमें एक के बजाय आठ बनते हैं। आठ के बजाय 64 बनते हैं। 64 के बजाय 256 बनते हैं। और ये बहुत तेजी से मल्टीप्लाई करती है। और ये जब मल्टीप्लिकेशन आउट ऑफ कंट्रोल चला जाता है वो कैंसर का रूप ले लेता है। जहां पर बॉडी के कई सारे सिस्टम जब आपके इम्यून सिस्टम कम हुआ जब आपकी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हुई तब कैंसर ने रूप सामने कर लिया। कैंसर हमेशा अंदर रहता है। लेकिन वो तब बाहर आता है जब आपका इम्यून सिस्टम कंप्रोमाइज हुआ। आपका अंदर का एनवायरमेंट उसको वो सक्षम शक्ति खत्म हुई। कमजोर पड़ी एंड देन कैंसर ने बाहर विकराल रूप ले लिया। मैं फिर से अगर एक बार आपसे कहूं कि कैंसर से बचना हो एक आम इंसान को तो क्या चार चीजें करनी चाहिए? चार चीजें जो जरूरी है कैंसर से बचने के लिए तो सबसे पहला अच्छा खाना। जितना हो सके अच्छा खाएं। सब्जियां धोकर खाएं और जो भी वेजिटेबल्स आप ले रहे हैं भले ही ऑर्गेनिक अगर नहीं ले सकते सब्जियां हरी सब्जियां खाएं, टमाटर खाएं, गाजर खाएं बट धोकर खाएं और सात्विक खाना खाएं। दूसरा सुबह उठकर योग करें और मेडिटेशन करें। मेडिटेशन मतलब सवेरे सुबह सबसे पहले उठकर फोन ना देखें। जस्ट रिलैक्स होकर केवल मेडिटेशन करें। अपने मेंटली अपने आपको काम करें और एक अच्छा सा मेडिटेशन गाइडेड मेडिटेशन कर सके तो वो बेहतर है। तीसरा अगर हो सके व्यायाम करें। सुबह-सुबह नंगे पैर घास पर वॉक करें। अपनी बॉडी को चार्ज करें। इलेक्ट्रिकल करंट जब हम बचपन में छोटे थे तब उस टाइम पर हम नंगे पैर घास पर भागते थे। वॉक करते थे। कितना होता था। आज यह सब खत्म हो गया है। सुबह उठकर सबसे पहले नंगे पैर गार्डन में जाकर वॉक करें। पार्क चले जाएं। कहीं पर भी आसपास जो भी पार्क है, वहां पर नंगे पैर वॉक करें। चौथा अगर हो सके तो अपने जो इमोशंस आ रहे हैं जर्नलिंग करें। एक कागज पेंसिल ले लें। ले कॉपी ले लें और जो भी आप फील करते हो जैसा भी आपका दिन जा रहा है जैसा भी आपका दिन जाना है या जैसा दिन गया सुबह या रात जो आपको फील हो रहा है राइट इट डाउन अच्छा लगा क्या अच्छा लगा बुरा लगा क्या बुरा लगा जस्ट जर्नल इट डाउन जितना हो सके अगर नहीं समझ में आ रहा कि क्या करना है तो उस चीज को लेकर शुक्रिया अदा कर लो जो आपकी लाइफ में चेंजेस ला रहे हैं। लाइक शुभांकर वेरी ट्रू सुबह मैंने जब जनरलिंग करी तो आई थैंक्ड यू कि मैं आज ये पडकास्ट कर रहा हूं और रात में जब मैं सोने से पहले जर्नलिंग करूंगा तो आई विल स्टिल थैंक यू आई एम थैंकफुल टू शुभांकर मिश्रा कि मुझे ये पॉडकास्ट करने का मौका मिला जिससे मैं शायद करोड़ों लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकूं कि कैंसर से मरना नहीं होता। कैंसर मृत्यु का पर्याय नहीं होता। कैंसर से आप बच सकते हो। तो आप मेरे ग्रेटट्यूड में रहोगे। आप मेरे लिए मतलब मैं आपको शायद पता भी नहीं चलेगा बट मैं हमेशा आपको थैंकफुल रहूंगा। तो जो भी चीज अच्छी बुरी छोटे से छोटी जो भी आपको जिंदगी में अच्छी लग रही है राइट इट डाउन। क्या स्ट्रेस जिसे हम तनाव चिंता कहते हैं मानसिक दबाव जरूरत से ज्यादा अपने बच्चों की चिंता मां-बाप की चिंता या शारीरिक रूप से कोई लगातार दर्द ये कैंसर की वजह हो सकता है। और अगर हम खुश रहते हैं बॉडी से और मेंटली तो क्या हम कैंसर से बच सकते हैं? बिल्कुल बच सकते हो। बिकॉज़ जितना आप खुश रहोगे, जितना आप स्ट्रेस से दूर रहोगे जो कि फिजिकली प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं है। हर कोई जैसे ही अगर मैंने बोला हां स्ट्रेस से दूर रहो। इमीडिएट आपके पास कमेंट्स आने शुरू हो जाएंगे कि स्ट्रेस से तो आप दूर रह ही नहीं सकते। छोटे-छोटे स्ट्रेस हमेशा जरूरी होते हैं। बिकॉज़ आप अपने पीक परफॉर्मेंस पे आते हो। अगर आप स्ट्रेस पे नहीं हो। जैसे अगर हमने आज ये पॉडकास्ट करने के लिए टाइम फिक्स किया। तो एक वो रहता है ना कि हां हमें इस टाइम पे पहुंचना है। सो दैट लिटिल स्ट्रेस इज़ गुड। ये अच्छा होता है। हर किसी की लाइफ में अगर आपको मैक्सिमम प्रोडक्टिविटी चाहिए ये छोटे-छोटे स्ट्रेस जरूरी है। बट जब ये कंसिस्टेंट होता है, जब ये पर्सिस्टेंट होता है, जब ये ज्यादा समय तक होता है तो एक हार्मोन रिलीज़ होता है जिसका नाम होता है कॉर्टिजोल। और उस कॉर्टिसोल में अगर वो पर्सिस्टेंट रिलीज हो रहा है, तो वो उस कैंसर की शुरुआती आपके अंदर वजह बनती है। वजह बन जाती है। अच्छा। जो लोग शराब पीते हैं, जो लोग सिगरेट बहुत ज्यादा पीते हैं, जिनकी आदतें खराब होती हैं, रेड मीट खाते हैं, क्या उनमें कैंसर होने के चांसेस ज्यादा होते हैं? बिल्कुल जो लोग अपनी जुबां केसरी करते हैं, उन्हें बिल्कुल उन्हें बिल्कुल कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। जुबा केसरी नहीं करिए। अपनी जिंदगी को रंगीन बनाइए। अपनी जिंदगी को केसरी करिए। तो उ लाला लाला ले जो करते हैं उनको भी खतरा है। बिल्कुल बिल्कुल बिल्कुल। जितने लोग उला ला लाला करते हैं उनको भी खतरा है। डिपेंड करता है कि कितना रेगुलर कर रहे हैं। अगर ये उला लाला रेगुलर हो रहा है, डेली हो रहा है, यस कैंसर का रूप ले सकते हैं। बिकॉज़ कहीं ना कहीं ये जितनी अल्कोहल है ये नुकसान करती है जितना शराब पीते हो। लिवर को डैमेज ही करेगी। हां आजकल कलयुग इतना ज्यादा आ गया है कि मुझे मेरे पास पेशेंट आते हैं वो कहते हैं डॉक्टर साहब मेरे हस्बैंड को कैंसर नहीं हुआ जो डेली शराब पीते हैं और मुझे कैंसर हो गया। हां ये मैं इसी पे आने वाला था। ये बहुत सारे लोग आते हैं कि भाई जिसको मरना होता है वो मर जाता है। इन जनाब को देखो ये 70 साल से सुट्टा पी रहे हैं। ये दारू रोज रात को पी के सोते हैं और ये मस्त जी रहे हैं। ये भाई साहब कुछ खा पी नहीं रहे। खुश रहते हैं ना टपक गए। वो खुश रहते हैं। वो अपने पी पा के खुश रहते हैं। उन्हें कोई जिंदगी की टेंशन नहीं होती। तो वो खुश रहते हैं। बट ऐसा नहीं है। उनको भी होता है उनका भी। बट ये है कि किसको ज्यादा डायग्नोस हो गया। पहले आप जिंदगी में कितना ज्यादा किस चीज को कैसे लेते हो उस पर डिपेंड करता है। अगर आप ज्यादा स्ट्रेस ले रहे हो, ज्यादा चिंता करते हो, ज्यादा परेशान रहते हो, छोटी-छोटी बातों में इरिटेट हो जाते हो तो ये अवॉइड करो। बिकॉज़ ये कैंसर का रूप लेता है। अगर आप जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें भी कैंसर होता है। उन्हें फेफड़ों का कैंसर, मुंह का कैंसर, गाल का कैंसर, जो लोग तंबाकू खाते हैं, जो लोग खैनी खाते हैं, जो लोग आए दिन यह चलता रहता है, उन्हें भी कैंसर होता है। जस्ट दैट उन्हें दिखता नहीं है कि कैंसर डायग्नोस हो रहा है। जो आसपास आप देखते हो बट पूरे यूपी से, बिहार से, राजस्थान से इतने मरीज़ आते हैं जो कहते हैं कि जो अह तंबाकू खैनी खाते थे। आज भी हमारे सारे सेंटर्स में मिलाकर 70% पेशेंट्स वो हैं जो तंबाकू, सिगरेट, शराब पीते थे। तो उन्हें कैंसर डायग्नोस हुआ है। तो ऐसा नहीं है कि जो लोग नहीं पीते उन्हें नहीं होता। मतलब उन्हें ही होता है। ऐसा नहीं है। लेकिन अगर मैं इसमें और स्पेसिफिक आऊं। तंबाकू, सिगरेट, शराब इनमें सबसे ज्यादा कैंसर होने के चांसेस किसे होते हैं? तंबाकू तंबाकू जो लोग अपने तंबाकू यहां लगा कर और यहां फंसा लेते हैं ना वो जो यहां रखा कॉन्सेंट इरिटेशन कॉजेस कैंसर वो तेजाब है। दैट इज रिस्की। जो लोग लगातार वो जो जुबा केसरी चलता है वो नुकसान है। जो अपनी जीभ रंगीन करके केसरी बना लेते हैं वो नुकसान है। बिकॉज़ ये सारे केमिकल्स नुकसान करते हैं। वो इस लेवल पे खतरनाक है। बहुत ज्यादा खतरनाक है। बहुत ज्यादा खतरनाक। मतलब आपने उसे तेजाब का नाम दिया। तेजाब का नाम दिया। तेजाब वो होता है जो डालते ही जला दे। उसके पैकेट में क्या लिखा रहता है? तंबाकू सेवन से कैंसर होता है। जब आपके उसमें वैधानिक चेतावनी लिखी है, आप उसको कैसे प्रमोट कर सकते हो? आप उसको कैसे आगे प्रोपगेट कर सकते हो? आज उलाला ने भी सरोगेट एडवरटाइजिंग करी थी। पानी सेल किया था और उस पे बियर बिक रही थी। बट ये तो सीधा-सीधा ये बिक रहा है और इसमें भी तंबाकू के नाम पे इलायची बिकती है। एक्चुअली में बिक तंबाकू राय है। कुछ नाम है जो आपको एज तंबाकू ही फेमस है। एज पान मसाला ही फेमस है। बट एडवर्टाइजमेंट सरोगसी के नाम पर, इलायची के नाम पर। पॉलिसी के नाम पर पकड़े नहीं जाएंगे। सरकार को भी दिखाने का हो गया। हां। बट वो रियलाइज नहीं होता कि ये जो आप सेल कर रहे हो ये जो आप जगह-जगह बेच रहे हो इससे कितना ज्यादा कैंसर फैल रहा है। मतलब मैं ये कह लूं कि जो एक्टर्स ये तंबाकू या मसाले का ऐड करते हैं ये एक्चुअली में मौत बांट रहे हैं। एक्चुअली में मौत बांट रहे हैं। और उन्हें रियलाइज नहीं हो रहा है ये। बट आगे आने वाले समय में जितने लोग ये सब खा रहे हैं ये कैंसर का रूप बहुत तेजी से फैल रहा है। और ये जो अब हर जगह 2027 तक आते-आते शुभांकर हर 10 में से सात लोगों को कैंसर होने का खतरा है। हर 10 में से सात लोगों को आज रियलाइज नहीं हो रहा। आज रियलाइज नहीं हो रहा क्योंकि आप ये सब बांटे जा रहे हो। आप उस स्टेज पर मत आओ। आपको याद होगा 70 आप तो खैर उस समय नहीं होंगे। लेकिन मेरे मेरे साथ अभी एक लेडी ट्रेवल कर रही थी। मैं दिल्ली से बॉम्बे जा रहा था तो वो लेडी बता रही थी बॉलीवुड में बहुत बड़ी एक्ट्रेस हैं एंड शी वाज़ 74 और उनका ट्रीटमेंट हमने किया है तो मैं उनका नाम नहीं लेना चाहूंगा। तो हम साथ में जा रहे थे एंड बॉम्बे से दिल्ली आ रहे थे सॉरी। तो उन्होंने बताया कि तरंग पता है पहले ना फ्लाइट्स पे सिगरेट चलती थी एंड फ्लाइट में पहले सिगरेट पीना अलाउड था। और पहले अगर आप डॉक्टर से भी मिलने जाते थे तो जितने सर्जन्स होते थे जितने डॉक्टर्स होते थे वो अपने चेंबर में स्मोक करते थे। आगे चल के जब यूएस में फिक्स्ड हुआ जब यूएस सर्जन जनरल के थ्रू एक चेतावनी आई कि सिगरेट पीने से कैंसर होता है तब पब्लिक प्लेसेस में स्मोकिंग बैन हुई। अदरवाइज इट वाज़ अलाउड। इट वाज़ नॉर्मल। तो जब हस्बैंड स्मोक करता था तो वाइफ बगल में बैठी रहती थी। पैसिव स्मोकिंग पता ही नहीं था। किसी को स्टडी नहीं किया हुआ था। अब जब स्टडी हो गया तो अब पता है कि पैसिव स्मोकिंग नुकसानदायक है। अब इमेजिन करो अगर यही पान मसाला यही सुपारी ये जब स्टडी आएगी जब वेप की स्टडी आएगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। आज आप लेडीज देख लो जितनी 50 साल 70 साल 80 साल में कैंसर डायग्नोस हो रहा है। ये वो सब हैं जो पब्लिक प्लेसेस में स्मोकिंग सह चुकी हैं। जब उनके यार दोस्त, उनके फ्रेंड्स, उनके परिवार वाले, उनके हस्बैंड, उनके हस्बैंड के फ्रेंड्स वो सब स्मोक करते थे। और उस समय नॉर्मल था और आज कैंसर से लड़ रहे हैं। यही आगे आने वाली जनरेशन जो आज 10वीं 12वीं में है जो वेप कर रही हैं। 