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Unplugged ft. Kanhaiya Kumar | Umar Khalid | JNU | Rahul Gandhi | Bihar | Nitish Kumar | Lalu Yadav | Najeeb Ahmed

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Shubhankar Mishra: A journalist who navigates the spectrum from Aajtak to Zee News, now independently exploring social media journalism, with a knack for engaging political figures in insightful podcasts.

Shubhankar Mishra has been diving deep into political debates, spiritual podcasts, Cricket Podcast, Bollywood Podcast.

Timestamp

00:00:00 -Teaser
00:02:37 – Introduction
00:10:06 – Kanhaiya 2016 se lekar abhi tak struggle kyu ?
00:12:39 – Politics mein kyun hai Kanhaiya Kumar ?
00:18:45 – 2018-2024 Media perspective on Kanhaiya Kumar ?
00:23:23 – Pappu Yadav Kanhaiya manch par kyu nahi chadhe ?
00:24:21 – Kanhaiya Kumar Bihar vidhan shabha chunav ladenge ?
00:27:42 – Kanhaiya ka politics Anti Bjp, Rss Hain?
00:35:40 – JNU, Communist, Congress mein kya anter hai ?
00:38:41 – Kanhaiya ne Communist party kyu chhoda ?
00:40:30 – Difference between congress and communist ideology?
00:46:32 – Kanhaiya Kumar religious hai ?
00:56:50 – Kanhaiya Kumar shadi kab karenge ?
01:05:46 – Kanhaiya Kumar tukde-tukde gang mein shamil the ?
01:20:18 – Kanhaiya Kumar Umar Khalid ko dhokha kyu diya ?
01:31:20 – Najeeb Ahmed kaha hai,kya hua tha ?
01:46:40 – Kanahiya Kumar RSS ke logo ko atankwadi kyun bola?
01:49:42 – About Mahatma Gandhi death
01:57:39 – About Brahmanwaad
02:01:33 – About Bihar Election
02:14:56 – About Kanhaiya Kumar statement kashmeer army rape
02:29:59 – Who is Bihar next CM ?
02:32:25 – Who is the most honest leader of the country ?
02:35:43 – Kanhayiya Kumar favourite leader in BJP ?
02:46:01 – Gandhi Family ke alawa congress me koi or PM ban sakta hai ?
02:47:01 – End

खाली टुकड़े-टुकड़े गैंग मत बोलिए। सरगना हूं तो थोड़ा इज्जत दिया करो। कौन है यह टुकड़े-टुकड़े गैंग? टुकड़े-टुकड़े गैंग। टुकड़े-टुकड़े गैंग टुकड़े गैंग। टुकड़े-टुकड़े गैंग हम पहले हैं। थोड़ी तकलीफ होती है जब आप योग्य हों, लोग आपकी योग्यता ना पहचाने। मंच पर जब आप नहीं पहुंचे, आप जाते, ऐसे रुका था। आपको नहीं बुरा लगा। आपके नेता ने आपके लिए स्टैंड नहीं लिया। आपको बुला सकते थे? अब ट्रक पे जो है उस दिन मतलब हम सीपीआई में होते तब भी नहीं होते। कांग्रेस में है तब भी नहीं है। अगर कांग्रेस के टिकट से कन्हैया कुमार चुनाव लड़ते हैं तो क्या मम्मी उनको वोट देंगी या लेफ्ट को वोट देंगी? आज तक वो कहती है कि मैं आज तक दूसरे पार्टी को वोट नहीं दिए। देश का सबसे ईमानदार नेता कौन है? बड़ा मुश्किल सवाल है। मतलब नेता भी हो और ईमानदार भी हो। खर्चा पानी कैसे चलता है कन्हैया कुमार का? ये सवाल मुझे पूछा जाता है। कन्हैया कुमार ने उमर खालिद को धोखा क्यों दिया? मैं उमर खालिद को दोस्त बुलाऊं या सहयोगी बोलूं? नहीं बिल्कुल दोस्त बोल नहीं। ओके। कन्हैया को यह समझ में आ गया कि एक तो हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण हो रहा है। प्लस दोस्त का पुण्य पुण्य नहीं चढ़ता पाप जरूर चढ़ता है। और जिस घटनाओं में वो लोग गए हैं अगर नाम जुड़ेगा तो पॉलिटिकल छवि पे नुकसान हो जाएगा। अच्छा इससे बड़ा पॉलिटिकल छवि को फायदा हो रहा है कि विदेशद्रोही भाजपा मुझे कह रही है। शरजील और उमर खालिद को कन्हैया कुमार सपोर्ट करते हैं या नहीं सपोर्ट करते? मैं यहां खड़ा होकर सपोर्ट कर रहा हूं। 15 अक्टूबर साल 2016 एमएससी कर रहा था बायोटेक्नोलॉजी में नजीब अहमद 27 साल का लड़का। आपको होप है कि वो अभी हो सकता है। इसमें किसी की बात मत सुनिए। मैं आपको कहूंगा कि नजीब की मां की बात सुनिए। मुझे उम्मीद है वो है आएगा। क्या कन्हैया कुमार ने ये स्टेटमेंट दिया था कि भारत इंडियन आर्मी जो है वो कश्मीर में रेप करती है? नहीं मैं आर्मी समझ। अरे आपका स्पीच पड़ा हुआ है। के खिलाफ बोलेंगे। हम सैनिकों का सम्मान करते हुए इस बात को बोलेंगे कि कश्मीर के अंदर महिलाओं का बलात्कार किया जाता है। रेप के इंसिडेंट हैं और बलात्कार को एज ए जो है वॉर टूल इस्तेमाल किया गया है। एक यहां इंटरव्यू देख रहा था मैं आपका। आपने कहा आरएसएस के लोग आतंकवादी हैं। आरएसएस के जो मेंबर्स हैं उनको आप गाली दे रहे हैं। आतंकवादी है। वो इसलिए कि वो यही चाह रही थी। जैसा चाह रही थी हमने वैसा ही जवाब दिया। क्या कन्हैया कुमार पीके की तरफ जा सकते हैं? जहां तक कन्हैया कुमार जी का सवाल है वो बिहार में कांग्रेस के सबसे प्रभावशाली नेताओं में हैं। जब एजेंसी वाले उठा के ले आते हैं तो कैसे पेश आते हैं? थोड़ा बताओ ना। मुझे नहीं पता था कि जो मेरे दोस्तों की गर्लफ्रेंड के नाम क्या है वो बता रहे थे। अब कोई सोशल मीडिया पर विरोध करता है तो खट से पुलिस तैयार हो जाती है। हमारी सरकार नहीं करती है। कर्नाटक पुलिस जो है दिल्ली पकड़ने आती है। दिल्ली पुलिस पकड़ने नहीं देती। कोई अलग-अलग माहौल है लेकिन पकड़ने पुलिस आती है। कभी-कभी जो है कर देती होगी कि थोड़ा शक्ति संतुलन बना रहे। मीठामीठा गप गप तीखा तीखा थूप थूप। किसी ने खूब कहा है कि जिस ओर जवानी चलती है उस ओर जमाना चलता है। जवानी चली जमाना भी आगे बढ़ा। लेकिन वो उम्मीदें जो 16 में नजर आ रही थी वो 25 आते-आते भी अभी भी सवालों के घेरे में है। कि जमाना कब बदलेगा? जवानी जाने से पहले बदलेगा या जवानी के रहते बदलेगा? मेहमान खास है। नाम है कन्हैया कुमार। कैसे हैं कन्हैया आप? मैं अच्छा हूं। आप कैसे हैं? बहुत शानदार। आपको देख के और अच्छे होंगे। बहुत धन्यवाद आपका और आपके सभी दर्शकों का कि इस बातचीत के लिए आपने मुझे बुलाया और आपके दर्शकों का कि वो इस बातचीत को सुनेंगे। कितना काम का है, कितना जरूरी है यह फैसला खुद करेंगे। देखिए अच्छा लग रहा है। इस कुर्सी पे तो आप वेल सेटल्ड हो गए ऊपर पलती मार के। देखिए कुर्सी तो हमारे हिसाब से एडजस्ट होगी नहीं। हम तो हम सोचे कि हम ही कुर्सी के हिसाब से एडजस्ट हो जाते हैं। लेकिन लोग इस कन्हैया पूछते हैं क्योंकि आपको हम सब ने सामने से बनते हुए देखा है। 2016 का वरा से लेकर पूरी जर्नी आपकी हमने देखी है। कई लोग ये कहते हैं कन्हैया से बड़ी हाई एक्सपेक्टेशन रही। 16 से ही लगता था कुछ बहुत क्रांतिकारी होगा। इस कुर्सी पर आप सेटल्ड हो गए। पॉलिटिकल कुर्सी पर अभी भी आप सेटल्ड नहीं हो पा रहे हैं। पॉलिटिक्स में एक्चुअली कुर्सी के लिए नहीं है। ये बात बिल्कुल साफ है। पॉलिटिक्स हमारे जीवन का एक हिस्सा है और अपनी जीवन यात्रा में हम जो है यहां आज आए हैं। तो जेएनयू का प्रेसिडेंट बनना हम एक चांस था। हम लेकिन कुर्सी से दूर हैं। यह चॉइस है। क्योंकि आप जानते हैं कि अभी जो मौजूदा रिजीम है वो ज्यादा शर्त नहीं रखती है आपके सामने कुर्सी देने के लिए। सिर्फ इतना करना होता है कि कुर्सी की थोड़ी सी जमीन के लिए थोड़ा अपना जमीर बेच देना होता है। उसके लिए हम तैयार नहीं है। तो ये दूरी जो है कुर्सी से वो हमारा चॉइस है और राजनीति हमारे जीवन में हमारे जीवन जीने के तौर तरीकों में शामिल है। मतलब चॉइस एज एन मतलब जैसे आपने चुनाव तो लड़ा दो-दो बार लड़ा आपने तो फिर चॉइस कैसे मतलब? मेरा राजनीति को लेकर के हमेशा से यह कहना है कि राजनीति व्यक्तिगत नहीं होनी चाहिए और राजनीति व्यक्तिगत होती भी नहीं है। राजनीति आपके जीवन का आपके पैदा होने से पहले बहुत सारी चीजें तय करती है। मसलन कि जब मैं अपनी मां के गर्भ में था तो मुझे तो नहीं मालूम था ना कि मेरा जाति क्या होगा? मेरा धर्म क्या होगा? मेरा लिंग क्या होगा? यह तो एक महज संयोग है। लेकिन इस देश में पैदा होते ही जो तीन प्रमुख चीज है एक लिंग, जाति और धर्म उस पे सबसे ज्यादा राजनीति होती है। तो राजनीति आपके पैदा होने से पहले शुरू हो जाती है। दूसरा कि किसको पोलियो का टीका मिलेगा? किसको पोलियो का टीका नहीं मिलेगा? यह फैसला भी सरकारें करती हैं। हमारी मां जब मैं गर्भ में था तो क्या खाना खाएंगी? हम उसका क्या न्यूट्रिशन वैल्यू होगा? यह जो है हमारे परिवार के औकात पर निर्भर करता है। तो राजनीति एक ऐसी चीज है ना जिसकी यात्रा आपके जन्म होने लेने से पहले शुरू हो जाती है। तो मैं उसको जब जीवन यात्रा के तौर पर लेता हूं तो राजनीति में शामिल या राजनीति जिसको प्रभावित कर रही है। सिर्फ वो चंद लोग नहीं है जो कुर्सी पर बैठते हैं या कुर्सी पाने के लिए संघर्ष कर रहे होते हैं। हर वो व्यक्ति चाहे अनचाहे उसके जीवन के हर फैसले राजनीति के द्वारा लिए जाते हैं। जैसे आप ही आज यहां बैठे हुए हैं। इसमें राजनीता एक बहुत बड़ा योगदान है। मसलन मान लीजिए कि आप कहीं पढ़ने के लिए गए होंगे तो वहां पे माहौल क्या होगा? वहां पे फीस क्या होगा? वहां पे जो है कौन सी चीजें पढ़ाई जाएंगी? कौन सी चीजें नहीं पढ़ाई जाएंगी? पढ़ करके जब आप बाहर निकलेंगे तो आपको कैसी नौकरियां मिलेंगी? ये सब नीतियों का निर्धारण राजनीति से होता है। तो राजनीति को मैं कभी भी व्यक्तिगत तौर पर नहीं देखता हूं। यह एक सामूहिक फैसला है और यह जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जिससे आपका जीवन प्रभावित होता है। तो चांस यह था कि मैं पढ़ने के लिए जेएनयू गया था पीएचडी करने के लिए और पीएचडी करके मुझे मास्टर बनना था। मुझे कॉलेज की नौकरी करनी थी। लेकिन चांस यह है कि आप जो सवाल बोलते हैं, करते हैं, लोगों से मिलते हैं, जुलते हैं। कुछ को आप प्रभावित करते हैं, कुछ से आप प्रभावित होते हैं। अरे कुछ मराठी लोगों से सुनकर के हम मराठी सीख रहे थे। जैसे कि मला मराठी 8 नाइन इतना तो हम सीखे हैं उनके साथ और कुछ वो हमारे साथ मिलकर के हमसे भोजपुरी सीख रहे थे। मैथिली सीख रहे थे। तो आप एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। फिर जो है आपके पॉलिटिकल डिसीजंस बनते हैं। आप सही गलत का फैसला करते हैं। आपका एक पक्ष बनता है। राजनीति में कोई निष्पक्ष नहीं होता है। निष्पक्ष होना भी एक राजनीति है। निष्पक्ष होना अपने आप में एक पक्ष है। तो इसका निर्धारण होता है। उसी प्रक्रिया में जो है चुनाव लड़े, चुनाव जीत गए। अच्छा दो बार चुनाव हारे। जेएनयू में भी। उसके बाद तीसरा चुनाव जीते। तो जब चुनाव लड़ रहे थे तो इसलिए सोच यह सोच के नहीं लड़ रहे थे कि किसी दिन जो है शुभांकर जी मिलेंगे और जो है उनसे पडकास्ट होगा। जीवन की यात्रा है आज ये हो रही है। तो वहां लड़े फिर रिजीम बदली थी। नई सरकार आई थी। सरकार को उंगली उठाने वाले लोग पसंद नहीं थे और उन्होंने मोहब्बत में जो है कहा कि कारावास का दर्शन कर लो। हालांकि कोई दिक्कत नहीं है। आराम से हां कोई दिक्कत नहीं है। तो वहां चले गए। फिर आपने जो है आपके आराम से करके सवाल हां आप जहां संस्थानों में होंगे का पूरा सेगमेंट हमने रखा जहां संस्थानों में होंगे उन लोगों ने दिखाया फिर यह हमारा चॉइस बन गया अब राजनीति जो है ये चांस की बात नहीं है ये चॉइस बन गया और हमने डिसाइड किया कि मास्टर तो बन नहीं पाए तो जिस राजनीति का शिकार हुए हैं इस राजनीति को बदलने का अनवरत प्रयास किया जाएगा उस प्रयास में कुर्सी मिले नहीं मिले जो जगह मिल जाए कम से कम हमारे हमारे पास सत्ता की विरासत नहीं है। स्वीकार है। संघर्ष की विरासत तो है। वैसे भी बिहारी आदमी है। हर चीज के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अच्छा कभी घर वालों ने कहा नहीं आपसे कि जैसे आप जेएनयू जैसे कॉलेज में पहुंच गए। आप पढ़ने में अच्छे थे। हम आपके बारे में पढ़ रहे थे। आपकी पीएचडी भी टाइम सब कुछ हो गया। अच्छा। कभी घर वाले कहे नहीं कि कहां फंस गए हो बेटा तुम। 19 में तुम चाहते तो टीचर बन जाते। बढ़िया। घर परिवार की स्थिति बेहतर हो जाती। कभी आया नहीं क्योंकि आप एक मध्यमवर्गीय गरीब परिवार से आते हैं। मध्यमवर्गीय भी मत कहिए। मध्यमवर्गीय कहिएगा तो यह इस देश के गरीबों के साथ एक बहुत बड़ा धोखा होगा। 80 करोड़ लोग 5 किलो अनाज ले रहे हैं। उनको गरीब कहिए। मध्यम वर्गीय कह करके छलाव। चलिए आप एक गरीब परिवार से आते थे। गरीब परिवार चाहता है कि स्थिति थोड़ी बेहतर हो जाए। माई बाप चाहते हैं कि भैया लड़के की नौकरी लग जाएगी। ब्याह हो जाएगा। मां-बाप कम से कम ऐसे सोचते हैं। हम भी यही चाहते थे। हम भी यही चाहते थे। हम इसको आपके सामने स्वीकार करते हैं। मेरे सपने बहुत बड़े नहीं थे। बिल्कुल साधारण छोटा सा जो हर किसी का होता है कि पढ़ाई लिखाई खत्म करें। नौकरी मिले, एक अच्छी सी बीवी हो, घर हो, गाड़ी हो, हनीमून मनाने के लिए जो है कहीं बाहर जा पाए। नहीं कहीं तो बस कहीं चले जाए, देश में चले जाए। मतलब मतलब एक एक सुखद जीवन जिए जो हमारे मां-बाप नहीं जी पाए हैं। उससे बेहतर हम अपनी जिंदगी जी हमारे इसको ही मजाक में कहते हैं कि आपकी तनख्वाह तय करती कि आप वैष्णो देवी जाएंगे या स्विट्जरलैंड? ठीक ही बात है। बिल्कुल ठीक है। आपकी नौकरी कैसी लगी? तो आप तो जेएनयू गए थे। तो ये जब जेएनयू में आपकी नेतागिरी शुरू हुई तो कभी घर से आया नहीं। क्योंकि आम तौर पर मिडिल क्लास फैमिलीज या लोअर मिडिल क्लास फैमिली डरते हैं कि इतना नेताही क्यों कर रहे हो? नहीं ये मुझे भी नहीं पता था और मेरे घर वालों को भी नहीं पता था। यह तो एक बहुत साधारण बात है ना कि आप कॉलेज में पढ़ते हैं। आपका एक पॉलिटिकल पक्ष होता है। तो स्वाभाविक रूप से आपका पक्ष होगा तो कोई आपका विपक्ष होगा। यह तो महज संयोग है ना कि जब हम हमारा एक पक्ष था तो सामने विपक्ष कोई और था। मतलब मनमोहन जी की सरकार थी और जब हमारा पक्ष वही रहा विपक्ष बदल गया। अब जो है नया रिजीम आ गया था। तो यूनिवर्सिटी में अमूमन क्या होता है? आप सरकार से सवाल पूछते हैं। आपके मुद्दे होते हैं। आपकी कुछ मांगे होते हैं। आप धरना प्रदर्शन करते हैं। हड़ताल करते हैं। भूख हड़ताल करते हैं। सम ये तो नहीं होता है ना कि कुछ स्टूडेंट को पकड़ करके जेल में डाल देंगे। ये बहुत मतलब हम ये नहीं कह रहे हैं कि हुआ नहीं है। हुआ होगा इतिहास में। लेकिन ये अनप्रिसिडेंटेड है। ऐसा प्रेसिडेंस नहीं है। नेता लीडर सब समझते हैं कि अरे ठीक है कॉलेज के बच्चे हैं। कुछ मांग रहे हैं। चलो कुछ दे दो, कुछ समझा दो। मतलब इतना बड़ा कोई नेशनल इंटरनेशनल डिबेट होने लगे देश में ऐसा तो कोई नहीं समझते थे। तो जब तक जेल नहीं गए तब तक मां-बाप भी कुछ नहीं कहते थे। ठीक है? और जब जेल चले ही गए तो जब हम कह रहे हैं कि जो राजनीति हमारे साथ खेल की है उस राजनीति के को बदलेंगे। तो यह संस्कार तो हमको उसी मिट्टी से आया है ना। यह संस्कार तो हमको हमारे घर, परिवार और हमारे गांव और हमारे जिले से ही आया है ना। और आपको मैं एक मजेदार छोटी सी हिस्ट्री यहां बता देता हूं। इंदिरा जी देश की प्रधानमंत्री थी और बेगूसराय का आदमी जहां से मैं हूं। वो आदमी खड़ा होकर के एक भाषण दे रहा था और कहा पुलिस वालों के बारे में कि यह कुत्ते हैं सरकार के। तो पुलिस जो है उनके खिलाफ एफआईआर कर दी और उन पे देशद्रोह लगा दिया। देखिए उस आदमी की जिद वो आदमी गांव का आदमी चुनाव चुनाव कह रहे हैं। केस लड़ते लड़ते जो है वो सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा फिर सुप्रीम कोर्ट का यह वर्डिक्ट आया कि सरकार के खिलाफ कुछ बोलना जब तक सशस्त्र 100 प्रयास नहीं हो तख्ता पलट का देशद्रोह का मुकदमा नहीं लगेगा। तो देखिए उस एडिशन के खिलाफ लड़ा कौन था? बेगूसराय का एक आदमी। उस एडिशन लड़ा कि लगा किसके ऊपर? बेगूसराय के एक आदमी पे। तो घर वाले भी जब कहा जब जेल चला ही गया जब बदनामी करा ही दी तब तो जो है इनके साथ लड़ना ही उचित है। वो कहते हैं दो न्याय अगर तो आधा दो उसमें भी यदि बाधा हो तो दे दो केवल 5 ग्राम। मैंने एक एक्टर विनीत सिंह है उनका भी पडकास्ट किया था। तो उन्होंने एक फ्रस्ट्रेशन दिखाई थी अपनी कि यार मैं अपना घर नहीं बना पाया। उन्होंने कहा कि आलिया भट्ट छोटी थी तब से मैं स्ट्रगल कर रहा हूं। अब उनकी शादी हो गई। वो अच्छी फिल्में कर रही हैं। वो अच्छी एक्ट्रेस हैं। लेकिन मौका मिलना बड़ी बात होती है। मुझे मौका ही नहीं मिल रहा। मैं तभी ही रहा हूं। कभी कन्हैया को किलस होती है कि यार 16 में निकले थे पूरा देश का मीडिया पीछे पड़ा था प्रचार करने के लिए सारे जहां के लोग उतर आए थे बेगूसराय में सारे सितारे जमीन पर आ गए थे जावेद साहब जैसे आदमी तक आ गए थे फंसे रह गए अभी फंसे हैं अभी जब वो तस्वीर आपकी एक आई थी जिसमें मंच वाली बहुत सारे सवाल आपके समर्थक आलोचक दोनों में चर्चा केंद्र था फिर हमको पिक्चर याद आई मिर्जापुर कि बड़ी तकलीफ होती है जब आप योग्य हो लोग आपकी योग्यता ना पहचाने खिलसते हो कभी ऐसे मन में देखिए अव्वल तो हमारे यहां बुद्ध बने वह तो सिद्धार्थ थे। बुद्ध तो बिहार आकर के बने। बुद्ध कहते हैं कि इच्छा ही दुख का कारण है। आप जब अनावश्यक इच्छा करेंगे तो आपको हर चीज से दुख होगा। मसलन कि आपकी इच्छा है कि आपको साइकिल मिल जाए और आप साइकिल लेकर के चल रहे हैं। कोई हॉर्न बजाता हुआ Hero Honda से निकल जाए तो आपको लगेगा बाइक ले लेते हैं। फिर बाइक ले लिए कोई कार लेके निकल गया तो आपको लगा कार ले लेते हैं। Swift खरीद लिए। बगल से कोई सनसनाती हुई Mercedes गई तो आपको लगा कि जो है अब Swift में मजा नहीं आ रहा है। Mercedes ले लेते हैं। इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है। राजनीति में हमारा आना जीवन की यात्रा एक चांस अपनी जगह पे है। जो चॉइस हम बनाए हैं ना वो चॉइस ही संघर्ष का है। क्योंकि हमारे पास सत्ता की विरासत नहीं है। तो जिंदगी भर संघर्ष करना है। कोई दिक्कत नहीं है। कुछ होता है ना कि कुछ पर्पस होता है लाइफ का। आपका पर्पस है संघर्ष करना। नहीं हमारा पर्पस जो है राजनीति में कुर्सी प्राप्त करना नहीं है। हम आप कुर्सी दे दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। ठीक है ना? तो इसके लिए आप आपके प्रति मन में सम्मान है। लेकिन जो लंघी मारते हैं कहते हैं ना बिहार में एक भाषा तो जो लंघी मारते हैं उनके प्रति भी कोई मन में अपमान का भाव नहीं है। क्योंकि यह बहुत सहज स्वाभाविक है। इस देश में सत्ता के लिए अपने पिता की हत्या करने का इतिहास है। अपने भाइयों को मारने का इतिहास है। और साम दाम दंड भेद से सत्ता प्राप्त कर लेने का इतिहास है। उस खेल का ना मैं खिलाड़ी हूं ना मैं उस खेल का माहिर बनना चाहता हूं। पॉलिटिक्स में क्यों हैं आप? पॉलिटिक्स में आपको साफ-साफ बताएं। पॉलिटिक्स में जो है मेरा चॉइस है। प्रतिशोध कि नहीं प्रतिशोध नहीं है। यह साबित करना इस देश के शासकों को यह याद दिलाना कि सत्ता से सवाल पूछना हमारे नागरिक भाव को जिंदा रखने की जरूरत है। हम लोकतंत्र में रहते हैं। बड़ी चालाकी से लोकतंत्र को प्रजातंत्र बोल-बोल करके हमारे दिमाग में प्रजा होने की साइकी डाली गई है। और जब प्रजा होगा प्रजा होगी तो राजा भी होगा कोई और इस देश के जो शासक हैं जो बड़े ओहदों पर बैठे हुए लोग हैं वो अपने आप को राजा महसूस करने लगे और यह संस्कृति महज सत्ता तक सीमित नहीं है। ऑफिसों के सत्ता में भी यह देखने को मिलता है कि अगर आप सीईओ हैं तो आपके सामने गार्ड जो है जो कि बहुत इंपॉर्टेंट पद जिम्मेवारी निभा रहा है वो जो स्वीपर है बहुत इंपॉर्टेंट जिम्मेवारी निभा रहा है। अगर स्वीपर साफ़ सफ़ाई ना करे, तो आप ऑफिस में नहीं बैठ सकते हैं। अगर गार्ड समय पे ताला ना लगाए, तो आपका इक्विपमेंट सुरक्षित नहीं होता है। लेकिन वह बेचारा दास भाव में रहता है और जो सीईओ है वो ऐसे करके चलता है। वो जमीन पे पांव नहीं रखता। नमस्ते तक जवाब नहीं देते। वही बात है। तो, यह जो साइकी है, उस साइकी के खिलाफ हम लड़ रहे हैं। हम सत्ता को यह कहना चाहते हैं कि इस देश में सवाल पूछने की संस्कृति रही है। ताकतवर से ताकतवर व्यक्ति को भी सवाल पूछा गया है। इस देश के पहले प्रधानमंत्री को एक बूढ़ी संसद के बाद गिरेबान पकड़ करके पूछती है कि देश को आजादी मिली। हमको क्या मिला? तो नेहरू कहते हैं कि आपको यह मिला कि आप देश के प्रधानमंत्री का गिरेबान पकड़ करके सवाल पूछ सकते हैं। हम इस देश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने हुए प्रतिनिधियों को याद दिलाना चाहते हैं कि आप जनता के सेवक हैं। राजा नहीं है। हमारी लड़ाई वहां तक की है। कुर्सी जो है ना देखिए आपका और हमारा बात करना जरूरी है। कुर्सी जरूरी नहीं है ना। अगर आपको और हमको बात करना है तो कुर्सी नहीं होता तभी बात करते। तो कभी भी जो है ना साधन को साध्य नहीं समझ लेना चाहिए। कुर्सी जो है वह साधन है। साध्य नहीं है। साध्य यह है कि हमारी बहुत आज भी हमारी बहुत छोटी सी ख्वाहिश है भाई बहुत छोटी सी। हम चाहते हैं कि इस देश में जो हमको मिला है ना वो आने वाली पीढ़ी को भी मिले। मेरी मां आंगनबाड़ी में काम करती है। आज भी मेरे पिताजी जो है कहने को लोग कहते हैं एक्चुअली दैनिक मजदूर थे। और मेरा भाई गार्ड का नौकरी करता था और आज गाय पालता है। मेरी बहन जो है वो नर्स की नौकरी करती है। आज भी यह मैं आपको क्यों बता रहा हूं? तब भी जो है ना हमारा एक स्वाभिमान है। कोई इंसान गरीब हो सकता है। किसी की औकात कम हो सकती है। लेकिन उसके अधिकार बराबर हैं। हम बस जो हमको मिला है ना कि सरकारी स्कूल में पढ़े और देश के सबसे बेहतर संस्थान में पीएचडी करने का मौका मिला। अगर यह सिस्टम नहीं होता तो हम भी जो है कहीं प्लेट साफ कर रहे होते। किसी गराज में काम कर रहे होते, कहीं गार्ड की नौकरी कर रहे होते, कहीं गाय पाल रहे होते। यही सच होता। तो यह सच्चाई जो है जो मेरे जीवन का है, हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी को भी मिले। कल को कोई व्यक्ति को मान लीजिए एक संयोग मान लीजिए सुखद जो आप बार-बार कह रहे हैं ना सफल होने का। मान लीजिए कोट एंड कोर्ट आज की जो मार्केट की भाषा है कि सेटल्ड हो गए हैं, सफल हो गए हैं। मान लीजिए हमको पोस्ट मिल गया है। तो कल यूनिवर्सिटी के लड़के लड़कियां हैं ना हमसे सवाल पूछने से ना घबराएं। उसी तरह से जो है अंगली तान करके हमसे सवाल पूछ सके जो सवाल हम सत्ता से कर रहे थे। हमारा इतना छोटा सा सपना है। इतनी छोटी सी ख्वाहिश है। अब देखो कन्हैया जब आप 2015-16 में पढ़ाई कर रहे थे जेएनयू में और आप लाइमलाइट में थे तो हम अपनी मीडिया की दुनिया में संघर्ष कर रहे थे। तो क्योंकि आप लोगों की खबरें बड़ी आती थी और जवानी को देखकर जवानी उबाल मारती है। तो हमने अपने पुराने संपादकों से पूछना शुरू किया। हमने कहा भाई साहब ये अभी सब ऐसा चल रहा है। मीडिया में कैसा था? तो जो अंदर के लोग थे ये मैं अपना प्रैक्टिकल अनुभव बता रहा हूं। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार के हिसाब से चीज़ होती है। जब भी ताकतवर सरकार रहती है तो मीडिया एक हिसाब से काम करती है। ऊपर से तब भी आती थी क्या खबर चलनी है। अब सोशल मीडिया का दौर है तो ज्यादा प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है। लोग दोनों पक्ष की बातें खुलकर लिख देते हैं तो हमारी नजरें अलग हो गई। अब हम नहीं मानते कि शक्तिमान उड़ सकता है। हमको पता है कि ये बेवकूफ बना रहा है। ये ऐसा ही है। ये बड़ा मजेदार हुआ है। एक एक सेकंड लूंगा। हमको जब लगता था कि शक्तिमान उड़ सकता है तब शक्तिमान आकर के समझाता था कि हम नहीं उड़ सकते हैं। अब जब हमको लगता है कि शक्तिमान नहीं उड़ सकता है तो शक्तिमान को लगता है कि वो शक्तिमान है। ये वीडियो आपने देखे नहीं हमने ये नहीं देखा है बट आप देखिएगा। यही हमारे समय का हकीकत है। इसीलिए इसको पोस्ट ट्रुथ कहते हैं। आप कंटिन्यू कीजिए सवाल। तो आप एक बहुत सारे आप ही के समर्थकों ने मुझे ये क्वेश्चन भेजा था कि कन्हैया खुलकर पॉलिटिक्स नहीं कर रहे। जब इलेक्शन आता है तब वो आते हैं। मीडिया में दिखाई पड़ने लगते हैं। उनकी बातें उनकी खबरें आती हैं। इलेक्शन के बाद फिर वो कहीं गुमसुम से हो जाते हैं। देखिए शुभंकर भाई हमसे ज्यादा मीडिया को आप समझते हैं और मेरा यह दावा भी नहीं है कि हम आपसे ज्यादा समझेंगे। आप जानते हैं कि मीडिया आज जिन चीजों पर चलती है उसमें व्यूज लाइक्स, टीआरपी ये जिसको आप क्या बोलते हैं? डिजिटल फुटप्रिंट्स, फुटफॉल इंपॉर्टेंट है। तो मीडिया कब मुझे बुलाएगी और कब मुझे दिखाएगी यह मेरे हाथ में नहीं है। लेकिन इसका यह तो मतलब नहीं है कि जब हम मीडिया में आए हैं, आपकी कुर्सी पे बैठे हैं, तभी सांस ले रहे हैं। सही बात है। हम तब भी सांस लेते बिल्कुल सही बात और जब हम कह रहे हैं कि एक राजनीतिक व्यक्ति जो यह मानता हो कि आपके जन्म लेने से पहले आपके साथ राजनीति शुरू हो सकती है तो वो मीडिया कैमरे के बाहर राजनीति नहीं करता हो ये तो असंभव बात है। ठीक बात है। आप सिर्फ मेरा इंटरव्यू लेने के लिए थोड़ी पढ़े पढ़ते लिखते हैं। आपकी आदतों में शुमार होगा। तभी आप पढ़ने लिखने के काम में आए हैं। नहीं तो आप आप आज आप आज आप आज भी जो आप भी जो है किसी कॉर्पोरेट में टारगेट पूरा कर रहे होते क्योंकि आजकल तो नंबर झोंका जाता है ना आंखों में धूल की जगह। तो किसी का स्वभाव, किसी का चरित्र, व्यक्तित्व, किरदार वो एक दिन में नहीं बनता है। उसमें सालों लगते हैं सोच, समझ, जहन विकसित होने में। तो मैं एक राजनीतिक व्यक्ति हूं। हर चीज को उस नजरिए से देखता हूं। वो नजर है हमारा। तो हम जब मीडिया में नहीं नजर आ रहे हैं तब भी हम कुछ कर रहे हैं। तो ये परसेप्शन बनना बहुत स्वाभाविक है। क्योंकि देखिए आप आपके बारे में बोलता हूं। यह कोई आलोचना नहीं है। आप मुझे पिछली बार बड़ी जोर से तब खोज रहे थे जब मैं लोकसभा का चुनाव लड़ रहा था। अब जो है हमारी जी खोज रही थी। हां प्रिया जी हां अब अब जो है हमारी मुलाकात हो रही है जब बिहार का चुनाव होना है। तो हमारे देश की मीडिया भी चुनाव के साइकिल में ही चलती है।कि बिहार का चुनाव है। मैं बिहार से हूं। बिहार में सक्रिय हूं। अभी यात्रा करके आया हूं। तभी ना आप हमसे बुलाने बात करने के लिए बुलाइए। ये अगेन मैं प्रिया जी पे इसका बिल फाडूंगा क्योंकि प्रिया जी को आपने बकायदा लिस्ट दे रखी है। वो तो देखिए वो तो वेलकम मूवी में नाना पाठकर के साथ एक आदमी होता है। इसका ये भी हो सकता है क्यों कहता है कि जो है मैं हॉकी का प्लेयर हूं। वो नहीं कहता है जब भी होता है कि सुनाओ तो तुरंत एक कहानी सुनाने लगता है। मैं हॉकी का प्लेयर चलो एक पहलू मान ले कि पिछली बार आपको अप्रोच किया। आप भी रिवर्ट कर सकते थे कि भाई बीच में बुला लो। आप भी दोबारा सक्रिय तब हुए तैयार तब हुए जब आपको लगा कि बिहार इलेक्शन नहीं मैं तो अभी भी नहीं बात कर पाता आपको मैं बताता हूं लेकिन अब तो है ना प्रत्यक्ष सामने आप भी वही मैं कह रहा हूं कि मेरे चाहने से अगर हो ठीक है ये बात है तो मैं तो अच्छा एक बात बताइए आप तो मीडिया में हैं आज कौन नहीं चाहता है दिखना और दिखाना सबको पसंद है आप तो देखिए कि जो एडिटर पर्दे के पीछे होते थे वो भी बुढ़ती में उनको कैमरा मिल जाए तो कितना मजा आ जाता है कितना जोश से जो है सीनियर पे आप कह रहे हैं लेकिन ठीक है नहीं हम किसी पे नहीं कह रहे हैं हम बस यह बोल रहे हैं कि हर कोई चाहता है मतलब कैमरा एक ऑब्सेशन है हर कोई दिखना चाहता है वहां पे तो मुझे ये ऑप्शन हो तो मैं ना दिखूं लेकिन राजनीति में अलग भाई कहानी है राजनीति में सीनियर नेता नहीं चाहता जूनियर वाला बहुत दिखे क्योंकि लोग ये कहते हैं कि तेजस्वी जी थोड़ा कम चाहते हैं कि बगल में कन्हैया दिखे और ये खुलकर कहते हैं और इतने मासूम तो आप भी नहीं हो। नहीं नहीं इसमें तो एक तो देखिए अबवल कोई सीनियर जूनियर की बात नहीं है। अगर आप राजनीति को सीनियरिटी जूनियरिटी मानेंगे तब भी हम एक समय के हैं। अगर आप एज को मानेंगे तब भी इस देश की जनता को इतना तो होशियार आप मानते हो कि पॉलिटिक्स समझती होगी। ज्यादा होशियार है। खास करके बिहार की जनता जो है सराय में आपके चुनाव में अगर वोट ना कटे होते तो क्या नतीजा होता वो भी जनता समझ रही थी। नहीं ऐसा नहीं है। मंच पर एक पहलू है और मंच पर जब आप नहीं पहुंचे और आप पप्पू यादव ही क्यों नहीं पहुंचे? बाकी सब पहुंच गए। तो भी जनता समझ रही बाकी सब भी नहीं पहुंचे। बाकी सब भी नहीं पहुंचे। कई पहुंच गए महाराज। कई पहुंच गए। कई पहुंचे। वो जिन पर कैमरे की नजर थी या वो जो भविष्य में चुनौती हो सकते थे या वो जो थोड़ा फ्री स्पीच पे बोल देते हैं। कन्हैया पप्पू जी जैसे देखिए वो रह गए। वैसे तो देखिए आप कोई भी बात को अगर बतंगर बनाना हो और बिना बात का विवाद करना हो तो कुछ भी बोल दे। आप बहुत बढ़िया बोलते हो लेकिन जनता इतना तो होशियार है उसको इतना बेवकूफ नहीं समझते हो। नहीं लेकिन जनता को कई बार कई सारी चीजें यादव जी आप नहीं आप देखिए आप मन में पीके रह गए। पप्पू यादव जी टीवी जा कहे कहे जब वह पैदा नहीं हुए थे तब मैं विधायक बन गया था। ठीक है पप्पू यादव मेरा सम्मान पप्पू यादव जी सीनियर एमपी हैं और इस बार भी एमपी हुए हैं। उनका जो भी विचार है वो रख सकते हैं। वो स्वतंत्र हैं। लेकिन मैं भी जो आपको कह रहा हूं ना इसमें कोई लाग लपेट नहीं है। आपको नहीं बुरा लगा। मुझे बुरा तब लगता जब मेरे साथ बुरा किया जाता। आपके नेता ने आपके लिए स्टैंड नहीं लिया। आपको बुला सकते थे। अगर मेरा बॉस मेरे लिए स्टैंड ना ले। अगर मैं कहीं जा रहा हूं और उस जगह पर मेरा अपमान हो रहा हो और मेरी टीम मेरे साथ ना खड़ी हो। अपमान हो तब ना अगर अपमान हो वही मैं कह रहा हूं। रोकना अपमान नहीं था। आप मैं मैं आपकी आंखें देख रहा था। नहीं नहीं नहीं नहीं आंखें कहां से आप अरे वीडियो दिख रहा है हमारे साथ। आप जाते ऐसे रुकाता और आप पप्पू जी तो फिर भी थोड़ा करते हैं। आप बड़ी गुड बॉय की तरह सर नीचे करते घूम जाते हैं। क्योंकि बात दूसरी थी वहां पे ना। बात वो नहीं इसीलिए मैं इसको बार-बार कह रहा हूं कि यह बिना बात का बात है। अगर मेरे साथ अपमानित होता अपमान हुआ होता तो आप यह जान लीजिए कि मैं बेगुसरैया आदमी हूं। फिर ना उसमें कोई अदालत और मुकदमा नहीं होगा। फैसला वहीं होगा। क्या करते? यह होना ही मुश्किल है। मैं वही कह देता हूं। जो कर रहे हैं। आपने कहा ना रिवेंज। रिवेंज हमने नहीं कहा। लेकिन हमको याद है। अपमान किया है आपने मोदी जी। आपने जो है अपमान किया है अमित शाह जी। उसके बाद जो है हम लगे हुए हैं। लगे हुए हैं। एकदम हम भी जो है एकदम दशरथ मांझी के जो है राज्य से आते हैं। पार काट के रास्ता बनाएंगे। नहीं आपके पोटेंशियल में कोई डाउट नहीं कर रहा। नहीं तो आपके आलोचक भी अपमान होता ना तो मुझे इस पे जो है लिपापोती करने की जरूरत नहीं होती। अपमान का हिसाब हम व उसी वक्त फैसला ऑन द स्पॉट कर देते। तो क्यों पप्पू यादव को लग रहा है उनका अपमान हुआ और क्यों कन्हैया को लग रहा है उनका अपमान नहीं हुआ? क्योंकि मेरा नहीं हुआ है। मुझे मालूम है। अगर उसमें थोड़ी सी भी सच्चाई होती जो दिखाई जा रही है तो मैं इस पे कोई लिपापोती नहीं करता। ऑनेस्टली आपको बोल रहा हूं। और आप जान लीजिए ये मत कहिए आप माने आप मीडिया को इतना करीब से देखें समझे और यहां तक पहुंचे शुभकामनाएं आपको हर दिखाई और बताई चीज सही होती है। सही बात है। तब तो मान लीजिए कि हम फेयर एंड लवली लगा दे तो आपसे ज्यादा गोरे हो जाए। तो बार-बार बताया जाता है फेयर एंड लवली लगाने से मुंह गोरा होता है। हर जो है पीबी ब्रेक पे ये ऐड आता है। ठंडा मतलब कोका कोला। अच्छा ठंडा मतलब कोका कोला तो लस्सी मतलब क्या होता है? सत्तू मतलब क्या होता है? हर कहीं बताई चीज कैमरे पे सही हो ये जरूरी नहीं है। हम समझ गए आप बढ़िया परसेप्शन मेकिंग होता है। समझ गया आप बढ़िया नेता हैं। आप कहते ठीक है हम आगे। आप भी बहुत बढ़िया आदमी है। हम बस यह कह रहे हैं कि परसेप्शन मेकिंग होता है। उसमें टीआरपी होता है। कई बार हाफ ट्रुथ होता है जो ज्यादा चलता है। अब इतने साल से यह बात बोली जा रही है। कुछ प्रॉब्लम है। कुछ प्रॉब्लम है। मम्मोहन सिंह साहब ने कभी संसद में कहा था। मेरी खामोशी ने हजारों जवाबों की लाज रख ली। हम आगे बढ़ते हैं। बड़ा अच्छा बाकी समझदार को इशारा काफी है। बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। बिहार का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। ऊपर से क्लियर हो गया। नहीं आप यह कह रहे हैं कि मैं उम्मीदवार के तौर पे नहीं उम्मीदवार के तौर पे लग रहे लड़ेंगे ये नहीं पता है अभी। लेकिन बिहार बिहार का विधानसभा चुनाव किसी का अब तो क्लेरिटी नहीं मिली अब तक कि आप लड़ रहे हो नहीं लड़ रहे हो। नहीं नहीं अभी किसी को क्लेरिटी नहीं मिली है। तो अभी सीट शेयरिंग होगा। लोगों को सीट मिलेगा तब पता चलेगा कि कौन उम्मीदवार है और कौन प्रचार करेंगे कौन पोलिंग एजेंट बनेंगे। इच्छा है बेगूसराय से फिर लड़ने की? वही बात है। मैं बार-बार कहता हूं लेकिन जानते हैं इस बात को ना कोई मानता नहीं। उनको लगता है नहीं मेरा एक्सक्यूज है ये। जैसे मैं आपसे ये सवाल पूछूं कि आपकी शादी क्यों नहीं हो? तो आप कहेंगे कि हम व्यस्त रहते हैं इसलिए नहीं हो। हमको लड़की नहीं मिलनी चाहिए। हां। अच्छी कोई जान पहचान में आपके हो तो बताना। नहीं मेरे जान पहचान में हो तो हम खुद ही नहीं करेंगे। आपको बताएंगे। मतलब फिर ये तो मतलब मेरी भी नहीं हुई है ना तो आपके लिए हम खुद देंगे फिर चलो ये कोई बात हुआ जिसको अपने घर में दही नहीं है वो दूसरे को जरन बांट रहा है लेकिन दोनों भाई मिलके खोज लेंगे चलो वही बात है लेकिन हम ये कह रहे हैं कि आप व्यस्त हैं और आप शादी नहीं कर पा रहे हैं तो लोग ना इसको हमेशा एक्सक्यूज लेते होंगे अरे कुछ कमी होगी हो नहीं कमी तो नहीं डाउट करते अरे करते हैं हमारे वाले में नहीं करते तो कौन सा जो है लैब का जो है रिपोर्ट लेके हम लोग माथे पे चिपका के घूम सारा सच कैमरा थोड़ी ना बोल देंगे वही हम भी कह रहे हैं ना मेरा भी वही कहना है तो ना हम बार-बार जब कहते हैं कि राजनीति व्यक्तिगत जो है ना नहीं होती है। सामूहिक होता है, कलेक्टिव होता है। तो लोगों को लगता है कि अरे इसका कुछ हो नहीं रहा है तो गोल-गोल बोल रहा है। हकीकत बात यही है कि कब चुनाव लड़ेंगे, कहां से चुनाव लड़ेंगे, कैसे चुनाव लड़ेंगे? यह सारे फैसले ना कहीं कोई एक बातचीत में बैठकर के तय नहीं हो जाता है। हम लेकिन मेरा इस पे स्पष्ट मत है कि मैं हमेशा से जब मानता हूं कि राजनीति एक कलेक्टिव एफर्ट है तो हर किसी का रोल है। कोई जनरल सेक्रेटरी है, कोई अध्यक्ष है, कोई जो है गेट खोल रहा है, दरवाहन का काम कर रहा है, कोई न्यूज़ लेटर छाप रहा है, कोई लेटर भेज रहा है, डिस्ट्रीब्यूट अलग-अलग काम होता है, टीम वर्क होता है। उसमें मेरे साथ एक मैं मानता हूं कि इसके लिए मैं मेरा जो है बहुत अच्छा संयोग है जीवन में कि मैं भाषण भी दे सकता हूं। मीडिया से भी बात कर सकता हूं। पर्चे भी बांट सकता हूं घूम-घूम करके। ज्यादा दिन तो नहीं हुआ ना यूनिवर्सिटी से निकले हुए। प्रचार भी कर सकता हूं। चुनाव भी दो-दो बार लड़ लिया हूं तो चुनाव भी लड़ सकता हूं। तो ऑलराउंडर हैं जहां लगा दीजिए। पार्टी जो कहेगी करेंगे। कोई अब देखो इसमें फिर हमारे मन में एक सवाल आ रहा है। आपके अगर आप ही अरे आपके सवाल आते रहने चाहिए। तो इंटरव्यू कैसे आगे बढ़ेगा? जैसे आपने कहा कि राजनीति कुछ पाने के लिए नहीं है। तो अगर इस तरह पाने का कांसेप्ट नहीं था इतने आप महत्वाकांक्षी या लालची या कहें कि एंबिशियस नहीं थे। यह छोटा महत्वाकांक्षा है। यह छोटी-मोटी महत्वाकांका उसके बाद नहीं एक बात बताइए। आपको ये मैंने नहीं कहा कि मेरी महत्वाकांक्षा नहीं। मेरीत्वाकांक्षा है इस देश के तीन बार के प्रधानमंत्री को हराने की। मेरीत्वाकांक्षा है 100 साल होने को है आरएसएस की उस संगठन को हराने की। मेरी महत्वाकांक्षा है कि जिनके डर से पत्ता नहीं हिलता है तो मतलब बाप तो छोड़ दीजिए बेटा का भी तूती बोलता है जैसा को देखें ना अंग्रेजी बोले ना बोले तूती बोलता है उस आदमी का उसे हराने की ये छोटी महत्वाकांक्षा ये जानते हैं ये बहुत बड़ी महत्वाकांक्षा है तो मतलब फिर इसमें दो सवाल है एक सवाल ये है कि क्या आपकी पूरी पॉलिटिक्स एंटी बीजेपी आरएसएस ही है नहीं क्योंकि जितनी बातें आपने महत्वकांक्षाओं में बताई ये सिर्फ एंटी बीजेपी आरएसएस वाले साउंड वो हमारे इसमें कंस्ट्रक्टिव कुछ नहीं कंस्ट्रक्टिव है शुभंकर जी अरे ऐसा नहीं है मतलब आप अब आप मैं उसको एक्सप्लेन करता हूं देखिए मैं उनके खिलाफ क्यों हूं व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है हम वो एक पोजीशन होल्ड करते हैं और एक आईडियोलॉजी को कैरी करते हैं वो जो पोजीशन होल्ड करते हैं उस पोजीशन से हमारे कुछ एक्सपेक्टेशन है एज ए सिटीजन हम और जो वो आईडियोलॉजी कैरी करते हैं हम उसके खिलाफ हैं। हम एक्सपेक्टेशन उस पोजीशन से जो हम होल्ड करते हैं जो पोजीशन वो होल्ड करते हैं उससे ये है कि इस देश की सरकारें जनमुखी होनी चाहिए। हम यह कंस्ट्रक्टिव है। होना चाहिए और वह जन्मुखी इसलिए नहीं हो पा रहे हैं, दोस्तों मुखी इसलिए हो गए हैं क्योंकि वह एक पर्टिकुलर संगठन की आईडियोलॉजी कैरी करते हैं। देखिए जब मोदी जी ये कहते हैं ना सबका साथ सबका विकास तो उनको मालूम है कि उनकी विचारधारा से मिलती जुलती बात नहीं है। ये अगर उनकी विचारधारा से मिलती जुलती ये बात होती तो वो चुनाव में जाकर के शमशान कब्रिस्तान नहीं करते। हम कपड़ों से पहचाने जाते हैं। ये नहीं करते। तो उनको ना डबल रोल प्ले करना पड़ता है। जब वो भारत में होते हैं तो गांधी के विरुद्ध जो विचार है उसको लगातार अपने भाषणों से बोलते हैं और जब जापान जाते हैं तो गांधी जी के ऊपर माला चढ़ाते हैं। बट चलो कन्हैया इसमें भी जैसे क्योंकि मैं बहुत सारे नेताओं के साथ पॉडकास्ट करता हूं तो मुझे उन्हें ऑफ द स्क्रीन और ऑन द स्क्रीन दोनों जानने का मौका मिलता। और मैं बहुत सारे नेताओं को मतलब मैं नाम नहीं लूंगा क्योंकि अलग-अलग पॉलिटिकल पार्टीज से हैं। जब मैं उनसे मिला तो ऑफ द रिकॉर्ड वो बिल्कुल अलग इंसान थे और ऑन द रिकॉर्ड उन्होंने कहा कि पॉलिटिक्स की अपनी कैलकुलेशन होती है। गुणा गणित हिसाब किताब जिसमें आपको चुनाव में जाते वक्त सब करना पड़ता है। फिर जब आप जीत जाते हो तो अलग कहानी होती है। तो क्या इसको इस तरह देखिए कि उनकी मजबूरी भी वो है। जैसे 2004 में शाइनिंग इंडिया जब मैं देखता हूं अटल जी वाला शाइनिंग इंडिया आया। यह हुआ हिंदुत्व से गए सीटें कम हो गई। वापस ट्रैक पे लौटे। उनका एक वोटर है जो वही मांगता है। जैसे बहुत सारी पॉलिटिकल पार्टी अखिलेश जी का एग्जांपल ले लेते हैं। हम केजरीवाल जी कर लेते हैं। सबको एक थीम ले ली उन्होंने कि इनकी पार्टी की यूएसपी है। उस यूएसपी पे खेलते हैं। बीजेपी की यूएसपी हिंदुत्व है। शायद किसी की कुछ और होगी अलग-अलग। बीजेपी की यूएसपी अगर हिंदुत्व है हम तो जब मोदी जी जाते हैं वहां सऊदी अरबिया और शेख को एकदम जादू की झप्पी दे रहे होते हैं तब वहां हिंदुत्व खतरे में होता है कि एकदम फुल फर्निश्ड फुल फ्लेज्ड थराइव कर दैट्स डिफरेंट सरकार वर्सेस पार्टी कि जब इलेक्शन में जाते हो तो पार्टी होते हो सरकार आते हो तो आप सब आते हो हमने आजम खान को भी सबको देखा है कि कुंभ का उन्होंने अच्छा किया था जो व्यवस्था की थी जब आप जब आप पार्टी पार्टी होते तो पार्टी होते हो। जब आप सरकार होते हो तो सरकार होते हो। हमारा यही डिफरेंस है। ओके। आरएसएस का सरकार चलाने का जो तरीका है हम जिसमें उनकी विचारधारा के जो लोग हैं वो सरकार को कंट्रोल करते हैं। ठीक है। अब मैं इसका एक एग्जांपल देता हूं क्योंकि हम ना इसी धरती पे हैं। हम कहां जो है आप ही के नाम आप ही के नाम वाले अभी गए हैं ना वहां स्पेस। उनका नाम शुभांशु शुक्ला है। सुभांशु शुक्ला है। मेरा नाम शुभांकर है। मिलताजुलता है। तो हम भी तो यहीं रहते हैं। स्पेस में तो रहते नहीं हैं। हमारे वक्त के एबीवीपी के करने वाले जो साथी हैं जो हमारे साथ ही पढ़े एबीपी करते थे वो अभी सब मंत्रालयों में लगे हुए हैं। उनका काम है कि मंत्री के काम का रिपोर्ट बनाना और आरएसएस को भेजना। जो वाइस चांसलर नियुक्त होते हैं वो आरएसएस से जुड़े हुए लोग हैं। जो हमारे साथ काम करने वाले लोग हैं। देखिए लोग जो विरोध करते थे एबीवीपी का या बीजेपी का। ठीक है ना? उनको नौकरियां नहीं मिल रही। लेकिन आप एबीपी किए हुए हैं। सबको नौकरी मिल गई। मेरे मेरे साथ मेरे यूनियन में जो अगर यह प्रिविलेज है तो जैसे मैं जब आपको लेके मैंने पोस्ट डाली तो बहुत सारे लोगों ने कहा कि आपके जो साथी थे जो दूसरे धर्म से थे उन्होंने कहा कन्हैया प्रिविलेज हैं क्योंकि वो हिंदू थे ये आपको लेकर भी बहुत सारे लोगों ने कहा कि आप प्रिविलेज हैं कि आप हिंदू थे आप बाहर हैं। आपके बहुत सारे साथी के ऊपर और केसेस चले। बहुत सारी चीज चली। वो फंसे हैं क्योंकि वो मुस्लिम थे। कन्हैया को प्रिविलेज मिल गया कि सारी चीजें करने के बावजूद बच गए हिंदू। इसमें हाफ ट्रुथ है। हां। मुझे प्रिविलेज है। यह ट्रुथ है। मैं एक्सेप्ट करता हूं। बिल्कुल मुझे मेरे नाम का प्रिविलेज है। हिंदू होने का। बिल्कुल है। कैसा प्रिविलेज है? थोड़ा बताइए ना। मेरा प्रिविलेज ये है कि जिसको इस देश में अपने जन्म के आधार पर प्रताड़ित होना पड़ता है। हम मैं उसमें जात और धर्म के आधार पर जो प्रताड़ना है उसको नहीं झेला हूं। औकात के आधार पे जो प्रताड़ना है उसको जरूर झेला हूं। लेकिन जात और धर्म के नाम पे कोई प्रताड़ना मैंने नहीं झेली है। क्योंकि हम लड़का हैं तो लिंग के आधार पे भी कोई प्रताड़ना नहीं झेले हैं। तो ये प्रिविलेज है। आपको नहीं छेड़ा किसी ने। नहीं हमको कौन छेड़ेगा? आप स्मार्ट आदमी हैं महाराज। आपको छेड़ेगा। हमको कौन छेड़ेगा? हमको देख के तो लोग भाग जाए। नहीं आप कहे ना लोग शक करने लगते तो हमको लगा क्या पता कोई छेड़ा भी हो। हम खूब कोशिश करेंगे तो हैंडसम होंगे। आप ऐसे ही ब्यूटीफुल हैं। समझ रहे हैं? लड़कियों में जैसे हैंडसम होते हैं। ठीक है। लेकिन हां नहीं। अच्छा ठीक है। आप अभी हैंडसम। कोई नहीं। आपकी गर्लफ्रेंड आपको बोलती होगी ब्यूटीफुल। मान लीजिए। अरे हां बाबा यू आर ब्यूटीफुल। आपने वो ट्रिपलिंग नहीं देखा? क्यों बाबा बेबी? नहीं नहीं ट्रिपलिंग एक सीरीज है। उस समय जब कॉलेज में थे तो हम लोग देखे थे ट्रिपलिंग। ट्रिपलिंग में जो है एक बार अंदर जाके देखे थे बाहर रह के। नहीं नहीं बाहर ही देखे थे। बाहर अंदर जाकर के ट्रिपलिंग कैसे देखते? वो तो जो है ओटीटी पे था। अंदर में ओटीटी कैसे चलता? अरे अंदर भी चलता है महाराज सब। हां तो जेलर साहब का इंटरव्यू मंत्री थोड़ी थे दिल्ली के जेलर साहब का इंटरव्यू किया हम सब बताए हां तो मंत्री का चलता होगा ना हमारा स्टूडेंट का कौन अंदर जो है ओटीटी चला रहा है तो उसमें एक डायलॉग होता है बाबा यू आर ब्यूटीफुल कमिंग टू द पॉइंट कि आप इसमें हाफ ट्रुथ ये है कि अव्वल तो जिन साथियों को ये कहा जा रहा है कि वो जेल में हैं वो उस मुकदमे में जेल में नहीं है हम उस मुकदमे में उनको बेल मिला डिटेल में हम जाएंगे अभी आप प्रिविलेज अपना प्रिविलेज बताओ हां मेरा प्रिविलेज यही है कि देखिए मेरे मुझे जाति के आधार पे लिंग के आधार पर ठीक है वह धर्म के आधार पे प्रताड़ित नहीं आधार पर कैसे मतलब मतलब कौन मेरा जो है टिफिन चेक करेगा मेरे दफ्तर में 20 लड़के हैं मुस्लिम मैं कभी नहीं पूछता नहीं आप नहीं पूछते हैं अरे आप तो वैसे भी नहीं पूछेंगे आप क्यों पूछेंगे आपका कोई मतलब आप विजिल उनको भी दिक्कत नहीं होगी मैं उनसे पूछता हूं कि ऐसी कोई दिक्कत होती है वो मुझसे नहीं कहते नहीं नहीं नहीं नहीं बोलो तो बुलाओ मैं उनको पूछिएगा कि जो है क्या मतलब बहुत आसानी से जो है तुम कलव लेकर के चल दोगे ट्रेंड डरते हैं। ये सच है। पता नहीं मेरे दोस्तों ने मुझसे कभी ऐसा नहीं कहा। मेरे दोस्त भी मुझसे नहीं कहते हैं। फिर कैसे आपने ये तो ऐसी बात है कि वो कहते भी नहीं है। लेकिन जब आप उनसे कहिएगा ना कि हे भाई लेते आना ना कुछ बड़ा चटकपटक बनता है। तो कहेगा ये वहीं आके बना देंगे। ये सच है। हम बना नहीं रहे हैं ये बात। एक एक फियर है। अच्छा ऐसा नहीं है कि फियर एक तरफफ़ा है। देख लीजिए भारत की सीमा से बाहर चले जाइए तो यह वाइसवरसा है। हम अगर मुझे दुबई में जाकर के काम करना पड़े तो यह प्रिविलेज नहीं रहेगा वहां पे। यह सच है। इसी वक्त हम यह बात भी आपको बोल रहे हैं। भारत में अगर मुझे मेरे नाम का प्रिविलेज है तो जरूरी नहीं है कि बाहर होगा और हो सकता है। हो सकता है कि इस देश में अपने नाम के चलते, अपने पहचान के चलते किसी को भी अपमानित या प्रताड़ित होना पड़ा हो। तो ये डिपेंड करता है कि आप किस समय में रह रहे हैं? और आप कहां रह रहे हैं। मान लीजिए हम हिंदी बोलते हैं। तो हम बढ़िया दिल्ली में हिंदी बोले कोई जो है हमको प्रताड़ित नहीं करेगा। लेकिन कोई प्रताड़ित करे ना करे अगर हमको केरल जाकर के रहना पड़े तो बड़ा मुश्किल हो जाएगा। तीन चार शब्द तो सीखना ही पड़ेगा। किसी से पानी मांगना है तो वेलम बोलेंगे। ठीक है ना? और घांव में चोट लग गया है। गए हैं केमिस्ट की दुकान पे खरीदने के लिए तो पट्टी नहीं बोलेंगे। वहां पट्टी नहीं बोलते उसका कुछ और मतलब होता है। तो भाषा के आधार पे, धर्म के आधार पे, लिंग के आधार पे, जाति के आधार पे जब लोगों को प्रताड़ना झेलनी पड़ती है तो इसके आधार पे स्वाभाविक रूप से अगर कोई प्रताड़ित हो रहा है तो कोई उसका प्रिविलेज है। गॉट इट। गॉट इट। जेएनयू के कन्हैया, कम्युनिस्ट पार्टी वाला कन्हैया और कांग्रेस का कन्हैया। क्या अंतर है? बहुत अंतर है। क्या-क्या बताओ थोड़ा सा? बहुत सारे अंतर हैं। एक तो उम्र का अंतर है। अह उस समय जब आप कॉलेज में आते हैं तो आपकी उम्र कम होती है। जोश ज्यादा होता है। जोश तो अभी भी है। जोश नहीं कम हुआ है। जोश कम हो जाएगा तो गड़बड़ा जाएगा महाराज। जोश फिर भी उस उम्र में ज्यादा थोड़ा होता है ना। उफान मारता है। थोड़ा आदमी फिर सयाना हुआ आता है। इस उम्र में जोश और होश का ना बैलेंस होता है। हां। तो इसीलिए अब बहुत सारा बयान आप नहीं दोगे ना जो उस टाइम देते थे। नहीं नहीं वो तो हम देंगे। सारा सारा बयान जितना आपने वहां सब इत्तेफाक रखें। सब सब सब किसी को आज तक जो है वो नहीं किया है डिनाई किया है किसी भी सवाल को क्योंकि जिस बयान के आधार पे मुझे पेंट करने की कोशिश की जाती है ना वो बयान मेरा कभी था ही मैं और आऊंगा अभी आप पहले अपना पूरा कर लो सब बयान आप तीनों पूरा कर लो सब बयान जेएनयू कम्युनिस्ट और इधर हां डिफरेंस हमको बताओ थोड़ा सा तो एक तो वहां हम जो है जेएनयू में आए तो उम्र का फर्क है दूसरा जो है पार्टी का फर्क है तीसरा जो है देश दुनिया की परिस्थिति भी बदल गई है मान लीजिए कि आज से अ 20-25 साल पहले 202 साल भी छोड़ दीजिए जब मैं जेएनयू में था तब चाहते भी तो आप ये पडकास्ट का फॉर्मेट नहीं शूट कर पाते हम क्योंकि और आपके हाथ में जो मोबाइल है ये आया ही नहीं था ये तो अभी आया है ना क्या है 16 है तो ये अभी आया है 16 तो समय जब आगे बढ़ता है ना तो अपने आप बहुत सारी चीजें बदल जाती है जैसे मैंने कोई मेहनत नहीं की है अपना बाल पकाने के लिए ये उम्र हुई पक गया तो एक उम्र का फर्क होता है, एक समय का फर्क होता है। एककि आप पर्टिकुलर कॉन्टेक्स्ट में बात कर रहे हैं। ऐसा धय नहीं कि हम हार्ट सर्जन हैं और आपसे हमको जो है हार्ट सर्जरी का पॉलिटिक्स की बात करेंगे तो पार्टी का फर्क दाढ़ी छोड़ के हम बात कर रहे हैं। अंदर कॉन्टेक्स्ट पहले पहले स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन में थे। फिर जो है मेन स्ट्रीम पार्टी में आए, सीपीआई में आए। कुछ सोच कुछ विचारधारा में फर्क आया? नहीं विचारधारा में फर्क नहीं आया है। उन विचारों को लेकर के काम करने के तौरतरीकों में फर्क आया है। मतलब इंटेंट नहीं बदला है। हम कंटेंट बदला है। क्योंकि अब अब उस भाषा में हम बात नहीं करते हैं और जिस भाषा में बात करते थे क्योंकि अशोभनीय है वो। अब मान लीजिए कि हम आपको रेत तो कर देंगे तो थोड़ी अच्छा लगेगा। कहेगा कि क्या फर्क है? पीएचडी किए नहीं किए क्या ही फर्क पड़ता है जब ठेला वाले पीएचडी वाले में अंतर कुछ तो दिखना चाहिए नहीं भाषा में मैच्योरिटी में बात करने के हां वही मतलब कि आप पढ़ा लिखा आदमी हो और एक अनपढ़ आदमी ये मत कहिए कि जो है ठेला वाला जो है उसको हम डिवीन कर डिवीन नहीं कर रहे भाषा में आप जब सीखते हो पढ़ते हो तो आप थोड़ा सा संसदीय होते अनुभव अंग्रेजी का तेज है ना देयर इज़ नथिंग बिफोर एक्सपीरियंस अब मुझे मुख्यधारा की इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में आए हुए भी लगभग 10 साल हो गए हम 10 साल हो गए लगभग। 