15 20 साल बाद जब वेप की स्टडी आएगी कि वेप होने से कैंसर होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होंगी ना। बट इसे तो जो ये नए बच्चे हैं जो वेप करते हैं तो बहुत कूल मानते हैं। यही यही गलत है। इसमें एक केमिकल होता है वेप में जिसको कहते हैं प्रोपाइलिंग ग्लाइकॉल। और जब आप उसे जलाते हो प्रोपाइलिंग ग्लाइकॉल में प्रॉब्लम नहीं है। बट जब आप उसको पफ करते हो तो एक कॉपर कॉइल में ये जलता है। उससे फॉर्मेल्डिहाइड रिलीज होता है और एक्रोलन रिलीज होता है। फॉर्मेल्डिहाइड नोन कार्सिनोजेन है। नोन कार्सिनोजेन तो आपको पता है कि आप प्रोपाइलिंग ग्लोइकॉल आपने उसमें डाला लिक्विड में और आपने धुआं छोड़ा बट फाइनली रिलीज जो हुआ वो तो फॉर्मेल्डिहाइड रिलीज़ हुआ और वो बूंदबूंद से कैंसर का सा कैंसर रूपी सागर बन रहा है। अब ये कब इरप्ट कर जाए पता नहीं। तो यह वेप इतना ज्यादा डेंजरस है आप सोच नहीं सकते। और आज आप जिसको भी देख लो छोटे से छोटे शहरों में बड़े से बड़े शहरों में हर कोई बच्चा या हर कोई बड़ा पाइप लेके घूम रहा है। वो उसको लगता है कि हमने सिगरेट छोड़ दी। ये पाइप हम ले रहे हैं। इससे तो नॉर्मल है। और वो रियलाइज नहीं होता। मैं तो कई लोगों को जानता हूं जो सुबह उठते ही सबसे पहले वो वेप लेते हैं। एंड आप उन्हें क्या बोलोगे? आप उन्हें समझाते हो। कहते हो कि नहीं अदर देन आई थिंक हॉस्पिटल में जब आते होंगे तब शायद वेव छूटता होगा। बाकी बाहर गाड़ी में हर जगह बंद गाड़ी में सब वेव चालू है। एंड दिस इज सो डेंजरस। अच्छा क्योंकि कॉलेज के बच्चे वेप करते हैं या स्कूल के बच्चे जो अब जाते हैं कभी कबभार रेस्टोरेंट्स में वेप करते हैं। मां-बाप को शायद पता नहीं होगा। कई बार पता भी होता है। लगता है ये तो नॉर्मल है। इससे कुछ खराब नहीं होता। आप कैंसर के डॉक्टर हो। मैं चाहता हूं आज आप बताओ उन्हें कि भविष्य में जब इस पर स्टडी होगी तो क्या निकल सकता है इसमें? कैंसर निकलेगा। अगर वेप की स्टडी हुई और वेप पे स्टडी होकर पूरा आउटकम आया तो उसमें यही आएगा कि वेप करने से उनके पेरेंट्स से क्या कहोगे फिर आप? उनके पेरेंट्स से यही हाथ जोड़कर गुजारिश करूंगा कि वो अपने बच्चों को समझाएं। प्यार से डांट कर साम दाम दंड भेद। जो करना है करें। बट उनका वेप छुड़वा दें। बिकॉज़ अगर वह वेव करते रहेंगे बुरा मत मानना। शायद मेरी बात बुरी जरूर लगेगी। आगे आगे मेरी बात बुरी जरूर लगेगी। लेकिन आगे आने वाले टाइम पर कैंसर होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। और मैं नहीं चाहता कि आपके घरों में कैंसर हो। इसलिए हाथ जोड़कर मैं उन पेरेंट्स से गुजारिश करूंगा कि चाहे कुछ हो जाए। कैसे भी समझा कर उनको वेव छुड़वा दो। सिगरेट से ज्यादा वर्स है। सिगरेट से ज्यादा वर्स है। मतलब ये सुनकर मुझे बड़ा वो लग रहा है और बहुत कॉमन ट्रेंड हो गया है। बहुत कॉमन ट्रेंड हो गया। और आप सोचो किसी भी वेव के पैकेट पर लिखा नहीं आता कि वेव कॉज कैंसर। वेव कॉज कैंसर। जब ये स्टडी आएगी तब तक इतना देर हो चुकी होगी और यही बच्चे हाथ से गाड़ी जा चुकी होगी। 18 साल 20 साल के भी 40 साल पहुंचेंगे। 40 42 45 से ये सब कैंसर के मरीज होंगे। यस। आज आपको पता है कि जितने गांजा, अफीम, कोक ये सब जितने ले रहे हैं पता है कि ये ड्रग्स हैं इनसे कैंसर होता है। इनसे बीमार पड़ते हो। आप इससे आपका शरीर खराब हो जाता है। आपको रियलाइज़ नहीं हो रहा कि ये जो आप ले रहे हो आपको स्टडी तक नहीं पता ये जो आप केमिकल डालकर धुआं छोड़ रहे हो ये क्या है? ये आपके बॉडी के डीएनए को डैमेज कर देगा। एंड इट माइट इट माइट डैमेज टू सच एन एक्सटेंट। जहां पर कैंसर अगर हो गया इट इज़ नो लुकिंग बैक। आप फिर बाद में रिपेंट करोगे कि शायद कोई डॉक्टर कृष्णा ने समझाया था शायद मैं उसका शुभांकर का पडकास्ट देखकर समझ जाता और छोड़ देता तो शायद ये नहीं देखना पड़ता और इसको सुनने के बाद भी नहीं छोड़ रहे हो तो फिर हम वही कहेंगे कि मर रहे हो तो मरो अगर तुम्हें तुम्हारी जिंदगी की परवाह नहीं है तो फिर कोई और क्या कर सकता है आदमी समझा सकता है आपको आगाह कर सकता है ये भी बड़ी समस्या है सर आप किसी को दिखाइए सिगरेट के उस डब्बे पे क्या लिखा है तो वो आपका मजाक उड़ाकर हंसकर और पिएंगे आप बताओगे ना उन्हें कि यह देखिए तस्वीर हा और हर शॉप पे लिखा होता हर शॉप पे लिखा होता है। हर पैकेट पे मतलब मुझे ताज्जुब होता है कि जो लोग सिगरेट पीते हैं उन्हें कैसे उनकी आत्मा अलऊ कर देती है कि पैकेट पर अगर लिखा है कि ये डरावना चित्र है तो वो भी ये हो सकता है। मतलब शायद उनकी भी ये फोटो हो सकती है। तो मेरे एक पेशेंट आते थे। मैं बड़ा इंटरेस्टिंग किस्सा है और वो पेशेंट छोड़ने को तैयार नहीं थे। उन्हें बहुत अच्छा इंप्रूवमेंट था। बहुत रिकवर हो रहे थे। बट उनकी वाइफ आकर हमेशा परेशान होती वो कहती थी डॉक्टर साहब नहीं सुन रहे मेरी ये छुप छुप के सिगरेट पीते हैं। मैंने क्या किया? मैंने उनको बोला कि आप एक काम कर रहे हैं। आप इनके लिए पैकेट आप मंगाना शुरू कर देना और उस पैकेट में जितने वो फोटोस हैं वो निकाल देना और फैमिली फोटो लगा देना। तो जब भी वो पैकेट उठाएंगे आपको फैमिली की फोटो दिख जाएगी। तो जब वो फैमिली फोटो दिखेगी कम से कम इतनी शर्म तो आएगी कि अगर आपको नहीं बचना कोई बात नहीं। अपने परिवार के लिए तो बच जाओ। आपको रियलाइज नहीं हो रहा कि आपको कैंसर होने वाला है या आपको रिलाइज नहीं होना कि आप ठीक होने वाले हो। और वापस अगर सिगरेट पियोगे तो बुरी हालत में पहुंचोगे। आपकी कंडीशन खराब ही होगी। एटलीस्ट अगर अपनी चिंता नहीं कर रहे अपने परिवार की चिंता कर लो। उनके लिए ठीक हो जाओ। उनके लिए सिगरेट छोड़ दो। उनके लिए पान मसाला छोड़ दो। अगर शायद ये लोग समझना शुरू कर दें तो शायद ये जो इतनी तादाद में सिगरेट बिक रही है और इतनी तादाद में तंबाकू और जहर बिक रहा है। ये बिकना कम है। अच्छा इसको मैं एक क्रॉस क्वेश्चन करता हूं। मान लीजिए कोई आदमी सिगरेट भी लेता है, दारू भी लेता है, तंबाकू भी खाता हो या वेब कुछ भी करता हो और अगर वो बड़ा खुश रहता है तो क्या वो कैंसर से बचा रहेगा? अगर वो मस्त मौला है जिंदगी में इसकी मैंने स्टडी नहीं करी है। शुभंकर तो ये नहीं कह सकता। मैं ये नहीं कहूंगा कि ये सब करते हुए अगर वो खुश रहता है तो कैंसर से बच सकता है। नहीं ये नहीं कह सकते। जैसे सिगरेट पीने से आदमी कहता है कि सारी बीमारी होती है। मेरे पास हेयर बाय डॉक्टर है। बोले बाल झड़ जाता है। आप कह रहे हो कैंसर हो जाता है। बड़े लोगों से लोग इंस्पायर होते हैं। बड़ा आदमी जो करता है उसको देखकर पूरी फौस्ट करती है वो काम। और जब ये करते हैं और ये बढ़िया स्वस्थ हैं। फिल्में बना रहे हैं या गाना गा रहे हैं। तो जो नीचे वाले लोग हैं हालांकि उनकी लाइफस्टाइल और नीचे वालों की लाइफस्टाइल में जमीन आसमान का फर्क है। बट उनको लगता है देखो हमारा वाला हीरो जिंदा है तो हमको क्या होगा? डॉक्टर साहब बेवकूफ बनाते रहते हैं। राजेश खन्ना साहब को भी कैंसर हुआ था ना? कैसे हुआ था? सुपरस्टार थे। लिवर कैंसर हुआ था। विनोद खन्ना साहब। विनोद खन्ना साहब कैंसर हुआ था। किसको कैंसर कब डायग्नोस हुआ आप नहीं कह सकते। राइट? भगवान ना करे किसी को हो। भगवान ना करे। सो आई नो दैट दे आर आइडल्स। वो आपके एक आप उनको एज अ आइडल देखते हो कि यार हम इनको फॉलो कर रहे हैं। ये स्क्रीन पे इतना अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं। यही हमारा हीरो है। यही सब कुछ है। आइडली तो उन्हें नहीं करना चाहिए। बट अब वो करते हैं तो आई थिंक उनकी पर्सनल चॉइससेस हैं। इसमें हम नहीं कह सकते। लेकिन हां ऐसा कह देना कि हर सिगरेट पीने वाले को कैंसर होगा ये सही नहीं है। हर तंबाकू खाने वाले को कैंसर होगा वो सही नहीं है। अगर आप ये करते हो तो आपके चांसेस होने के बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। अगर और लोगों में जैसे एक नॉर्मल इंडिविजुअल में जो ये सब नहीं करता उसको होने के चांसेस बहुत कम होंगे। बजाय इसके कि जो लोग करते हैं उनको कैंसर होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। अब आप तूफान में जा रहे हो आपने छतरी ले ली तो ऑब्वियसली आप सेफ हो। एटलीस्ट थोड़ा बहुत तूफान से बच सकते हो। बट आप बिना उसके जा रहे हो, बिना छतरी के जा रहे हो, बिना रेंकोट के जा रहे हो तो आप तो भीगोगे ही ना। तो वो खतरा रहता है। अ मैंने लीवर के डॉक्टर का पडकास्ट किया था। उन्होंने मुझसे कहा कि जब आप शादी करें तो जन्म पत्री मिलाएं ना मिलाएं जीवन पत्री मिला लें। फैमिली ट्री जरूर देख लें। फैमिली ट्री से बीमारियां ट्रांसफर होती जाती हैं। अगली जनरेशन में। क्या कैंसर वो बीमारी है जो बाप दादा से नीचे ट्रांसफर होती रहती है। बिल्कुल। कैंसर हेरिडिटरी है। कैंसर वंशानुगत है। अगर एक जनरेशन में कैंसर आया तो चांसेस हैं कि आगे आने वाली जनरेशन में कैंसर आ सकता है। तो जरूर आप जब आप किसी की पत्री मिलाएं, जीवन पत्री मिलाएं तो यह जरूर पता कर लें कि भविष्य में कोई कैंसर मरीज रहा तो नहीं है। कोई किसी को कैंसर हुआ तो नहीं है। यस क्योंकि कैंसर आगे आने वाली जनरेशन में बहुत ज्यादा बढ़ जाता है। तो अगर यह कर सकें आई थिंक नथिंग लाइक इट। तो शादी में लड़की लड़की का नेचर देखें उसकी फैमिली ट्री देखिए। दोनों नेचर से आपका लाइफ खुश रहेगी और फैमिली ट्री देखने से आपका फ्यूचर ठीक रहेगा। दैट इजेंट फैमिली देखना चाहिए। आप क्या कर सकते हो? कैंसर भी तो आम बीमारी है ना आप कैंसर को ये क्यों समझ रहे हो कि आगे आने आने वाली जनरेशन में खुदा ना खास्ता कोई कैंसर हुआ तो वो नहीं बचेगा। ऐसा क्यों सोच रहे हो? कैंसर में तो रिकवरी है। कैंसर आम बीमारियों की तरह है। ये डर ले लेना कि कैंसर मतलब मरना ही है। वो अब खत्म हो चुका है। शमांक अब ऐसा नहीं होता। जी हम नोएडा में रहते हैं। जी दिल्ली या भारत के जितने भी बड़े मेट्रो शहर हैं सब में पोलुशन लेवल बहुत ज्यादा हो गया है। बिलकुल क्या पॉल्यूशन भी कैंसर होने का खतरा पैदा करता है? 