15 में मैं प्रेसिडेंट बना था। 16 में जेल गया था। यह 2025 चल रहा है। 2026 आएगा तो 10 साल पूरा हो जाएगा। 10 साल हो गए। ठीक है? अब कम्युनिस्ट पार्टी क्यों छोड़ी? क्योंकि बहुत सारे लोग अभी भी दो दो परसेप्शन मेजरली जो मैंने पढ़े लिखे सुने। एक था कि कम्युनिस्टों की जो सीनियर लीडरशिप थी वो आपको बहुत अपॉर्चुनिटीज नहीं दे रही थी कि आप ऊपर उठ के थोड़ा और ग्रो कर जाएं। एक था कि यू वेर वे टू एंबिशियस और आपको समझ में आया कि जेएनयू की कहानी अलग थी। जेएनयू के बाहर कमिस्ट्री का मामला कमजोर है। राहुल जी जिंदाबाद। कभी ना कभी सरकार आएगी आएगी तो हम भी नेता मंत्री बनेंगे। देखिए शुभांकर जी आपने इससे थोड़ी देर पहले कही थी कि कहा है राजनीति में जब कोई महत्वाकांक्षा ही नहीं है। तो मैंने आपको टोका कि नहीं मेरी महत्वाकांक्षा है राजनीति में। मैंने इस बात को डिनाई नहीं किया। इसीलिए हमने बिलकुल मतलब स्पष्ट फ्रेम करके हम जो है पालथी मार करके बैठ गए हैं तो हम बुद्ध नहीं हो रहे हैं। मतलब देखिए कपड़े पहन लेने से कोई जो है स्टाइल कॉपी कर लेने से जो आपका किरदार नहीं बदल जाता है। तो राजनीति में हैं तोकांक्षा है। तो दूसरा सवाल का तो कोई मतलब ही नहीं है। पहला सवाल जो है कि संघर्ष जब सब ही कर रहे हैं और सबको मिलके ही करना है। अब ट्रक पे जो है उस दिन मतलब हम सीपीआई में होते तब भी नहीं होते। कांग्रेस में हैं तब भी नहीं है। आप समझ रहे हैं? तो मतलब जब आपको राजा साहब भी नहीं चढ़ाते तेजस्वी जी। मैं आ रहा हूं सिंपल। हम कह रहे हैं कि जब सबको संघर्ष ही करना है। ठीक है? तो क्रिकेट के मैच में जो है टेनिस के बैट को लेकर के क्या करेंगे? इसको मैंने कभी डिनाई नहीं किया है। ऐसा नहीं कि मैंने इस बात को कभी डिनाई किया। मेरी मेरी सीपीआई के लोगों के साथ कोई वैमनसता नहीं है। मैं सीपीआई के खिलाफ कभी कोई स्टेटमेंट नहीं देता हूं। मुझे इस बात का की बहुत खुशी है कि मैं अपने आप को लेफ्टिस्ट आइडेंटिफाई करता हूं और मैं कांग्रेस पार्टी का चुनाव इसीलिए किया हूं ना कि मैं अपनी विचारधारा के साथ उस संगठन में रह सकता हूं। एक कांग्रेसी विचारधारा और एक लेफ्टिस्ट विचारधारा कांग्रेट बोलते हैं हम दोनों में क्या फर्क है थोड़ा हमको समझाओ ना नहीं उसका जो है देखिए आजकल तो सब मिश्रण हो रहा है ना सर आप इतना ठेसी बतिया रहे हैं वेस्टर्न सूट पहन के यही यूएसपी पैदाइश वहांक है ना भाई अब यूपी बिहार का पैदाइश है तो चला जाएगा अरे तो वही यूएसपी है आपका देखिए आप भले वेस्टर्न पहने हुए हैं तो कोई इंग्लैंड में तो सुन नहीं रहा है सुनेगा गोंडा हो मजा क्यों आएगा देसी आदमी बैठा होगा मजा मजा क्यों आएगा बढ़िया लड़का मूछ मुड़ा करके जो है वेस्टर्न पहन करके ठेट बतिया रहा है। यह यूएसपी है आप समझ रहे हैं? तो मेरा यह कहना है कि कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जहां आप अपनी विचारधारा के साथ रह सकते हैं और मैं अपनी विचारधारा नहीं छोड़ना चाहता हूं। मेरा मानना है कि विचार का व्यक्ति जो है उसका कोई अस्तित्व नहीं होता। तो मैं डिफरेंस समझने के लिए समझना चाह रहा हूं। जैसे एक जो लेफ्ट आईडियोलॉजी का बंदा और एक कांग्रेस है। कांग्रेस को हम मानते हैं एक सेंटर से थोड़ा सा लेफ्ट हल्का सा एक जो बेसिक परसेप्शन हमारा होता है आम आदमी के तौर पर। आप हमको थोड़ा डिफरेंस समझाओ ना। हमको जानना है। मैं उस पार्टी का सदस्य बना। उस उस स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन का जिसके पहले अध्यक्ष नेहरू थे। अब मैं क्या डिफरेंस समझाऊं? ये डिफरेंस तो जानते हैं क्यों है? अब जो लोग प्रकाश झा जी बहुत अच्छे आदमी हैं। पहले आप इसी पार्टी से होकर के अब जेएनयू में शुरू में कह रहे हो उनसे लड़ते थे आप लोग। हां। तो तब विरोध करते होंगे ना किसी एडवांस। वो तो लेफ्ट पार्टी भी आपस में लड़ती है। तब वो नेहरू जी वहां पे प्रथम प्राइम मिनिस्टर थे। तो हमको डिफरेंस समझाओ। हम कांटेक्ट समझान के नेहरू जी हैं। नेहरू जी इसको सिंपल ही समझ लीजिए कि जब मुखिया का चुनाव होगा तो चाचा भतीजा के खिलाफ लड़ जाएगा। ठीक है? अब पड़ोसी पड़ोसी जो है लड़ जाएगा। लेकिन जब विधानसभा का चुनाव होगा दोनों दोस्त बन जाएंगे। पूरा गांव मिलकर हमारा गांव तो एकदम इसी पार्टी के साथ है। लोकसभा का चुनाव होगा तो गांव छोड़िए ब्लॉक एक हो जाएगा। हां ठीक है। भारत में चुनावी प्रक्रिया त्रिस्तरीय है। आप यूनिवर्सिटी सिस्टम में जाएंगे तो गिनीचुनी यूनिवर्सिटी जहां चुनाव होती है। मैं ये जानता हूं। मैं खाली कोरल डिफरेंस समझना चाह रहा हूं। फंक्शनिंग या आईडियोलॉजिकल थॉट प्रोसेस में कि जैसे बीजेपी का थॉट प्रोसेस विज़िबल है। कांग्रेस या आम आदमी पार्टी में मैंने मिला विज़िबल है। कम्युनिस्टों के साथ मैं थोड़ा कम उठा बैठा हूं। तो कम्युनिस्ट और कांग्रेस क्या डिफरेंस है जब फंक्शनिंग में, सोचने में, अंदर काम करने में, यह जानना चाह रहा हूं मैं। देखिए काम करने में मैं जिस कम्युनिस्ट पार्टी में हूं था और जहां हमारी ट्रेनिंग हुई कोई मेजर डिफरेंस नहीं था। इसीलिए जो है यह कम्युनिस्ट पार्टी कई बार जो है कांग्रेस के साथ सरकार में रही और आपको मालूम है कि इंद्रजीत गुप्ता जब होम मिनिस्टर बने तो कांग्रेस पार्टी उसको सपोर्ट कर रही थी। अभी भी जब जो है इंडिया ब्लॉक बना तो उसमें भी जो है कम्युनिस्ट पार्टियां शामिल बाहर भी रही बिहार हां बिहार में अभी महागठबंधन बना है उसमें भी ये लोग शामिल हैं। नेशनल लेवल पे कांग्रेस पार्टी और सीपीआई साथ रही है और रहती आई है ये एक हिस्ट्री है। यही मैं कहा कि जो लोग लेफ्ट विचारधारा को प्रकाश झा जी की फिल्म से समझे हैं उनको लगता है कि सब एक ही है। मामला यह है कि वक्त के साथ ये जो है ना ब्रैकेट जो है वो बढ़ता गया है। हम तो हम लोग जहां से आए हैं जो हमारी पहचान है उसको ऑलरेडी जो है ना लोग विदिन लेफ्ट सर्किल डिस्कोर्स में ना कांग्रेसी ही बोलते थे और अंग्रेजी में जो है ना उसको रिवजनिस्ट बोलते थे तो मेरे साथ यह प्रश्न एक्चुअली ना बहुत उस अंतर्विरोध नहीं है अगर मैं कांग्रेस के साथ हूं तो यह सच बात है मतलब वो जो बीजेपी वाला मजाक करता है कि स्टेट वाइज एंटी बीजेपी चेंज हो रहा फिर बीजेपी वाला क्या मजाक करेगा बीजेपी वाले को खुद अपना इतिहास नहीं पता है वो बार-बार 90 90 बोलता है जब अगली बार कोई बीजेपी वाला आए तो उसको पूछना लालू जी जब आए थे ना चीफ मिनिस्टर बन करके बीजेपी उस सरकार को समर्थन कर रही थी कम्युनिस्ट पार्टियों के साथ जनता पार्टी सही तब कब क्यों कर रही थी वो तो उसी मंडल पे अलग और जो है जब इमरजेंसी के खिलाफ हम मूवमेंट हो रहा था या मूवमेंट हो रहा था तो इमरजेंसी लगी जो आपको कहना है कह लीजिए तब भी जो है सीपीएम जो सीताराम यचुरी वाली पार्टी है जो अभी इंडिया ब्लॉक के साथ है जिसके चीफ मिनिस्टर हैं केरला में वह जो है वह लोग कांग्रेस के खिलाफ लड़ रहे थे तो देश की राजनीति जो है, देश का लोकतंत्र जो है वह 75 साल का हो गया है। इसके कई जो है अप्स एंड डाउन है, उतार-चढ़ाव हैं। उसमें मैं एक परमटेशन कॉम्बिनेशन बताता हूं। आपके सामने भी बोल रहा हूं। हम दोस्त का दोस्त दोस्त होता है। दोस्त का दुश्मन दुश्मन होता है और दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। ये तीन परमटेशन कॉम्बिनेशन है। आप तो इंजीनियरिंग के स्टूडेंट हैं। समझ गए होंगे। मान लीजिए मैं कांग्रेस में हूं। तो कांग्रेस का जो दुश्मन है दुश्मन है मतलब भाजपा। ठीक है? कांग्रेस का जो दोस्त है हमारा दोस्त है जो हमारे एलआई हैं जितने भी हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है मतलब ठाकरे जी की पार्टी स्टालिन जी की पार्टी सिंपल परमटेशन कॉम्बिनेशन है सर तो हमारा कांग्रेस के साथ होना बहुत अचंभित बात नहीं है मतलब आपको दिक्कत नहीं हो एडजस्ट होने में पहले भी नहीं थी ये आज की बात नहीं है वो इसलिए कि मैं अति क्रांतिकारिता जहां हमको यहां भारत में बैठकर के स्टालिन को डिफेंड करना पड़े। मैं वहां नहीं था। पहले भी राजा साहब का एक स्टेटमेंट आया था कि कन्हैया को कम्युनिस्ट विचारधारा भरोसा नहीं था कि इसके भरोसे वो जीत सकते हैं। इसलिए वो निकल लिए। नहीं तो देखिए अच्छा एक बात बताइए हम आपके साथ काम करते हैं। ठीक है? अब जो है हम आपके साथ काम नहीं करते हैं। ठीक है? लेकिन हम जिसके साथ काम करते हैं आप उसी के साथ काम करते हैं। दोनों बॉस एक ही है। नहीं नहीं बॉस तो मतलब आखिर में तो हां ठीक है। वो तो अलग बात है। सबका बॉस आजकल ट्रंप बना हुआ है। वो छोड़ दीजिए। मैं वहां उतना दूर नहीं जा रहा हूं। देखिए ठीक है। या तो कहिए कि कन्हैया जी हम लोग ऑर्बिट में ना फुल फ्लेज फ्री तरीके से घूमेंगे। तब तो मैं दिल्ली तक मतलब आपने कह दिया कि मैं मिडकर हटा दे रहा हूं जो आपको इसी से जुड़ना है। तो मैं सीधे जाके जुड़ जाता हूं। नहीं मिडकर की बात नहीं है। मतलब मैं जहां पर मिशन हां मैं ये कह रहा हूं कि तय कर लीजिए कि लक्ष्य क्या है? साध्य क्या है? ठीक है ना? फिर आप जो है साधन पे क्वेश्चन पूछते रहिए। हां वही साड़ा कुत्ता कुत्ता तौड़ा कुत्ता टॉमी नहीं हो सकता। एक ही कहानी है। सारा समझ गए। खूब देखते हैं। अच्छा आप रिलीजियस हो? रिलीजियस हो? नहीं मैं रिलीजियस नहीं हूं। लेकिन मैं ऐसे परिवार में पैदा हुआ जो रिलीजियस है। मेरी माताजी रिलीजन को मानती हैं और वो उन्होंने राम मंत्र लिया है। मैं पहले जब माता जी के साथ रहता था तो मैं नॉनवेज नहीं खाता था। लेकिन बाद में जब मैं दिल्ली आए नहीं नहीं जेएनयू जाके नहीं। दिल्ली आकर के देखिए आप दिल्ली में कहां रहे? दिल्ली में रहे नेहरू विहार में। क्या कहां करते थे? यूपीएससी की तैयारी करते थे। अच्छा पहले जो कोई भी बिहारी करता है। ठीक। हां। सब हां। हां। यूपीएससी की तैयारी करते थे। सबको अधिकारी। नेहरू बिहार में हां। आईएसएस उसके लिए क्या है ना? हम सरकारी नौकरी सर हमको चाहिए इज्जत। ठीक है ना? और हमको कुछ नहीं चाहिए। हमको चाहिए इज्जत। इज्जत कहां मिलेगी? इज्जत मिलेगी अधिकारी बनने में। और अधिकारी जो बन जाते हैं उनको चाहिए और इज्जत। तो वो क्या बनते हैं? नेता। इसीलिए देखिएगा कि हर कोई आपको यही करता हुआ दिखेगा। इसीलिए हमको भी लोग उसी नजरिए से देखता है। वही सवाल पूछता है तो मैं बुरा नहीं हूं। लेकिन आप अधिकारी नहीं बने। हां नहीं हम बने। अच्छा वो बड़ा मजेदार किस्सा है। क्या? हम जिनकी वजह से अधिकारी नहीं बने। हम ठीक है ना? वह हमारे जो है वकील बने जब यह मौजूदा सरकार हमको जेल में डाल दी कौन इसीलिए हम यह परमटेशन कॉम्बिनेशन आपको समझाया समझ गए दुश्मन का दुश्मन दोस्त था हां ठीक है लेकिन कौन था ये कपिल सिब्बल साहब जो है वो थे शिक्षा मंत्री हम हम लोग हिंदी मीडियम से लोग हैं। मेरी अंग्रेजी बहुत अच्छी है ऑक्सफोर्ड लेवल की। जब से अमित शाह जी ने कहा है ना कि अंग्रेजी बोलने में शर्म आएगी तो मैं कहना शुरू किया मेरी अंग्रेजी बहुत अच्छी है क्योंकि मैं जैसा अंग्रेजी देख लिया हूं। उससे तो अच्छी है। तो मैं हिंदी मीडियम से तैयारी करता था हर चीज देखिए क्या है ना कि भाषा का सवाल यानी कि जब आप किसी चीज को देखते हैं ना तो आपके दिमाग में पिक्चर बनता है। हम और जो भाषा है आपकी मातृभाषा जिसको कहते हैं गुस्सा में गाली जिस भाषा में देते हैं वही मातृभाषा। असली औकात वही रहा है ना तो वो है हिंदी फिर दिमाग ट्रांसलेट करता है फिर अंग्रेजी बोलते हैं तो मतलब एआई पहले से दिमाग में था ट्रांसलेट करके तो हिंदी के साथ बहुत कंफर्टेबल थे हिंदी की तैयारी कर रहे थे और हमारा ऑप्शनल जो था वो ज्योग्राफी और हिंदी लिटरेचर था यहां आए किसी किसी तरह से ट्यूशन पढ़ा करके एमआरओ का नौकरी किया दिल्ली आकर के रेंट देना भी एक सवाल है तो कर करा के एग्जाम देने का टाइम आया तो सरकार जो है सीसेस सेट ले आई बड़ा जोर धक्का का लगा मतलब ब्रेकअप से ज्यादा बड़ा दुख था समझ रहे हैं कटा भी आपका इससे ज्यादा और क्या कटेगा कि सपना ही कोई छीन लिया ना जिसके ऊपर सब कुछ निर्भर है वही नहीं रहा मतलब अच्छी नौकरी मिलेगी अधिकारी मिलेगा अच्छी शादी होगी सब सारा मामला वहीं से शुरू होगा ना फिर पासपोर्ट बनवाएंगे अधिकारी हो जाएंगे स्विट्जरलैंड चले ही जाएंगे वैष्णो देवी का क्या है कि वहां पे तो जो है कभी पदाधिकारी लग गए कलेक्टर हो गए वहीं के तो जो है वैष्णो देवी का दर्शन होते रहेगा तो ये इच्छा लेकर के आए थे कर रहे थे तो वह हुआ नहीं। अब लगा कि भाई यह तो बड़ा संकट है। जीवन में आगे कैसे बढ़ा जाए क्योंकि पीछे तो जा नहीं सकते हैं। हम लोगों को कहते हैं कि बिहार के लोगों की साइकी समझिए। जब वो ट्रेन पे चढ़ता है ना तो आपको बिहार के बाहर के लोगों को लग रहा होगा कि ट्रेन है। इतना ममारी क्यों कर रहे हैं? आराम से चढ़ लें। जैसे आप बोले ना इंटरव्यू आराम से करेंगे। बिहार के लोगों को यह लगता है कि यह ट्रेन नहीं है। टाइम मशीन है। यह अगर छूट गया तो हम छूट जाएंगे। और जो वहां से निकल गया वह परपचुअली इस डर में जीता है कि हमको वापस जाना पड़ेगा और वहां जाएंगे तो वहां कुछ नहीं है। कुछ भी नहीं है। इसीलिए देखिएगा कि उसकी वो चाहे ना चाहे कोई नहीं चाहता है मेहनत करना। वो मेहनत करेगा। मेहनत वो करेगा क्योंकि उसका पूरा जीवन उस पे निर्भर करता है। तो मेरी माताजी रिलीजियस थी और हम दिल्ली आए। दिल्ली में सर्वाइव करना बहुत मुश्किल था। आप बचपन से पूजा पाठ नहीं करते थे? नहीं। कैसे नहीं करेंगे? अब रिलीजियस माता जी तो पूजा पाठ करते इसीलिए मैं समझना चाहता हूं। हां करते ही तो जब दिल्ली आए तब मैं मेरी माता जी के संसर्ग में रहता था और दादी के साथ ज्यादा रहा। मेरी दादी भी जो है वो नॉनवेज नहीं खाती थी। वैष्णव थी। हालांकि हमारे परिवार में मेरे पापा और बाकी लोग खाते थे। तो मैं आया दिल्ली और मैंने मां को कहा कि माता जी यहां तो बड़ा संकट है। यहां तो जो है धर्म और संस्कार का पालन बहुत मुश्किल है। तो क्या हुआ? मतलब भिंडी जो है वो ₹100 किलो है और अंडा करी जो है वो 3035 में हो जाता है। हम तो क्या करें म धर्म देखें कि जेब हां समझ रहे हैं तो बोला देखो अब कैसे सर्वाइव कर सकते हो और 10 में क्या ठंडी पड़ी थी भाई साहब मतलब मुझे आज तक उतनी ठंडी दिल्ली में नहीं पड़ी मतलब उस बीच में ठंड ज्यादा पड़ती थी मुझे 2010 11 12 और ये क्या होता है ना कि जो देखिए जैसे वेजिटेरियन का प्रचार होता है ना वैसे ही नॉनवेज का भी प्रचार होता है अब उसका मैं एक एग्जांपल आपको देता हूं शिव भक्त जो होते हैं जो शिव मंत्र लेते हैं वो नॉनवेज खाते हैं लेकिन आप देखिए कि सावन में नॉनवेज नहीं खाना है। हम अरे वैष्णवों को क्या लेना देना है इससे? आप तो साल भर नहीं खाते हैं। क्या सावन क्या भादो, क्या मंगल, क्या शनिचर आपको तो कभी नहीं खाना है। ये फैसला तो उसको करना है ना। तो ये मत लिखो ना वेज रेस्टोरेंट। ये लिखो नॉनवेज रेस्टोरेंट। क्योंकि ऑप्शन किसको दोगे? हां सही बात है। समझ कहां-कहां डिफरेंशिएट करना है? और देखिए कि शिवजी का महीना है सावन। हम ऐसा प्रचार हुआ है कि शिव भक्त जिनको मतलब जो आधिकारिक तौर पे खा सकते हैं चढ़ता है भगवान को वो जो है खाना बंद कर देते हैं तो ये ना प्रसाद है मतलब वैष्णव वैष्णव प्रभाव होता है और समय कालखंड में होते रहता है कोई चीज का चलन होता है कोई चीज का चलन चला जाएगा जैसे आप तो अभी भी मोच नहीं रखते हैं लेकिन याद कीजिए कि कॉलेज में मोच नहीं रखने का एक दौर आया था जब गाना आया था पप्पू खान डांस वाला और अभी जो है विराट कोहली के हर कोई दायरी रखता है। हम पहले भी रखते थे। हम जेएनयू में भी रखते हैं। हम विराट कोहली को देख के नहीं रखे हैं। ठीक है? तो ये दौर रहता है। तो उसी तरह से जैसे वैष्णव का प्रचार है, वेजिटेरियनिज्म का प्रचार है। नॉन वेजिटेरियन तुम बड़ा ठंडा लग रहा है। एक अंडा खा लो। ऐसा लगता था हीटर है अंडा में। ठीक है? करते-कर करतेकरते हम भी कन्विंस हुए कि देखो जेब का भी मामला है और सर्वाइवल का भी मामला है हर तरह से। तो पहले जो है ग्रेवी खाना शुरू किए क्योंकि टेस्ट भी तो डेवलप हो गया ना। फिर जो है वाइट वाला पार्ट खाना शुरू किए। फिर पीला वाला पार्ट खाना शुरू किए। हमने कहा कि अजन्मा मुर्गा खा ही लिए। अंडा तो अजन्मा मुर्गा ही है ना। जन्मा मुर्गा भी खा ही लेते हैं। ठीक है ना? वैसे भी हम तो उस धर्म संस्कृति से हैं कि खाओ तो भी हिंदू रहोगे। नहीं खाओ तो भी हिंदू रहेंगे। हमने कहा कि इतनी आजादी और कहां हो सकती है। तो मैं प्रैक्टिसिंग वो नहीं था। मैं प्रैक्टिस नहीं करता था। लेकिन स्वाभाविक रूप से रिलीजन का संस्कार था। नाम है अभी भी कुछ रखते हो पूजा पाठ भगवान देखिए मेरा आस्था को लेकर के एक बहुत स्पष्ट मत है। मैं किसी के भी आस्था का अपमान नहीं करता हूं। नहीं वो तो अलग उधर जा ही नहीं रहा। मैं आप व्यक्ति विशेष की बात कर रहा हूं मैं आपकी। उतने तक ही है। धर्म धर्म सामने मंदिर पड़ गया तो सर झुका दिए। हां। और आप जैसे धार्मिक व्यक्ति हैं। प्रसाद दिए हाथ जोड़ के ले लिए। ठीक है। आपकी एक तस्वीर बड़ी वायरल होती है। जैसे एक अभी रिसेंटली पूजा पाठ बड़े इत्मीनान से बैठे हो। तो उसकी बड़ी चर्चा चलती है कि जेएनयू वाला जो कन्हैया था अंबेडकरवादी था। अब अब जो बाहर वाला है अच्छा देखिए टीका तो नहीं लगाए हुए हैं। घर में अंबेडकर है। अच्छा तो कोई कोई नहीं है ये कॉन्टेक्स्ट आया है तो बोलिए व्यक्तिगत तौर पे ठीक है ना मैं ईश्वर के दरबार में कुछ मांगने नहीं जाता हूं। अमिताभ बच्चन क्योंकि हमारा यह मानना है कि ईश्वर आपके भीतर वास करते हैं। आपके कर्मों में वास करते हैं। तो धर्म का जो स्पिरिचुअल पक्ष है ठीक है ना? वो इंपॉर्टेंट है। जिसमें जन कल्याण की बात है। बंधुत्व की बात है। शांति की बात है। हर धार्मिक आयोजन में मेरे घर में कहा जाता था विश्व में शांति हो। अभी भी हां वही है। लोगों का कल्याण हो, अधर्म का नाश हो, धर्म की जय हो। इतना तक हम धार्मिक हैं। इससे ऊपर नहीं। जैसे कहीं पूजा पाठ कर लिया मन में जल चढ़ा दिए सावन आया या वैसा वो आपको अगर हम कहीं भी करते हुए देख दिखते हैं तो मैंकि एक जनता का व्यक्ति हूं। जनता हाथ पकड़ करके जहां ले जाती है सब जगह जाते हैं। मतलब चर्च भी जाते हैं, गुरुद्वारा भी जाते हैं, मंदिर भी जाते हैं, मस्जिद भी जाते हैं, मजार पर भी जाते हैं। कोई भेदभाव नहीं करते हैं। क्योंकि धर्म की यही मूल भावना हम समझे कि कोई भी धर्म किसी भी धर्म के व्यक्ति को, किसी भी मनुष्य के साथ अपमान को, दुराचार को मतलब गलत व्यवहार को जो है स्वीकृति नहीं देता है। पॉलिटिक्स में आने के बाद सबसे बड़ी व्यक्तिगत कुर्बानी क्या थी? पॉलिटिक्स में आने के बाद सबसे बड़ी कुर्बानी तो यही थी। हमारे उम्र के लड़के लड़कियां जो कर रहे थे वो नहीं कर पाए। तो और तो कुछ कुर्बानी नहीं है। कौन सी चीज नहीं कर पाए? वो तो आप जानते ही हैं। अब सब बात हम कैमरा पे बोल दें। आप कह रहे हैं सब बात कैमरा पे नहीं बोलेंगे। दिल टूटा नहीं। दिल नहीं टूटा है। दिल कोई टूटने की चीज है। उम्मीदें टूटती हैं। प्यार में कटा? नहीं। प्यार में पड़े। प्यार पतंग है कि कट जाएगा। देखिए हां। मैं मैं प्यार में हूं। मैं तो कहता हूं कि बी द गार्डन बटरफाई विल कम। मोहब्बत करने की नहीं मोहब्बत होने की चीज है। हम नैसर्गिक है। स्वाभाविक है। कई बार मोहब्बत हुई कन्हैया कुमार को। कई बार हुई अगर गिनती करेंगे हम तब तो फिर मोहब्बत नहीं थी। इतने बड़े वाले हो। मोहब्बत तो गिनती। मोहब्बत तो वो होगी गिनती। बुला जाए। कहे गिनती हुई। एक दो मतलब सिंगल डिजिट नहीं। फिर फिर तो ये स्कोर कार्ड है। प्रेम नहीं है। तो प्रेम का बार प्रेम क्या है? चलो प्रेम प्रेम क्या है? प्रेम ही है कि आपके साथ इस तरह से बात कर रहे हैं। हम ये प्रेम ही है। नहीं हमारा वाला तो प्रेम अलग है। इसको लोग अलग समझ लेंगे। नहीं नहीं क्यों अलग समझ रहे? हां ये भाईचारे वाला प्रेम है। हम प्रेम वाला प्रेम की बात कर रहे हैं। नहीं आप जो है सहवास वाले प्रेम की बात कर रहे हैं। तो आप स्पष्ट सवाल पूछिए ना। अरे हम तो वही पूछे थे। महाराज आप लौंडो-लंडो में प्यार आ गए। हां अब तो भाईचारा है। तो हम तो प्रेम वाली बात कर रहे थे। वो तो देखिए आप मनुष्य हुए हैं। एक बार आपको प्रेम की अनुभूति होती है और जो है आप उसी प्रेम में जीते हैं। बाकी जो है ना आरोपित होता है। हम्म ठीक है ना? अलग-अलग रूप में माता ममता के रूप में आरोपित कर दिया। भाई भाई के रूप में बहन बहन के रूप में दोस्त दोस्त के रूप में पत्नी पत्नी के रूप में। बाकी सब रिश्ते हैं। पत्नी अभी नहीं हुई। शादी बैक कब करोगे? ये आप थोड़ी करेंगे। तो यह तो मतलब आपके हाथ में थोड़ी है। फिर मतलब घर वाले परेशान नहीं। आप तो आस्तिक हैं ना? हां। तो आप शादी थोड़ी करेंगे। आपका तो कुंडली ऊपर भगवान जोड़ी बनाए होंगे ना। हमारे पंडित जी कहे हैं कि दिसंबर से अप्रैल में निपट जाएंगे हम। मतलब आप दिखवा लिए हैं। आते हैं यहीं बैठते हैं पंडित लोग तो वो देख लेते हैं। हमारा तो कुंडली भी नहीं है तो पता नहीं चल रहा है। आपका अच्छा नहीं है। घर वाले नहीं परेशान करते। अब क्या परेशान करेंगे? आपको पता है हमारे यहां शादी की उम्र क्या है? क्या? 18 बरस। सरकार की तरफ से 21 वर्ष है। होता 18 वर्ष में बाल विवाह बाल विवाह नहीं है। बाल विवाह कौन कह रहा है? एक बात बताइए। 18 साल में हम सरकार चुन सकते हैं और पत्नी नहीं चुन सकते हैं। अजीबोगरीब बात है। देश का प्रधानमंत्री 18 साल में चुना है और पत्नी काहे ने चुने फिर ब्याह काहे ने किया? अरे हमारा राज आए तो हम करा ही दें। आपको मालूम है ना कि यह जो वोटिंग राइट है उसको कम राजीव जी ने किया था। हमारा आ जाए तो जो है हम कहे कि अब वैसे भी लोगों को जब करना होगा तब करना होगा और धार्मिकता के आधार पे भी अगर सोच लें तो ऊपर वाला तय किए हैं तो हम लोग क्यों तय कर रहे हैं जितने साल में सरकार चुन सकते हैं उतने साल में पति पत्नी चुन सकते हैं ये अधिकार होना चाहिए और मैं कॉलेज के एक डिबेट में इसके पक्ष में जो है हाउस का मानना था कि शादी की उम्र घटा करके 18 साल हो जाए और मैं अमूमन वाद-विवाद में विपक्ष में ही रहता था। यह एक ऐसा मोशन था जिसके पक्ष में मैं भाषण देकर के आया था। बिल्कुल होना चाहिए। 18 साल में प्रधानमंत्री चुन सकते हैं। पत्नी नहीं चुन सकते हैं। पति नहीं चुन सकते हैं। ये कौन सी बात है? ठीक है। अब आते हैं जब होगा तब होगा। हां होगा तो हम बुलाएंगे आपको। हम आएंगे पक्का। हां। ऐसा नहीं है। चाहे यहां करेंगे चाहे बिहार करेंगे हम चंद्र आएंगे। आप भी लेकिन मुझे ना यही देखते हैं। अरे हम पासपोर्ट बनवाए हैं। थोड़ा अच्छा सोचिए हमारे बारे में। इतना पैसा बटोर लिए हो। अरे बटोरेंगे क्यों? आप मदद नहीं कीजिएगा। आपको काहे बुला रहे हैं? आपके लिए खर्चा पानी कैसे चलता है कन्हैया कुमार का? यह सवाल मुझे पूछा जाता। अच्छा बताइए एक अकेला आदमी का क्या खर्चा? अरे काहे नहीं मां-बाप है उनको कुछ उम्मीद नहीं है। कुछ दिए नहीं बाबूजी चल बसे। हां। जेल से निकल कर के आए। ठीक है। हम जेल से निकल के आए मार्च में नवंबर में वो चल बसे। नवंबर में जब वो चल बसे उसी दौरान मेरी किताब आई। ठीक-ठाक पैसा मिला। हम अमाउंट बता दें। ठीक-ठाक कितना होता है। बढ़िया पैसा मिला। कितना होता है? बढ़िया। अरे जितना हम सोच नहीं सकते। फिर भी कितना मतलब? हम हम जाने ना कि कितना सोचे। ₹15 लाख का वादा मोदी जी ने कहा था सबके खाते में पहुंचाएंगे। हर जगह पॉलिटिक्स सुनिए सच बताते हैं। ₹15 लाख मोदी जी बोले थे कि सबके खाते में पहुंचाएंगे। तो बाकी सबके खाते में पहुंचा ना पहुंचा मेरे खाते में पहुंच गया। हमको ₹15 लाख रॉयल्टी का मिला। आपकी मम्मी मोदी जी की फैन तो नहीं रही कभी। मेरी? हां। पता नहीं। अब मेरे ख्याल से नहीं होंगी क्योंकि कहीं पूछे मम्मी किसको वोट देती हो? अब यह तो गुप्त मतदान है। पूछ नहीं सकते हैं। लेकिन जहां तक मेरी बातचीत हुई मेरी मां आज तक एक ही पार्टी को वोट दिया है। सीपीआई इसीलिए मुझे डर भी है कि कभी अगर वहां जाकर चुनाव लड़ना पड़ा तो मम्मी उधर मम्मी वोट देगी कि नहीं देगी? एक्चुअली मेरे नाना जी कांग्रेसी थे। हां। तो मेरी मां कहती है कि जब तक हम अपने गांव में थे तो अभी तो कवर कर लिया आपने माता जी के वाले पे। फिर जब आई मेरी मां आप जैसे मोदी जी रिश्ता निकाल लेते हर जगह से आप भी निकाल। नहीं सच बात बताते हैं ना। ये सच बात है। फिर मां जब आई यहां हमारे यहां शादी करके तो यहां पे सब लोग सीपीआई में थे और वो एकदम से लोग बदले थे। पहले कांग्रेसी ही थे सीपीआई उसमें एक्चुअली एक बड़े लीडर थे रामचत्तर सिंह वो कांग्रेस के पहले मिनिस्टर थे। उनका गांव है हमारा गांव। तो उनका टिकट काट दिया कांग्रेस पार्टी तो निर्दलीय खड़ा हो गए और निर्दलीय खड़ा हो के जीत नीतीश कुमार के पापा भी यही किए थे। अभी हमने एक स्टोरी की है। उनको भी टिकट नहीं मिला था। लाल बहादुर शास्त्री जी की बहन को मिल गया था। तो वो भी नाराज होके सब कांग्रेसी हो गए। तो निर्दलीय कांग्रेसी से अपना अलग हो गए। तो निर्दलीय वो जीत गए और फिर वो रिजाइन कर दिए। उसी सीट पे जो है बाद में उनका बेटा चुनाव लड़े सीपीआई से वो जीत गए और पहले एमएलए बने थे नॉर्थ इंडिया के। तो इस तरह से जो है पूरा का पूरा इलाका जो है वो कांग्रेस ही से कम्युनिस्ट हो गया था। खैर वो अलग बात है। मैं ये आपको बता रहा था कि हमारे जीवन में राजनीति कैसे चल रहे हैं। खर्चा पानी क्या है? हम उसको लेकर के मैं कभी भी झूठ नहीं बोला हूं। तो कहां चलता है खर्चा पानी? देखिए अबवल तो आप भी अकेला आदमी है। हम भी अकेला आदमी है। आपके पास कोई जिम्मेवारी होती है। अगर कोई जिम्मेवारी नहीं हो और आप जो है ना बहुत मतलब खर्चीला टाइप के आदमी नहीं हो तो बहुत खर्चा नहीं होता है अकेला जान को। फिर भी मोबाइल का रिचार्ज, गाड़ी, तेल, पैसा, खानापीना, कंघी, साबुन, शैंपू और बुनियादी चीजें घर का किराया। महाराज हम सीपीआई में थे तब भी राष्ट्रीय पार्टी थी। हम आज कांग्रेस पार्टी में है तब भी राष्ट्रीय पार्टी पैसा देती है बिल्कुल देती है कितना रुपए देती है पार्टी आपका सब कुछ करती है मतलब अगर आप जैसे कांग्रेस ज्वाइन किए हो तो आपका सारा खर्चा पानी कांग्रेस सारा खर्चा करने का मतलब मेन खर्चा तो आपको हवाई जहाज का टिकट का लगेगा हां वो पार्टी देती है घर का किराया घर का किस बात का किराया होगा यहां रहते होगे यहां खरीद खुद खरीद खरीदा है या रेंट पे रहते हो कहां से खुद का खरीद कर तो इसीलिए तो पूछ रहे ना रेंट पे भी क्यों रहेंगे अच्छा फिर कैसे कहां रहते हो अच्छा मतलब आपको ये लगता है कि मतलब ये भी एकदम झुलटी से आदमी है पूछ अरे भाई हम जानना चाह रहे हैं महाराज आप हमसे कहे कि आप लोअर मिडिल लोअर आप यह पूछिए ना हम बताएं आपको सारा हम आपको आईटीआर आपको सबमिट करें आप सवाल मतलब आपको क्या लगता है हम जेएनयू का प्रेसिडेंट थे तो एक वो आदमी नहीं है जो हमको जो है दो दिन रख लेगा अरे दो दिन रहना अलग बात होता है महाराज और 10 साल रहना अलग जेएनयू 15 10 साल हम कहां देखिए हम 15 में प्रेसिडेंट रहे हां 18 में जेएनयू से बाहर निकले जुलाई में ठीक है तीन साल तो वही चले तीन साल घटा दिए कितना बचा सात साल छ साल चलो ठीक है छ साल उसके बाद हम चुनाव चुनाव लड़ने के लिए बेगूसराय चले गए तो अपने ही घर में रेंट दें तो यहां सामानवामान नहीं रखे थे कुछ भी काहे सामान सब बटोर गए थे अरे महाराज आप तो स्टूडेंट रहे हैं ना स्टूडेंट के पास क्या समय होता है एक सामान होता है चलो ठीक है तो कुकरों पहले ही छोड़ दिए थे ना काहे कि मेस था जेएनयू में जो कुकर और एक पांच पांच लीटर का जो गैस सिलेंडर आता था वो तो नेरू बिहार छोड़ करके हम आ गए थे ना क्योंकि यहां मेस था तो एक बैग कपड़ा का और दो तीन गो कार्टून किताब का और क्या होता है चले गए आप फिर जब लौटे फिर कहां लौटे अरे जैसे अभी चुनाव था अभी चुनाव लड़े 24 में आप हां उसके पहले कहां-कहां रह रहे थे दोस्त यार के यहां कैसे चल रहा था हां दोस्त यार के यहां रह रहे थे देखिए 24 में जब हम आए 24 से पहले उसका भी ब्याह नहीं हुआ होगा पक्का 19 नहीं नहीं अरे वो सब बढ़िया जगह चला गया ना सर यही तो हम कह रहे हैं एबीवीपी वाला था क्या सब नहीं नहीं उसमें से कुछ लोग एबीवीपी में नहीं थे लेकिन हमारे यहां ना एक और सेंटर है लैंग्वेज का तो हम लोग उस समय उन लोगों का मजाक उड़ाते थे सबसे बढ़िया वही लोग कर रहा है जो फिलॉसफी पढ़ रहे थे वो फिलॉसफी ही दे रहे हैं और जो चाइनीज पढ़ लिया वह बहुत मजे में है। जो जैपनीज पढ़ लिया बहुत मजे में है। जो जर्मन पढ़ लिया क्योंकि वहां क्या है ना कि एबीवीपी और बीजेपी नहीं होता है। वहां मान लीजिए कि अब प्रधानमंत्री को जाना है चाइना तो क्या एबीवीपी क्या एनएसयूआई जो चाइनीस जानता है उसको साथ लेके जाना पड़ेगा। तो सरकार में ठीक-ठाक वैकेंसी रहती है। मतलब ओवर ओवर जो है ना डिमांड रहता है। जितना सप्लाई नहीं उससे ज्यादा डिमांड है और देश में बहुत कम जगह लैंग्वेज पढ़ाया जाता है। तो वैसे जो दोस्त हैं वेल सेटल्ड हैं तो हम आएंगे दो दिन रुकना है हमको तो रोक लेगा अपने पास। क्या दिक्कत है? और कौन सा हमको स्पेशल कमरा चाहिए Netflix लगा करके दे दो। हम तो सोफा पर भी समय काट लेंगे। कोई बढ़िया सीरीज देख लेंगे। देखिए अकेला जान को कोई बहुत खर्चा नहीं है ना। और आते ही मैं वही आपको कह रहा था। मोदी जी सबको ₹1 लाख पहुंचाए ना पहुंचाए हमको तो पहुंचा रॉयल्टी का ₹15 लाख मिला ₹15 लाख बहुत होता है आप सिंगल आदमी को ₹15 लाख मिल जाए उसके लिए बहुत होता है खर्चा क्या होता है सबसे मेजर खर्चा होता है ट्रेवल का ट्रेवल जो है आप जैसे आप हम यहां हमको बुलाए ठीक है ना तो आपसे पहले भी ना हम कहीं गए थे हम उसी डीजल में आ गए आपके पास अब एक ऐसा तो है नहीं कि हम स्पेशल जो है आपका पडकास्ट करने के लिए पटना से जो है फ्लाइट का टिकट कटा के तो आए नहीं है हम हम संगठन के किसी काम से आए हैं संगठन आपका टिकट कटा देगा। वापस आप जहां भाषण देने के लिए जाएंगे वो आपका टिकट कटा देगा। मेजर खर्चा है हवाई जहाज का। खाना क्या खा लेंगे सर? कौन सा हाथी घोड़ा खा जाएंगे हम लोग? एक पेट ही तो खाना है। वो आजकल वजन कॉन्शियस आप भी हो गए हैं। अभी बता रहे थे आप तो वजन कम करना है इसलिए कम खाना है। Netflix के सब्सक्रिप्शन भर का पैसा है। नहीं मैं अपना Netflix का सब्सक्रिप्शन नहीं बनाया हूं। वो भी बहुत खर्चा लगता है। वो देखिए क्या है ना कि आजकल जैसे आप ले रहे होंगे। तीन चार लोग बांट लिए होंगे। हां। आप लिए होंगे एक साल के लिए। हां। लिए हैं ना? हां। तो पांच गो वाला लिए होंगे। हमारा यहां तो पूरा टीम बच्चा सबका अलग-अलग मोबाइल है। सब एक चल जा रहा है। तो हमारे पास भी है लोग मतलब राजनीति में हम ऐसे थोड़ी हम जीवन में अकेला हैं। राजनीति में अकेला नहीं है। राजनीति में बहुत लोग हैं। ठीक है। अब हंसी मजाक से आते हैं। थोड़े सीरियस क्वेश्चंस पे। थोड़ा सा माहौल गरमाते हैं। 9 फरवरी 2016 जेएनयू। कन्हैया कुमार का नाम कहीं भी लिखो। आज भी आता है टुकड़े-टुकड़े गैंग वाला कन्हैया कुमार वो जो देश को बांटने की बात कर रहा था। ठीक है आप का डायरेक्ट इन्वॉल्वमेंट नहीं आया। आप जेल गए सबूतों के अभाव में आप फ्री हो गए। लेकिन जो चार्जशीट थी उसमें आपके आसपास वालों को लेकर कहा गया कि देश विरोधी कार्यक्रम वो था। आपके ऊपर वीडियो फुटेज में नहीं मिला। लेकिन यह अभी भी पुलिस की चार्जशीट जो मैंने पढ़ी उसमें था कि वहां पर ऐसे नारे लगाए गए। कन्हैया प्रेसिडेंट थे। उनकी मौजूदगी वहां थी और वो टैग आप पर चिपक गया। आप अलग-अलग बंचों से बहुत कुछ कहते रहे, सफाई देते रहे। लेकिन अभी भी कन्हैया के नाम पर एक कॉमन परसेप्शन कम से कम आपके विरोधियों का यही है कि टुकड़े-टुकड़े वो व्यक्ति जो भारत को तोड़ने की बात कर रहा था। देखिए अव्वल तो अब मैं इस पे कोई सफाई नहीं देता हूं। हम क्योंकि ये मैं जान गया हूं कि ये आरोप लगाते कौन है। ये आरोप भाजपा के समर्थक और भाजपा के लोग लगाते हैं। तो वो जब कहते हैं तो मैं कहता हूं कि हां मैं हूं। क्योंकि उनसे ना सफाई देने देखिए जो सोया हो उसको जगा सकते हैं। जो सोने का नाटक करे हो उसको क्या जगा देंगे? वो तो हम कितना भी अच्छा काम कर लें वो बार-बार यही बात बोलते रहेंगे। इसमें मैं आपको तीन बात कहना चाहता हूं। अव्वल हां मैं प्रेसिडेंट था लेकिन गांव में अगर कुछ भी गड़बड़ी हुई हम उसके लिए आप सरपंच को नहीं पकड़ते हैं। ठीक बात। ठीक है। क्योंकि मैं कहीं से भी ऑथॉरिटी नहीं हूं। ना मैं पुलिस हूं ना मैं प्रक्टर था और ना मैं कार्यक्रम को परमिशन देने वाला डीन ऑफ स्टूडेंट था। मैं इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव था। हम कार्यक्रम को पुलिस ने चार्जशीट में कहा कि परमिशन नहीं थी। परमिशन नहीं थी। जो चार्जशीट पढ़ लेकिन वो परमिशन जो है परमिशन दी गई थी। परमिशन दी गई थी। फिर परमिशन किसके कहने पे वापस ली गई? एबीबीपी के कहने पे वापस ली गई। पता नहीं आप जी न्यूज़ में काम किए हैं कि नहीं किए हैं। जी न्यूज़ को भीतर कौन लेकर के आया था जो एबीवीपी का जो है जॉइंट सेक्रेटरी था। तो इनवॉल्वमेंट एक्चुअली एबीवीपी की थी।कि मैं प्रेसिडेंट था और मैं सरकार के खिलाफ लड़ रहा था। मैं नहीं लड़ रहा था। हमारी यूनिवर्सिटी के लोग लड़ रहे थे और मैं उनका प्रेसिडेंट था। तो हम लोग आंख की किरकिरी थे सरकार के। चाहे वो एफटीआईआर का प्रोटेस्ट हो, चाहे वो एचसीयू का रोहित बेमुला का प्रोटेस्ट हो, चाहे यूजीसी का प्रोटेस्ट हो, हर प्रोटेस्ट में आप याद कीजिए स्मृति ईरानी जी शिक्षा मंत्री थी। रोड पे आकर के जो है नेगोशिएशन की थी। तो सरकार की आंख में किरकिरी थी और सरकार ने वही कार्यक्रम बनाया कि किसी महिला किसी विधवा का जमीन कब्जा करना हो तो उस महिला को के कररेक्टर को अटैक करो। उसको डायन बोलो। उसको बोलो कि जो है ये खराब चरित्र की है तो फिर उसकी जमीन तुम ले लोगे ना तो कोई गांव वाला उसको सपोर्ट नहीं करेगा। जेएनयू के साथ यही कार्यक्रम किया गया। हम कहीं से भी जेएनयू के किसी भी स्टूडेंट का कोई इनवॉल्वमेंट नहीं था। हम ऑथॉरिटी ने परमिशन दिया। एबीवीपी के कहने पे ऑथॉरिटी ने परमिशन कैंसिल किया। एबीवीपी मीडिया को लेकर के आई। वहां जो है कुछ फुटेज बनाया गया। ठीक है ना? आज तक सरकार नहीं बताई कि वो लोग कौन थे। ठीक है? आज तक नहीं लगे। जो नारे लगे कौन लगाए कौन वो लोग थे मैं आज भी कहता हूं कि जेएनयू का कोई स्टूडेंट उसमें इन्वॉल्व नहीं था वो इसलिए कि मुझे यूनिवर्सिटी में रहे हुए कई साल हो गए और कई साल से वो यूनिवर्सिटी है। बहुत सारे लोग पढ़े हैं। एबीवीपी के भी लोग पढ़े हैं। दो-दो मंत्री हैं उस यूनिवर्सिटी से पढ़े हुए। उस यूनिवर्सिटी में इस तरह के नारे कभी नहीं लगते। ना उसके पहले कभी लड़ लगे ना उसके बाद कभी लगे। तो ये ना पूरा एक ऑर्केस्टेटेड जो है कास्परेसी लगती है। लेकिन इसकी ना ये सच में बताता रहा कई साल बताता रहा। फिर भी मैं देखा अजीब बात है। सरकार इनकी है। तीन साल के तीन बार के प्रधानमंत्री ये हैं। गृह मंत्री जैसा का बाबूजी है। डैडी पप्पा और सवाल ही हमसे पूछ रहा है। तो मैंने कहा हां मैं हूं। ठीक है। वेल सर। तो मुझे जेल में डालो। मेरे खिलाफ सबूत दो। इसलिए मैं कह रहा सेकंड क्वेश्चन यही एक्चुअली था कि क्या वहां ये नारे लगे थे? आपके ऊपर तो आप तो क्लीन चिट पा गए हो। मतलब अब वो उसमें सबूत नहीं मिला आपके खिलाफ। यह मामला खत्म हो गया अभी। सबूत कैसे मिलेगा? यह मामला खत्म हो गया। नहीं मामला उसमें यह है कि 19 में चार्जशीट तो आई थी शायद। चार्जशीट आई थी। लेकिन इन जनरल जो है वो जो सेडिशन कानून है अभी नया न्याय संहिता लेकर के सरकार आई है सुप्रीम कोर्ट ने ही उसको स्टे कर रखा है। डेट्स होते हैं लेकिन उसमें कोई आर्गुममेंट आगे नहीं बढ़ा है। ना उसमें जो है चार्ज प्रेस हुआ है ना चार्ज फ्रेम हुआ है ना चार्ज पे बहस हुई है। कुछ नहीं है। और एक बात मैं आपको बता दूं कि जब कोई मामला आ जाता है ना हम और जो कोर्ट में चला जाता है ना तो फिर जो है वह मामला ऐसे खत्म नहीं होता है। हम और जो लोग सरकार चला रहे हैं जो पुलिस महकमे को समझते हैं जो मीडिया को समझते हैं जो सिस्टम को समझते हैं वो बहुत बखूबी इस बात को समझते हैं कि कोई यूनिवर्सिटी हार्ट में एकदम देश की राजधानी में हो जहां मतलब कई सारे देश के स्टूडेंट पढ़ रहे हो वो सरकार के मॉनिटरिंग में होता है। वहां पे बीट स्टाफ होता है। वहां पे दिल्ली पुलिस होती है। वहां पे उसका अपना इंटरनल सिक्योरिटी होता है। उस ऑब्वियसली हमारी देश की खुफिया एजेंसी भी नहीं सो रही है। कोई अगर इतना बड़ा कारवाई हो रहा होता देश तोड़ने की तो सरकार सो नहीं रही होती। ये पूरा ये जो पूरा तमाशा खड़ा किया गया वो इसलिए खड़ा किया गया कि कल को ना आप एक सही बात कहें तो ईजीली आपको हमारे साथ टैग करके आपको गाली दिया जा सकता। इसको कहते हैं ना स्टीकर चिपकाना और असली मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाना। तो पहले ना मैं इसकी सफाई देता था। फिर मुझे लगा ये तो आरएसएस बीजेपी की कास्परेसी है। मैंने कहा हां हूं और खाली टुकड़े-टुकड़े गैंग मत बोलो। सरगना बोला करो इज्जत दिया करो। हम पहले हैं। हम पहले हैं जो तुमसे भिड़े हैं। एकदम सर लेकर के ये वाला टीज़ पे कटवा दूंगा। मैं लोग कंफ्यूज हो के पूरा पॉडकास्ट देखेंगे। हां। मतलब सरगना हूं तो थोड़ा इज्जत दिया करो। क्योंकि तुम्हारे जो बॉस है ना वो हमारा नाम जानते हैं। तो कम से कम इस बात का मान रखो। ठीक है। इज्जत दिया करो। सरगना बोला करो। अ इसमें एक क्वेश्चन बार-बार आता है। ये मैंने सुशील कुमार शिंद साहब का ही पडकास्ट किया था। मुंबई में गया था। उस टाइम वो गृह मंत्री हुआ करते थे और उनसे भी ये सवाल मैंने पूछा था। ये सवाल मैं आपसे पूछ रहा हूं। और ये क्योंकि जेएनयू के कॉन्टेक्स्ट में बार-बार आता है। आपकी नजर में अफजल गुरु आतंकवादी थे। मैं तो मानता था। क्योंकि वो कई बार यह भी नारे आते थे। पता नहीं सच फंसाना क्या था। उस टाइम के जो वीडियोस आते थे। देखिए, जेएनयू में ना एक तो बहुत सारी पार्टी है। अब मैं आपको बता दूं कि अभी तो देश में राइट विंग में कोई डिवीज़न नहीं हुआ है ना। जेएनयू में वहां भी डिवीज़न था। एबीवीपी तो एक थी ही अलग-अलग समय पे अलग-अलग राइट विंग पार्टी भी बनती थी। कभी जो है पेट्रियोटिक जेवीएफ बन रहा है। कभी जो है यूथ फॉर इक्वलिटी बन रहा है। कभी जो है एक हवस करके ऑर्गेनाइजेशन बना था। बस उसका ये था हिंदू हिंदू अधिकार कुछ था मैं भूल गया हूं लेकिन कौन है शॉर्ट फॉर कौन है ये लोग इनसे मिलवाना मुझे पूछना है क्या सोच के नहीं मैं जब था तो उस नाम से भी जो है एक पार्टी थी मतलब हिंदू हिंदू अधिकार कुछ ऐसे करके था मतलब मैं भूल गया हूं एग्जैक्ट नाम हवस करके भी एक पार्टी थी वो राइट विंग पार्टी थी तो राइट विंग पार्टियां इंडिया फर्स्ट करके एक ऑर्गेनाइजेशन बना था तो राइट विंग पार्टियां भी वहां बनती रहती हैं उसी तरह तरह से कई सारी लिफ्ट पार्टियां भी तो आप अफजल गुरु को आतंकवादी मानते हो आप? मैं तो हमेशा मानता था। लेकिन शिंद साहब नहीं मान रहे। शिंद साहब से मैंने पूछा तो उन्होंने कहा सुप्रीम कोर्ट ने सजा दी है तो होगा ही। तो फिर मैंने पूछा मैंने कहा गृह मंत्री तो आप ही थे। क्या तो कहा अब मेरे मुंह से क्यों निकलवा रहे हो? मुझे मत फंसाओ। तो मैंने कहा ठीक है। तीन बार मैंने पूछा तो उन्होंने नहीं कहा। देखिए वो जो नंस की बात कर रहे हैं ना वो नवांस अब इस देश में कौन सुन रहा है? है कोई सुनने वाला वो नंस। नहीं जैसे मेरे यहां एक जेलर साहब भी आए थे तो उनसे भी मैंने पूछा उसी टाइम फांसी हुई थी तो उन्होंने कहा मुझे लगता है वो उन्होंने थोड़ा दाएं बाएं जवाब दिया वो जेलर साहब थे तो नॉन पॉलिटिकल आदमी थे क्योंकि जेएनयू से अक्स आता था कि अफजल हम शर्मिंदा है ऐसे नारे बहुत सुनाई पड़े हमें नहीं नहीं जेएनयनूय में ऐसे नारे नहीं लगते थे ये सारे फुटेज फालतू चलते थे बाहर कभी नहीं लगते हैं वही मैं कह रहा हूं एक बात बताइए आपको लगता है जेएनयू की इमेज बिल्कुल खराब कर दी गई मार्केट में मतलब जो वैसे जो जेएनयू को नहीं जानते कोशिश की गई कोशिश की गई क्योंकि एक ना सिंबल का जरूरत था। अब यह नहीं समझाएंगे ना कि बमपंथी है और मुस्लिम परस्त है और जिहादी यह सब आउट ऑफ फैशन आउट डेटेड सब था। कोई चमकता हुआ नया रील पे चलने वाला टकाटक टुकड़े-टुकड़े गैंग हां मतलब पहले आपको पता है अगर आप नोट कीजिए तो मुझे क्या पहले मुझे आजादी गैंग कहा जाता था। हां फिर परिवर्तन आया। सुधीर जी ने किया था। टुकड़े-टुकड़े गैंग। अभी आए थे कुछ दिन इसी पुर से बैठे थे पॉडकास्ट। तो पहले आजादी गैंग कहा गया। फिर टुकड़े-टुकड़े बोला कि आजादी गैंग कहोगे इसमें तो पॉजिटिव को नोटेशन है। ठीक है? इसमें नेगेटिविटी लेकर के आओ। मैंने कहा कि स्वीकार है करेंगे देश का नहीं तुम्हारा तुम्हारी पार्टी का तुम्हारे विचारों का। हमने स्वीकार कर लिया। तो ये ना कोशिश की गई कि जेएनयू को एक सिंबल बनाया जाए और देश में कोई भी कुछ करे। यह तो जेएनयू वाला है। यह तो टुकड़े-टुकड़े गैंग वाला है। स्टीकर इमोजी नहीं होता है। कहते हैं ना टेक्स्टोवर्ट हैं ये साहब। इंट्रोवर्ट एक्सोवर्ट सुना था सोशल मीडिया के जमाने में टेक्स्टोवर्ट हैं। तो आजकल ना इमोजी लैंग्वेज होता है। आपको जैसे कुछ नहीं लिखना हो तो आप हंसने वाला इमोजी भेज दीजिएगा। हीलिंग वाला इमोजी भेज दीजिएगा। इमोजी चलता है। तो एक ना इमोजी की जरूरत थी सरकार को। टुकड़े-टुकड़े गैंग टकाटक नया फैशनेबल नया जनरेशन को एकदम जंजी को पसंद आए उसको अपनी तरफ लेकर के आए देखो हम देशभक्त हैं देशद्रोही कैसे होते हैं भाई ऐसे होते हैं दिखाने के लिए हां ऐसे होते हैं एक फ्रेम एक दिमाग में जो है एक फ्रेम क्योंकि बाइनरी जरूरी है ना कभी ये सब बोदर किया घर परिवार वालों को आपको शुरू में किया ऑब्वियसली करेगा देखिए मेरी मेरे पास जो है कोई विरासत नहीं है राजनीतिक परिवार की हम लोग तो बेल्ड की नौकरी करने वाले लोग ही हैं ना शिक्षक शिक्षक फौज की नौकरी और नर्स हम यही तीन तरह का नौकरी हमारे घर में था। बाकी मजदूरी खेती यही हम उसी पृष्ठभूमि से हैं। तो सुनकर के लगा कि भाई नाना का परिवार जो है स्वतंत्रता सेनानी था। दादा जी का परिवार में जो है मतलब हम लोगों को याद है कि अपने परिवार में वो जो पेंशन मिलता था ना स्वतंत्रता आंदोलनकारियों के परिवार ऐसे परिवारों को देखे हैं और जानते हैं उसका लाभ भी लेते थे। उस दादा जी के साथ अगर आप चले जाइए तो टिकट नहीं लगता था। आप उनके साथ चले जाइए। आपको टिकट नहीं लगता। बस वो ऐसे कार्ड निकाल के दिखाते थे। ट्रेन में जो है यात्रा होती थी। तो लगा कि कहां से आए हैं और मतलब क्या सुनने को मिल रहा है। शुरू में बुरा लगा। फिर लगा कि अजीब मतलब करते हो। क्यों चाहेगा कसया जो है कि यह जिंदा रहे। वो तो अपना मुनाफा देखेगा ना। अपना फायदा देखेगा ना। उसको तो एक विलेन की जरूरत है ना। अब वो हमारा विरोधी है तो मेरे बारे में अच्छी बातें कैसे करेगा। मुझे तो आश्चर्य लगा जैसे आपने वो ट्रक वाला सवाल पूछा ना कि ये अचानक से जो ये विलाप भाजपा क्यों कर रही है? कह रहे हैं जेएनयू से हैं पढ़े लिखे हैं बड़े अच्छे हैं डॉक्टरेट हैं। उनको ट्रक पे नहीं चढ़ने दिया गया। बड़ी दुख की बात है। ये क्यों विलाप कर रहा है? हम कहा अच्छा अच्छा दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। ये