1 लाख% 1 लाख% जितना ज्यादा पॉल्यूशन है उतना ज्यादा आप कैंसर के एनवायरमेंट में हो। जो भी हवा आप ब्रीथ कर रहे हो यह सीधे आपके शरीर में जा रही है। वो सीधे आपके लंग्स में जा रही है। वो सीधे आपके ब्लड में जा रही है। आपके खून में जा रही है। बिकॉज़ ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड एक्सचेंज सब अंदर हो रहा है। तो ये जो ऑक्सीजन एक्सचेंज हो रहा है इसमें आप जितने भी केमिकल्स कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड ये सब जितने आप ब्रीथ कर रहे हो ये कहीं ना कहीं आपको अंदर के अंदर खोखला बना रहा है। हिसाब से दिल्ली एनसीआर में जितने लोग हैं सब पर कैंसर का खतरा है। कैंसर का खतरा है। यहां तो कहते हैं कि आप इतनी सिगरेट पी जाते हैं बिना पिए हुए। बिना पिए हुए और यहां पर अनहेल्दी हेयर नॉर्मल है। एक्यूआई में अगर आपकी एयर अनहेल्दी आ रही है नॉर्मल है। सीवियर आ रही है नॉर्मल है। जब हज़ार्डेस होती है तब गवर्नमेंट झांकती है। बट अदरवाइज उसको नॉर्मली समझा जाता है। सो आइडियली यस जितने ज्यादा मेट्रो सिटीज में आप रह रहे हो जिसमें दिल्ली एनसीआर में जितनी ज्यादा पोल्यूटेड एयर है आप कैंसर के रिस्क में हो? आप कैंसर के रिस्क में हो। तो दिल्ली एनसीआर में जो बंदा रह रहा है या देश के किसी भी हिस्से में जहां पर पोलशन लेवल अच्छा खासा है वहां पर कैंसर से बचने के लिए वो क्या करें? खानपान का ध्यान रखें। जितना हो सके सात्विक खाना खाएं। जितना हो सके सब्जियां अच्छे से धोकर खाएं। आप एंटीऑक्सीडेंट्स ले सकते हो। आप सप्लीमेंट्स ले सकते हो। आप वो ले सकते हो जिसकी वजह से आपके बॉडी में ऑक्सीजनेशन ज्यादा बढ़े। कई सारे सप्लीमेंट्स होते हैं जो आपके बॉडी के ऑक्सीजनेशन लेवल्स बढ़ाते हैं। आप एक ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होता है उसको कम करता है। सो अगर जितना ऑक्सीजनेशन रहेगा जितना ज्यादा ऑक्सीजन रहेगा उतना ज्यादा आपकी बॉडी से जितने भी हार्मफुल केमिकल्स हैं वो सारे के सारे बाहर निकलेंगे। आप एटलीस्ट उसको फाइट बैक कर पाओगे। जितनी अच्छी इम्यून सिस्टम है उतना ज्यादा आप कैंसर से लड़ सकते हो। हल्दी और अदरक अगर डेली सुबह अगर आपने ले लिया आप कैंसर से बच सकते हो। तुलसी, अदरक और कच्ची हल्दी। इसका आपने एक वो बनाया काढ़ा टाइप और सुबह-सुबह आपने गुनगुना पानी में ले लिया। आप पोलशन से बच सकते हो। आपका इम्यून सिस्टम, आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता जितनी ज्यादा रहेगी आप उतना ज्यादा पोलशन से बच सकते हो। ये जो आपने एक फार्मूला दिया अभी हल्दी, अदरक एंड तुलसी एंड तुलसी। ये क्या असर करती है? आपके बॉडी की इम्युनिटी को बेहतर करती है और जितना आपका बॉडी का इम्यून सिस्टम बेहतर रहेगा आपको पोलशन कोई इंपैक्ट नहीं करेगा। और बॉडी में पोलशन में तो आप रहना ही हैं। उसको आप कोई उसका कोई उपाय नहीं है। एक मेंटेनिंग कॉज है जो आपको एक एनवायरमेंट कभी खत्म नहीं हो सकता। आपको नोएडा से आप नहीं छोड़ सकते। मैं दिल्ली से नहीं छोड़ सकता। तो एटलीस्ट हम अपने बॉडी को इतने सक्षम कर लें कि हमारे बॉडी में इस पोलशन का फर्क ना पड़े। तो ये सुबह-सुबह उठकर हल्दी, कच्ची हल्दी, अदरक और तुलसी। इसका आप काढ़ा बनाकर पी लो। आप एटलीस्ट पोलशन से डील कर सकते हो। सुबह-सुबह अपने खाने में ब्रोकली शुरू कर लीजिए। ब्रोकली सोते किया। तवा लिया। उसमें हल्का सा ऑलिव ऑयल डाला या कोई भी नारियल का तेल लिया और ब्रोकली को सोते करके उसमें नमक एंड काली मिर्च डालकर उसको सोते करके ले लिया। बॉडी में ऑक्सीजन ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस उतना ही कम होगा। जितना हो सके कच्चा टमाटर। कच्चा टमाटर में लाइकोपीन होता है। अगर आप जितना टमाटर खाओगे आप उतना ही इस ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से बच सकते हो। जो पोलशन से जितना भी डैमेज होता है खाने से वो सब कवर हो जाता है। सप्लीमेंट्स एक हेल्थ रिसेट करके सप्लीमेंट आता है वो आप ले सकते हो। उससे आपका जितना भी बॉडी में डैमेज होता है पोलशन से वो कंट्रोल हो सकता है। जिम के जो सप्लीमेंट्स होते हैं इनसे कैंसर पे कोई असर होता है। खतरा बढ़ाते हैं या ये बिल्कुल बेअसर होते हैं। इनसे कोई लेना देना नहीं है। डिपेंड करता है अगर वो प्रूवन है और अगर वो हेल्दी के उसमें इंग्रेडिएंट्स हैं तो उससे कैंसर नहीं हो सकता। अगर उसमें कुछ ऐसा केमिकल डला है जिससे कोई प्रिजर्वेटिव है या कोई और केमिकल है जिसमें जो डैमेज कर रहा है जो आर्टिफिशियली आपके मसल को बूस्ट कर रहा है देन इट कैन इट देन वो डेंजरस हो सकता है। बट अदरवाइज ऐसा नहीं है कि ये जो जिम के जो प्रोटीन पाउडर्स हैं इनसे कैंसर होता है। ऐसा नहीं है। कितने टाइप के कैंसर होते हैं? सैकड़ों। अगर ब्रेन की बात करूं तो ब्रेन में ही चार तरीके पांच तरीके के होते हैं। एस्ट्रोसाइटोमा, ग्लायोब्लास्टोमा,मा,मा,मा,मा,मा,मा,मा,मा,मा, रेटिनोब्स्टोमा,मा, ग्लाइयोब्लास्टोमा, मल्टीफॉर्म कई तरीके के होते हैं। मतलब राइट फ्रॉम टॉप टू बॉटम इतने कैंसर्स होते हैं कि हर चीज का ही एक हड्डियों का ऑस्ट्रोजेनिक सारकोमा, कोलोन कैंसर, लिवर कैंसर, ब्लड कैंसर कई प्रकार के होते हैं। एक्यूट लिंफोब्लास्टिक, क्रॉनिक लिंफोब्लास्ट बहुत कई तरीके के क्या डिफरेंस होता है इन सब में? हर कैंसर अलग होता है। हर कैंसर सेल स्पेसिफिक होता है। हर कैंसर का अलग-अलग एक्शन होता है। हर हर कैंसर में अलग-अलग तरीके की उसकी पॉर्फोलॉजी होती है। उसकी अलग टेंडेंसी होती है। राउंड सेल ट्यूमर अलग होता है। वो इतना बड़ा ट्यूमर फैल जाता है। लिवर कैंसर अलग होता है। जिसको हम एचसीसी हेपेटोसेलर कार्सिनोमा बोलते हैं। सो अलग-अलग तरीके के कैंसर्स हैं। सबसे खतरनाक कैंसर कौन सा होता है? सभी कैंसर खतरनाक होते हैं और सभी कैंसर नहीं भी। ड्यूरेबल होते हैं। कितनी स्टेज होती है कैंसर की? चार। फोर्थ स्टेज लास्ट होती है जिसको हम स्टेज फोर बोलते हैं। वो लास्ट स्टेज होती है। स्टेज वन, स्टेज टू, स्टेज थ्री, स्टेज फोर। स्टेज वन तब होती है जब वो सीमित होता है उसी एरिया में, उसी लोकेशन में। स्टेज टू होती है जब वो श्रेय जी समझाइए थोड़ा हमें जैसे एक ह्यूमन बॉडी है। अच्छा ह्यूमन बॉडी में सब मान के चलिए ब्रेस्ट में एक ट्यूमर है। ठीक है? ठीक है? एक महिला के ब्रेस्ट में ट्यूमर है तो वहां से अगर शुरू हुआ तो वो स्टेज वन है। वो ब्रेस्ट पे लोकलाइज्ड है। जब वो ब्रेस्ट से फैल कर बगल के लिंफ नोड्स में चला गया जिसको हम बगल की गांठ बोलते हैं। अगर एजिलरी लिंफ नोड्स वहां चला गया तो ये स्टेज टू आ गया। जब ये वहां से शिफ्ट होकर साइज बढ़ा ट्यूमर का और 2 सें.मी. से 5 सें.मी. के आसपास हो गया। स्टेज थ्री आ गया। और जब ये लिवर लंग्स बोनस या ब्रेन में फैल गया तो स्टेज फोर हो गया। तो स्टेज वन मतलब जो लोकलाइज्ड है वो ट्यूमर। स्टेज टू जब उसका साइज बढ़ा और एक लिंफ नोट कवर किया। स्टेज थ्री जब लिंफ नोट्स कवर किए और थोड़े दूर के लिंफ नोट्स भी कवर किए और ट्यूमर का साइज बढ़ गया। स्टेज फोर जब लिवर, लंग्स, बोनस या ब्रेन में फैल गया। प्राइमरी कैंसर वहीं था। पीपल का पेड़ पेड़ यहां बोया, जड़े आगे तक पड़ोसी के घर तक चली गई। स्टेज फोर। तो ट्यूमर और कैंसर में फिर क्या डिफरेंस है? ट्यूमर मतलब लोकलाइज़्ड लीजन। किसी स्पेसिफिक बॉडी पार्ट पे। कि किसी स्पेसिफिक बॉडी पार्ट पे। जैसे ब्रेन में हमेशा ट्यूमर होता है। ब्रेन में कैंसर नहीं होता। ब्रेन में हमेशा ट्यूमर होता है। ब्रेन ट्यूमर्स बोलते हैं उसे। जीबीएम, मेस्ट्रोसाइटोमा, ग्लाइकोब्लास्टोमा। ये सारे ट्यूमर्स हैं। कैंसर लोकलाइज़ नहीं होता। कैंसर मतलब जब मेलगनेंसी उसमें मेलग्नेंट सेल्स होते हैं। अब कैंसर भी दो प्रकार के होते हैं। बिनाइन और मेलिग्नेंट। बिनाइन मतलब वो वहीं पर ही रहेगा। सीमित रहेगा। आगे नहीं फैलेगा। ज्यादा तेज मल्टीप्लिकेशन वाला नहीं है। मेलग्नेंट मतलब एग्रेसिव है। तेज फैलने वाला है। जल्दी काबू करने की जरूरत है। चांसेस है कि ये वहां से अपनी जगह छोड़कर थ्रू ब्लड या थ्रू लिंफ ये लिंफ नोड्स में भी जा सकता है या फिर दूसरे किसी शरीर के हिस्से में भी जा सकता है। तब वो मेलग्नेंट कैंसर्स होते हैं। ओके? कैंसर पुरुषों में ज्यादा होता है, महिलाओं में ज्यादा होता है? नहीं, ऐसा कोई स्टडी नहीं है कि पुरुषों में ज्यादा होता है या महिलाओं में ज्यादा होता है। कैंसर हर जेंडर को इक्वली कवर करता है। महिलाओं में सबसे ज्यादा ब्रेस्ट कैंसर ही होता है। महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर एंड ओवेरियन कैंसर। ये क्यों सबसे सारा यही होता है? जैसे पुरुषों में तो ऐसा हार्मोन स्पेसिफिक है ये। जब आप जब जैसे आप स्मोक करते हो तो स्मोक करने पर हार्मोंस इमंबैलेंसेस होते हैं। ईस्ट्रोजन प्रोजेस्ट्रॉन। तो जब भी ये हार्मोन डिपेंडेंट कैंसर्स होते हैं महिलाओं में एनीवेज बिकॉज़ ऑफ पीरियड्स ये हार्मोन का वेरिएशन रहता है जब ईस्ट्रोजन प्रोजेस्ट्रॉन लेवल्स हमेशा वेरीरी करते हैं। अब हार्मोन में गड़बड़ी हो जाने से जब डीएनए में चेंजेस आते हैं और हार्मोन में भी गड़बड़ी आ गई तब उसके बाद हार्मोन डिपेंडेंट कैंसर्स हो जाते हैं। जिसमें ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरियन कैंसर इसका एक सीधा जीता जागता उदाहरण है। एक और एग्जांपल है जैसे एंजलना जोली उसको ब्रेस्ट कैंसर डायग्नोस हुआ लेकिन उसने ओवरीज भी रिमूव करा दी। उसने पूरा अपना रिप्रोडक्टिव सिस्टम ही रिमूव करा दिया। फैलोपियन ट्यूब्स भी रिमूव करा दी। वो इसलिए क्योंकि हार्मोन डिपेंडेंट कैंसर था। इस्ट्रोजन प्रोजेस्ट्रॉन की वजह से वहां पर कैंसर बढ़ने का खतरा बहुत ज्यादा था। तो एज अ प्रिकॉशनरी मेजर उसका वो ऑर्गन्स भी रिमूव करा दिए गए। ये उन कैंसर्स की वजह से होता है। सो महिलाओं में हार्मोन डिपेंडेंट कैंसर्स बहुत होते हैं। पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर बहुत ज्यादा होता है। कोलोन कैंसर बहुत ज्यादा होता है। या फिर हैबिट फॉर्मिंग सॉरी हैबिट स्पेसिफिक कैंसर बहुत ज्यादा होता है। जैसे तंबाकू खा रहे हैं तो मुंह का कैंसर, गाल का कैंसर, बकल म्यूकोसा, अंदर जबड़े का एल्वुलस, एल्वुलर कैंसर, सीए टूथ, सीएमथिला ये वाले कैंसर ज्यादा होते हैं। या फिर स्मोकिंग से फेफड़ों का कैंसर, अल्कोहल की वजह से लिवर का कैंसर, कोलोन कैंसर ये वाले ज्यादा होते हैं। महिलाओं में हार्मोन डिपेंडेंट ज्यादा होते हैं। ब्रेस्ट, ओवरी ये वाले ज्यादा होते हैं। सर्विक्स चाय या कॉफी पीने से कैंसर तो नहीं होता ना? नहीं। ऐसा नहीं है। एक शिप मार लेते हैं इसी बात पे। वरना मेरी हालत टाइट हो जाती कि चाय पीने से होता तो मेरी चाय छूट जाती है। मुझे सब कुछ छोड़ना है। ये नहीं छोड़ना है। ऐसा क्यों होता है कि ज्यादातर केसेस में कैंसर जो है वो आखिरी स्टेज में ही पता चलता है। हम अक्सर सुनते हैं कि इन भाई साहब को फोर्थ स्टेज कैंसर हुआ है। फिल्मों में भी जो दिखाते हैं वो फोर्थ स्टेज ये दिखाते हैं। वन टू थ्री तो मैंने फिल्मों में कभी देखा ही नहीं। इग्नोर। फिल्मों में तो आपने यह भी देखा है कि कैंसर में एंड रिजल्ट यह होता है कि वो पेशेंट मर जाता है। हम रियल लाइफ में ऐसा नहीं होता। फिल्मों में तो आपने ये भी देखा है कि कैंसर जब डायग्नोस होता है तो ऑलमोस्ट टर्मिनल स्टेज का होता है और वो डॉक्टर्स कह देते हैं कि अब आप इनको सेवा करो घर ले जाओ। अब कुछ नहीं हो सकता। रियल लाइफ में भी वैसा होता है। लेकिन अब वैसा नहीं रहा है। अब पेशेंट्स जो भी आते हैं वो भी रिकवर होते हैं। लोगों से इग्नोर बहुत ज्यादा होता है। मैंने हमेशा बताया कि कॉन्स्टेंट इरिटेशन कॉजेस कैंसर। बट लोग वो इरिटेशन इग्नोर कर देते हैं। और कैंसर हमेशा शुरुआती लक्षण देता है। हम लापरवाही में उसको इग्नोर कर कर देते हैं। नजरअंदाज कर देते हैं। हम अपने शरीर को कभी प्रायोरिटी देते ही नहीं। जो महिला है वह महिला परिवार का स्तंभ होती है। अपने घर बार में लगी रहती है। काम उसमें लगी रहती है। बच्चा उसका ऑफिस जा रहा है। पति काम पे जा रहा है। बेटी उसको कॉलेज पढ़ने जा रही है। बट वो फिर भी अपने खाने-पीने घर में झाड़ू पोछा सब सभी चीजों में लगी रहती है। उसको कुछ भी परेशानी होती है। वो तब तक कोलैप्स नहीं करती। तब तक बिस्तर नहीं पकड़ती जब तक उसका दम ना टूट जाए जब तक उसको लगे कि अरे मैं बहुत कमजोर हो रही हूं। मुझसे काम नहीं हो रहा। तब तक उसके अंदर कोई भी सिम्टम आता है वो इग्नोर करती जाती है, टालती जाती है। कोई उससे बिठाकर यह नहीं पूछता मां कोई दिक्कत तो नहीं है? कोई प्रॉब्लम तो नहीं आ रही? लाइक वाइज फादर के लिए भागते रहते हैं। पैसे कमाने में लगे रहते हैं। ऑफिस जाने में, बच्चों की पढ़ाई में, सभी चीजों में। बिकॉज़ एज फादर्स ये उनकी रिसोंसिबिलिटी होती है। एंड उसको वो बखूबी निभाते हैं। हर किसी के फादर। बट इन सब भागादौड़ी में वो अपना ख्याल नहीं रखते हैं और प्रॉब्लम यहीं से शुरू होती है। हर कोई इसी बात पर नजरअंदाज करता है। और यही रीजन है आज जो हमारे 20 सेंटर्स हैं सभी में जितने पेशेंट्स आते हैं सब स्टेज फोर के आते हैं। एंड इसलिए क्योंकि शुरू में हर किसी को सिम्टम देते हैं। हर कोई बताता है कि हां एक साल पहले यहां शुरू हुआ था। ये प्रॉब्लम रहती थी। ऐसा कुछ होता था। बट नजरअंदाज कर दिया। ये नजरअंदाजी प्रॉब्लम है। ये एक सवाल मेरे मन में और आ रहा है। बड़ा इंटरेस्टिंग सा। शादीशुदा आदमी में कैंसर होने के चांसेस ज्यादा होते हैं? नहीं हर किसी को हो सकता है। तो शुभंकर ऐसा नहीं है कि केवल शादीशुदा हो गया तो वो बेचारा वैसे ही अपने घर से परेशान है आप उसको। सो कहते हैं जोक है कि देयर आर टू काइंड्स ऑफ़ पीपल दे हैप्पी पीपल एंड मैरिड पीपल। तो इसीलिए इसीलिए मैंने सवाल पूछा क्योंकि जितनी बातें आप बता रहे हैं उनमें से अधिकतर बातें उसी ऐज के बाद वाले ग्रुप में आ रही हैं। नहीं नहीं ऐसा नहीं है। यंग ऐज में भी कैंसर होता है। यंग ऐज में भी कैंसर होता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि शादीशुदा मर्दों को या महिलाओं को ही कैंसर होता है। ऐसा नहीं है। कैंसर कभी भी डायग्नोस हो सकता है। कैंसर कभी एज नहीं देखता। अभी यंगेस्ट पेशेंट जो हमारे पास आया शुभांकर वो 10 दिन का था। एल्डेस्ट पेशेंट जो आया 10 दिन का 10 दिन का। क्या बोलोगे? 10 दिन में ब्लड कैंसर डायग्नोस हुआ। एंड 92 इयर्स में भी कैंसर डायग्नोस हुआ। 92 इयर्स में नेपाल की वो लेडी उसको 92 साल में कैंसर डायग्नोस हुआ। क्या बोलोगे? डॉक्टर्स के पास गई। उन्होंने कहा कि आप तो बोनस लाइफ में जी रहे हो। आप कहोगे कोई बात नहीं। वो बेचारी हमारे पास आई और 92 इयर्स में भी रिपोर्ट्स नॉर्मल आई। उसकी रिपोर्ट हमारी वेबसाइट पर है। अच्छा डॉक्टर्स ने कह दिया कि आप बोनस लाइफ बोनस लाइफ जी रहे हो। अरे यार कोई जिंदा रह गया तो उसे कह एक्स्ट्रा है एक्स्ट्रा है। आप जी रहे हो चाहे मरो क्या फर्क पड़ता है? अरे तो बहुत इनसेंसिव था ये। इनसेंसिव था। बट ठीक है। कुछ लोग ऐसे रह जाते हैं। कुछ लोग ऐसे हो जाते हैं बट ठीक है। सो बट ऐसा नहीं है। कैंसर किसी को भी हो सकता है। और जरूरी नहीं है कि वो शादी देखकर या किसी की कास्ट कलर क्रीड देख कर नहीं होता। उसमें थोड़ा टेंशन ज्यादा बढ़ा दी ना। बच्चों की टेंशन, पति की टेंशन, पत्नी की टेंशन, पैसा कमाने की टेंशन, सोशल टेंशन। आई थिंक जो जो हम फैक्टर्स की बात कर रहे हैं। वो फैक्टर्स प्रेशर की वजह शायद बड़े आते हैं। उस कॉन्टेक्स्ट में मैंने नहीं आजकल खुद का ख्याल ना रखने से ज्यादा होता है। तो वही शादीशुदा आदमी करता है अपना ख्याल। अपने बच्चों के ख्याल में लगे पड़े जो आप बता रहे थे जैसे कि कि मम्मी को फर्क टाइम नहीं मिल रहा। पिताजी पैसा कमाने में लगे पड़े हैं। बच्चों को रियलाइज रहा तो उस उम्र में जो स्ट्रेस लिया, परेशानी ली, उसी में ड्रिंक किया, स्मोक किया, जो जो किया दैट ऑल लीड्स टू। अब आई थिंक मुझे इस पे स्टडी करनी पड़ेगी। बिकॉज़ ये एक डाटा है जिसप मैं एक्चुअली मैं पूरा डाटा निकाल सकता हूं। एंड हमारे पास अच्छा खासा कॉम्प्रिहेंसिव डाटा है लाखों पेशेंट्स का। मुझे लगता है ये आपको ये डाटा मिलेगा आपको कि इन कंपैरिजन ज्यादा केसेस हां क्योंकि आपने जो एग्जांपल भी दिया अगर आप नोटिस कीजिए आपने जिस वाइफ का एग्जांपल दिया वो भी शादीशुदा थी। अधिकतर एग्जांपल जो आ रहे हैं वो यही निकल कर आ रहे हैं। या जिन बच्चों का हम जिक्र कर रहे हैं कि 19 साल के आज हैं। कल को वो बड़े होंगे शादी हो गई। कुछ स्ट्रेस आएगा तो वो सिम्टम्स शायद ज्यादा लेकिन चाइल्डहुड कैंसर्स भी होते हैं ना। ब्लड कैंसर भी होता है, लिंफोमास भी होते हैं। तो ऐसा नहीं है कि बच्चों मेजोरिटी की बात होती है। मेजोरिटी कैंसर की। अच्छा बच्चों में कैंसर और बड़ों में कैंसर में डिफरेंस क्या होता है या सेम सिम्टम सेम असर होता है? सेम सिम्टम सेम असर बच्चों में भी सेम रहेगा, बड़ों में भी सेम रहेगा। बच्चों में रिस्पांस भी ट्रीटमेंट का बहुत फास्ट आता है। ब्लड कैंसर जो बड़ों में होगा, जो बच्चों में होगा, दोनों में सबसे पहला सिम्टम आएगा बुखार। और बुखार होने में काउंट्स में भी वही सेम चेंजेस आएंगे। हम्। जस्ट दैट दैट बच्चों में रिकवरी भी बहुत फ़ास्ट आती है और डिटरेशन भी बहुत फ़ास्ट आता है। जैसे अगर बड़ों में फिर भी एक धीरे से आप बीमारी कंट्रोल हो जाएगी और एकदम से गिराव नहीं आएगी। एकदम से गिरावट नहीं आएगी। बट बच्चों में एकदम से गिरावट आती है। और डिटरेशन अगर होता है तो इमीडिएट डिटरेशन होता है। तो अगर आपने रिवाइव कर लिया तो बहुत फास्ट रिकवर कर लिया। अगर नहीं कर पाए और कोई अगर उसने हारश ट्रीटमेंट लिया जिसकी वजह से वो नहीं टोलरेट कर पाया उसकी जो गिरावट आती है वो भी बहुत फास्ट आती है। क्या घर पर खुद से कैंसर के शुरुआती लक्षण जांचने का कोई तरीका है? हम यस बिल्कुल कर सकते हो। सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन महिलाओं में डेली नहाते समय सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन करना ही चाहिए। और अगर कुछ नहीं पता इसमें तो Google कर लीजिए। सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिनेशन करके सर्च मारिए। उसमें पूरा प्रोसीजर है। पूरा किस तरीके से फोटो के साथ हाथ उठाकर कैसे आपको दबाकर चेक करना है। सारी बगल की गांठे कैसे चेक करनी है वो सब आपको डेली करना चाहिए। पुरुषों में घर में जांचने के लिए आपको यह देखना है कि कहीं पर कोई दर्द तो नहीं हो रहा। कोई गांठ तो नहीं है। किसी तरीके का कोई लंप तो नहीं है। कहीं कोई गर्दन के नीचे या फिर आसपास कहीं कोई लंप तो फील नहीं हो रहा। कोई ऐसी गांठ जो मूव कर रही है या फिर दबाने पर दर्द हो रहा हो वो तो नहीं फील हो रहा। या फिर इन जनरल बॉडी में कोई ऐसा सिम्टम तो नहीं है जिसकी वजह