कोई ना कोई डाइकोटोमी यहां काम कर रही है। वैसे था जैसे स्मृति ईरानी जी के टेलीविजन में वापसी पर आपकी पार्टी मजा ले रही वो वापस आ गई है। हां क्योंकि सास भी कभी बहू थी। नया रिलीज हो रहा है। वापस सीरियल में आई है वो। टीवी टीवी पे चलेगा। हां। ए ओटीटी पे बोलिए आने के लिए। टीवी कौन देखता है अब? क्या पता उनका फैन बेस वो लोग देख ले। फैन बेस बूढ़ा नहीं गया होगा। राहुल गांधी जी को हराई थी। फैन बेस तो होगा ही। अच्छा तो इस हिसाब से तो फिर वो भी हार गई। देखिए हारजीत होते रहता है। ये कोई बात नहीं। राजनीति में हारजीत नहीं होगा तो क्या होगा? आपको बुरा लगा था जब आप हारे थे पहली बार नहीं मुझे तो खुशी हुई पहली बार जमानत बची क्योंकि मेरे लिए सबसे बड़ा चैलेंज यही था 2 लाख प्लस वोट पाए थे आपने 20000 वोट पाए थे हमारे लिए तो चैलेंज यही था ये साबित करना करना कि भाई हम दावेदार हैं इस सीट के आपको याद है आपके प्रचार में कौन-कौन आया था हां हां क्यों नहीं याद रहेगा कौन आया था कुछ इतने जो है चलो नाम बताओ हम देखिए हम नाम लिखे ना हम देखते हैं कौन कितने-कितने आपको याद है हमको पूरा याद है बताओ कौन-कौन आए थे कहां से बताएं जो इतने बड़े नाम जो कम से कम नोन नाम फिल्मी दुनिया से बताएं मीडिया से बताएं नेता फिल्मी दुनिया आपके कॉलेज तीनों सामाजिक कार्यकर्ता तीनों हमारे कॉलेज से पॉपुलर नाम में रामा नागा और सहला आई थी हमारे साथ यूनियन में थी उसी वक्त एक और स्टूडेंट एक्टिविस्ट पॉपुलर हुई थी अपने एक Facebook सोशल मीडिया पोस्ट के चलते गुरुहर कौर गुर कौर ना नजीब की अम्मी आई थी क्योंकि हम लोग वो सवाल बार-बार उठा रहे थे और बाकी लगभग भग हर यूनिवर्सिटी से अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट आए थे। आपको इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जो है प्रेसिडेंट आए थे। लगभग हर यूनिवर्सिटी के फिल्मी दुनिया से फिल्मी दुनिया से नॉमिनेशन में स्वरा आई थी। हम जावेद अख्तर साहब आए थे। और ये आए थे हमारे वो जो गनी भाई प्रकाश राज जी प्रकाश राज जी आए थे। भाई जो है कुणाल कुणाल कारा आए थे। हम ठीक है। और वो भी आए थे। वो आजकल पंचायत में नहीं है। अरे वो जिनका बेटा शहीद हो जाता है। हां फैजल भैया फैजल भैया फैजल भैया फैजल मलिक हां वो भी आए हां ठीक है ना आगे ऐसा ना हो कि गड़बड़ तो नहीं हो गया फैसल मलिका वो भी आए थे नहीं मुझे याद है वो आए थे प्रहलादचा हां प्रहलाद चाह आए थे हां प्रह्लाद चा वो भी आए थे शबाना जी शबाना जी प्रचार में नहीं आई थी अच्छा प्रचार में कहीं पढ़ा था हमने नहीं प्रचार में नहीं आई थी डॉक्टर कफील डॉक्टर कफील आए थे हम हां तो इतना आदमी आए फिर काया पार गए अच्छा एक एक और नाम बोला जाता है कौन सा कि उमर आपका प्रचार करने के लिए आए थे। उमर हमारा प्रचार करने के लिए नहीं आए थे। ये आज मैं पहली बार आपके सामने बोल रहा हूं। ये कौन सी उम्र की बात हो रही है? दो जो जेल में है। अच्छा वो हमारे प्रचार के लिए नहीं आए थे। ये अक्सर बोला जाता है। आपकि इतना डिटेल में और इतनी पुरानी बात आपने जिक्र कर ही दिया। हमको लगा उमर अब्दुल्ला बात कर रहे हो। उमर खालिद की बात। नहीं उमर अब्दुल्ला नहीं है। उमर खालिद। हां। सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा सवाल जो मेरे पास कन्हैया कुमार को लेकर आया था वो यही आया था। कन्हैया कुमार ने उमर खालिद को धोखा क्यों दिया? क्यों यह कहा कि वो मेरा दोस्त नहीं है। जबकि आपकी हजारों फोटो आई हैं जहां आप लोग साथ उठ बैठ रहे हो। सब कुछ है। और आपने बिहार में एक स्टेटमेंट दिया था मुझे सिंगर ने पूछा था। मुझे आज जो है और एक कई अखबारों में प्रिंट में और कई जगहों पर ये खबर छपी है। प्रिंट में ही छपी होगी। विशेष प्रेम करते हैं वो। क्या नाम है उनके संपादक के? मैं पढ़ता नहीं। नहीं नहीं वो बहुत सीनियर आदमी जो हैं स्टालव है हां हां कुछ शक्ल मुझे याद आ रही है वो बहुत प्रेम करते हैं अच्छा उम्र से नहीं नहीं हमसे हमसे हमसे जो प्रेम करते हैं उन्हीं का नाम ले अब हम तो परम्यूटेशन कॉम्बिनेशन लगा रहे थे ना कि उधर से उधर है इधर से उधर है हमसे हमसे प्रेम करते हैं अच्छा प्रिंट अच्छा इसीलिए इसीलिए प्रिंट छपते रहता है प्रिंट बहुत कुछ छापती रहती है बहुत प्रेम करते हमको लगा वो तो आपकी विचारधारा वाला मामला है उधर का तो उल्टा पड़ गया हमको ये तो नया-नया बताया आप नहीं नहीं प्रिंट अक्सर हमारे लिए छापते रहती है प्रेम प्रिंट को हमसे बहुत प्रेम है और आज से नहीं मतलब जब हम कांग्रेस में नहीं थे तब भी ये तो मुझे भी नहीं पता है क्यों होगा कोई वजह वो मैं नहीं जानता इंटरेस्टिंग तो वो जो है टीम टीम में भी लड़ाई होती हम सवाल पे आते हैं आज मुझे एक पत्रकार ने पूछा तेजस्वी आपके दोस्त हैं तो मैंने कहा राजनीतिक सहयोगी पता ये बाद मैं क्यों बोलने लगा क्यों मैं पहले नहीं बोलता था मैं पहले कभी नहीं बोलता था क्योंकि ना हम लोग एक ही शब्द जानते बट तेजस्वी कैसे तेजस्वी और उमर खालिद में फर्क है। उमर आपके साथ काम किए प्रोटेस्ट रहा। साथ उठे बैठे हंसते खेलतेखाने छेड़ने टिपने बैठ के वो कॉम्रेडरी है। हां वो कॉम्रेडरी है। आप देखेंगे तो हम लोग मिले ही हैं जेएनयू में। हम हम लोग जेएनयू से पहले एक दूसरे को नहीं जानते। कॉलेज हमारी मुलाकात जेएनयू में हुई। ठीक है। चलो एक सेकंड। मैं उमर खालिद को दोस्त बुलाऊं या सहयोगी बोलूं? नहीं बिल्कुल दोस्त बुलाइए। ओके। मैंने देखिए इसमें भी क्या हुआ ना आजकल जो यह 3 सेकंड में रील काटा जाता है हम उसके पीछे भी एक सच्चाई है और यह कहां से चलना शुरू हुआ वो मुझे याद है कि मैं शायद सिवान में किसी कार्यक्रम के लिए गया था। हम्म तो एक नौजवान आया बोला कि जो है कुछ पूछने लगा तो मैंने पूछा कि जानते हो कि कौन है? हम तो वो क्या किया ना कि कौन है? वो हिस्सा उठाया और खूब जलाया। मतलब जो मैंने खबर पढ़ी पढ़ देता हूं मैं। 2021 में बिहार में सिवान आप गए थे शायद वहां किसी पत्रकार ने पूछा उमर खालिद और मीरान हैदर के बारे में और आपने कहा कौन बताया कि उमर खालिद मेरा दोस्त है कौन सा वीडियो नहीं उसको ये आर्टिकल भी छपा है दोद तीन हां नहीं मैं अपना कम्युनिकेशन उसके बाद से थोड़ा ठीक करना शुरू किया कि अपनी बात पहले बोल दो कटाक्ष बाद में करो नहीं तो क्या होता है कि लोग कटाक्ष पहले ले लेते हैं और हमारी बात को डिलीट जितना जरूरत है उतना चला दिया हां जितना जरूरत है तो मैंने उसको उसको पूछा कि नहीं मैं बोलता हूं इस बात को आवाज उठाता हूं। ये मैं बोला फिर बोला तुम जानते हो कि कौन है उम्र? तो उन्हें ये बात पकड़ा और जानते हो मुझे क्या बोला? हां जानते हैं कश्मीर से है। हम बोले बताओ तुमको इतना भी नहीं पता है कि वो कहां से है और तुम जो है ना मेरी इंटीग्रिटी क्वेश्चन कर रहे हो। एक्चुअली ये सवाल वही लोग पूछते हैं ना जो नहीं जानते हैं। जो जानते हैं उनको सब मालूम है। जो जानते हैं उनको मालूम है कि उमर, सहला और हम अलग-अलग पार्टी में थे। वो जानते हैं। जो जानते हैं उनको मालूम है कि जेएनडीयू में अलग-अलग लेफ्ट का संगठन है और उसमें विचारधात्मक अंतर है। यह सारा इकट्ठा हो जाते हैं जब एबीवीपी से लड़ना होता है। और टीवी पे आप तीनों एक टाइम में फेवरेट थे। बाद में नहीं मैं टीवी पे बहुत बाद में फेवरेट हुआ। आप आते होंगे दिखते बहुत थे आप। जब जेल हो गई तब मतलब उसके लिए मुझे जेल जाना पड़ा। प्रेसिडेंट होते होने के बाद मैं टीवी पे नहीं दिखता था। तो मतलब जान लीजिए। या तो सर फुड़वाओ तो कैमरे पे बातें हैं बाद में। तो करना ही पड़ेगा। ठीक है ना? ये गजब बात है। अगर आपके पास विरासत नहीं है। कौन आपको टीवी पे बुला रहा है? मैं यही आज आज एक पत्रकार को बोला कि देखिए आप तो कुछ लोगों का नाम ले भी रहे हैं। बाकी और कितने लोग जोल में हैं उनका नाम भी याद है। रामा का नाम मैं ले रहा हूं। हम ठीक है। रामा के बारे में कोई नहीं पूछता है कि वो कहां है। हम लोग चार लोग चुनाव जीते थे। मैं प्रेसिडेंट था। वाइस प्रेसिडेंट शैला थी। जनरल सेक्रेटरी रामा नागा थे और जॉइंट सेक्रेटरी सौरभ शर्मा था। जो मैं जिस हॉस्टल में आज रहता हूं उसी हॉस्टल का वार्डन है। उसकी शादी हो गई। उसके बच्चे भी हो गए होंगे। शुभकामनाएं उसको ठीक है ना? उसको नौकरी मिल गई। वो प्रोफेसर हो गया। समझ रहे हैं? पीएचडी जमा करने के 40वें दिन प्रोफेसर हो गया वो। असिस्टेंट प्रोफेसर। हम लोग अभी भी टीवी में जा रहे हैं। तो ये जो पूरा एक नैरेटिव बनाया गया है ना वो इसीलिए बनाया गया कि यह दिखाने की कोशिश की गई किकिकि मेरा नाम कन्हैया है इसलिए हम इस हमको इसका लाभ मिल रहा है। मैं स्वीकार करता हूं मुझे इसका लाभ मिला है। लेकिन फैक्ट दुरुस्त करके बोलना चाहिए। हम हम दोनों एक केस में जेल में गए थे हम और मैं पहले जेल में गया था। हम ठीक है ना? उसके बाद मुझे बेल मिली और बाकी लोगों को भी बेल मिल गया। उमर उस केस में जेल में बंद नहीं है। पॉइंट वन पॉइंट टू किसी भी राजनीतिक बंदी को जो उसके राजनीतिक विचार के चलते या चॉइस के चलते जेल में बंद रखा गया है। हम लोग पुरजोर तरीके से उसका विरोध करते हैं। चाहे वो हमारा दोस्त हो या दोस्त नहीं हो। हम दो और तीसरा कि हमने यह कभी नहीं स्वीकार किया कि हम साथ में भाजपा के खिलाफ संघर्ष नहीं किए। हम्म। लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी राजनीतिक यात्रा और उनकी राजनीतिक यात्रा पूरी तरह से अलग और अलदा है। उस टाइम दोस्त थे मतलब अच्छे वेस्टेंट टाइप थे या दोस्त क्लोज फ्रेंड्स? ढाबे पे ही जीवन बीतता है वहां तो। वहां तो जो है मांग करके चाय पीना और मांग करके सिगरेट पीना। यही सर यही जो है अब इसमें एक एक लॉजिक इसमें जो लोग निकालते हैं या जो अब आपको लेकर जिन लोगों ने विश्लेषण ऐसा किया वो यह था कि कन्हैया को ये समझ में आ गया कि एक तो हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण हो रहा है। प्लस दोस्त का पुण्य पुण्य नहीं चढ़ता पाप जरूर चढ़ता है। और जिस घटनाओं में वो लोग गए हैं अगर नाम जुड़ेगा तो पॉलिटिकल छवि पे नुकसान हो जाएगा। अच्छा इससे बड़ा पॉलिटिकल छवि को फायदा हो रहा है कि विदेशद्रोही भाजपा मुझे कह रही है। आज भी जो है आप पूछिए टुकड़े-टुकड़े गैंग का सवाल। आज 10 साल हो गया है। मैं देश का गृह मंत्री नहीं हूं। ना हमारी पार्टी की सरकार है। तभी मुझे मैं 10 साल से इस सवाल का जवाब दे रहा हूं। एक और सवाल इसका इससे भी बड़ा कोई आरोप होता है? बिल्कुल सही बात है। बिल्कुल सही बात। और मतलब आप मुझे बताइए देश से गद्दारी एक मिनट के लिए मान लीजिए जहां से आपने सवाल पूछा। देश से गद्दारी दोस्त से गद्दारी से जो है छोटी है। ठीक बात है। तो मुझे देश का जो मुझे गद्दार कह रहे हैं वही मुझे दोस्त का भी गद्दार कह रहे हैं। ठीक है। और ये पॉलिटिकल कैलकुलेशन मैं नहीं करता हूं। अगर यह पॉलिटिकल कैलकुलेशन करना होता ना, कैलकुलेट करने वाले लोग भाजपा में हैं। संघर्ष करने वाले लोग भाजपा से बाहर हैं। ठीक है। जैसे शजील और उमर को लेकर ही कहा था कि जब आप झेल गए थे, तो इन लोगों ने आपके लिए आवाज उठाई थी। अब उनके जो समर्थक हैं और मैं पुराने ही पोस्ट देख रहा था। यही प्रिंट और बाकी सब जहां-जहां छपे थे। बहुत सारे ट्वीट्स छपे हुए हैं। वहां पर यह था कि कन्हैया ने 2018-19 के बाद से ये लोग जेल गए। आज 5 साल हो गया जेल होते और इनके भी समर्थक कई बार रहकर उठाते हैं। वह सही गलत वो एक अलग विषय है। कन्हैया ने कभी भी इन लोग को लेकर खुलकर सपोर्ट नहीं किया कि इनके साथ गलत हो रहा है या इनको सपोर्ट करना चाहिए। इनके लिए प्रोटेस्ट आपने नहीं किया। जबकि उमर और शजील को लेकर कहते हैं कि वो आप परेशानी में थे। उन्होंने आपके लिए प्रोटेस्ट किया था। अजीब बात है जी। ये तो बड़ा गजब बात है। ये बात कहां से लिख दी गई है? इसका आपस में जो है मतलब दूर-दूर तक कोई संबंध ही नहीं है। मैं सब आप ही को लेके लाया हूं। सब सब छपी हुई बातें हैं। ये ये तो बड़ा गजब यह तो मैंने भी नहीं पढ़ा है। यह कौन से अखबार में छपा है? मैं आपको सब भेज दूंगा। यह तो मतलब सरासर झूठ है। आपने सपोर्ट किया कभी उमर और शशील को मैं यहां खड़ा हो के सपोर्ट कर रहा हूं। बोल रहा हूं किसी भी राजनीतिक ये जो आपको हिंदू प्रिविलेज वाला थॉट भी था वो इन्हीं सब से निकला हुआ थॉट है। नहीं वो एक वो मुस्लिम थे इसलिए फंसे। नहीं नहीं नहीं ये बिल्कुल एक अलग मसला है। देखिए मैं कहता हूं कि इस देश में जन्म के आधार पे यदि शोषण होता है तो जन्म के आधार पे किसी को फायदा भी मिलता है। ठीक है? मेरे साथ मेरी जाति, मेरा धर्म और मेरे लिंग को लेकर के शोषण नहीं हुआ है। मेरे जात को लेकर के नहीं हुआ। मेरे औकात को लेकर के हुआ है। ये अलग मसला है। तो मुझे प्रिविलेज है। मुझे नहीं हूं। मैं स्ट्रेट सीधे पिन पॉइंट करता हूं। शरजील और उमर खालिद को कन्हैया कुमार सपोर्ट करते हैं या नहीं सपोर्ट करते? देखिए यह ना ब्लैंकेट क्वेश्चन है। चलो आप इस पे डिटेल दे दो। किस सवाल पे सपोर्ट करते हैं? अगर को वह अगर कोई ऐसी बात कहें जो इस देश के हित में हो, संविधान के पक्ष में हो। उन्होंने भारत को असम से काट शजील ने काटने की बात कही थी। इसकी वजह से पांच साल से वो जेल में हैं। मेरा मानना है कि मेरा मानना है कि उन्होंने ये बात नहीं कही होगी। कोई भी समझदार वो वीडियो है। कोई भी समझ वीडियो तो भाई वीडियो तो मेरा भी वीडियो लगा दिया। आप बाहर है ना महाराज। आपके अगर आपके वीडियो में जो होता तो आप भी अंदर बैठे होते आप बाहर बैठे हो ना जो अंदर में सब लोग बैठे हुए वो नहीं बट वो वाला वीडियो तो सामने है सब दोष में ही बैठे शीलर वाला वीडियो सामने है सब ने देखा है और इसी वजह से वो मामला बना बट क्योंकि वो 5 साल से वो देखिए सर ये बिल्कुल दो बात है मैं किसी को डिफेंड नहीं कर रहा हूं लेकिन मैं बस आपके सामने आपके माध्यम से देश के लोगों के सामने सच्चाई लाना चाहता हूं कोई भी व्यक्ति संवैधानिक दायरे में संवैधानिक अधिकारों के लिए लोगों की भलाई के लिए संघर्ष करेगा वो उसको को हम पसंद करें ना पसंद करें यह मैटर नहीं करता है। हम उसके साथ खड़े हैं। एक सही बात है। दो आज की तारीख में बहुत सारे निर्दोष लोग जेल में बंद रखे गए हैं। सिर्फ और सिर्फ अपनी विचारधारा को मानने या उस विचारधारा को फॉलो करने के चलते। तीन यह जो दिल्ली दंगे का मामला है जिसमें लोग जेल में बंद हैं। हम उसमें एक बहुत अजीबोगरीब बात हुई है। सुप्रीम कोर्ट कहती है कि बेल रूल है। हम जेल एक्सेप्शन है। आप देखिए कि इसमें जो है जेल को रूल बना दिया गया और बेल को एक्सेप्शन कर दिया गया है। अगर एक एविडेंस है तो फिर चार्जशीट पे जो है चार्ज फ्रेम होना चाहिए। चार्ज पे बहस होना चाहिए। पुलिस जो है सबूत पेश करे। उस पे कारवाई होनी चाहिए। 90 दिन में चार्जशीट पेश करना है। बिना चार सीट का सालों जो है लोगों को आप जेल में बंद करके रखे रखे हुए हैं। यह तो सुप्रीम कोर्ट के प्रेसिडेंस के खिलाफ है। फिर प्रोटेस्ट क्यों नहीं किया? कभी आप लोगों ने आपके पुराने जाती थे। आपको करना चाहिए था। आप तो आप नेता भी प्रोटेस्ट लोगों ने किया है। ऐसा मैं आपकी बात कर रहा हूं। स्पेसिफिक आप क्योंकि आप वो आपसे जुड़े लोग थे। इसलिए शायद आपसे एक्सपेक्टेशन है लोगों। नहीं नहीं देखिए वो हमारे साथ हमारी यूनिवर्सिटी में थे। और हमारी यूनिवर्सिटी में हमारा जुड़ने का कारण यह है कि हम लोग एक उस वक्त का जो राजनीतिक दौर था। ठीक है ना? उस वक्त हम लोग जो है भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे और मैं उस यूनिवर्सिटी का एक इलेक्टेड रिप्रेजेंटेटिव था। तो स्टूडेंट के पक्ष में देखिए इससे तो जरूरी बात है। एक बात बताइए ये दोनों तो जेल में हैं। हम जिंदा हैं। हम नजीब कहां है? नजीब हां ये भी सवाल बहुत कहां है नजीब? तो तो अब मैं जेएनयू जाके प्रोटेस्ट नहीं करूंगा। है ना? मैं क्या नजीब का क्या हुआ था? मतलब मैं अभी भी आज भी सुबह पढ़ रहा था मैं। मैं हैरान था कि रात को लड़ाई झगड़ा होता है। अगले दिन से गायब है। पहले रिक्शा वाला कह रहा है मैं छोड़ा फिर वो पलट गया। देखिए किसी इसमें किसी की बात मत सुनिए। मैं आपको कहूंगा कि नजीब की मां की बात सुनिए। वो तो उम्मीद कर रही हैं कि बेटा अभी भी सही सलामत है। जिंदा है। महिला जिस तरीके से अपनी बात रख रही हैं। उसमें जो करुणा है उसको मानवता के उस पहलू को देखने समझने की जरूरत है। पुलिस जो है ठीक से कारवाई नहीं करती है। फिर सीबीआई कहती है कि इसको क्लोज कर दिया जाए। ये तो बहुत अजीब बात है ना। क्या हुआ उस इंसान का? तो मैं वह प्रोटेस्ट तब कर रहा था। मुझे अब क्योंकि आपने छेड़ दिया इसलिए पूछ लेता हूं मैं। नजीब की कहानी क्या है? क्या हुआ था? क्योंकि आप तो प्रेसिडेंट थे। आपको बेहतर नहीं मैं प्रेसिडेंट नहीं था। अच्छा कॉलेज में था। करेक्ट मैं तब कॉलेज में था लेकिन मैं बट आपको इंसाइडल तो पता होगा आप प्रेसिडेंट रहे हो। आप आप लोग के जान पहचान में तो रहे होंगे लोग ना उससे जुड़े होंगे जो नहीं मैं थोड़ा उस वक्त जो है कैंपस में कम रहता था। बट फिर पूछा तो होगा ना आपने क्योंकि जैसे मुझे क्यू मुझे क्यूरोसिटी है। ये ये बहुत दिनों से चल रहा है। वेयर इज नजीब। वेयर इज़ नजीब। मैं पूछा मैं जानने की कोशिश किया। ठीक है। एबीवीपी के लोगों ने उसके साथ मारपीट की और उनके परिवार के लोगों ने बार-बार कहा कि उनके साथ सख्ती से पूछताछ नहीं किया गया। उनको बचाने की कोशिश की गई है और वाकई जेएनयू को ना हैरान करने वाली बात है। देखिए एबीवीपी से हमारी लड़ाई है। एबीवीपी से हम लड़ते थे कैंपस में। ये एक पिटिकल लड़ाई। वैचारिक मतभेद बट एक बच्चे का गायब हो जाए ना 27 साल का बच्चा। यह विश्वास कर पाना बहुत मुश्किल था कि यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले स्टूडेंट जो है किसी फेलो स्टूडेंट को गायब कर देंगे। लेकिन आज इतने साल हो गए 9 साल और कुछ पता नहीं है तो लगता है कि आखिर क्या हुआ? मतलब मैं उनकी मां के बारे में पढ़ रहा था। उनकी मां के स्टेटमेंट बहुत मुझे एक मां के तौर पर उनके लिए बुरा लग रहा था कि किसी का बच्चा जो कॉलेज पढ़ 27 साल का बच्चा और वो गायब हो गया। हां। अब मैं उस इस कॉन्टेक्स्ट में नजीब की बात आपके सामने रख रहा हूं कि जो लोग जेल में हैं, जेल में हैं, अरे आज ना कल समय बदलेगा, बेल मिलेगा, लोग बाहर आएंगे। और वह तो भिटा ही नहीं है। और हम जब थे यूनिवर्सिटी में तो इन सारे मसलों पे बट आप लोग तो बहुत लड़ाईयां हुई होंगी। मैंने जेएनयू में महिला प्रेसिडेंट का सर फट देखा है और बहुत सारी चीज़ देखी है। गायब होना एक बड़ा अलग सा केस है। देखिए जेएनयू में अव्वल तो मैं इस बात और ये शायद इससे पहले भी ऐसा केस नहीं रहा होगा। मैं इस बात मेरे समय तक भी जेएनयू में मारपीट का कल्चर नहीं था। जेएनयू में वैचारिक बहस होता है और आपकी जो आपका जो भी विचारधारा है आप मानिए मारपीट का कल्चर नहीं था। दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन सत्य है कि 2014 के बाद जो है इसमें बढ़ोतरी हुई। जब से कैंपस में एबीवीपी को यह लगने लगा कि अब हमारा राज आ गया है। यह जो अपार बहुमत की हमारे पास सरकार है। दिल्ली पुलिस हमारे अंडर है। तब से जो है ये मारपीट और लड़ाई झगड़े की घटना बढ़ गई जेएनयू में। और आपको मालूम है कि ये घटना भी जो है मेरे ख्याल से 2017 की घटना है। 2017 की घटना है। या 16 की होगी। 16 की घटना है। 9 साल हो गए। हां 16 की होगी। हमारा ट्रेनर खत्म हो गया था। तो ना इस तरह का इंसिडेंट कभी हुआ ही नहीं था। मैं ये इस कॉन्टेक्स्ट में 15 अक्टूबर साल 2016 2016 हां एमएससी कर रहा था बायोटेक्नोलॉजी में नजीब अहमद 27 साल का लड़का हां ये ये ना माही मांडवी छात्रावास वो हमारा हमारा हमारी प्रेसिडेंसी खत्म हो गई थी नए प्रेसिडेंट आ गए थे और प्रेसिडेंट इंटरवीन किया था वो रात में गया लोगों से बात किया समझौते कराए लोगों को अलग किया ठीक है लगा कि मामला शांत हो गया है लेकिन सुबह जो है वो था ही नहीं गायब था वो मिला ही नहीं उसका पर्स मोबाइल वो मिला लेकिन वो कभी नहीं मिला। तो मैं यह कह रहा हूं कि जब हम लोग यूनिवर्सिटी में थे एक बड़ा अनफॉर्चूनेट क्वेश्चन है। मैं पूछना नहीं चाहता ये फिर भी क्योंकि आप करीब रहे हो। आपको होप है कि वो अभी हो सकता है। देखिए अब एक मां को होप है तो हम लोगों को भी होप है। इट्स वेरी अनफॉर्चुनेट। मतलब हां। सारी राइवलरी अपनी जगह पर। बट ये और जेएनयू को लेकर के एक बात आपको बता दें। 8000 स्टूडेंट पढ़ते हैं। दर्जनों हॉस्टल हैं। अलग-अलग जगह लोग रहते हैं। लेकिन एक क्लोज कैंपस है। तो एक दूसरे से मिलनाजुलना जान पहचान वहां पे रहती है। और जब भी कोई यूनिवर्सिटी से जुड़ा हुआ मसला आता है तो सब लोग एकजुट हो के उस पक्ष में अपनी बात रखते हैं। तो उसी प्रोसेस के तहत मैं भी जब यूनिवर्सिटी में था, यूनिवर्सिटी से जुड़ा कोई मसला होता था, सड़कों पर उतरना, प्रोटेस्ट करना, वो किया करते थे। और आज भी उस ट्रेडिशन को वहां के लोगों ने जिंदा रखा है। वो जो भी जेएनयू से जुड़े हुए लोग हैं उन पे कोई कारवाई होती है तो जेएनयू का जो स्टूडेंट यूनियन है वो प्रोटेस्ट करता है। वो बोलता है। वो आज भी बोल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने थोड़ा टीवी अखबार में कम छपते हैं। लेकिन हां बोलना बंद कर दिया है। ऐसा नहीं है। और इस तरह से मैग्नीिफाइंग ग्लास लेकर के मैंने बोला कि नहीं बोला? क्या हो गया? कि आज कल आप क्या बोल रहे हैं? नहीं बोल रहे हैं। यह सब कुछ सोशल मीडिया बताता है। और आप एक इन जनरल एक चीज नोटिस करेंगे कि मैं 2019 के बाद से मैं जितना एक्टिव था सोशल मीडिया पे मैं उतना एक्टिव Twitter से लेकर के किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पे नहीं हूं। कई बार तो जो है 6-छ महीने कुछ भी पोस्ट नहीं करता हूं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उस 6 महीने के दौरान मैं राजनीतिक गतिविधि नहीं करता हूं। शैला रशीद के हृदय परिवर्तन के पीछे क्या लगता है? यह तो वही बताएंगी। फिर भी आपके मित्र ही हैं। आपके साथ काम किया उन्होंने। वीपी वीपी थी ना वो वो वीपी थी। वीपी थी तो आपके साथ काम किया उन्होंने अच्छे से। हमारे साथ काम किया है। लेकिन मतलब लोग कहते हैं कि एकदम से वक्त बदल दिया, जज्बात बदल दिया, हालात बदल दिया। हमारे साथ उन्होंने काम किया है। हम लोग कोलीग रहे हैं। हम लोग कंटेंपररी रहे हैं। अभी भी जो है त्योहारों पे उनका मैसेज आए और हम उनको जो है शुभकामनाएं दें। यह सिलसिला है। लेकिन कोई व्यक्ति कोई राजनीतिक फैसला लिया है, वह उसका चॉइस है, उसकी आजादी है। उस पे हम क्यों टीका टिप्पणी करेंगे? और रही बात टका टिप्पणी की बात मैं क्यूरोसिटी वाइज़ बात कर रहा हूं। नहीं जेएनयनू की भी बात बता दूं। वैसे हम लोग चुनाव एक दूसरे के खिलाफ लड़े थे। अलग-अलग पार्टी में थे। ये मैं बस बता देता हूं। हां और प्रोटेस्ट साथ में किए साथ में देखिए। वो उन अपवादों में से हैं जिनको लेकर बड़ी चर्चा होती है और वो आजकल जैसे आपको मोदी जी में कुछ अच्छा नहीं दिखता। आजकल उनको सब अच्छा दिखता है। अच्छी बात है मतलब तो आप सही हैं वो सही है नहीं उनके लिए वही सही होंगे तो बट एक जमाने में उनको भी बुराई दिखती थी जैसे मैंने विक्रांत मैसी का इंटरव्यू किया एक बार उनको भी बुला लीजिए बुलाऊंगा मैं पूछ मैंने विक्रांत मैसी का इंटरव्यू किया तो वो पहले लेफ्टिस्ट थे विक्रांत से मैंने पूछा मैंने कहा भाई थे हां वो पहले बहुत वो अपनी विचारधारा को रखते थे कि मैं उस साइड का ही हूं नहीं वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थे वो कैसे पढ़ाई लिखाई वो हुए पीयूष मिश्रा हुए। यह सब पीयूष मिश्रा ने भी ऑन रिकॉर्ड कहा है कि मैं पहले वामपंथी था। घनघोर वामपंथी था। फिर मुझे रियलाइज़ हुआ कि जिंदगी भर लोग बेवकूफ बनाते हैं। जितना पैसा कमाओ दे आते हैं और कुछ करना नहीं होता। तो मैं छोड़ दिया ये। ये ये उनका ऑन रिकॉर्ड स्टेटमेंट है एक पॉडकास्ट में ये तो इन दो तो मैंने विक्रांत से सवाल पूछा। मैंने कहा भाई आइए इतना हृदय परिवर्तन कैसे हो गया? अच्छा कोई आपको मिला है आज तक। मेरा बस एक क्यूरोसिटी है कि कोई कहे कि मैं पहले दक्षिणपंथी था। मीडिया में बहुत बमती है। मीडिया में बहुत सारे लोग हैं। अब बामपती है। मीडिया में बहुत सारे लोग हैं। मैं आपको ऑफ द रिकॉर्ड नाम लेके बता दूंगा। बहुत सारे लोग अरे आप जब पीयूष मिश्रा जी का नाम ले रहे हैं। विक्रांत मैसी का नाम ले रहे हैं तो एक दो मीडिया में बहुत सारे हैं। आप पुराने एंकर्स में देखिएगा बहुत सों के ट्वीट्स वायरल हुए हैं। ये जब वीडियो जाएगा सोशल मीडिया पे तो कमेंट सेक्शन पूरा भर जाएगा क्योंकि वो मेरे राइवल हैं। इसलिए मैं नाम लेना पसंद नहीं करूंगा क्योंकि मेरे राइवल पहले दक्षिणपंथी थे। अब बमबंदी पहले कट्टर भाजपाई थे। अच्छा अब उनको भाजपा में कोई अच्छा दिखता नहीं है। ऐसे बहुत सारे लोग हैं। कई बड़े नाम भी हैं। तो आप यह कह रहे हैं कि विचारधारा जो है बहुत बस कहने की बातें हैं। मतलब मैंने विक्रांति है। विक्रांत से मैंने सवाल पूछा। मैंने कहा कि कैसे बदल गई? तो विक्रांत का जवाब यह था कि पहले मैं कुछ खबरें पढ़ता था। मुझे लगता था यही सच है। फिर मैं फिल्म करने के लिए देश भर में घूमा। फिर मुझे रियलाइज़ हुआ कि नहीं यह सच नहीं था। लोग जो देखते हैं ग्राउंड पे वो नजरिया अलग है। और उनके बीच में जाकर मेरा नजरिया बदला। तो साबरमती पिक्चर जब उन्होंने की थी तो उनसे यह सवाल पूछा मैंने और उसी पे उन्होंने जवाब दिया। अब शैला का भी यही आ रहा है कि 370 के बाद सब मंगलमय है। शुभ मंगल। अब मैं कहूं इस पॉलिटिक्स ऑफ कन्वीनियंस को मैं खारिज करता हूं और मैं चाहता हूं कि मेरे अंदर ये कुवत ये ताकत रहे कि पूरे जोर से इस पागलपन को खारिज किया जा सके। मुझे जिस दिन विचारधारा बदलना पड़ा ना प्रोफेशन बदल लेंगे। कैसे थूक करके चाटेंगे प्रभु? कैसे चाटेंगे? मनुष्य होने का कोई मतलब होता है ना? कुछ तो गरिमा होगी मनुष्य होने की और उसको जो है पूरे पतित तरीके से लोग आकर के डिफेंड भी करते हैं। मैं भी सुना हूं यह बकवास कि जवानी है तो लेफ्ट हैं तो आपके पास दिल है। 30 के बाद अगर आप जो है लेफ्टिस्ट हैं तो आपके पास दिमाग नहीं है। क्यों? क्यों समझा समझौता परस्ती को इस तरह से जो वैचारिक अमला अमली जामा पहचान पहनाना जरूरी है कह दीजिए ना जिंदगी जीने की मजबूरी होती है इस पर इतना घुमाना फिराना क्यों है सच जो है ना स्वीकारने में मुश्किल होता है सर जीवन जीने में आसानी होती है झूठ ठीक है ना बोलने में आसानी होता है जीवन कठिन होता है तो आप जितना बार बोलिएगा उतना बार स्टेटमेंट बदल जाएगा तो आप यह कह रहे हो कि जितने भी लोग बदले जो पहले इधर थे उधर चले गए वो सहूलियत के हिसाब से बदले नहीं इधर-उधर की बात ही नहीं है ना आप जीवन की गति में भरोसा रखिए ना जीवन की गति में भरोसा रखें जैसे गुजरात गुजरात में आप ही की पार्टी में तीन नए लड़कों का जिक्र हो रहा था एक चुनाव में बड़ा जिक्र चला अच्छा कर रहे हैं ऐसा-ऐसा अब जिग्नेश हार्दिक जिग्नेश हां अब जिग्नेश को हटा दें तो बाकी सबका हृदय परिवर्तन हो गया दोनों भाजपा में हैं दोनों भाजपा में हैं कट्टर मैं वही कह रहा हूं कि ये जो शैला की बात कर लें और बहुत सारे लोग भी ऐसे हैं मैं यही कह रहा हूं कि इसको इसको पूरी ताकत से मैं खारिज करता हूं। विचारधारा अगर इतनी आसानी से बदली जाती है ना ठीक है। अच्छा एक बात बताइए आप अपना ब्लड ग्रुप बदल सकते हैं क्या? नहीं। विचारधारा वैसी चीज होती है। आपके रगों में बहता है। आपके पास एक बार नजरिया डेवलप हो गया है किसी चीज को देखने का। पॉलिटिकल लोग तो जैसे मैं आप ही की पार्टी की बात कर लो। चलो मैं कांग्रेस की बात करता हूं। मैं बहुत लंबा नहीं जाता हूं। कांग्रेस की बात करता हूं। मैंने कांग्रेस को भी अलग-अलग नजरिए से देखा है। कई बार देखता हूं कि बहुत हार्ड कोर हिंदुत्व वाली बातें करती है। कई बार देखता हूं कि ऐसा लगता है उन पर आरोप लगने लगता है कि वो एंटी हिंदू आते हैं। मैंने मंदिर जाते हुए देखा है और मंदिर को लेकर दूसरे स्टेटमेंट देखे हैं। तो ये तो पॉलिटिक्स में सारी सारी पार्टियों पर ही है। जैसे आपने कहा सहूलियत के हिसाब मैं कहता हूं ऑप्टिक्स से ज्यादा गहरी चीज है पॉलिटिक्स। हम ऑप्टिक्स पॉलिटिक्स नहीं है। पॉलिटिक्स में ऑप्टिक्स होता है। आजकल क्या हो गया ना कि ऑप्टिक्स को ही पॉलिटिक्स मान बैठे हैं। आपको दुनिया देखने का एक नजरिया विकसित हुआ है। वह आधार है। वह नींव है। आप उसी पे बढ़ते चले जाएंगे। इधर चले जाइए या उधर चले जाइए। ये मानिएगा कि सूरज जो है पृथ्वी का चक्कर लगाता है। नहीं। सच सच होता है। लेकिन ये तो बाइबल में लिखा हुआ था। बोलिए। ये मानिएगा कि पृथ्वी चपटी है। नहीं। ये तो धार्मिक किताबों में लिखा हुआ था। कुरान। ठीक है ना? वही मैं कह रहा हूं। धार्मिक किताबों में ये मानिएगा जो उसको विज्ञान ने प्रमाणित कर दिया है आप ये मानिएगा और मेरी दादी उसका जीवन झूठ नहीं था लेकिन उसको कहते हैं कि दादी पानी बिकी कहता अरे तुम ठट्टा मजाक करते हो हमारे साथ वो विश्वास नहीं करती जीवन में अनुभव होता है वो स्वीकार ही नहीं करती कि पानी किसी दिन बिकेगा तो विचारधारा आपके जीवन का फाउंडेशन होता है। धीरे-धीरे जो है आपके अंदर उसी उसी आधारभूत चीजों पर चीजों का विकसित तो एक बात बताइए तो जो लोग कह रहे हैं कि हम उधर चले गए हैं कब से खरा पहनना शुरू करेंगे विज्ञान का विरोध करने लगेंगे फोन नहीं उठाएंगे फोन नहीं इस्तेमाल करेंगे क्योंकि वो तो ठीक है समझिए आप समझ रहे हैं आईडियोलॉजी बदलने से क्या रिश्ते बदलते हैं देखिए जो लोग मानवता को विचारधारा को आपस उसमें अलग करते हैं। उनके बदलते होंगे। आपके बदलते हैं? नहीं मेरे नहीं। तो अगर आपके कोई दोस्त भाजपाई बन गए तो आप वैसे चाय पानी पीते हो साथ में उठते बैठते हो? हां। क्यों नहीं बैठेंगे? उसमें क्या दिक्कत? कभी कोई शिकायत नहीं होती। क्यों शिकायत होगी? जैसे आप आप दिन भर पानी पी पी के गिर जाते हो। उधर वाले तारीफ उनको अच्छा सब कुछ दिखता है। उनमें कुछ खराब नहीं दिखता। आपको कुछ अच्छा नहीं दिखता तो वो कॉन्ट्रेस्ट नहीं होता। नहीं ऐसा नहीं है। आपको अच्छा दिखता है बीजेपी में कुछ? मैं किसी भी चीज को ना क्रिटिकली देखता हूं। हम्म। आलोचना शब्द जो है ना आ और लोचन दो शब्दों के मिलने से बना है। संधि विच्छेद करके। आ मतलब पूरी लोचन मतलब आंख। पूरी आंख से जब आप किसी चीज को देखेंगे ना आपको जैसे हम पूरी आंख से देखें तो आपकी कुछ अच्छाई भी दिखेगी, कुछ बुराई भी दिखेगी। ठीक बात सब में यही होता है। यही नैसर्गिकता है। हम यही नैसर्गिकता है। यही ऑर्गेनिक है। जबरदस्ती का जो है ना जबरदस्ती खाली खड़ावे बाद दिखना है। अब जैसे मैं ये क्यों कह रहा हूं मैं? अभी आपने एक यहां इंटरव्यू देखा था मैं आपका। आपने कहा मोदी जी संघी हैं तो उसने कहा एंकर ने कहा संघी तो ऐसे जैसे गाली है आपने कहा हां गाली है आरएसएस के लोग आतंकवादी हैं हां नहीं एक्चुअली तो देखिए ये आप कह दिए अब आप अब फिर अब वही दोनों आंख खोल के अब आप पूरी बिरादरी कह दी आतंकवादी है नहीं वो हम गाली गाली इसलिए कहे क्योंकि ना उनकी जो भाषा थी ना जिसमें वो सवाल पूछ रही थी तो वो मुझे गाली की तरह देख रही थी समझ रहे हैं तो मेरा क्या है जैसे को तैसा आप प्रेम से बात कर रहे एक तो बढ़िया जो है पालथी पालथी मार करके प्रेम से बतिया रहे हैं आप जैसे सत्संग चल रहा हो लेकिन जब आप बेसी होशियार समझिएगा हम तब तो भाई हम आपका इलाज करेंगे क्योंकि जहां के आप वहां के हम जो परवरिश आपकी वो हमारी जो नमक आप खाते हैं वही हम भी खाते हैं ज्यादा नमक खाने से हार्ट अटैक होता है तो आप नई रिपोर्ट आई से तो आप ज्यादा काबिल कैसे और हम काबिल के कम कैसे आपको भी मान 9 महीने पेट में रखिए और हमको भी बिल्कुल सही बात समझ रहे हैं इस हिसाब से अगर कोई बोलता है तो फिर हम उसको उसी भाषा में जवाब देते चलो मैं यही पूछ लेता हूं जो ये स्टेट मेंट था। इस पर आप क्यों आरएसएस पर इतना बिफरे रहते हो? आरएसएस में हम इतना इसलिए बिफरे रहते हैं कि आरएसएस की विचारधारा हम नफरत पर आधारित है। हम आरएसएस को मानने वाले लोग हम इस देश के संविधान को कभी अपना नहीं माने। हम इस देश के झंडे को स्वीकार नहीं किया। हम और उनका जो आईडिया ऑफ इंडिया है ना उसमें हमारे जैसे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। गरीब दलित पिछड़ा साधारण जो लोग पिछड़े से आप तो ब्राह्मण परिवार से हो ना गरीब बोले हां पिछड़ा भी आपने कहा ब्राह्मण बोल दीजिएगा ब्राह्मण गुस्सा हो जाएगा हो तो आप पंडित वहां अलग लड़ाई है भू भूमिरार ब्राह्मण ही तो हो वहां अलग लड़ाई है अरे बात महाराज हो तो भूमि ब्राह्मण मैथिल का खानकूब अलग लड़ाई शुरू हो जाएगा वो तो है ठीक है ब्राह्मण होस्ट है तुम ऊपर वाला हो हम नीचे वाला तुम श्रेष्ठ वाला तीन 13 लाख के हमको इतना नहीं पता हम उतना घुसे नहीं लेकिन घुसे होंगे अरे हमको नहीं पता महाराज हमारे घर में इतना नहीं है वो भी प्रिविलेज है बट ठीक है नहीं है वो अच्छी बात है माता जी हमारी शिक्षिका है तो वो नहीं रहा वो कल्चर बहुत अच्छी बात है और ना हमारे संस्थान में रहा तो ये तो हम प्राउडली कह सकते हैं इसीलिए इसीलिए कहते हैं मराठी में आज मैं मराठी दूसरी बार बोल रहा हूं मुर्गी सीख ली प्रगति झा ली इसलिए तो नहीं सीखे मराठी के वहां जाओगे आप वो तमाचा खा जाओगे नहीं नहीं मैं हर भाषा का सम्मान करता हूं कोई मुझे मेरी मातृभाषा के लिए अपमानित करेगा तो फिर उससे सींग भिड़ा लेगा लेकिन झापड़ मारना तो गलत है ना जो मार रहा है कोई काहे झापड़ मारेगा जी मार रहे है जी बिहार वाला ही खा रहा है तो ज्यादा नहीं तो अब जो खा रहा है सो खा रहा है उसको तो मतलब अड़ जाना चाहिए देश क्या बेचारा गरीब आदमी कमाने गया उसको मैं तो उस दिन कहा टीवी पे भी कहा मारना तो मारो अमिताभ बच्चन अक्षय कुमार शाहरुख खान सलमान खान आमिर खान नहीं होना चाहिए अनफॉर्चुनेट है कोई भी तरह का विवाद अनफॉर्चूनेट नहीं बट ये भी जानना है जैसा आपने कहा कि गांधी जी की हत्या में आरएसएस वाला हाथ था ये आपने उस दिन भी कहा गांधी जी उस उसी इंटरव्यू में बार-बार मैं सुन रहा था तो फिर मेरे मन में और आपने कहा इसी आधार पर आपने आतंकवादी कहा नहीं मैं आपको तीन चीजें बताया समझ गया कहना है आरएसएस इस देश में नफरत आधारित राजनीति करती है हम् और नफरत का आधार बंटवारा भेदभाव ऊंचनीच धर्म के आधार पे ठीक है ना मतलब बांटने वाली राजनीति यह तो चलिए पॉलिटिकल दूसरा दूसरा संविधान और झंडा नहीं मानते और तीसरा उनका जो आईडिया ऑफ इंडिया है हम उसमें हमारे जैसे लोगों के लिए जगह नहीं बट वो गांधी जी वाला वो कोर्ट आप मानते हो या वापस लेते हो नहीं मानते हैं कैसे मानते हैं कैसे आप गांधी जी की हत्या में आरएसएस को दोषी दे रहे थे मतलब थोड़ा मैं समझना चाहता हूं क्योंकि गोडसे आए से जुड़े हुए थे बट वो तो 1930 तक थे ना कौन गोडसे 1930 तक किताब अब आ गई है। मतलब जितना मैंने पढ़ा इस पे अब किताब आ गई है। उस किताब को सब लोगों को पढ़ना चाहिए। गोडसे के ऊपर किताब आई है। धीरेंद्र झा साहब ने लिखा है। उससे पहले उन्होंने अयोध्या के बारे में भी एक किताब लिखी थी। मेरे ख्याल से जल्दी सावरकर पे भी उनकी किताब आएगी। वो किताब लोगों को पढ़ना चाहिए। मैं पढूंगा लेकिन मैं समझना आपसे चाह रहा हूं। देखिए पहले क्या है ना कि जब अच्छा एक तो गांधी जी का प्रयास जो है ये बार-बार कहते हैं ना कि बंटवारा बंटवारा गांधी जी की हत्या का प्रयास जो है ना शुरुआती दिनों से ही शुरू हो गया था। यह उसमें कोई पहला हमला नहीं था। सीरीज ऑफ इंसिडेंट है। क्यों? क्योंकि गांधी जिस आईडिया ऑफ इंडिया के लिए संघर्ष कर रहे थे ना वो आरएसएस के आईडिया ऑफ इंडिया के अगेंस्ट है। हां मतलब उनका लॉजिक ये था कि 55 करोड़ में पाकिस्तान को आप क्यों दे रहे हो? ये सब बातें गोडसे ने कही थी। ये सब ये सब बात तो बाद में डिफेंस में लिखा गया है। नहीं चलो मैं उधर नहीं जा रहा हूं। कन्हैया कन्हैया कन्हैया क्योंकि बहुत लंबा टॉपिक हो जाएगा। मेरा टॉपिक होने दीजिए। लंबा टॉपिक जरूरी है। चलिए ठीक है। नहीं ट्रक पर चढ़ाने नहीं चढ़ने से ज्यादा जरूरी है। एक कोट एक कोट कर देता हूं। फिर आप अपना बात रखना। अह जीवन लाल कपूर आयोग आया था जिसमें जांच हुई थी और उसमें जो एंड रिजल्ट उन्होंने दिया था वो ये था कि आरएसएस की प्रत्यक्ष संगठात्मक भूमिका नहीं थी। गोडसे ने अपनी जिम्मेदारी ली थी इंडिविजुअल और आरएसएस पर इसी वजह से बैन हट गया था। जो बैन लगा और हट गया था। अब मेरे मन में जो एक काउंटर क्वेश्चन चला था क्योंकि ये पूरा इंटरव्यू देखा मैंने। मैंने कहा कि एक व्यक्ति जो 1930 तक हिस्सा था उसने हत्या की जिसको देश देखता है और उसमें ये पूरी घटना आती है कि आयोग आता है। अगर शरजील या उमर के जेल जाने से पूरा जेएनयू बदनाम नहीं होगा तो गोडसे के नाम पर आपने पूरा आज की जो कम्युनिटी है जो शायद तब पैदा भी नहीं होगी। उन पूरी कम्युनिटी को आपने आतंकवादी क्यों कह दिया? वो इसलिए कि आरएसएस यह बात तब तो बोली कि हमारा जो है गोडसे संबंध नहीं है। ठीक है? लेकिन आप जानते हैं कि गोडसे को हीरो मानना गोडसे के विचारों को सही साबित करना आज भी ट्रेंड होता है। गांधी गांधी गांधी की हत्या को गांधीबद्ध कहना 2 अक्टूबर को ही वो ट्रेंड होता है। और जो इंसान आज जो ये भी मैं कह रहा हूं कि जब आप सवाल पूछो। मैंने कई नेताओं से सवाल पूछा है कि गांधी से तो वह स्मार्टली निकल जाते हैं बचके। नहीं वह मंदिर बनाने की बात करते हैं। बना भी कहीं पर मध्यप्रदेश में जो है मंदिर बनाने की कोशिश की गई। मैंने मोहन यादव जी से पूछा था तो उन्होंने जवाब दिया तब मैं पैदा नहीं हुआ था। ये कोई बात नहीं होती है ना? लेकिन फिर चलो ये तो उनसे भी मैंने क्रॉस क्वेश्चन किया। वहां मेरा काम था सवाल पूछना। यहां मेरा सवाल फिर वही है कि अगर शरजील इमाम या उमर खालिद की वजह से पूरा जेएनयन बदनाम नहीं हो सकता तो गोडसे की वजह से पूरा आरएसएस आतंकवादी कैसे? देखिए अव्वल तो दोनों अलग-अलग तरह की चीज़ है। जेएनयू एक इंस्टीट्यूशन है। हम उसी आरएस उसी जेएनयू में आरएसएस के लोग भी पढ़ते हैं। ये तुलना बिल्कुल सेब और केले वाली तुलना तो वो साथी आपके आतंकवादी हो गए जो वहां पढ़ते हैं। नहीं नहीं वही मैं कह रहा हूं। ये एक संगठन है। संगठन का निर्माण एक विचार पे होता है। वो एक संस्था है। संस्था का निर्माण जो है ना हर विचारधारा के लोग वहां आकर के पढ़ सके। इसके हुआ। ये दोनों तुलना बिल्कुल अलग-अलग है। दूसरी बात क्या आरएसएस ने अपने आप को आज भी आज भी वो गोडसे से डिसएसोसिएट करती है या गांधी की हत्या को जो है वो गलत मानती है यह प्रश्न है ना एक्शन भी तो कुछ होता है ना सर ठीक है अगर वो कहे कि हां ये ऐतिहासिक भूल है वेरी गुड डिबेटेबल टॉपिक अब हम अब हम हर अपने जो है दफ्तर में गांधी जी की फोटो लगाएंगे रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति भगवान यह गांधी जी ने अलग से जोड़ दिया था ईश्वर अल्लाह गांधी जी ने जो भी जोड़ दिया इसको भी कहते हैं कि वो ओरिजिनल कुछ और था गांधी जी ने जो भी जोड़ दिया था अगर आप कहते हैं कि आप गोडसेवादी नहीं गांधीवादी हो गए हैं तो आप गांधी के रास्ते पे चलेंगे सिंपल सी बात है ना किसी व्यक्ति को मानने का मतलब उसके विचारों का धार को धारण करना है तभी तो हम उसको मानने वाले हुए तो आज की तारीख में आप गोडसे के विचारों पर चलते हैं और गांधी के विचारों का धारण नहीं करते बट देयर माइटी पीपल ना जो देयर माइट पीपल जैसे आए वाले बहुत सारे लोग ऐसे भी होंगे ना जो ना गोडसे को मानते होंगे और गांधी जी से भी उनके डिफरेंसेस होंगे और शायद यही भारत की खूबसूरती है कि आपको दोनों का मौका मिल जाता है बोलने का। ऐसा कोई लोग आपको मिला है? बट आप उन्हें आतंकवादी कैसे कह रहे हो? आपके जितने भी वीवीपी के दोस्त होंगे। आपके भी दोस्त होंगे। वो आतंकवादी उनको आपने कह दिया कि सब आरएस वाले आतंकवादी। मेरा उस उस क्वेश्चन से मेरा तो वो ऐतराज था कि पूरी कम्युनिटी कैसे आतंकवादी? क्वेश्चन जो है जो क्वेश्चन आपको क्वेश्चन से ऐतराज रखिए। नहीं नहीं वो जो वो जो पॉइंट है ना आपने कहा आरएसएस गाली पाठ हटा देता हूं मैं। आपने कहा वो सब आतंकवादी है। नहीं जो उस विचारधारा को कैरी करेगा जो इंसान को इंसान से बांटे दिस इज अ परफेक्ट थिंग। ये जो आप कह रहे हो ना कि ये जो उसको पालन करेगा। क्योंकि आप वैसा सवाल पूछ रहे हैं। आप अगर यह सवाल पूछेंगे कि कन्हैया जी क्या आप अपने घर में चीनी चुरा के खाना बंद कर दिए? तो अगर हम कहें हां तो मतलब चोरी करते थे। अगर नहीं कहा तो मतलब कर रहे हैं। आप समझ रहे हैं। ये सवाल वैसा है तो वैसा जवाब देना पड़ता है। जैसे को तैसा अगर आप इस पे सही सवाल करेंगे तो मैं सही जवाब दूंगा। मैंने आपसे ये पूछा था ना थोड़ी देर पहले कि क्या कोई ऐसा व्यक्ति मिला है जो कहे कि मैं दक्षिणपंथी था। मैं गोडसे को सही मानता था। मैं आरएसएस से जुड़ा हुआ था। बहुत सारे बहुत सारे मिले। तो तो अब जब उस विचार को ही छोड़ दिए तो उसको हम कैसे कहेंगे कि वो गोडसेवादी हैं? हम जिस विचार का पालन कर रहे हैं बट अगर कोई आरएसएस में है भी है भी मान लो तो क्या वो आतंकवादी हो गया? मेरा सिर्फ इस इस आतंकवादी वर्ड पे सवाल बाकी मेरा आप जो कह रहे हो वो आपकी थॉट प्रोसेस है। एक सोच है। उसमें कुछ सही कुछ गलत तर्क वितर्क हो सकता है। आप तो महाराज आप जो इंजीनियरिंग पढ़े हैं। आपका रीजनिंग हमसे ज्यादा बेहतर होगा। आप वो सवाल बनाते होंगे ना रीजनिंग के। ठीक है ना? तीन जो है तीन जो है घोरे हैं दो गधे हैं तो सारे घोड़े गधे हैं ये प्रश्न बनाए हैं ना चलो फिर से बहुत सिंपल कर देता हूं मैं कॉम्प्लिकेट नहीं कर जितना सिंपल कीजिएगा उतना सिंपल क्या आरएसएस के लोग आतंकवादी आपकी नजर में है जो स्टेटमेंट वो था आपका उसके आरएसएस के लोग जो गोडसे की विचारधारा पे चलते हैं जो गोडसे को सही ठहराते हैं जो गांधी को गलत ठहराते हैं जो देश के संविधान को नहीं मानते हैं जो देश के तिरंगे को नहीं मानते हैं जो आइडिया ऑफ इंडिया में कहते हैं कि एक ही पहचान के लोग यहां रह सकते हैं। विविधता और एकता को स्वीकार नहीं करते हैं। उनको हम आतंकवादी मानते हैं। ठीक है। इट्स अ इट्स अ वेल सेड आंसर। इट्स नॉट ओवरऑल वो एक जनरलाइज स्टेटमेंट था। वो इसलिए कि वो यही चाह रही थी। ओके। तो जैसा चाह रही थी हमने वैसा ही जवाब दिया। हमने कौन सा जो है कसम खा लिया है। ठीक है। जो आजादी वाला जब नारा शुरू हुआ था तो उसमें बाद में कुछ नारे मुझे आए थे कि सामंतवाद से आजादी। कुछ किसी ने कहा ब्राह्मणवाद से आजादी ये सब आए थे। ये उसका जवाब मैं बार-बार देता हूं। हां देखिए जब हम कोई वाद बोलते हैं ना तो एक व्यक्ति का जुड़ा हुआ मसला नहीं होता है। जैसे आप ब्राह्मण हो सकते हैं लेकिन आप ब्राह्मणवादी हो ये जरूरी नहीं है। ओके ये वैसा है कि आप पुरुष हैं। हम आप पुरुषवादी हो ये जरूरी है। नहीं वैसे ही आप हिंदू हो सकते हैं। आप हिंदूवादी हो ये जरूरी है। ये फर्क होता है। जब हम वाद किसी चीज में लगा दें तो मामला एक व्यक्ति के व्यवहार का नहीं एक समूह के व्यवहार का होता है। और यह जो जब हम शब्द बोलते हैं तो इसका मतलब हम किसी एक जाति का विरोध नहीं करते। ब्राह्मणवाद क्या है आपकी नजर में? मेरी नजर में अगर हम यह मानते हैं कि ब्राह्मण ही सबसे श्रेष्ठ होते हैं और जो है अब सब कुछ पे पहला हक उन्हीं का होना चाहिए। ये ब्राह्मणवादी विचारधारा है। जो ऊंचनीच में जन्म के आधार पर ऊंच-नीच को सही मानता हो और उसी के आधार पर लोगों के साथ व्यवहार करता हो। जो यह समझता हो कि अगर आप ब्राह्मण नहीं है तो आप जो है कुलीन नहीं हो सकते हैं। आपके पास ज्ञान नहीं हो सकता है। आप जो है अच्छे पोजीशन पे नहीं जा सकते हैं। ये ब्राह्मणवाद है। ठीक है? लेकिन हर ब्राह्मण ऐसा नहीं होता। दूसरा कि अब हम जो है इस जीवन में अभी हम बाहर जाएंगे, पेट्रोल बढ़ाएंगे, मोबाइल रिचार्ज कराएंगे तो पैसा देंगे। हम तो पूंजी का इस्तेमाल हम अपने जीवन जीने के लिए कर रहे हैं। इसका मतलब नहीं हम पूंजीपति हैं। हम ठीक है ना? और पूंजीपति कोई है। फिर भी अगर वह यह मानता है कि पूंजी के आधार पर ही हर चीज का निर्धारण नहीं होना चाहिए तो एक पूंजीपति भी जरूरी नहीं पूंजीवादी हो। यह फर्क होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो मैं आपको एक कॉन्टेक्स्ट दे रहा हूं। एंगेल्स के पास फैक्ट्री थी। पूंजीपति थे। लेकिन पूंजीवाद के खिलाफ जो किताबें लिखी गई उसको छापने में मदद किया उन्होंने मार्क्स का। तो इस देश में बहुत सारे ऐसे प्रगतिशील ब्राह्मण हुए हैं जो इस ऊंचनीच के खिलाफ लड़े हैं। मुझे लगता है कि आज के दौर में चाहे मीडिया हो या नेता अधिकतर को मैं देख रहा हूं जो दलितों से वंचितों की बात करते हैं वो ब्राह्मण है। नहीं मैं मैं स्पेशली यह भी एक जनरलाइजेशन हो जाएगा। लेकिन मैं ये कह रहा हूं कि वाद जब कोई कहे ना तो इसका फर्क समझना चाहिए। उसका फर्क यह है कि आप ना उस पूरी की पूरी कम्युनिटी को नहीं अब्यूज कर रहे हैं। उसमें उस कम्युनिटी के पहचान के आधार पर जो अपना राजनीतिक और आर्थिक हित साधना चाहते हैं आप उसको टारगेट कर रहे हैं और इसको बहुत खूबसूरत तरीके से फुले साहब ने समझाया था। आप जानते हैं कि उन्होंने सत्यशोधक समाज बनाया था और सत्यशोधक समाज ने कहा कि जो है अब हम शादी ब्याह जो है ना खुद से ही करेंगे। तो जो है जो ब्राह्मण लोग उनके स्कूल का विरोध कर रहे थे वो कोर्ट में चले गए। कोर्ट में चले गए। मुकदमा चला। मुकदमा चला तो जो है उस पे वकील ने जो है दलील दिया तो जो ब्राह्मण की तरफ से जो पुजारियों की तरफ से वकील थे उन्होंने दलील दिया। ये हमारा पेशा है। यह जो है हमारा जो है काम हमसे छीन रहे हैं। तो जो है काउंटर में जो है फुले जी ने आर्गुममेंट दिया कि आप दाढ़ी बना के आए हैं। बोला यहां किस चीज से बनाए हैं? रेजर से बनाए हैं। तो बोले आपने जो है नाइयों का जो है पैसा जो है उनका काम उनसे छीन लिया है। आपने उनको मेहनताना दिया है। काम नहीं तो मेहनताना नहीं। कोर्ट का यह वर्डिक्ट आया। उसके बाद फुले जी का एक स्टेटमेंट बहुत पॉपुलर हुआ। उन्होंने कहा कि माली द्वारा घर-घर फूल पहुंचाना उसका पेशा है। लोहार द्वारा लोहे का काम करना उसका पेशा है। बरई द्वारा लकड़ी का काम करना उसका पेशा है। आप बताओ ब्राह्मणों के द्वारा पूजा कराना पेशा है कि धर्म? इतना स्पष्ट कर दिया हम कई बार वही हमको पहचान को आधार बना के जब राजनीतिक और आर्थिक हित साधने के लिए भावनात्मक मुद्दों को उछाला जाता है उसको हमको फर्क समझना चाहिए वो एक वाद है कोई किस कुल में पैदा ले लिया वो आपके हाथ में आप ब्राह्मण होंगे कि दलित होंगे आपके हाथ में थोड़ी तो इस आधार पे अगर डिस्क्रिमिनेशन खराब है सही बात है मैं सहमत हूं तो ना किसी दलित के साथ डिस्क्रिमिनेशन करो ना किसी ब्राह्मण के साथ वाले विषय में बड़ी गाली खाई इटावा वाले विषय मैंने बहुत तीखा बोला था तो सबसे ज्यादा हमको ब्राह्मणों ने गिराया था। यह अलग बात है कि बिहार वालों बोला था दूसरी साइड वालों ने गिरिया जो वहां सपोर्ट कर रहे थे और मुझे रियलाइज हो जिसके लिए बोलो तो कभी एक पक्ष जो पीड़ित होता है वही बाद में प्रताड़ित बन जाता है। वही परमटेशन कॉम्बिनेशन याद रखिएगा। वही होता है। वही काम करता रहेगा। आज जो तारीफ कर रहा है वो कल गाली दे रहा है। जो कल तारीफ कर रहा था वो आज गाली दे रहा है। तो मैंने कहा यह भी अच्छा एक दौर है। चलता रहना चाहिए। हां लेकिन अपने व्यवहार को एक सिद्धांत पे टिका करके अनवरत नितांत भाव से चलते रहना है उस कमल की तरह जो रहता कीचड़ में है लेकिन कीचड़ नहीं होता है। इस देश में कौन सी सरकार है जिसका रोल मॉडल आप लोग पेश करोगे बिहार चुनाव में कि हमको वोट क्यों दो क्योंकि बीजेपी अपना कर रही है। आज भी जैसे वो बहुत सारे उनके स्टेटमेंट आ रहे हैं। बहुत सारी चीजें आ रही है कि वो जीत भी रहे हैं और उनके अपने दावे हैं कि हम चीजें बेहतर कर रहे हैं। आप देखिए एक तो हो गया क्रिटिसाइज करना। मैं अगर पॉजिटिव बात किसका रोल मॉडल बात में ये है कि देखिए सरकारें हमारी ज्यादा जगह नहीं है। जहां सरकारें हैं उसमें से कुछ चीजों को हम पिक एंड चूज करेंगे। हेल्थ पॉलिसी हम चाहेंगे कि राजस्थान का इंप्लीमेंट हो और गहलोत साहब जाकर के प्रेस कॉन्फ्रेंस किए हैं। वो इतना बेहतरीन मॉडल लेकर के आए कि गरीब से गरीब इंसान भी बिना इलाज का नहीं जान गवाएगा। बेहतरीन हेल्थ मॉडल है। यूनिवर्सिटी के अंदर जो हमने कहा पहचान के आधार पर जो डिस्क्रिमिनेशन होता है अभी कर्नाटक की सरकार जो है रोहित बेमुला एक्ट लागू करने जा रही है। उस तरह के डिस्क्रिमिनेशन कैंपस में जो होते हैं उसको रोकने के लिए वो एक्ट लेकर के आएंगे और वेलफेयर का जो मॉडल है चाहे वो तेलंगाना में हो या कर्नाटक में हो। जो हम कह रहे हैं कि सरकार जो रेवेन्यू कलेक्ट करती है तो आप बड़े कॉरपोरेट का कर्जा माफ़ करते हैं। 