से आपकी डेली दिनचर्या कहीं ना कहीं इंपैक्ट हो रही हो। उसको अगर आप सेल्फ इवैल्यूएशन करेंगे तो आप समय रहते हुए कैंसर को पकड़ सकते हैं। एटलीस्ट एक मंथली रूटीन कर लीजिए। बेस्ट है हर छ महीने में एक जांच करा लीजिए ब्लड टेस्ट और एक डॉक्टर को दिखा लेना ऑन अ सेफर साइड। प्रिवेंटिव हेल्थ करके डॉक्टर्स होते हैं। सो प्रिवेंटिव हेल्थ प्रिवेंटिव मेडिसिन में आप जाकर दिखा सकते हैं। प्रिवेंटिव हेल्थ में आप जाकर दिखा सकते हैं। एंड इट इज़ ऑलवेज बेटर टू शो ताकि अगर कॉट फॉरबिट कोई अगर परेशानी है भी जो शुरुआती लक्षण शो कर रही है। समय रहते हुए आप काबू कर लोगे। कैंसर के बारे में सबसे बड़ा मिथ क्या है? कि कैंसर ठीक नहीं हो सकता। कैंसर मतलब डेथ। सबसे बड़ा मिथ यही है। कैंसर की शुरुआत ही डेथ से करते हैं। ये इसलिए क्योंकि बड़ी स्केरी फोटो आती हैं। जब किसी को कैंसर होता है, बाल छील दिए आते हैं। कीमो से कीमो से बट अगर कीमो नहीं करा रहे होते और अल्टरनेटिव मेडिसिन कराते हो या फिर हम जैसे कैंसर ही थेरेपी करते हैं। उसमें ये सब क्वालिटी ऑफ़ लाइफ कुछ खराब नहीं होती। एज इट इज़ रहता है। कैंसर का पेशेंट हमारे यहां कैंसर ही थेरेपी में चल के जाता है। कीमो कराने चल के वापस आता है। कोई बाल नहीं झड़ते। कोई नज़िया नहीं होता। कोई वोमिटिंग नहीं होती। आज अगर शुभंकर ए सेंटर से हमने आज 20 सेंटर इतने हॉस्पिटल किए हैं वो केवल इसी थेरेपी से इसी मरीजों के बिना कीमो के भी कैंसर के इलाज बिना कीमो के वी डोंट थोड़ा समझाइए मुझे क्योंकि मेरे यहां पर एक एक्ट्रेस आई थी सोनाली बेंद्रे जी जहां आप बैठे हैं सोनाली बेंद्रे जी वहीं बैठी थी और मैंने उनसे उनके कैंसर की प्रक्रिया का सवाल पूछा उस पूरे ड्यूरेशन का तो सोनाली बेंद्रे ने मुझसे कहा कि शुभांकर कैंसर जितनी खतरनाक बीमारी है उससे खतरनाक वो प्रोसीजर था हां कि वो इलाज हां और वो बहुत डरावना होता है। अभी हिना खान की भी हमने तस्वीरें देखी। बाल शेव किए और वो बहुत डरावना होता है। वो तस्वीरें देखकर डर पैदा करती है। शायद वही है जिसे देखकर लोग मानते हैं कि ये मौत की तरफ बढ़ता कदम है। क्योंकि इंसान का हुलिया बदल जाता है। कीबो के बिना भी इलाज संभव है कैंसर का? बिल्कुल संभव है। जो हम लोग ट्रीटमेंट करते हैं वो कैंसर ही थेरेपी करते हैं। कैंसर ही थेरेपी में क्या होता है कि इम्यूनथरेपी बेस्ड है। ऑन अ लेमन स्टम मैं आपको बुलेट प्रूफ जैकेट पहना दूं। गोली मारता रहूंगा असर नहीं होगा। वैसे काम करती है। नॉर्मल सेल एक्टिव हो रहे हैं। नॉर्मल सेल कैंसर सेल को खत्म कर रहे हैं। कोई बाल नहीं झड़ेंगे। कोई नज़िया नहीं होगा। कोई वोमिटिंग नहीं होंगी। कोई काउंट्स कम नहीं होंगे। कोई ब्लड टेस्ट में आपका जो हीमोग्लोबिन कम हो रहा होता है वो नहीं होगा। भूख खत्म नहीं होगी। वजन नहीं घटेगा। बिल्कुल नॉर्मल लाइफ जैसे आप जी रहे हो वैसा जिओगे। प्लस अगर कोई भी परेशानी है उसमें आपको दिख जाएगा कि विद इन 45 टू 60 डेज इंप्रूवमेंट आया है। कैंसर से आदमी नहीं मरता। कैंसर के इलाज में जो टॉर्चर होता है उससे आदमी टूट जाता है कि वो हाथ जोड़ लेता है कि नहीं चाहे कुछ हो जाए मुझे दोबारा इलाज कराने नहीं जाना। मैं मर जाऊंगा लेकिन मुझे कीमो नहीं कराओ क्योंकि वो अंदर से जल चुका होता है। अंदर से टूट चुका होता है और उससे रिवाइव नहीं हो पाता। द गुड थिंग इज कैंसर हीलियोथेरेपी में जो हम लोग इम्यूनथरेपी करते हैं उसके साइड इफेक्ट्स नहीं होते। तो एटलीस्ट वो जैसी लाइफ जी रहा है, जेंटल लाइफ जी रहा है, वो जेंटल लाइफ फिर लोग कीमो क्यों करवाते हैं? इट्स अ वर्ल्ड वाइड यह एक प्रूवन ट्रीटमेंट बोला गया है। वर्ल्ड वाइड फार्मा कंपनीज़ इतना पैसा इसमें लगा रही है कि कैंसर मतलब कीमो। कैंसर का इलाज ही कीमो है। बाकी सारे ट्रीटमेंट तो उनके हिसाब से एग्जिस्ट ही नहीं करते। बाकी सारे ट्रीटमेंट तो उनके हिसाब से फेक है, यूज़लेस है। कोई उसका असर ही नहीं है। हमारे हॉस्पिटल्स में कीमो, रेडिएशन, सर्जरी सब होती है। उसके साथ कैंसर ही थेरेपी होती है। और कैंसर ही थेरेपी में जितने भी पेशेंट्स हैं जो कीमो करा रहे हैं कोई साइड इफेक्ट नहीं आता। देयर आर जीरो साइड इफेक्ट्स। ऐसा नहीं है कि ये ट्रीटमेंट पॉपुलर नहीं है। ऐसा नहीं है कि ये ट्रीटमेंट बॉलीवुड में भी कई सेलिब्रिटीज हैं जिनका ट्रीटमेंट हुआ है हमारे थ्रू। पॉलिटिक्स में ऐसे कई हैं जिनका ट्रीटमेंट हुआ है हमारे थ्रू। जस्ट दैट दैट एक डॉक्टर पेशेंट रिलेशनशिप होती है। ये इसलिए पूछ रहा हूं। उनका नाम नहीं बता सकते। टोक रहा हूं। एक गरीब आदमी को किसी ने कह दिया कि यही टेस्टेड वेरीिफाइड है। वो कीमो करवा रहा है। समझ में आता है। लेकिन एक पढ़ा लिखा इंसान एक सक्सेसफुल इंसान एक जिसके पास एक्सेस है, पैसा है, 10 डॉक्टरों से कंसल्ट करता है। वो एक बिना पेनफुल ट्रीटमेंट की जगह एक पेनफुल ट्रीटमेंट पे जा रहा है। तो यह क्या है? क्योंकि उसको यह लगता है कि अगर वो जितने बड़े हॉस्पिटल में इलाज करा रहा है शायद वही ट्रीटमेंट है। वही असली ट्रीटमेंट है। बिकॉज़ लाखों करोड़ों अरबों डॉलर्स खर्च किए गए हैं फार्मा कंपनीज़ के थ्रू कि कैंसर मतलब कीमो। कैंसर हो गया तो कीमो निश्चित है। आप Google करोगे लाइन से फार्मा कंपनीज़ के जितने एफएक्यूस हैं वो सारे आ जाएंगे कि कैंसर में तो कीमो ही होना है। एंड अगर आप कोई भी अल्टरनेटिव ट्रीटमेंट सजेस्ट भी करते हो। सो इब्नोथेरेपी कम्स अंडर द सिस्टम ऑफ़ कैंप कॉम्प्लीमेंट्री एंड अल्टरनेटिव मेडिसिन। तो ऐसे कई पेशेंट्स हैं जो ये अपना रहे हैं। लार्ज स्केल में क्यों नहीं अपना पा रहे? बिकॉज़ कहीं ना कहीं उनको वो जो एक कॉन्फिडेंस जो Google देता है वो Google वाला कॉन्फिडेंस नहीं मिल पा रहा। बिकॉज़ कोई ऐसी फार्मा कंपनी नहीं है जो लाखों करोड़ों डॉलर खर्च कर दे इस पर। और इस ट्रीटमेंट को पिक करके वर्ल्ड वाइड थ्रूउ हर देश में हर शहर में हर जगह यह पैरेलल कराना शुरू कर दे। बट फिर डॉक्टर्स क्यों नहीं बताते? जैसे कोई डॉक्टर के पास गया उनको भी पैसा मिल रहा होगा फार्मा कंपनियों से तो उनका ट्रीटमेंट तो वही रहेगा उन्हें तो जो बोला गया है जो ट्रीटमेंट बताया गया है वही करेंगे अगर उनको इफ दे डू कीमो तो कीमो ही करेंगे अगर कोई सर्जन के पास जाओगे तो सर्जन तो कीमो करेगा नहीं सर्जन सर्जरी ही करेगा आप ओकोलॉजिस्ट के पास जाओगे वो कीमो ही करेंगे लाइक वाइज वो दूसरे ट्रीटमेंट को समझेंगे ही नहीं कभी उसको रिगार्ड करेंगे ही नहीं सॉरी सो अगर आज ये ट्रीटमेंट है ये ट्रीटमेंट आज आज भी कई डॉक्टर्स हैं। हमारे पास कई डॉक्टर्स के ट्रीट उनके पेरेंट्स के ट्रीटमेंट चल रहा है। जिसमें वो कीमो भी कराते हैं और उसके साथ हमारा ट्रीटमेंट भी कराते हैं। फॉर टू रीज़ंस जितने कीमो के साइड इफेक्ट्स हैं वो हमारे ट्रीटमेंट चलते हुए नहीं आते। दूसरा जितने भी रिकवरी होती है वो रिकवरी हमेशा परमानेंट होती है। वो रिकवरी आपको दिखती है कि एटलीस्ट जो रिपोर्ट्स में इंप्रूवमेंट दिख रहा है वो इंप्रूवमेंट दिख रहा है। और एटलीस्ट डॉक्टर्स जब देखते हैं वो कहते हैं जरूर तुम कुछ ना कुछ ले रहे होगे। इतना अच्छा इंप्रूवमेंट आया। सो व्हाट दे वर एक्सपेक्टिंग आफ्टर 8 मंथ्स ऑफ ट्रीटमेंट वो उन्हें 4 महीने में दिख जाता है। ये इंप्रूवमेंट दिखता है। तो मैं हमेशा कहता हूं कि आपको जरूरत नहीं है डॉक्टर्स को बताने की। आपको जो कराना है कराओ इट डजंट मैटर। आपका ऐ और मेरा ऐ हमेशा कॉमन रहता है। आपके में रिकवरी दिखनी चाहिए। आप में इंप्रूवमेंट दिखना चाहिए। और हर कैंसर मरीज के लिए शायद यही जरूरी है कि जितनी जल्दी हो सके रिकवर हो, जितना ज्यादा हो सके रिकवर हो। इट डजंट मैटर कैसे है? और शायद यही रीज़न है आज ये वो जो ट्रीटमेंट है इट इज़ एन एविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट। इट्स अ सक्सेस स्टोरी बेस्ड ट्रीटमेंट जहां पर आज इतने तादाद में इतने हजारों पेशेंट रिकवर हुए हैं जिनकी रिपोर्ट्स नॉर्मल आ गई। टाटा मेमोरियल ने कहा कैंसर, टाटा मेमोरियल ने कहा कैंसर ठीक हो गया। ऑल इंडिया इंस्टट्यूट ने कहा कैंसर ऑल इंडिया ने कहा कैंसर ठीक हो गया। शायद इसीलिए इस पे एविडेंस बेस्ड ट्रीटमेंट चल रहा है। नवजोत सिंह सिद्धू क्रिकेटर कमेंटेटर उन्होंने अपनी वाइफ को लेकर एक दावा किया सोशल मीडिया पर जो बहुत ज्यादा विवाद की वजह बना। कैंसर को ठीक करने का दावा। हम चाहते हैं थोड़ा उसको आप समझाइए हमें। क्यों आप मुझे कंट्रोवर्शियल टॉपिक्स में डाल रहे हो? कंट्रोवर्शियल नहीं डाला। मैं समझना चाहता हूं क्योंकि बहुत सारे डॉक्टर्स खिलाफ मेरे पास कि प्रैक्टिकली पॉसिबल नहीं है जो दावा वो कर रहे थे। क्या दावा किया था पहले आप वो बताइए दर्शकों को फिर हम आपसे उसका रियलिटी चेक चाहते हैं। सिद्धू साहब ने यह दावा किया था कि उनकी वाइफ का जो इलाज हुआ वो नॉर्मल उन्होंने कीमो बंद कर दी थी और जो भी इलाज हुआ वो जो उन्होंने जनरल डाइट पूरा खानपान के थ्रू उन्होंने अपना पूरा डाइट के थ्रू अब उनका अपनी वाइफ का कैंसर ठीक किया और कोई रेडिएशन नहीं कराई कोई सर्जरी नहीं कराई और जो भी किया वो सब डाइट के थ्रू किया और सुबह काढ़े से लेकर और जूस से लेकर और ओट खिचड़ी से लेकर सब कुछ किया एंड उसी से कैंसर ठीक हो गया और रिपोर्ट्स नॉर्मल आ गई इज इट प्रैक्टिकली पॉसिबल क्यों मुझसे कमेंट करवा रहे हो शबाकर मुझे क्यों कंट्रोवर्सी में डाल रहे हो? क्योंकि यह एक इंडिविजुअल आदमी ने क्लेम किया ये मिथ ना फैले इसलिए करवा रहा हूं। आप डॉक्टर हैं। ये आपका काम है। आपकी जिम्मेदारी है। इसको लेकर लोग सच गलत मान सकते हैं। वो बड़े शख्स हैं। बहुत सारे डॉक्टर्स ने इस पर राय रखी। आइडियली देखो कभी भी ना अकेले खाने से कैंसर ठीक नहीं होता। मैंने हमेशा बोला है स्ट्रांग विल पावर, डिटरमिनेशन टू फाइट एंड करेक्ट ट्रीटमेंट। वो करेक्ट ट्रीटमेंट जरूरी है। विदाउट करेक्ट ट्रीटमेंट इट इज नॉट पॉसिबल