16 लाख करोड़ आपने कर्जा माफ़ कर दिया। तो दो चार 10 50 लोगों को जो है ना आप लाखों करोड़ दे देते हैं। वह पैसा जो है थोड़ा ट्रिकल डाउन कीजिए। पब्लिक में लेकर के जाइए थ्रू वेलफेयर स्कीम और थ्रू जो है आप हेल्प कीजिए। फाइनेंसियल असिस्टेंस कीजिए ताकि रोजगार पैदा हो। छोटे उद्योग धंधे बेहतर हो। ज्यादातर लोगों को रोजगार मिले और पलायन जैसी समस्या से जो है बिहार बच सके। तो रेवेन्यू का दो हिस्सा है। एक हिस्सा आप वेलफेयर स्कीम के तहत डेवलपमेंट कीजिए। इंफ्रास्ट्रक्चर बनाइए और दूसरा जो है आप फाइनेंसियल असिस्टेंस जो है वो हेल्प प्रोवाइड कीजिए। तो वेलफेयर के जो स्कीम्स हैं जो अभी कर्नाटक में चल रहे हैं या तेलंगाना में चल रहे हैं वो हम वहां से लेकर के आएंगे। और बिहार की जो स्थिति है जो वहां का इकोनमिक कंडीशन है जो रिसोर्सेज है उसके आधार पे फाइनेंसियल असिस्टेंस का क्या मॉडल बन सकता है उसको तैयार करने की कोशिश बट मेरे मन में एक सवाल आ रहा था क्योंकि मैं कर्नाटक भी पढ़ा मैंने तेलंगाना भी पढ़ा रेड्डी साहब मेरे पिछले चैनल में उन्होंने एक इंटरव्यू भी दिया था काफी वायरल हुआ था वो हिमाचल भी पढ़ा मैंने ज्यादातर जगहों पर जो मेरा अपना ऑब्जरवेशन है जो दिल्ली चुनाव में मैंने बीजेपी और आम आदमी पार्टी दोनों से चढ़कर पूछा भी था कि जो ये फ्री फ्री फ्री आप कर रहे हो इलेक्शन के टाइम में तो आप कर देते हो बट जैसे ही सरकार बनती है आप पैसों का रोना शुरू कर देते हो। हिमाचल में भी आर्थिक संकट है। देखिए उसमें मैंने तेलंगाना में डिजास्टर का एक बहुत तेलंगाना तेलंगाना में मैंने रेड्डी साहब का भी स्टेटमेंट सुना कि जो कर्ज 2014 में 72000 करोड़ था अब वो 6.71 लाख करोड़ हो गया क्योंकि पिछली सरकारें जो हैं नहीं वो तो ओवरऑल देश की सरकार का कर्ज जो है ₹1.5 लाख करोड़ नहीं उसके अलावा भी उन्होंने कहा कि हर महीने 18500 करोड़ कमाते हम हैं जिसमें 6500 करोड़ में वेतन जाता है। 6500 करोड़ कर्ज में जाता है। इसके बाद केवल 5000 करोड़ बचते हैं। जिससे सारी योजनाएं इंप्लीमेंट नहीं हो पा रही। उन्होंने कहा मेरा भी पैसा काट लोगे तो भी इतना पैसा नहीं है। हिमाचल में भी इशज़ और ज्यादातर स्टेट्स में आए। तो ये जो फ्री मैं फिर पूछ रहा हूं आपसे। ये मैंने अरविंद तीनों मैं एक बार एक क्वेश्चन कंप्लीट। मैंने अरविंद केजरीवाल से भी पूछा था ये कि क्यों ना इस देश में हेल्थ और एजुकेशन ये फ्री करके बाकी सब चीज खुद से करनी दी जाए। क्यों इसमें लालच हो कि मैं तुम्हें ये दूंगा तुम मुझे ये दो। नहीं ये एक मॉडल हो सकता है। क्योंकि मेरा मानना है जीने का हक दे दीजिए कि आपका इलाज हो जाएगा और पढ़ने का दे दीजिए। जो पढ़ेगा वो आगे बढ़ेगा। आप ही कह रहे थे राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा। देखिए यह एक मॉडल हो सकता है। तो फिर यह क्यों नहीं हो रहा? काफी एफिशिएंट मॉडल हो सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन हम बस इसमें एक करेक्शन ऐड कर रहे हैं। हम कि तीन राज्य का आपने नाम लिया। तीनों जगह के गारंटी जो आप कांग्रेस को देखेंगे ना वो सिमिलर नहीं है। हम जैसे एक सबसे बड़ा अंतर आपको बताते हैं। हिमाचल में ओल्ड पेंशन स्कीम लागू हुआ है। कर्नाटक में नहीं लागू हुआ है। ना गारंटी में था। यही लॉजिक था। वहां फौजी ज्यादा हैं। उनका मसला बड़ा था ये। नहीं वो इसलिए कि आपको ना स्टेट स्पेसिफिक वेलफेयर मॉडल लेकर के आना पड़ेगा। इसीलिए हम आप जब हमसे सवाल पूछे तो हमने कोई ब्लैंकेट एक स्टेट का एग्जांपल नहीं लिया। जैसे हमने आपको यहां से उठा लो, यहां से उठा लो। हमने स्पेसिफिकली कहा कि अगर हमको हेल्थ मॉडल लेना होगा तो हम राजस्थान का लेंगे जो बेस्ट है। जो बात आप कह रहे हैं उससे हमारा एग्रीमेंट है कि आप एजुकेशन और हेल्थ अगर कर दो तो बहुत काम आप कर चुके हैं। ये एक बेहतर मॉडल हो सकता है मतलब बिहार के सबको अपॉर्चुनिटी मिल जाएगी। जिसको अपना बदलना है बदल लेगा। बिल्कुल ये एक बेहतर मॉडल हो सकता है बिहार के केस में। देखिए बिहार में जब आप रिसोर्स की बात करेंगे सबसे बड़ा रिसोर्स ही तो ह्यूमन रिसोर्स है। हम इसीलिए तो इकोनॉमिक पॉलिसी ऐसी बनाई जाती है कि उसके ह्यूमन रिसोर्स को ही एक्सप्लइट किया जाता है। क्यों बिहार को लेबर फैक्ट्री बना करके रखा गया है? देश भर में जो है सस्ते मजदूर जो है वो वहां से पलायन करके पहुंचाए जाते हैं। तो ह्यूमन रिसोर्स को अगर ठीक से मैनेज किया जाए जैसे पढ़ने के लिए बिहार का स्टूडेंट कोटा जा रहा है। फिर वहां जो है पैसा खर्च करें फिर फिर जो है कहीं इंजीनियरिंग करने के लिए दूसरे राज्य में जाए। हम कह रहे हैं कि पढ़ना ही है ना। जब जब स्टूडेंट बिहारी टीचर बिहारी तो कोचिंग क्यों बाहर होगा? वही कोचिंग हो। वहीं लोग पढ़े वही इंजीनियरिंग कॉलेज हो। वही इंजीनियर बने। वहीं पे जो है अरे कंप्यूटर लेकर के लैपटॉप लेकर के अमेरिका के लिए ही काम करना है तो जो गुड़गांव में काम कर सकते हैं वो तो मुजफ्फरपुर में भी बैठ के कर सकते हैं। बिहार में भी जो नेता लोग हैं जितने हैं आपको इंडिविजुअल लेवल पर मैं कांग्रेस के नेता से वही सवाल पूछ रहा हूं। कन्हैया से पूछ रहा हूं। सबसे ज्यादा उम्मीद किस में दिखती है? देखिए बिहार ईमानदारी से बोले ये बात। हम यह बात घुमा नहीं रहे हैं। बिहार जिस तरह की इंट्रेंस प्रॉपर्टी सॉरी पॉवर्टी और डिस्पैरिटी और लैक ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर और रिसोर्सेज का शिकार है ना एकदम होनेस्टली बोल रहे हैं। एक अकेला कोई कुछ नहीं कर सकता है। हम भी नहीं कर सकते। ये सच बात है। एक टीम बनानी पड़ेगी। एक कलेक्टिव एफर्ट लगेगा। तभी जाकर के यह 14 करोड़ पापुलेशन वाला राज्य जहां 40 लोकसभा सीट हैं और 243 विधानसभा सीट है। एक बिहारी जो बाहर जाकर के ओवर परफॉर्मिंग होता है वो अपने जगह पर क्यों नहीं परफॉर्म कर पाता है? उससे अगर निकालना है तो एक इंफ्रास्ट्रक्चरल रिवैंपिंग एजुकेशन और हेल्थ की जो है बेटर जो है अवेलेबिलिटी और ह्यूमन रिसोर्स का मैनेजमेंट ये कलेक्टिव एफर्ट लगेगा। अच्छा एक बात बताइए मुझे इंजीनियरिंग आती ही नहीं है। तो सिर्फ मेरा एफर्ट काम करेगा? नहीं करेगा। लॉ बनाना है तो हमको एक लॉयर की जरूरत पड़ेगी। आज के जो डिजिटल प्लेटफार्म है इसको समझने वाले जो लोग हैं एक उसके प्रोफेशनल की टीम लगेगी और सर्वगुण संपन्न 36ों गुण ठीक है ना एक विक्टिम नहीं हो सकता ठीक है एक कलेक्टिव एफर्ट लगेगा तेजस्वी यादव प्रशांत किशोर चिराग पासवान नए लड़कों में किसमें ज्यादा आपको उम्मीद दिखती है ज्यादा कम की बात नहीं है फिर भी अगर आप आपको अपना एक देखना हो इनमें से रेटिंग में अपने हिसाब से तीनों की बहुत अलदा क्वालिटी है देखिए तेजस्वी जी के पास जो है सरकार चलाने का एक्सपीरियंस है। बाकी किसी के पास नहीं है। प्रशांत जी का ये दावा है कि वो सरकार बनवाने का एक्सपीरियंस है। चलाने का एक्सपीरियंस है। उसी तरह से चिराग पासवान मुझे लगता है कि बाहर में ही शायद पढ़े लिखे हैं। मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है। दिन दुनिया देखा है। उनके पास नीतीश जी को हरवाने का एक्सपीरियंस है। नहीं देखिए राजनीति बदल रही है बिहार की। सबकी अपनी-अपनी यूनिक क्वालिटी है और ये सारी क्वालिटीज मिलकर के बिहार को बेहतर बनाने के लिए प्रशांत किशोर ने चलिए मैं इस्तेमाल करता हूं मैं। प्रशांत किशोर ने आपकी बड़ी तारीफ की। अब वो वो बीजेपी वाली तारीफ थी। जैसे बीजेपी कर रही थी कि आप पढ़े लिखे हैं या वो दिल से थी वो मुझे नहीं पता। वो आप ये तो वही आकलन कर लेना। लेकिन जो स्टेटमेंट मैंने सुना वो कह रहे थे कि आप में पोटेंशियल बहुत ज़्यादा है। और आपको एक एक तरीके से उन्होंने कहा कि आप कांग्रेस के अभिमन्यु क्यों बने हैं? कि कुर्बानी देने आप पे जा रहे हैं। आप कांग्रेस बिहार में आरजेडी के पिचलग्गू बनिए। बट आपको लेके वो कह रहे थे कि आप में पोटेंशियल बहुत है और मुझे लगता है कि आप एक कांग्रेस में अभिमन्यु तो देखिए राहुल जी बने हुए हैं। सारे महारथियों से जो है ना मुकाबला कर रहे हैं। ये संज्ञा और विशेषण तो उनके लिए सही है। मेरे लिए तो नहीं है। दूसरा उन्होंने तारीफ की है। देखिए कोई भी इंसान एक बहुत चलो मैं और स्पेस करता हूं। बहुत मार्केट में रमर चल रहा था कि क्या कन्हैया कुमार पीके की तरफ जा सकते हैं? आप क्योंकि आइडियोलॉजी लेके बड़ा क्लियर रहे हो। कह दिया तो चलो आज मैं पूछ ही लेता हूं मैं। मैं जो है ना कहा कि जब मुझे विचार बदलना होगा ना हमें प्रोफेशन ही नहीं तो क्या पता कह दो कि अपना लेफ्टिस्ट बन के ही हम पीके के साथ भी चले गए। अब लेफ्टिस्ट बन के कांग्रेसिस्ट हो गए तो आप ये नोट जेस्टिस्ट हो जाओगे। आप ये नोट करके रखिए ना। हां अगर सब ठीक-ठाक रहा आपके दर्शक हमको पसंद किए तो फिर कभी ना कभी बुलाइएगा ना। अरे हम महाराज हम वीडियो बनाएंगे आप पे। तब जो है कॉलर पकड़ लीजिएगा। गिरवान पकड़ कर के पूछ लीजिएगा कि आज जी महाराज बोले थे कि नहीं जाएंगे। चले गए तो नहीं जाओगे कभी। मतलब मैं कह रहा हूं पूछ रहा हूं पीके के पास नहीं जाओगे कहीं नहीं जाएंगे कांग्रेस ही रहोगे यह रिटायरमेंट यहीं से यह बहुत बड़ा स्टेटमेंट है ये मतलब बहुत बड़ा बहुत बड़ा स्टेटमेंट है सिंधिया साहब चले गए पायलट साहब जातेते रह गए बहुत सोच समझ के दे रहे हैं एक शेर है उनका अहमद मुस्ताक साहब हम कि मौसमे गुल हो कि पतझर हो अपनी बला से हम वो फूल हैं ना खिलते हैं ना मर जाते हैं तय कर लिए हैं जीवन में। हमको भी एक शेर याद आ गया। आपकी तरफ से कांग्रेस को कि तूने अंदाज़ मोहब्बत देखी है जाने जा। अंदाज़ वफा नहीं। हम वो पंछी हैं जो पिंजरा खोलने भी उड़ते नहीं। बेइज्जत कर दिया भले आपने मंच पे नहीं चढ़ने लेकिन हम जाएंगे नहीं। रहेंगे वहीं हम। बेइज्जत तुम प्यार करो या दुश्मनी। ये अव्वल तो जो है बेइज्जत और इज्जत कोई एक तरफा आशिक। एक तरफफ़ा आशिक हो गए कन्हैया कुमारी। एक आशिकी तो खैर राजनीति में आशिकी का कोई मसला नहीं है। वो तो एक अलग विषय है। देखिए मतलब कांग्रेस आपका आजीवन हो गया। ये कुल मिलाकर आपने यहां से एक ये बड़ी बात रखी है। जो लक्ष्य लेकर के हम चल रहे हैं। किसी पार्टी में जाओगे इसके बाद। हम जो लक्ष्य लेकर के चल रहे हैं कि कांग्रेस पार्टी को वही प्लेटफार्म होना है जो प्लेटफार्म कांग्रेस पार्टी आजादी के आंदोलन के दौरान थी कि कोई भी देश से प्रेम करने वाला देश को बेहतर करने की का सपना रखने वाला तो आपको राज्यसभा क्यों नहीं भेज दिए लोग आप जाते संसद में आप अच्छा बोलते हो आपकी आवाज बुलंद करवाते आज जो पहले से लोग लगे हुए हैं वो नहीं जाए हम ही चले जाएं अरे कहां उतना अचड़ के कहां कर पा रहे हैं आज ही राहुल जी कहीं कहे अच्छा जो जोर से बोल हेमता विश्व शर्मा शर्मा को जेल भेजेंगे। अंदर से पता नहीं कौन जाके बता दिया आपके यहां। एक तो आपके अंदर भी सारे लोग आधे भाजपाई हैं आपके यहां पे। क्या हम ये कह रहे हैं कि ये ये जो है राजनीति में कुछ मिल जाए तभी ईमानदार रहेंगे। उससे बुलंद हो जाएगा ना। आवाज बुलंद होगा। अब टैलेंट बहुत है। दिखाने का मौका नहीं मिल रहा। खिलाड़ी बहुत अच्छा खेलता है। बहुत मारता है। लेकिन मैदान पे नहीं उतारेंगे। खाली पानी पिला के लाओ। ऐसा नहीं है। अगर बढ़िया टैलेंट है ना तो खिलाड़ी का मौका नहीं मिलेगा तो जो है कोच बन करके करेंगे। ठीक है। एक एक बात बताइए द्रविड़ जो है खिलाड़ी में जो किए सो किए कोचिंग में बहुत सचिन का इतना तो बड़ा नाम नहीं हो पाया लेकिन अपना टैलेंट जो है कोचिंग में दिखाए नहीं देखिए इंसान को ना मेहनत करना चाहिए ठीक बात ऐसे ही अगर कुछ मिल जाए वरदान में तो वो अलग बात है अगर अपने पराक्रम से किसी चीज को प्राप्त करना है तो फिर मेहनत करते रहो इस मामले में तो मोदी जी का सम्मान करते होंगे आप कि मेहनत करके वहां तक पहुंच गए हां भाई मेहनत लगता है वो भी जिस तरह आडवाणी जी का बैकग्राउंड से आया। हां भाई बहुत मेहनत किए हैं। जिस तरह से आडवाणी जी के रथ पे उनका माइक पकड़े हुए थे। मेहनत तो लगता है। देखिए ऐसा नहीं है कि हम मोदी जी का ना कुछ अच्छा कुछ अच्छा दिखा वो कुछ अच्छा नहीं देखते हैं। बट ये तो तारीफ वाली चीज है ना कि उन्होंने भी मेहनत की। अगर पुराने से देखो हमें तो पुरानी फोटो देखते हैं ना आगे बैठते थे। ना हो सब्र तो रखा। हम्म। सब्र तो रखा और देखिए कि सब्र का फल कितना मीठा हुआ कि बिना एमएलए बने ही मुख्यमंत्री बन गए। कितना कमाल बात है। गजब बात है। लेकिन नहीं लोग यहां मुखिया बनने के लिए जो है क्या-क्या चप्पल घिस रहे हैं। वह सीधे राज्य का मुखिया बन गए। हम तो है भाई सब्र तो है। और वहां देखिए कि अभी मुखिया कहां के बने? ऐसा नहीं कि बिहार का बन गए। गुजरात का बन गए जिसके पास जो है तटिया चो। वही मैं कह रहे हैं बंदरगाह है। ऑलरेडी जो है एडवांस कैपिटलिस्ट स्टेट था। पूरे देश भर में जो है सूरत से ही साड़ी जा रही पूरी दुनिया भर में हीरा जो है गुजरात से ही जा रहा था। तो है संयोग है। उस संयोग का यह है कि माने पहले जो है जब गुजरात में कोका कोला को बैन कर दिए तो जो है अमेरिका वीजा नहीं दे रहा था और उसी में जगह जो है वो ट्रंप को बुला के नमस्ते ट्रंप करा रहे थे। तो भाई सब्र तो किया है। यह कैसे नहीं मानेंगे कि सब्र नहीं किया है। यह तो सीखना चाहिए आज के लड़कों को और आज के नौजवानों को कि थोड़ा सा कुछ नहीं मिलता है तो राइट स्वाइप कर देता है। क्या राइट ही होता है ना जी सब्र करो। बहुत टेंडर चलाए हो आप। नहीं नहीं चलाए तो हम नहीं हैं लेकिन हम आपको बार-बार यही कहते हैं कि रहते हम इसी जमीन में हैं। और पूरा कनेक्टेड हैं आपकी तरह एकदम जनता से। ठीक है। ये एक रैपिड फायर से पहले एक लास्ट क्वेश्चन। एक बड़ा कंट्रोवर्शियल स्टेटमेंट आपने दिया था कश्मीर को लेकर इंडियन आर्मी कॉन्टेक्स्ट में। हां। अच्छा वो अच्छा सवाल आजकल लोग पूछता नहीं है। भारतीय फौज ये 8 मार्च की भारतीय फौज इंडियन इंडियन आर्मी देखिए अब शुभंकर जी हम आपको अच्छा रेट कर रहे हैं। आप थोड़ा ध्यान रखिए आप टीवी पे नहीं है। आप पहले सवाल पूछिए लेकिन फैक्ट के साथ पूछिएगा। पकड़ ले। चलो मैं पकड़ लेता हूं सीरीज इस पे। क्या कन्हैया कुमार ने ये स्टेटमेंट दिया था कि भारत इंडियन आर्मी जो है वो कश्मीर में रेप करती है? नहीं। मैं आर्मी शब्द इस्तेमाल नहीं किया था। आप जा के देखिए। तो ये क्यों आपके नाम पे चिपकाइया? हां। इसीलिए मैंने कहा कि सवाल यह क्या आप भी Twitter वाला क्वेश्चन ले नहीं मैं अरे मैं आपको महाराज पूरा सहित सर्च करके लाए हैं कि सहित पूरा रिसर्च सहित है हमारे पास। हम बताते हैं सुनिए आप छोड़ दीजिए। हम ही बोल देते हैं। आप बाद में क्रॉस कलेक्शन कर दीजिए। जनता भी कर ले। ये 8 मार्च की बात है। मैं दुनिया भर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पे भाषण दे रहा था। हम 8 मार्च का दिन आप सब लोगों को पता है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। ठीक बात है और महिलाओं के न्याय के लिए जेंडर जस्टिस के लिए महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के ऊपर बात कर रहा था। ठीक है? और एक लंबा हिस्सा था जिसमें मैं बात शुरू किया रवांडा से हम कि कैसे जो है रवांडा में रेप को एक वॉर टूल की तरह इस्तेमाल किया गया। और कैसे जो है वहां पर एक साथ आर्मी के द्वारा रवांडा की बात कर रहा हूं। हम हजारों महिलाओं के साथ रेप किया गया हम और पुरुषों को मारा गया तो स्थिति यह हुई कि जब रवांडा में सरकार बनाने की बात आई तो महिलाओं का रेशियो पुरुषों से ज्यादा था। ये बात बोला। फिर हमने कहा कि देश में कहीं भी कोई हिंसा होती है तो आपको आपके पहचान के आधार पर जो अत्याचार झेलना पड़ता है वो तो झेलना ही पड़ता है। लेकिन अगर आप महिला हैं तो आपको डबल अत्याचार झेलना पड़ेगा। मान लीजिए कहीं दंगा हुआ अगर हम पुरुष हैं तो हमारा जान ले लेगा लेकिन महिलाएं जो हैं उनके साथ बलात्कार भी किया जाएगा और जब हम इतनी सच्चाई और बेबाकी से सच्चाई बोल रहे हैं महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध पे बात कर रहे हैं तो हम यह भी बोलेंगे सुरक्षा बलों के द्वारा ये शब्द मैंने इस्तेमाल किया ठीक है मैं क्योंकि ये आप उसको आउट ऑफ द कॉन्टेक्स्ट जो मैं आपके सामने खोले बैठा हूं मैं नहीं दिखाएं आप एक बार कश्मीर में महिलाओं से रेप करते हैं जवान आप ये आप मतलब आप टीवीए वाला दिखाइएगा मैं सिर्फ समझना चाह वो म सच का की पड़ताल जो है झूठ से कैसे अरे आपका स्पीचे पड़ा हुआ है। ये आपका स्पीच था। हम पूरा स्पीचे आपको बोल दिए। हम सुन ही लेते हैं ना महाराज। अगर झूठ होगा तो खत्म कहानी। पूरा स्पीच सुन। पूरा लगा दे रहे हैं। फ़ पूरा लगा। कोई टीवी मेरा पूरा स्पीच लगाता है। एक ही बार लगाया था जब हम जेल से निकले। अच्छा टाइम दाढ़ी-वाढ़ी भी नहीं था आपका। आप तो क्या दाढ़ी रखे थे पहले से? रखे थे। तो जेल से छूट के आए हैं महाराज। यहां दाढ़ी नहीं है इसमें। लेकिन अरे तीन तारीख को जेल से छूट के आए हैं। 