अलोन। अकेले डाइट से कैंसर ठीक होना इट इज टू आई वोंट कमेंट ऑन दिस। बट आइडियली मतलब लोग जो मेरे पास पेशेंट्स आते हैं वो कहते हैं हम सिद्धू डाइट ले रहे हैं। तो ही हैज़ बिकम अ डाइटिशियन एक्चुअली। और हर जगह वो सिद्धू डाइट सिद्धू डाइट फॉलो हो रही है और उनका पूरा एक पर्चा निकल गया है जिसको हर जगह आई थिंक हर क्लीनिक पर लेकर पेशेंट पहुंच जाता है कि डॉक्टर साहब ये सिद्धू जी की डाइट है और ये सिद्धू डाइट हम फॉलो कर रहे हैं तो उस डाइट का नाम ही सिद्धू डाइट हो गया बट ठीक है ऑल आई लव हिम आई लव हिज शायरीज आई लव हिम ऑन कपिल शर्मा शो मेरे बहुत ही मुझे बहुत ही अच्छे लगते हैं जो वो बात बोल मुझे बहुत पसंद है बट वो पसंद होना एक अलग कॉन्टेक्स्ट है एक दावा एक अलग कॉन्टेक्स्ट है दावा करना ऐसे गलत था। पसंद हम उनको क्रिकेट शायरी, कमेंट्री की वजह से करते हैं। यहां मसला सेहत का है। दावा करना गलत था। दैट वास टू इमैच्योर। वो नहीं करना चाहिए। बट मैं कोई नहीं होता हूं कमेंट करना किसी के ऊपर। लेकिन विद कंप्लीट लव एंड रिस्पेक्ट टू हिम। अकेले डाइट से नहीं होता। स्टंग विल पावर भी होती है। वो आप भूल गए। आपने वो नहीं बताया। एक डिटरमिनेशन टू फाइट जो लड़ने का जज्बा होता है वो नहीं बताया। जो एनवायरमेंट मैं हमेशा कहता हूं स्ट्रांग सपोर्ट सिस्टम आपने वो नहीं बताया। आपने यह नहीं बताया कि खाने पीने के साथ-साथ जब उन्होंने वो डाइट करी तो उनके बाल फोटो दिखाई थी तो उसमें बाल उड़े हुए थे। इसका मतलब कीमो भी करा रहे थे वो। तो आपने वो क्यों नहीं बताया कि कीमो के साथ आप ये डाइट ले रहे थे। एटलीस्ट कीमो के साथ डाइट ली और डाइट के साथ वो मेंटल सपोर्ट स्ट्रांगली खड़े रहे। खड़े रहे और मैंने स्ट्रांग सपोर्ट सिस्टम जरूरी है। आपको वो भी बताना चाहिए। वही वही तो लोग जो बायस होकर सिद्धू डाइट सिद्धू डाइट लेते हैं ना हम तो ये लेंगे और हम ठीक हो जाएंगे। वो अकेले काम कभी नहीं करेगा। अच्छा खानपान हमेशा आपको बेहतर करेगा। आपकी रिकवरी लाएगा। एक कांसेप्ट होता है एंजियोजेनेसिस जिसमें पूरा का पूरा जो ट्यूमर होता है उसके ट्यूमर का पूरा एरिया सारी आर्टरीज कट जाती है और डिटच हो जाता है और वो अपने आप ही सूखा मर जाता है ट्यूमर। दैट्स अ फैक्ट। एंजियोजेनेसिस इज़ अ फैक्ट। उसको कोई डिसरगार्ड नहीं कर सकता। बट अगर आप कह दो कह दो कि ये सब खाओ किनुआ खिचड़ी खाओ। सुबह आंवले का रस पियो और कैंसर ठीक हो जाए वो थोड़ा इमैच्योर डिसीजन है। ओके। क्या छूने से या साथ रहने से कैंसर फैलता है? नहीं फैलता। छूने से, किस करने से, स्मूथ करने से, साथ रोने साथ सोने से, सेट्स करने से कैंसर नहीं फैलता। यह बहुत बड़ा मिथ है। लोग मेरे पास ये तक आकर पूछते हैं, डॉक्टर साहब एक बात बोलूं? मैं कहा हां जी बोलो। मेरा जो बेटा है वो दादी के साथ खाना खाता है उसकी प्लेट में। कहीं मेरे बच्चे को रिस्क तो नहीं है। मैं कहता हूं यार क्या कर रहे हो आप? अगर मतलब उनकी सास के लिए पूछता है। ये तो मैं कहता हूं ऐसा कुछ भी नहीं है। आई एम श्योर हस्बैंड भी पूछते होंगे कि सर अपनी वाइफ मेक आउट करें ना करें? बिल्कुल कर सकते हैं। एंड कोई ऐसा कुछ भी नहीं है। आप नॉर्मल दिनचर्या फॉलो कर सकते हो। नॉर्मल टेक इट एज अ नॉर्मल डिजीज। क्यों उसको हौवा बना रहे हो? हौवा नहीं है कैंसर। और कैंसर को आप जितना हौवा बनाओगे ना उतना कैंसर ज्यादा पावरफुल होगा। कैंसर कोेंस ही मत दो। उसको बिल्कुल नलीफाई कर दो। जब आप दुश्मन को ताकतवर समझते हो ना। सो कैंसर इज लाइक एक्स गर्लफ्रेंड। जितना उसके बारे में बात करोगे उतना परेशान होगे। उतना परेशान होगे। जितना उसे भाव दोगे। क्या बात है। वाह यस। हां। मतलब उसके बारे में भाव लगता है किसी का दिल टूटा हुआ है। सबका कटा है सर। नहीं बट हां आप अननेसेसरी क्योंेंस दो हो? पास्ट इज़ पास्ट। जैसे आप पास्ट है। पास्ट को आप कभीेंस नहीं देते। आप जितना दोगे उतना दुखी होगे। लाइक वाइज आप जब कैंसर को कैंसर को आप जितना छेड़ोगे या कैंसर को आप जितना इंपॉर्टेंस दोगे इट विल डैमेज। क्या पॉजिटिव नए बच्चों को आप लास्ट के टाइम दे सकते हैं एग्जांपल ये कि जैसे अपनी एग से मूव ऑन इतने स्ट्रांग होके ऐसे यहां करना पड़ेगा मतलब मेरे आप वो बन जाओ कंसलटेंट जिसमें जो जो प्रिस्क्राइब करना हो जैसे-जैसे गाइड करना हो अपने पेशेंट्स को शुभांकर से मैं फोन कर करके पूछूंगा देखिए छोटे-मोटे डॉक्टर एक पॉडकास्ट के बाद हम लोग ही बन जाते हैं बिल्कुल बन जाना चाहिए और आप सीख जाते हो काफी आपके थ्रू अवेयरनेस होती है आप लोग एक माध्यम है एक डॉक्टर के लिए अवेयरनेस करने के लिए हम लोग अपने क्लनिक पर अपने सेंटर्स में अपने हॉस्पिटल में बैठे हुए एक लिमिटेड नंबर ऑफ पेशेंट्स देख सकते आज ये पडकास्ट करने का रीज़न ही यही है कि आई एम सो ग्रेटफुल टू यू दैट थ्रू दिस पडकास्ट आप करोड़ों लोगों तक यह पहुंचा सकते हो कि कैंसर लालाज बीमारी नहीं है। कैंसर हव नहीं है। कैंसर एक भयानक मृत्यु का पर्याय नहीं है। कैंसर से लड़ा जा सकता है। कैंसर से जीता जा सकता है। और लोग जो अपने घर बैठ जाते हैं ना कि नहीं अब कैंसर मतलब दी एंड। वो दी एंड नहीं है। रादर हमारे कैंसर हिला सेंटर का एक नीचे एक टैगलाइन है अ न्यू बिगनिंग। एक नई शुरुआत। टेक इट एज अ न्यू बिगनिंग ना। आप एक नई जर्नी करते हैं, एक नई शुरुआत करते हैं। तो वो एक पॉडकास्ट के थ्रू और आप बोलते इतना अच्छा है, आप बात इतनी अच्छी करते हैं और आप जो आपके बीच-बीच में जुमले आते हैं वो तो और भी सटीक आते हैं। सो आई एम श्योर दैट थ्रू दिस हम करोड़ों तक पहुंच सकते हैं। मैं चाय पीने जाया करता था तो उसने मुझे कागज के ग्लास में देना शुरू किया। पहले प्लास्टिक के ग्लास में चाय मिलती थी। फिर कहा गया कि प्लास्टिक के ग्लास में चाय पीने से कैंसर होता है। इज इट ट्रू? यस। ट्रू। प्लास्टिक के ग्लास में, प्लास्टिक की बोतल में पानी नहीं पीना चाहिए। जो प्लास्टिक की बोतल अगर आपकी गाड़ी में रह जाए और आपको वापस गाड़ी में बैठकर पानी पीना हो प्यासे रह जाना लेकिन पानी मत पीना। प्लास्टिक की बोतल में पानी भी नहीं पीना चाहिए। प्लास्टिक के कप में गर्म लिक्विड तो एनीवेज नहीं पीना चाहिए। व्हाई? बिकॉज़ इसमें एक केमिकल होता है जिसको कहते हैं बायोफिन बायोफिनोल ए बीपी ए। और यह जो केमिकल होता है यह धीरे-धीरे करके जब घुलता है तो यह कैंसर कॉजिंग एजेंट है। कार्सिनोजेन है। दिस इज डेंजरस। धूप में भी वही जब हीट हुई तो जो पानी बतल में अलग-अलग जो जितनी मिनरल वाटर की बॉटल्स आती हैं सारी प्लास्टिक आती हैं। अब इसमें बीपीए होता है। ये बीपीए फ्री नहीं है। बीपीए फ्री होती तो शायद ₹100 की ये बोतल बिकती। ये सस्ती ₹1 ₹1 की ₹6 की इतनी छोटी बॉटल्स मिल जाती हैं। इन सब में ये केमिकल होता है। ये बीपीए केमिकल होता है। अब ये जब पैक होती है, पैक होकर जब ये बड़े-बड़े ट्रकों में निकलती है तो धूप में निकल रही है। पूरा रेज है, यूवी रेज हैं। ये सारी की सारी उसमें जा रही है। नहीं तो यहीं पे इंटरप्ट यही सब उसको फ्रेम करके पूछ लेता हूं मैं। ये जो ₹120 की पानी की बोतल हम पीते हैं रेलवे स्टेशन से लेकर बाहर जाते हैं जो पैक्ड बोतल मिलती है हमें अलग-अलग ब्रांड्स की। क्या इनको पीने से कैंसर हो सकता है? अगर यह धूप में रखी हुई है। ऑब्वियसली आती है कि अभी आप जानते हो कहीं पैक हुई होंगी, वहां से चली होंगी, आई होंगी। आपने कहा कि गाड़ी के अंदर पानी की बोतल अगर रखी रहेगी तो मत पीजिए प्लास्टिक वाली। तो ये तो ट्रेवल करके आई होंगी ना। फिर दुकान के बाहर पड़ी रहती है। कभी फ्रिज में रख दी गई ठंडी हो गई। फिर निकाल के रख दी गई बाहर हो गई। नहीं पीना चाहिए। इसमें केमिकल होता है बीपीए। और यह बीपीए कैंसर कॉजिंग एजेंट है। कार्सिनोजन है। नहीं पीना चाहिए। ये तो हम सब पीते हैं। थर्मस में पानी ले जाओ। फ्लास्क में पानी ले जाओ। यह प्लास्टिक की बोतल में पानी पीना बंद कर दो। आप क्यों खास तौर पर ये पतली वाली जो बोतल आती है खासकर जो पतली वाली बोतल आती है जो जितनी प्लास्टिक की बोतल हां ये जो हमें मिलती है नॉर्मल शॉप्स पे 15-20 की मैं ब्रांड्स का नाम नहीं लूंगा लेकिन बिल्कुल ये सब कैंसर कॉजिंग एजेंट है क्योंकि जब ये पैक हुई पैक होने के बाद ये ओपन ट्रक में घूम रही है। धूप पड़ रही है। पानी उसमें केमिकल उसमें अब्सॉर्ब हो रहा है। अरे हम ट्रैवल करने जाते हैं तो जो छोटे-छोटे ढाबे होते हैं वहां बाहर प्लास्टिक की बोतल का खड़ा होता है रैकेट। हां। और वह पनीर में से निकाल निकाल के फ्रिज में ठूसते रहते हैं। ठंडी आती है। बट बाहर तो गर्म हो रही थी। बीपी है। यही बीपी अब्सॉर्ब हुआ। तो अब एक बोतल पानी पीने से क्या होगा? एक कश्त से क्या होगा? एक बार खैनी खा लेने से क्या होगा? एक पान मसाला के दाना खाने से क्या होगा? यहां से शुरुआत होती है। बट 100 200 बार तो हम ही पी गए होंगे यार। तो हर ट्रिप पे हम बाहर जाते हैं। कहीं पहाड़ पहाड़ों चले ठंडा होता है वहां मौसम। बाकी नॉर्मल जगह हम कहीं जाते हैं जाते वक्त हम रास्ते में पानी पीते आते हैं। यार पानी की बोतल ले आओ। हमें लगता है वो ज्यादा सेफ है। नहीं होता। प्लास्टिक की बोतल में यह जो पानी पी रहे हो आप, यह सेफ नहीं है। अच्छा, हमने भी कभी दिमाग नहीं लगाया। हम प्लास्टिक के ग्लास में वहां उसी ढाबे पे चाय नहीं पीते। हां। लेकिन प्लास्टिक की बोतल के बाहर लेकिन प्लास्टिक की बोतल में पानी पी लेते हैं। जबकि वो बाहर गर्म हो के दिन में गर्म होती है फिर ठंडी होती है। हां। तो यही कैंसर कॉजिंग एजेंट है। यही धीरे-धीरे करके हमारे शरीर में बूंदबूंद से कैंसर का सागर बना रहा है। भगवान। क्या घी खाना तेल से बेहतर है? बहुत अच्छा है। घी 1000 टाइम्स बेटर है तेल से। अगर एक चम्मच घी अगर आप खा रहे हो डेली कभी भी आपका इम्यून सिस्टम लो नहीं होगा। तेल से बहुत बेहतर है। रिफाइंड अपने खाने से बिल्कुल हटा दो। रिफाइंड आपको बिल्कुल अपने खाने में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जब हो सके कोकोनट ऑयल, सरसों का तेल बहुत बढ़िया है। रिफाइंड ऑयल मत यूज़ करो। सरसों का तेल देख के तो मुझे वो बच्चन फैमिली को वीडियो याद आ गया। कितनी आंख नाक कान बनाई गई सरसों का तेल कौन यूज़ करता है? लेकिन सरसों का तेल क्या फायदा है? क्योंकि सरसों का तेल बड़ा अपडेटेड लोग मानते हैं आप। नहीं ऐसा नहीं है। अरे वो बड़ा वायरल वीडियो है। आप यूपी के हो? हां। हम भी यूपी के हैं। और यूपी में क्या होता था? सरसों का तेल। और हर चीज जो भी अच्छी है तो सरसों के तेल। बच्चन साहब क्योंकि यूपी से हैं। जया जी बंगाल से हैं। तो वीडियो इसी कॉन्टेक्स्ट पे था। कि बच्चन साहब सरसों का तेल यूज़ करते हैं। तो सरसों जया जी उस पे सरसों का तेल पैसे कर रही थी। नहीं। सरसों का तेल बिल्कुल यूज़ करना चाहिए। बिकॉज़ हेल्थ के लिए बहुत अच्छा है। अच्छी बात यह है कि कोई भी जो तेल होता है जब आप लेते हो तो तेल एक अकेला ऐसा मीडियम है जो आपके सीधे सेल पे अब्सॉर्ब होता है। इट गेट्स अब्सॉर्ब्ड ऑन योर सेल। तो जब आप तेल लेते हो तेल हमेशा कहीं पे भी आप खाना खाओ उस जगह खाना खाना जहां पर तेल अच्छा यूज़ हो रहा हो। कभी भी जो बार-बार जैसे भटूरे तल रहे हैं और वो तेल बार-बार यूज़ हो रहा है। बिल्कुल नहीं खाना चाहिए। आपकी जिंदगी तल रहे हैं। यस। चीनी या शुगर फ्री जैसे आइटम खाने से भी कैंसर होता है। चीनी खाने से कैंसर नहीं होता। लेकिन हां, कैंसर में चीनी नहीं खानी चाहिए। बिकॉज़ कैंसर थ्राइव्स ऑन शुगर। कैंसर शुगर पे पल पनपता है। तो कैंसर में आपको शुगर कम कर देनी चाहिए या खत्म कर देनी चाहिए। और जितने ये शुगर फ्री, एस्पार्टेम और ये सब चल रहे हैं। आप जानते हो डाइट कोक और ये सॉरी मुझे ब्रांड का नाम नहीं लेना चाहिए। जितना भी ये सब शुगर फ्री चल रहे हैं, जितने कोल्ड ड्रिंक्स में आप एस्पार्टेम और सुकलोज़ डाल रहे हो, ये सब भी डेंजरस है। ये नहीं लेना चाहिए। जितना हो सके आप इसको अवॉइड करो। बिकॉज़ ये कोल्ड ड्रिंक भी कहीं ना कहीं जहर है। हमारी रसोई में कौन-कौन सी चीज है जो कैंसर की तरफ बढ़ावा देती है। एलुमिनियम के बर्तन किचन से उठा के फेंक दीजिए। अ टेफलॉन कोटिंग वाले नॉन स्टिक बर्तन अगर आप उसको एलुमिनियम के चूने से घिस रहे हैं, स्टील के चूने से घिस रहे हैं। मतलब उसमें जहर आप तल रहे हो क्योंकि नॉन स्टिक 240 डिग्री के बाद टेफलॉन बर्न आउट हो जाता है। तो इसलिए उसको नॉनस्टिक करते हैं। बट इंडियन किचन में नॉन स्टिक जनरली नॉन स्टिक जो होता है अंग्रेजों वाले शहर में वहां पर डिशवाशर में यूज़ होता है। यहां पर चूना लगाया जाता है। जूने से धोया जाता है। अब वो जब स्टील का जूना आप लगाते हो तो उसमें उसके केमिकल्स छिल जाते हैं। और वो जब छिल जाते हैं तो उसमें उसके केमिकल बाहर निकलने शुरू हो जाते हैं। तो जब आप उसमें खाना बनाते हो, पकाते हो तो वो जो परांठा आप तल रहे हो या पराठा आप सेक रहे हो या ऑमलेट आप बना रहे हो उसमें कहीं ना कहीं कैंसर कॉजिंग एजेंट जुड़ रहा है। तो नॉनस्टिक बर्तन बाहर निकाल के फेंक दीजिए। प्लास्टिक के बर्तन उठा के फेंक दीजिए। पीतल कास्ट आयरन, लोहे की कढ़ाई, यह पुराना जो तरीका था पीतल यह वाले बर्तन यूज करिए। जैसा आपके फादर, फोरफादर यूज़ करते थे ना, बाप दादा जैसे यूज़ करते थे। कम बैक टू बेसिक्स, कम बैक टू नेचर। जितना पुराने तरीके में थे, वो उनमें इतनी काबिलियत थी, उनमें इतनी अकल थी कि वो जो यूज़ करते थे वो जेन्युइन था। हम जितना मॉडर्न लाइफ की तरफ भाग रहे हैं उतना प्रॉब्लम आ रही है। ये जो आप खाना प्लास्टिक के बर्तनों में गर्म करते हो प्लास्टिक के ऑर्डर आया खाना गरम खाना आपके प्लास्टिक के बर्तनों में आया आपने माइक्रोवेव कर दिया। ये जो फास्ट लाइफ हो रही है ना ये डेंजरस है। कौन से पांच खाने के पदार्थ हैं जिसको खाने से कैंसर होने के चांसेस कम हो जाते हैं या कैंसर से लड़ने की क्षमता बढ़ाते हैं। ब्रोकली बहुत अच्छा है खाने में। हम सोते करके खाओ हरी गोभी जिसे बोलते हैं। फूलगोभी बहुत अच्छी है। क्रूस वेजिटेबल्स मतलब जितने हो सके ये बहुत ज्यादा फायदेमंद है। टमाटर बहुत अच्छा है। गाजर सर्दियों में गाजर गर्मियों में कद्दू बहुत अच्छा है। अगर कद्दू खाएंगे तो लोग जनरली बहुत ही इग्नोर करते हैं कद्दू को। कद्दू पंपकिन जिसे हम बोलते हैं। तो कद्दू बहुत ही सेहतमंद है खाने में। कटहल बहुत अच्छा है। बहुत इम्यून इम्यूनिटी बढ़ाता है। कटहल को लोग इग्नोर कर जाते हैं। जनरली आमतौर पर कटहल इतना ज्यादा यूज़ नहीं होता। आइडली हफ्ते में दो बार कटहल लेना चाहिए। आपका इम्यून सिस्टम बहुत पीक पे जाएगा। बहुत इंप्रूव होगा। लोग उसको मनाने में लापरवाही करते हैं। जितना ज्यादा इग्नोर करते हैं, उतना प्रॉब्लम होती है। फलों में अमरूद को अमरूद एक अकेला ऐसा फ्रूट है जिसमें पेस्टिसाइड नहीं छिड़के जाते। आप आम कार्बाइड से पकाओगे, कद्दू में सॉरी आम कार्बाइड से पकाओगे। तरबूज में आप इंजेक्शन लगाकर मीठा कर दोगे। बट अमरूद एक ऐसा है जिसको आप कभी भी छेड़ नहीं सकते। उसमें कोई पेस्टिसाइड नहीं छेड़ के जाते। अमरूद इज वेरी वेरी गुड। केला फलों में। बहुत अच्छा है बिकॉज़ आपने जरा सा केमिकल लगाया तो सीधे काला पड़ जाएगा। तो केला सबसे ज्यादा स्वस्थ है। जितना हो सके दिन में दो केले खाइए। सेब अगर खाना है तो सेब के छिलका उतार कर खाइए। बहुत फायदेमंद है। ब्लू बेरी अगर अच्छे मिल जाए, सस्ते मिल जाए अगर आमतौर पर खा सकें अगर आप अफोर्ड कर सकते हैं। ब्लूबेरी बहुत अच्छा है। एक इंडिया में बड़ी प्रिटी कंडीशन है शुभांकर कि जो कैंसर कॉजिंग एजेंट है ना जो कैंसर करती है वो सबसे सस्ती है। ब्रेड सबसे सस्ता है। और जो कैंसर से रिकवर करती है और ठीक करती है वो सबसे महंगा है। ब्लू बेरी ब्रेड खाने से कैंसर होता है। ब्रेड खाने से कैंसर होता है। डबल रोटी नहीं खानी चाहिए। ओके। ब्रेड नहीं खानी चाहिए। लोगों को पता ही नहीं है अगर आप डबल रोटी खाते हो, ब्रेड खाते हो, ब्रेड सफेद ब्रेड ज़हर है आपके लिए। नहीं खाना चाहिए। जूसे ज़हर है आपके लिए। आप एक लीची का जूस एक लीटर का कितने का पड़ता है? मतलब हम तो ऑर्डर करते हैं। मतलब ₹110 ₹120 एक लीटर कैन और 1 किलो लीची कितने की पड़ती है? काफी महंगी पड़ती है और ₹200 अब उसको जब आप छीलते हो तो छीलकर आपने पूरा गुठलियां हटाई सब कुछ हटाया गुदा बचा आधा भी नहीं बचता इतना बचता होगा 1 किलो का 1 किलो का ₹200 का इतना सी लीची का इतना बना 110 का कैसे आ गया पूरा डब्बा कुछ मिलाया है ज्यादातर मिलाया है क्यूल टेस्ट डाल दिया है कैसे आ जाएगा तो ये प्रॉब्लम हो रही है ये जो मिलावट वाला आप जो ले रहे हो ना यहां से कैंसर शुरू चलो मैं इसको रिवर्स क्वेश्चन करता हूं किन पांच चीजों को खाने से सबसे ज्यादा कैंसर होने के चांसेस हैं। ब्रेड सबसे ज्यादा एक वाइट ब्रेड नहीं लेना चाहिए। जूसेस नहीं लेना चाहिए। पैक्ड जूसेस पैक्ड जूसेस नहीं लेना चाहिए। तीसरा कोल्ड ड्रिंक नहीं लेनी चाहिए। चौथा मैदा अवॉइड करो। बाहर का खासकर ये जो मैदे से बनाई हुई चीजें वो भटूरे अवॉइड करिए। दिल्ली में रह रहे हो तो आप छोले भटूरे अवॉइड नहीं कर सकते। बट साल में एक बार अगर आपने खा लिया खा लिया लेकिन मैदा अवॉइड करिए। पांचवा वेरी इंटरेस्टिंग क्वेश्चन। पांचवा पांचवा प्लास्टिक की बोतल सर पानी मत पीजिए। पानी मत पानी पीजिए लेकिन प्लास्टिक की बोतल में पानी मत पीजिए। खास तौर पर वो जो गरम ठंडी-गरम ठंडी होती है धूप में होके आती है। यस। वरना आप को आप डॉक्टर के पास जाना पड़ेगा। क्यों डरा रहे हो ऑडियंस को? लोग गालियां देंगे मत करिए। ये चीज है ना मतलब आप कई बार डर जरूरी होता है। अगर वो डर से उन्हें फर्क पड़ता है और अगर उन्हें डर से ये सारी चीजें करने करके करना छोड़ देते हैं तो आई थिंक हमारा आना सफल हुआ। देखिए आई थिंक हमारा ये पॉडकास्ट करना सिंदूर चल रहा था तो उसमें हमने एक लाइन कही थी कि कई बार लंबी शांति के लिए युद्ध जरूरी होता है। बहुत जरूरी है। वो डर पैदा होना चाहिए। तब लंबे समय तक शांति रहती है। वरना क्षणिक क्षणिक परेशानियां होती है। तो अगर आपको लंबे समय तक स्वस्थ रहना है तो एक बार तो डराना पड़ेगा। इसीलिए हम कह रहे हैं सुन लो। नहीं तो जाओगे देखा जाएगा। मेंट कैंसर की लड़ाई में पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन कितनाेंट है? बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट है। जितना ज्यादा आप पॉजिटिव सोचोगे, जितना ज्यादा आप पॉजिटिव मैनिफेस्ट करोगे, आपको एंड रिजल्ट अगर आपने किसी भी उसको देखा हो, कोई भी उस स्पोर्ट्स पर्सन को देखा हो जैसे अभी चेस अभी किसी ने जीता है जिसमें वर्ल्ड चैंपियन बने हैं। उसे बचपन में बोल दिया था मुझे वर्ल्ड चैंपियन बनना है। तो ये पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन है। तो लाइक वाइज अगर आप पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन कर लोगे ना कि मुझे इस बीमारी से बाहर आना है। मुझे ये बीमारी नहीं छू सकती। मुझे ये बीमारी कभी कमजोर नहीं कर सकती। मैं अपने परिवार के लिए ठीक होना चाहता हूं। मैं अपने बेहतर जिंदगी जीना चाहता हूं। पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन बट विद पॉजिटिव अमेशन आप हर एक बात हम पॉजिटिव बोलो। हर एक बात में आपकी पॉजिटिविटी देखे। कहते हैं कि अगर आई एम के बाद या मैं ये कर रहा हूं के बाद जो आप बोल देते हो वो सच हो जाता है। तो बहुत सोच के बोलना चाहिए। आई एम गेटिंग बेटर। आई एम इंप्रूविंग। मैं पल-पल बेहतर हो रहा हूं। मैं पल-पल एक मैं हर पेशेंट को अपने करवाता हूं। आई थिंक शुभांकर दिस माइट हेल्प टू ऑल माय पेशेंट्स और जितने भी कैंसर पेशेंट्स हैं ऑल ओवर इंडिया तो उन्हें शायद ये इस पे मदद मिले। शीशा देखकर सामने अपने आपको हमेशा ये पॉजिटिव अफर्म करो। पॉजिटिव बोलो कि और अपने आप से बात करो क्योंकि सेल्फ टॉक सबसे ज्यादा जरूरी है। क्योंकि आप अपने आप से बहुत कम बात करते हो। जो भी आप बात करते हो वो यहां से सुनते हो। एंड आप उसको अब्सॉर्ब नहीं कर पाते। शीशे के सामने खड़े हो अकेले और अपने आपको शीशे में देखकर केवल यह बोलो मैं बेहतर हो रहा हूं। मैं दिन प्रतिदिन बेहतर हो रहा हूं। मुझे यह ट्रीटमेंट बहुत सूट कर रहा है। मेरी इम्यून सिस्टम इतना ज्यादा सक्षम हो रहा है कि मुझे किसी ट्रीटमेंट के कोई साइड इफेक्ट्स नहीं आ रहे। मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा है और यही मेरी सबसे ज्यादा जीत है। मैं हर दिन इंप्रूव कर रहा हूं और मुझे ये बीमारी कमजोर नहीं कर सकती। मुझे पता है मैं एक दिन अपनी रिपोर्ट्स नॉर्मल देखूंगा। मुझे पता है कि आज मैं इतना मजबूत हो गया हूं कि मेरा इम्यून सिस्टम हर एक चीज में हर बीमारी से लड़ रहा है और मैं इस आउटकम से बाहर आ रहा हूं। जब आप यह सारी पॉजिटिव बोलते हो, आपके शरीर का हर एक सेल वो फील करता है। और जब आपके शरीर का हर एक सेल फील करता है ना, तो ऐसा होगा नहीं कि आपको कैंसर हरा सके। आप नहीं हारोगे। इतने बिलियंस बिलियन सेल्स हैं आपके शरीर में। हर एक पॉजिटिव वाइब्रेट कर रहा है। और आप जब बोल रहे हो आपकी हर एक एनर्जी पॉजिटिव बात कर रही है। आपने देखा होगा कि चील-चील में बैठता है। हंसहंस में बैठता है। कौवे कौवे में बैठता है। जब वेवलेंथ मैच करती है ना तो क्लिक कर जाते हैं। कहते हैं यार उसकी वाइब्स मैच कर गए। उसके वाइब्स मेरे साथ बड़े अच्छी वेवलेंथ है उसकी यार। उसकी फ्रीक्वेंसी बहुत अच्छी है। वो फ्रीक्वेंसी क्या है? पॉजिटिव या नेगेटिव। तो पॉजिटिव सोचोगे। ऑलवेज स्टे इन दैट पॉजिटिव फ्रीक्वेंसी जहां पर आप केवल और केवल पॉजिटिव मैनिफेस्ट कर रहे हो और एंड को लेके ही रखो। मुझे जीतना है। नहीं हार सकते। सोनाली बंद ने इतना स्ट्रांग ट्रीटमेंट कराया। इतना हार्श ट्रीटमेंट था। बट एंड रिजल्ट क्या हुआ? जीती ना? पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन। युवराज सिंह पॉजिटिव मैनिफेस्टेशन। क्या एआई से भविष्य में कैंसर ट्रीटमेंट ईजी हो जाएगा? बहुत ईजी हो जाएगा। अगर एआई ने पहले जज कर लिया, डायग्नोस कर लिया और साथ ही साथ प्रोटोकॉल डायग्नोस कर लिए। जैसे अभी हम एक सॉफ्टवेयर बना रहे हैं जो डिसरप्ट करने वाला है। अगर वो पूरी तरीके से उसका सफल हो गया तो एआई के बेसिस पर वो डायग्नोस करेगा और साथ ही साथ वो प्रोटोकॉल भी बता देगा कि इस तरीके से ऐसे-ऐसे आप यह ट्रीटमेंट कराकर और ये ट्रीटमेंट चॉइससेस करा कर आप रिकवर हो सकते हो। बट इट इज़ अ लॉन्ग स्टडी बट एआई इज़ दी फ्यूचर। एआई से आप कहीं ना कहीं कैंसर का एक अलग ही आउटकम आने वाला है। एक बेहतर आउटकम आने वाला है और एक अच्छा फ्यूचर ही है। तो एआई इज दी न्यू फ्यूचर ऑलवेज। जितनी टेक्नोलॉजी आएगी, जितना बेहतरी आएगी वो हमेशा अपने आप को इंप्रूव ही करेगी। क्या महिलाओं में जब प्रेगनेंसी आती है उस टाइम कैंसर बढ़ने के चांस ज्यादा होते हैं। हां बल्कि हमारे पास एक लेडी आई थी जिसको जो प्रेग्नेंट थी और प्रेगनेंसी के टाइम पर उसको ब्रेस्ट में कैंसर डायग्नोस हुआ। और मजे की बात शुभांकर उसने पूरा ट्रीटमेंट कराया। उसको हमने अबॉर्शन नहीं होने दिया। एंड ड्यूरिंग ट्रीटमेंट उसने वो पूरे बेबी को कंसीव किया। डिलीवरी हुई नॉर्मल हुआ। एंड थ्रूउ आज वो कैंसर फ्री है। इंटरेस्टिंग। कोई कीमो नहीं कराई उसने। कोई रेडिएशन नहीं कराया। कोई सर्जरी नहीं हुई। एंड विदाउट ऑल दिस उसकी रिपोर्ट्स नॉर्मल आई। सो ड्यूरिंग प्रेगनेंसी। सो द गुड थिंग वाज़ जच्चा-बच्चा को कोई नुकसान नहीं हुआ। बिकॉज़ इट वास सो जेंटल। एंड कोई भी ट्रीटमेंट अगर हर्ब बेस्ड होता है, कोई भी ट्रीटमेंट अगर जेंटल होता है, कोई भी ट्रीटमेंट अगर जिसके साइड इफेक्ट्स नहीं होते, तो वो आपके सोचो इतना जेंटल है कि आपके वूम में जो बेबी है उसको भी कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा। उसको भी कोई हार्मफुल साइड इफेक्ट्स नहीं आ रहे ट्रीटमेंट के। सो आई थिंक इससे अच्छा तो कुछ हो ही नहीं सकता। इंटरेस्टिंग। लवली टॉकिंग टू डॉक्टर। मेरी कोशिश थी कि इस पहले सेशन में कम से कम हम जितने अधिकतम सवाल ले सकते हैं वो ले लें। मुझे लगता है कई सवालों को हमने रखा जानने की समझने की कोशिश की। अगर अगली बार हम मिले तो कोशिश रहेगी कि ये सब्जेक्ट वाइज हम बातें करें ताकि लोगों को और आसानी से समझ में आ सके। कैंसर से डरना नहीं है। लड़ना है जीतना है। कोई सवाल कोई संदेश जो आप समाज को भी देना चाहते हो। एज अ सोसाइटी क्योंकि सोसाइटी एक तो कहानी होती है जो पेशेंट सफर कर रहा है उसके परिवार की लेकिन एक कहानी समाज की भी होती है जो कोने बैठ के देखता है समाज को कोई आप बताना चाहते हैं कि कैंसर पीड़ित लोगों को कैसे देखें या क्या बदलाव करें सोच में बहुत जरूरी है मैं यही कहना चाहूंगा कि जितने पेशेंट्स अगर आप किसी को देखने जाते हो तो एज अ वेल विशर आप कभी उसके साथ एक पिटी सिचुएशन मत लेकर जाओ अपने चेहरे पर वो भयानक एक्सप्रेशन मत लेकर जाओ कि अरे तुम्हें तो नहीं बचना अरे तुम्हें तो कुछ नहीं होगा। अरे तुम्हें क्या आउटकम रहेगा? एक पिटी सिचुएशन एक वो भयानक चेयर चेहरा मत लेकर जाइए कि वो नहीं बचेगा। कैंसर पेशेंट को सहानुभूति नहीं चाहिए। कैंसर पेशेंट को आपकी उसको हिम्मत चाहिए। उसको वो जज्बा चाहिए कि तुम्हें इससे बाहर आना है। तुम टाइगर हो एंड यू विल फाइट इट। और इससे बाहर निकल सकते हो। अच्छा इलाज सपोर्ट सिस्टम और स्ट्रांग विल पावर। सपोर्ट सिस्टम आप हो। उसमें उसको हारने मत दो। और अगर नहीं कर सकते तो मत जाओ। मत जाओ उसको दूर से वेल विश कर दो। फोन पे भी अगर बात करो तो बस बोलो हां ठीक हो जाओगे। तुम घबराओ मत। साथ रहे डरा देते हैं। और वही डर नुकसानदायक है। अरे भाई साहब क्या होगा आपके बच्चों का? अरे भाई साहब अगर आपने उसकी शादी करानी है। वो लड़की की शादी तो करा दो। जल्दी से रिश्ता ढूंढना शुरू कर दो। ये सब जो फ्यूचर रिलेटेड होता है ना तो आदमी दो चीजों से डरता है। पहला उसका आउटकम और दूसरा फ्यूचर में उसकी फैमिली का क्या होगा? उसका आउटकम भले ही वो उसके लिए तैयार हो जाता है। जो फैमिली का आउटकम है उसको लेके उसको घबराहट होती है कि उसके बाद क्या और वहां पर उसको जो रिश्तेदार फोन करते हैं वो उसको और तोड़ देते हैं कि अब तो नहीं बचना पीछे से परिवार का क्या होगा उसकी तैयारी कर लो। वो तैयारी करने में ना वो खत्म हो जाता है कि यार मैं अपने आप को देखूं या परिवार को देखूं। एटलीस्ट अगर जो रिश्तेदार वहां पर जा रहे हैं जाएं तो पॉजिटिव फेस के साथ जाएं। पॉजिटिव आउटकम के साथ जाए और उसको हिम्मत दें, ताकत दें। उसकी ताकत बने। उसको कमजोर ना करें। ऐसा लगता है कि उसके पैरों की जमीन निकाल देंगे। वो ऐसा काम करते हैं। आई होप कि इस पॉडकास्ट के बाद थोड़ा नजरिया जो है वो लोगों का बदले और जिन बातों को हमने रखा है उन्हें समझे और अमल भी करें। बहुत जरूरी है। थैंक यू सो मच डॉक्टर तरंग कृष्णा। थैंक यू शुभांकर। थैंक यू।
33 Comments
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Yeh koi allopathy doctor nhi hai…iske pass sirf homeopathy ki degree hai..Aur MD laga rakha hai uska matlab hai 'Managing Director Cancer healer center', koi MD doctor nhi hai. Jo medicine hai woh homeopathic combination hai jo koi bhi homeopath doctor de sakta hai within 1000 rs., and yeh sahab uske 60000 charge karte hai
Shubhankar apse ummeed nhi thi aise vyakti ko platform Dene ki..apka due diligence proper nhi hai (Haan agar isne Collab Kiya hai apke saath to apki credibility hi questionable hai fir to)
Sir please one time invite neurosurgeon 😢
Bahut shandaar podcast thanks to both of u…ese hi aur podcast late rahe….
Hospital kithe aa name batayo ji
What is beb
जय श्री राम
Phone no.send me
Address bhejo sa
👌 1:13:48 ✅
Best job sir
अगर body में कई जगह छोटे छोटे गांठें हैं और वो दर्द नहीं करता है तो वो कैंसर का एक प्रकार तो नहीं है ? @newsbook
Kaddo Khana sunnat e nabwi saw hai
Bahut hi upyogi podcast
Aapki baat me bahut dam hai sar ❤❤❤❤
Sar mai abhtaash kiya hu aankh fadfarane se jhagada hona ya koi ourat aapko pasand karti hai
Thanks Sir 🙏🙏
Aapse milna hai.
Sir padosi ko cancer hoga gya apni clinic aur hospital h address bta dijiye
Jb tk life style normal nhi hogi tb tk life v normal nhi hogi and health v nhi
Life me physical activity v jaruri h coz physical activity can reduce the risks of congestive health issues like heart attack and cancers…❤
Avoid plastic, tambacoo, cigrette alcohol etc and stay healthy and safe ❤❤
Every pain is painless unless you really want to know about it 😢
Radhe Radhe ❤❤❤
Sir kya aap oncologist ho 😅pls tell me
Agar aap sar bol rahe hain ki tension ki vajah se cancer to theek hai lekin 2 sal Dhai sal 1 sal ke bacche
Meri Mummy 4 mahine se cancer se SCB medical Cuttack se admission hura hea
Good information 😊
Sar hiv ko pura khtam Kar ne ka daba kob ayega
Yes, Cancer is 100% curable. my Father has beaten the cancer 3 times in last 15 years. now he is 65 years old. and nobody can say he has faced the cancer 3 times. his health is perfectly fine and more energetic. Treatment and family support is plays an important role to quick recover . My name is Harvansh and from Faridabad Haryana
no faltu bakwas , no faaltu formality , pure knowledge talk very helpful thanks doctor and mr mishra
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
kya ct scan se koe kharabi ho sakta hai