8 तारीख को भाषण दे रहे हैं। छात्र संघ के देश के महिला से बोलेंगे हम के खिलाफ बोलेंगे हम सैनिकों का सम्मान करके इस बात को बोलेंगे कश्मीर के अंदर महिलाओं का बलात्कार किया जाता है तो हम क्या बोल रहे हैं कश्मीर के अंदर महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है सुरक्षा बलों के द्वारा हां और इस पे रिपोर्ट है सरकार की इस पे आर्मी वही बात कह रहे हैं ना कि इंडियन आर्मी रेप करती है नहीं मैं इंडियन आर्मी नहीं बोला हूं हम बोला कि हम सैनिकों का सम्मान करते हुए यह बात बोलेंगे कि सुरक्षा अच्छा मतलब आप आप आर्म फोर्स के संगठ संगठन के बारे में तो मिलिट्री होता है, पैरामिलिट्री होता है। ठीक है ना? और हम बोलते हैं आर्म फर्सेस। जनरल बोल देते हैं। सही बात है। ठीक है। तो उसमें मैं जो बोल रहा हूं अगर मैं गलत बोला होता 10 साल हो गया है सर। आर्मी हमारे ऊपर केस कर देती। हम जेल में होते। इंडियन आर्मी का इस पर क्योंकि जब मैं रिसर्च कर रहा था एक स्टेटमेंट भी आया था। मैं आपको कोर्ट वर्ड दर को दे रहा हूं। नहीं इंडियन आर्मी का स्टेटमेंट आने का जरूरत ही नहीं जो हम आर्मी इस्तेमाल ही नहीं कर रहे। उनकी साइड से आपको रिप्लाई आया था। नहीं। मैं अरे यह भी अखबारों में है। यह जब कोर्ट किया गया था तो उनकी तरफ से एक ऑफिसर ने यह स्टेटमेंट दिया। वर्ड वर्ड बता रहा हूं मैं। कौन आर्मी मैं आपको अभी पूरी डिटेल दे रहा हूं। नहीं मेरे पास कोई रिप्लाई नहीं। ये स्टेटमेंट को ये जब स्टेटमेंट गया कि भारतीय सुरक्षा बल जो है वो कश्मीर में महिलाओं का रेप करते हैं। तो इंडियन आर्मी के ऑफिशियल की तरफ से जो एक प्रेस रिलीज जारी होती है उसमें ये वर्ड था कि भारतीय सेना इन आरोपों को खारिज करती है। दावा करती है कि इस तरह के आरोप आतंकवादी समूहों द्वारा प्रचार के लिए फैलाए जाते हैं। सेना कहना है जवान कठिन परिस्थितियों में काम करते हैं और मानव अधिकारों का सम्मान करते हैं। हम हमारे घर से लोग आर्मी में काम करते हैं। ये आपने बताया पहले भी जिस परिस्थिति में लोग काम करते हैं मुझसे वाकिफ हूं इसीलिए मैं सेना का सम्मान करता हूं। जब हम पूरी दुनिया में महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों की चर्चा कर रहे हैं तो पूरी दुनिया में जहां-जहां महिलाओं के खिलाफ अपराध हुए हैं उसका जिक्र ये आपने सही आपने जो जिन-जिन कोर्ट किया वो ठीक बात है। ये दो सेकंड का भाषण है। मैं सिर्फ इंडिया कॉन्टक्स्ट से पूछ रहा हूं। क्या आप इंडिया के कॉन्टेक्स्ट में भी आप कोर्ट मार्शल्स केस उठा करके देख लीजिए। तो आप मानते हैं। यह मैं नहीं मानता हूं। यह मेरे मानने से कुछ नहीं होता। लेकर यह कोर्ट मानती है। जो कोर्ट का आप स्टेटमेंट कह रहे हो जो क्योंकि कई सारे जब मैंने और पढ़ना शुरू किया तो कई सारी घटनाओं का जिक्र था कि 90 में ऐसा वैसा तो जब मैंने उसके नीचे ये स्टेटमेंट पढ़ा तो उसमें इंडियन आर्मी का जो स्टेटमेंट था कि ऐसी बातें अक्सर आतंकवादी समूह फैलाते हैं ताकि दुर्भावना फैले आर्मी को लेकर। वो एक वह एक प्रोपेगेंडा है भारत के खिलाफ। हां। वो एक अलग बात है। वो बिल्कुल अलग बात है। लेकिन पूरी दुनिया में रेप को एज ए वॉ टूल इस्तेमाल किया गया। पुराने जमाने से लेकर ये सारी फिल्मों में देखा हमने और सारे आक्रांताओं का कहानी। लेकिन मेरा कॉन्टेक्स्ट वो नहीं है। कन्हैया मेरा कॉन्टेक्स्ट सिर्फ इतना है क्योंकि भारतीय फौज कहां से हमसे कम कश्मीर भारतीय फ़ौज। मेरा कॉन्टेक्स्ट वो है ही नहीं। या अब आप मानते हो ये स्टेटमेंट। मेरा स्टेटमेंट जो है मैं उसको कह रहा हूं। मेरा कॉन्टेक्स्ट जो है मैं अपना कॉन्टेक्स्ट बोल रहा हूं और वो आज भी बोल रहा हूं। उसको नहीं बदल रहा हूं कि मैं 8 मार्च को महिला दिवस के दिन पूरी दुनिया में होने वाले अपराध जो महिलाओं के खिलाफ होते हैं उसका जिक्र कर रहा था। हम महिलाओं के अपराध का अभी आपके साथ है। मेरा सिर्फ फिर घूम टेली कहानी वही है कि वो जो लाइन थी कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बल महिलाओं के साथ रेप करते हैं। नहीं नहीं ये तो ब्लैंकेट स्टेटमेंट है। ये मैंने बोला ही नहीं है। मैंने वही प्ले किया था। मैं मैं उसके साथ वो जो प्ले किया वो मैंने भी सुना। मैंने बोला वो मैं बोल रहा हूं फिर कि मैं भारतीय सेना का सम्मान करता हूं। यह भी आपने कहा बोलते हुए मैं कहूंगा कि आपसपा का मैं विरोध करूंगा क्योंकि आपसपा का इस्तेमाल करके जो है आम नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है। मैं आज भी बोल रहा हूं मैं आपसपा का विरोध करता हूं। मैं यह भी बोल रहा हूं कि सुरक्षा बलों के द्वारा महिलाओं के खिलाफ बलात्कार किए गए और यह कोटेड है। यह रिपोर्ट है। अगर मैं गलत बोला होता। सुनिए मेरी बात तो मेरे ऊपर मुकदमे होते। मैं जेल में होता मानहानि का केस होता अभी एक पत्रकार एसआईआर के खिलाफ जाकर के रिपोर्टिंग कर रहे थे उनके खिलाफ मुकदमा जी और जान लीजिए उन्हीं को तो शुरू में आपने जब मैं जब आर्मी के खिलाफ बोल ही नहीं रहा हूं तो आर्मी मेरे खिलाफ जो है क्यों क्यों मुझे रिप्लाई यू मीन दिस लाइन आई मीन कि हम जो कह रहे हैं उसको उस कॉन्टेक्स्ट में मैं कॉन्टक्स्ट समझते हुए कह रहा हूं हां महिलाओं के खिलाफ कॉन्टक्स्ट में कह रहे हैं कि आप इंडियन आर्मी का सम्मान करते हैं लेकिन कश्मीर में महिलाओं के संग फौज ने रेप किया नहीं फिर ये सुरक्षा बल यह बात अगर आप बोलेंगे इसका मतलब यह हो गया कि सुरक्षा बल रेप करते हैं। मैं यह नहीं बोल रहा हूं। फिर क्यों इतना सिंपलीफाई करो ना इसे थोड़ा और इजी था। ये इंसिडेंट हुआ है दुनिया भर में कि रेप को एज ए वॉर टूल इस्तेमाल किया गया। ये व्हिच इज ट्रू ये रहा है और इसके ये बांग्लादेश में भी था। पाकिस्तानी फौज को लेके हमने पढ़ा सब पढ़ा मैंने। यही स्टेटमेंट है। कश्मीर और सुरक्षा बल का कॉन्टेक्ट बात कर रहा हूं। वो वो सुरक्षा बल आप किसे कोट कर रहे थे? जिन लोगों ने किया किसे? कौन? जिनके खिलाफ जिनके खिलाफ मुकदमे हैं जिनके खिलाफ जो है किस पाकिस्तानी आर्मी की बात कर रहे हो बांग्लादेश आर्मी कबीली ये ये इंडियन आर्मी की बात ये ये आप आयोग के रिपोर्ट्स देख लीजिए ये जो है आप आप जो है कोर्ट मार्शल्स के रिपोर्ट्स इंडियन आर्मी कोर्ट कर रहे हो ये सुरक्षा बलों के खिलाफ ही तो कोर्ट होगा ना हां और किसके खिलाफ होगा तो मतलब आप उस उस बयान से बैक आउट नहीं कर रहे हो क्यों बैकआउट शुरू में आपने कहा आपने नहीं कहा था अब आप कह रहे हो आपने कहा था जो कोटेड जो प्रचारित किया जाता है ना कि मैं यह कहता हूं कि सेना बलात्कारी है मैं उससे वो वो वो मैंने कभी नहीं कहा। मैं उससे बैक आउट करता हूं। लेकिन जो रेप के इंसिडेंट हैं और बलात्कार को एज ए जो है वॉर टूल इस्तेमाल किया गया है। मैं उससे बैक आउट नहीं करता। ये फर्क है। आपने क्लेरिफाई कर दिया। अंतिम फैसला दर्शक को छोड़ देता हूं मैं उनके विवेक पे। नहीं देखिए क्या होता है ना कि एक नैरेटिव बनाना है किसी इंसान के खिलाफ। हम हिंदू विरोधी है, आर्मी विरोधी है, देश विरोधी है। तो जो बात आप कह रहे हैं, सबसे पहले उसको कॉन्टेक्स्ट से बाहर कर दीजिए। कॉन्टेक्स्ट उसका हटा दीजिए। फिर उसके बात को काट छांट करके ऐसे दिखाइए ताकि यह तीन बात स्थापित किया जाए। अच्छा एक बात बताइए मैं चंदन लगा के मंदिर चला गया। हम ये इतना जो है मिर्ची लगने वाली बात क्यों थी? क्योंकि ना यह उस नैरेटिव के खिलाफ जाता है। तो मैं तो चर्च में भी जा रहा हूं। मैं तो जो है गुरुद्वारे में भी जा रहा हूं। वह फोटो नहीं वायरल हो रहा है। क्यों? क्योंकि हिंदू विरोधी किसी को साबित कर रहे हैं। उसका नाम कन्हैया है और उसके माथे पे चंदन आ गया ये तो हमारा नैरेटिव ब्रेक हो जाएगा। उसी तरह से जब यह पता चला ना हम ये तो देखिए मैं 3 तारीख को जेल से आया था। यह 8 तारीख का कार्यक्रम था। तो 5 दिन में तो सारा रिसर्च हो नहीं गया होगा। उसमें तो समय लगे होंगे। जब पता चला कि भाई इसके घर में तो खुद ही नौकरी करते हैं तो कैसे इसको काउंटर करेंगे? इसके परिवार में जो है लोग स्वतंत्रता सेनानी है तो कैसे काउंटर करेंगे? तो ये सारे आरोप जो है वो उसी वक्त समाप्त हो गए। लेकिन बार-बार मेरे खिलाफ जो है ना इसको इस्तेमाल इसलिए किया जाता है। क्या बोलिएगा? मुझे खराब साबित करने के लिए कुछ तो कहिएगा। यह तो नहीं कहने लगेगी ना बीजेपी अचानक से। कि नहीं नहीं बहुत बढ़िया आदमी है। शानदार लड़का है। काहे तारीफ नहीं करेगी? क्यों कहेगी आपकी तारीफ करेगी? नहीं करेगी। आप उनकी करोगे नवाब करेंगे। तो वो जब मेरी बुराई करेंगे तो यही सब बोलेंगे ना आर्मी के खिलाफ बोला, देश के खिलाफ बोला, धर्म के खिलाफ बोला। यही बोलेंगे ना ये उसी का हिस्सा है। अब आप एक बात मुझे बताइए। हमारी आर्म फोर्सेस इतनी ऑर्गेनाइज्ड फोर्स है। मैं आज की डेट में पॉलिटिक्स में हूं। मैं कोई अगर ऐसा लूज स्टेटमेंट दूंगा तो क्या मेरे खिलाफ कारवाई नहीं होगी? होगी ना और जब मैं किसी क्योंकि कारवाई जब होगी तो कॉन्टेक्स्ट के साथ होगी और जब कॉन्टेक्स्ट के साथ होगी तो वो गैरकानूनी नहीं है। क्योंकि कारवाई तो कानून करेगी ना। यह मुझे Twitter पे बोलते रहे टुकड़े-टुकड़े गैंग। कोर्ट क्यों नहीं मान रही है? यह बिल्कुल वही बात है। और हम तो खुल्लम खुल्ला इनको चुनौती देते हैं। इनको लगता है इनकी धौस है हमारा। अरे बाप रे बाप हम तीन बार सरकार चला रहे हैं जो मन करेंगे सो अपनी बला से हम भी बिहारी हैं अमित शाह जी एकदम घुटना हरा करके देख लेंगे आपका ईडी सीबीआई सबको आ जाइए हैं लगे हुए तो आप बताइए कि जो खुल्लम खुल्ला लड़ रहा हो सरकार से चैलेंज कर रहा हो वो कोई लूज स्टेटमेंट देगा और उसको सरकार छोड़ देगी पांचप साल छहछ साल लोगों को जेल में बंद करके रखती है बात बिना बात के लोगों के घर पे ईडी चला जाता है इनकम टैक्स चला जाता यह हमको छोड़ देंगे और मुझे ना बिना बात का बात करने की आदत ही नहीं है। मैं जो कहता हूं सोच समझ के कहता हूं और फिर उस पे टिका रहता हूं। चाहे उसकी क्सक्वेंसेस जो भी हो। मैंने यही शुरू में जो आपसे मैंने कहा था ना कि कुछ स्टेटमेंट जब आप सयाने आते हो तो उसमें मैं यही स्टेटमेंट बिकॉज़ टुकड़े-टुकड़े वाला तो मैंने कोर्ट की पूरी पढ़ी थी। इस पे मुझे था कि इस पे क्या नजरिया आपका है। सर हम पीएचडी कर रहे थे जेईनयू में ग्रेजुएशन करने थोड़ी गए थे। बात को समझिए। तो हम ऑलरेडी जो है उम्र के उस पड़ाव पे थे जो कई ठोकर खा चुके थे। फिर भी थोड़ा कॉलेज में होता है ना आदमी जोजश में कई बार बह जाता है। वो कॉलेज नहीं अबवल तो यूनिवर्सिटी है। हां ठीक है। दूसरा यह है कि हम पीएचडी कर रहे थे। तीसरा यह है कि हम राजनीति वहां से शुरू नहीं किए थे। उससे पहले दो चुनाव हार चुके थे। ठीक। ये सब मिस कैलकुलेशन था भाजपा का। ठीक। जानते हैं उसके बाद कोर्स करेक्शन में याद रखिएगा यह बीजेपी ये गलती दोबारा कभी नहीं की। जो जेएनयू में वो कर गई। कि किसी को पकड़ने से पहले उसके बैकग्राउंड से सच निकाल करके नैरेटिव पहले बनाना है पकड़ना बाद में सीख गई आननफानन में जो उन्होंने किया एक बात बताइए ना मैं प्रोग्राम का ऑर्गेनाइजर था जो लोग ऑर्गेनाइज किए थे मैं वो भी नहीं टुकड़े-टुकड़े वाली बात कर हां ना मैं ऑर्गेनाइज आप नहीं थे हां ना मैं परमिट अथॉरिटी हूं ना मैं वहां प्रेजेंट था एक WhatsApp मैसेज खाली था आपके नाम का जिसमें आप और कुछ बात थी जो डिलीट हो गया था तो वह तो मेरा नंबर भी नहीं अच्छा वो नंबर पुलिस के पास आज तक है। मैं यही बार-बार कहता हूं कि हम ना कोई ना अरड़िया या जो है बलिया में जो है किसी कॉलेज में नहीं थे। देश की राजधानी है दिल्ली वो भी साउथ दिल्ली बसंत कुंज और जहां पे सिर्फ भारत के नहीं अलग-अलग देश के स्टूडेंट पढ़ते हैं। तो क्या हमारी खुफिया एजेंसी चीजों पे नजर नहीं रखेगी? और आप तो हमको जो है आज ये पूछ रहे हैं। सोचिए ना कि एजेंसी कितना बार पूछी होगी? हम एजेंसी जब आती थी पूछने के लिए तो एक ही कहती थी यार इनको और कोई नहीं मिला। अच्छा जब एजेंसी वाले उठा के ले आते हैं तो कैसे पेश आते हैं? थोड़ा बताओ ना क्योंकि नहीं वो हमारे साथ तो बहुत अच्छे से पेश आए क्योंकि उनको सब पता मारपिटाई नहीं होती थी। क्यों हो गया? उनको सब पता था। वो तो कहते थे। ठीक है। चायवा पियो आराम से करो। अब मुझे पता है तुम्हारे पास दो मेल है। ठीक है ना? मुझे नहीं पता था कि जो मेरे दोस्तों की गर्लफ्रेंड के नाम क्या है? वो बता रहे थे। सच बोल रहे हैं आपको। किसी का ही तो नहीं पता लगा कि दो सी गर्लफ्रेंड में किसी औरत को नहीं उनके पास मैं ये कह रहा हूं कि आपको आपको लगता है वो सब जानते हैं उनको सब पता रहता है उनको सब मालूम है हम आज आपसे बात कर रहे हैं उनको है हिसाब किताब हां होगा ही मतलब सार्वजनिक तौर पर हम डाल के बुलाया आपको तो नहीं नहीं उससे ज्यादा उनको पता रहता है तो आजकल तो जो है डिजिटल मीडिया के जमाने में किसी पे भी जो है वॉच रखना बहुत आसान है हम खुद ही इंफॉर्मेशन इतना देते हैं बाकी जो है आपसे परमिशन पूछ करके थोड़ी इसका माइक ऑन हुआ है और परमिशन पूछ करके थोड़ी इसका कैमरा ऑन होगा। दे नो एवरीथिंग। तो पॉइंट यह है कि उनके सामने जब यह आया तो खुद ही माथा पाट पीट ले कि कहां गोबर में आ डलवा दिया है। बताओ ये जो स्टूडेंट हैं इनकी माली हालत यह है कि इनको कर्जा वक्त पे नहीं मिले तो अगले सेमेस्टर में इनका एडमिशन नहीं होगा और देश तोड़ देंगे। अजीबोगरीब बात थी। लेकिन क्या है कि आप उस वक्त टीवी आपका भी एक सेमेस्टर बैन हुआ था। उमर का तो शायद हुआ था एक सेमेस्टर बैन। नहीं मुझे हर चीज के लिए कोर्ट जाना पड़ा। नहीं नहीं पढ़ाई में एक सेमेस्टर शायद उमर खालिद का बैन हो। नहीं मेरा बैन आपका नहीं होता। लेकिन मुझे मेरी पीएचडी कोर्ट के परमिशन के बाद सबमिट हुई। मेरा फाइन जो है कोर्ट ने माफ़ किया। क्योंकि वहां उस वक्त जो है ना यही हो गया था। हर चीज के लिए कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ रहा था। वही हम बोले कि बहुत ठोकर बहुत ठोकर खा के। कपिल सिब्बल जैसा वकील पा गए थे आप। हां। खर्चा करके जाओ। अभी देखो अभी एक किडनी दान करनी पड़ेगी। नहीं मैं मतलब क्यों ही जाना पड़े प्रभु क्या जरूरत है मतलब कहते हैं हमारे यहां कहावत है कि डॉक्टर और वकील का चक्कर ना ही पड़े तो अच्छा है सही बात है ओके बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन बिहार की जनता 14 करोड़ जिसको बनाएगी आपकी नजर में क्या है मेरे पास तो एक ही वोट है ना सर आपने हम तो एक वोट महागठबंधन को ही देंगे बाकी 14 करोड़ जिसको बहुमत देगी अच्छा कन्हैया कुमार की मम्मी किसको वोट देंग अगर बेगूसराय से अगर कांग्रेस के टिकट से कन्हैया कुमार चुनाव लड़ते हैं तो क्या मम्मी उनको वोट देंगी या लेफ्ट को वोट देंगी? पता नहीं मतलब आज तक वो कहती है कि मैं आज तक दूसरे पार्टी को वोट नहीं दिया हूं। मांगना पड़ेगा मतलब उनसे भी जो है एक मतदाता की तरह जो है ना गुहार करना पड़ेगा कि अमी को वोट दो। एक इंटरव्यू में आपसे पूछा गया कि लालू जी भ्रष्ट थे। आपने कहा कि जेल तो भगत सिंह भी गए थे। काफी लोगों ने उस पे भी ऐतराज किया कि लालू जी सजाया आपने भगत सिंह बिल्कुल क्रांतिकारी से तुलना कर दी। नहीं मैं यह कहा कि किसी को जो है सजायाफ्ता हुआ है, जेल गया है। इसी आधार पे जो है आप किसी को अपराधी कहने लगेंगे। बट भगत सिंह जी से तुलना सही थी। अब तुलना किससे करते बताइए? किसी अच्छा से ही तुलना कीजिएगा ना। वो तो बहुत अच्छा। अच्छा एक बात बताइए आपको कहें कि आप स्मार्ट लगते हैं तो क्या बोलेंगे? आप जो है क्या नाम था उसका? का एंजलेना जोली का जो हस्बैंड था ब्रेड पेट ब्रेड पेट लगते हैं। तो क्या कहेंगे कि आप असर नहीं लगते हैं। अरे आपसे बेहतर जो होगा उसी से तुलना करेंगे। देखो हमको केला और सेब सिखा रहे थे आप अभी केला सेब वाली तुलना कर रहे हैं। नहीं आप लगते हैं ब्रेड पेट। अरे मैं तो लगता हूं। मैं सोचा उससे भी सुंदर लगता हूं। और बताइए मुझे नाम याद नाम उसका भी नाम मुझे याद नहीं था। आप नाम याद दिलाए अगली बार मैं आपको वही बोलूंगा। बट वो एक अरे नम मत तो बताइए महाराज। अरे हमको हम सलमान खान लगते हैं। रणबीर कपूर लगते हैं। सलमान खान मत बोलिए। आप सिंगल भी हैं, ब्याह भी नहीं हो रहा है और आप सलमान खान भी हैं। कोई और बोलिए। रणबीर कपूर करते हैं। रणवीर कपूर ठीक है। लॉक कर लेते हैं। रणबीर कपूर। हां, रणबीर कपूर करते हैं। अच्छी-अच्छी गर्लफ्रेंड भी बाद में बीवी अच्छी है। ठीक है। लालू जी पे कन्विक्शन हो गया था। क्योंकि कांग्रेस के सरकार में ही हुआ था और ये पूरा मामला गया। भगत सिंह जी जो है देश के लिए शहीद हुए थे। तो मेरी नजर में वो भी सेब और आम केले वाली तुलना है। देखिए हम ना क्या है ना कि जब कहते हैं तो अच्छा ही कहते हैं। यह संस्कार है हमारा। तो जब लालू जी के लिए कह रहे हैं तो अच्छा ही बोले। खराब क्यों बोलेंगे? समझे बात को? मेरे मेरा मनोभाव समझिए। ऐसा नहीं है कि हम भगत सिंह को अपमानित कर रहे हैं। हम लालू जी को भी सम्मान दे रहे हैं। तो जब सम्मान देना है जैसे हम बोले ना कि अब अगली बार हम आपको रणवीर कपूर ही बोले। सम्मान देना है आपको। ये बात है। और कोई वो नहीं है। मतलब बिल्कुल हम अपमानित नहीं। देश का सबसे ईमानदार नेता कौन? सबसे ईमानदार। ये तो बड़ा मुश्किल सवाल है। मतलब नेता भी हो और ईमानदार भी हो। बहुत मुश्किल सवाल है। अपने पार्टी के नाम नहीं लिए। नहीं क्यों लेंगे? ना सही बात है। नेता तो नेता ईमानदारी का फैसला जीते जी तो हो नहीं सकता है। मरने के बाद होगा। मरने वाले नेताओं में पूछिए तो मैं लेता हूं नाम। शास्त्री जी नहीं शास्त्री जी शास्त्री जी नेहरू जी गांधी जी सरदार पटेल सुभाष चंद्र बोस भगत सिंह कोई नाम की कमी है फुले अंबेडकर बिरसा मुंडा अनंत हां देखिए सहमत सहमत मैं कहता हूं जीते जी जिंदगी किसी को ईमानदार का सर्टिफिकेट दे देंगे आप मुझे अभी ईमानदार का सर्टिफिकेट दे दीजिए मैं बाहर जाकर के बेईमानी कर लूं मरने दीजिए जीवन खत्म होने दीजिए तब हमारा हिसाब लिखा जाएगा सही बात है जीते जी आदमी की तारीफ ही करना क्या पता तारीफ की अगले दिन कोई कांड कर दे। अपना भरोसा नहीं है। दूसरे का ठेका लेके कौन घूमे। ठीक बात है। मैं ओशो को सुन रहा था। अच्छा आप सुनते हैं। हां हां आप सुनते हैं? मैं भी सुनता हूं। हां। ओशो ने एक दिन कहा कौन-कौन किताब पढ़े हैं ओशो का? ओशो का भाई का पडकास्ट किया तीन घंटे। बड़ा मजा आया था। अभी रिलीज़ करने वाले हैं। सुनिएगा। कौन किताब? किताब हम नहीं पढ़े। उनको हम उनका वीडियो खूब सुनते हैं हम। उनका एक किताब हम लोग के कॉलेज के जमाने में बहुत मशहूर था। कौन सा? वो आपको पता है आप सेक्स वाला। ऐसे मत अच्छा देखिए अभी देखिए ना देखिए यही यही है साइकी जो ये मैं ये यही साइकी समझना है उसमें बात है समाधि की अच्छा लेकिन जो है आप संभोग संभोग से समाधि लेकिन आप बोले संभोग देखिए ना वही चर्चा पूरा रहा है अरे हमने उसप बहुत लंबा पडकास्ट किया आपको मजा आएगा हम आपको मैं यही बोल अरे हम आपको लिंक भेजेंगे महाराज आप देखिएगा बोल करके पता लगाने की कोशिश करते हैं कि सीरियसली ओसो फैन है कि नहीं नहीं मैं ओसो फैन नहीं निकाला मैंने उनको सुनना शुरू किया मुझे वो को बहुत तार्किक लगे और मुझे बड़े दिलचस्प कैरेक्टर लगे कि एक आदमी आज एक बात कहता है फिर अपनी बात को काट देता है और मैंने उनके भाई से पूछा भी तो उन्होंने बड़ा खूबसूरत जवाब दिया कि मनुष्य हैं परिवर्तन है डेवलप इवॉल्व हो गए तो बदल दिया तो मुझे ओशो को लेकर बहुत सिरे सवाल मेरे मन में थे मुझे बड़ा कैरेक्टर वाइज फैसनेटिंग लगे कि एक आदमी मध्य प्रदेश से निकलकर कहां-कहां पहुंचा क्या-क्या कर दिया और कैसे आज इतना प्रासंगिक है वो मुझे बड़ा फैसनेट अब मैं उनको धीरे-धीरे पढ़ना शुरू कर रहा हूं नहीं पढ़िए तो उस पडकास्ट में 3 घंटे मैंने खूब सीखा उनसे। तो मैं धीरे-धीरे उनका अब फैन बनने की तरफ बढ़ रहा हूं मैं। लेकिन उनके भाई ओशो साहब ने एक लाइन कही थी कि गांधी जी की जो ईमानदारी थी और सादगी थी वो बड़ी महंगी थी। गांधी जी को दिखाने के लिए बड़ा खर्चा होता था। उन्होंने बताया है कि उनके प्रोग्राम आरएसएस करवाती थी और नहीं वो ट्रेन वाला किस्सा कि थर्ड क्लास एसी थर्ड क्लास में चलना है। तो 60 का 60 आदमी काटा भी है उसने खुद ही। हां कि यह उस जमाने की बातें हैं जब मैं जो है बोला करता था गांधी के खिलाफ और गांधी के खिलाफ बोलता था तो बड़ा अट्रैक्शन होता था। आरएसएस जो है खर्चा दे देती थी। प्रोग्राम ऑर्गेनाइज ये भी कहा है ये हमको ये उनके भाई साहब हमको नहीं बताए। नहीं तो ये यही देखिए ओसो के बारे में सबसे भाई साहब सबसे बढ़िया कमेंट्री अगर किसी का है वो है प्रसाई जी का। प्रसाई जी का विचार ओसो जी के बारे में ये हम लेके जाएंगे। हम आज रात को बैठेंगे। मैं भी मैं भी थोड़ा पढ़ता लिखता हूं समय निकाल हां तब तो बलवा पका है ना नहीं नहीं जेल जाके थोड़ी ना पका है नहीं अनुभव से ज्ञान से नहीं ओके बीजेपी में आपका फेवरेट लीडर कौन है कोई एक नहीं जो आपको लगता है बढ़िया है ये नहीं बहुत सारे बीजेपी कोई फिर भी एक दो जो आपको लगता हो ये इनको आप सुन लेते हो अच्छा लगता है इनसे कुछ सीख सकते हो नहीं मतलब हम लोग जब स्कूल में थे तो हम लोग अटल जी को ही सुनते थे अटल जी में क्या अच्छा लगता था अटल जी में बहुत सारी अच्छी बातें थी। जैसे यह कोई नहीं कहता है किसी के मर जाने के बाद कि हमारा घुटना खराब हो गया था। हम बीमार हो गए थे तो हमारा इलाज कराने के लिए हमको राजीव गांधी बाहर भेजे। राजनीति में इतनी सुचिता बची ही नहीं है। कोई किसी के लिए कुछ कर भी दीजिएगा तो स्वीकार नहीं करेगा। लेकिन यह स्वीकार करना या जो है हमको हम विपक्ष में थे। फिर भी हमको भारत का प्रतिनिधि बना करके बाहर भेजे। अभी देखिए ना खूब हंगामा हुआ ना शशि थरूर को मोदी जी भेज दिए। अरे तो पहले भी भेजे हम यह तो भारत का आप लोग कर रहे थे ना शशि थरूर पेर पे ना हम लोग नहीं कर रहे हां आप पूरी आप एक पार्टी एकदम शशि थरूर को और आरएसएस वाला बना दी है बस खाली यहां तक ला रहे हैं थरूर के आगे थरूर पे मजबूर हो गए बेचारे बोल ही नहीं पाते कि बोल दे पता लगे रुक गए तो गड़बड़ा जाएगा थरूर साहब जो है मुझे भगत सिंह बोले थे कोई भी किसी को जब सम्मान देता है ना तो थरूर साहब बढ़िया आदमी है अच्छा हां बढ़िया आदमी किस में बात हिंदी में बात करते हो अंग्रेजी में आपकी तो अंग्रेजी अच्छी भी है नहीं मेरी तो हिंदी में ही बात होती है हिंदी उनको बहुत अच्छे से आती है अच्छी हिंदी बोलते बोलते हैं अच्छी नहीं वो हिंदी बोलते हैं आप मैं मिला नहीं मैं कभी मेरा जुड़वाना मैं एक पॉडकास्ट करूंगा उनका मजा आएगा मुझे हिंदी लेकिन बोलते हैं मुझे तो पता नहीं मुझे तो हिंदी क्योंकि वो अपनी बारी अंग्रेजी बोलेंगे तो मुझे समझ में ही नहीं आएगा हिंदी बोलते हैं राहुल गांधी इंटरव्यू क्यों नहीं करते करते हैं फिर कम करते हैं बहुत कम करते हैं ना के बराबर करते हैं वो तो सभी मुझे लगता है कि विपक्ष के नेता के तौर पर आप और एक्टिव होना चाहिए क्यों नहीं करते इतना इंटरव्यू प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं ना प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं उसमें भी डांट देते हैं तुम बीजेपी वाले हो तुम ये हो तुम वो हो तुम वो इन जनरलाइज जैसे हम आप पडकास्ट कर रहे हैं। देखिए बहुत जेंटलमैन आदमी हैं। वो मैं कह रहा हूं और उनको सुनने का मौका क्यों नहीं मिलता? इतना तो बोल रहे हैं यार रोज भाषण देते हैं। हां वो अलग चीज है ना जैसे आप जब आप पॉडकास्ट कर रहे हो इसमें कन्हैया को लोग इनसाइड आउट जाने होंगे। ऐसे इंटरव्यूज वो क्यों नहीं करते? चलो आप लोग मोदी जी पे तो आरोप लगाते हैं। ये है मेरे ख्याल से भारत जो रो यात्रा के दौरान उन्होंने किया है। बहुत लिमिटेड रहा है। उसमें भी बड़ा एकदम केवल टच टू टच होके तो आप कोशिश कीजिए करेंगे आप। आपके दोस्त नहीं है। राहुल जी मेरे दोस्त कैसे होंगे? मतलब पार्टी में है उतना बेटर तो होगा ना आपका। नहीं नहीं हम लोग कोलीग हैं साथ। कोलीग है तो बातचीत होता है आपका? जितना जरूरी है उतना होता है। कितने दिन में बात कर लेते हो राहुल गांधी से? महीनों महीनों भी नहीं होता है। कई बार जो है लगातार बात हो जाती है। ये निर्भर करता है कि WhatsApp फ्रेंड हो आप लोग? नहीं नहीं। WhatsApp तो मैं खुद ही नहीं इस्तेमाल करता हूं। आपके पास नंबर है राहुल गांधी का? मेरे पास WhatsApp नहीं है। मैं WhatsApp इस्तेमाल करता हूं। क्यों? मैं नहीं करता हूं। WhatsApp इस्तेमाल क्योंकि हुआ यह ना कि आपका WhatsApp नंबर कोई ग्रुप में जोड़ दिया और सरकार जो है कल को केस करेगी तो ग्रुप मेंबर को भी उठा के ले जाएगी। उस पे कोई कंट्रोल ही नहीं है। हम कम से कम बाकी जो माध्यम है तो आपका कंट्रोल है ना कि आप अब मान लीजिए कोई हमको इनबॉक्स कर रहा है। लेकिन हम रिप्लाई करेंगे तब ना हम दोषी होंगे। अच्छा चलो जी ये आपसे याद आया मुझे। जैसे आप लोग कहते हो कि सरकार का विरोध करना जेल जाने की वजह नहीं हो सकता। आजकल ये कांग्रेस पे भी बड़ा आरोप लगता है। बीच में आम आदमी पार्टी पे भी लग रहा था कि अब कोई सोशल मीडिया पर विरोध करता है तो खट से पुलिस तैयार हो जाती है। कर्नाटक पुलिस जो है दिल्ली पकड़ने आती है। बहुत सारे राइड विंग के जो Twitter वाले लोग हैं वो कहते हैं कि तुरंत तैयार बैठी रहती है। कौन पकड़ाया है? अब पकड़ाए नहीं किसी को दिल्ली पुलिस पकड़ने नहीं देती। कोई अलग-अलग माहौल है लेकिन पकड़ने पुलिस आती है। तो नहीं तो इस न्यूसेंस का क्या उपाय है मुझे बताइए? ये तो आप जैसे कह रहे थे ना कि आप लोग के टाइम में कि सुप्रीम कोर्ट वाला मामला बताया आपने। नहीं मैं यह नहीं कह रहा हूं। मैं ये जो अभी आप बताइए ना कि कितने देर से हम लोग अरे बहुत देर बात कर रहे हैं। हां बस का आखिरी सवाल खत्म है एकदम तो हम लोग जो है इतने देर से बात कर रहे हैं यह जो नो न्यूज़ इज़ अ न्यूज़ हम इससे कैसे निपटा जाए बट फिर इसको डिफरेंशिएट कैसे करेंगे कि यहां गिरफ्तारी सही है यहां गलत है नहीं गिरफ्तारी तो नहीं होनी चाहिए लेकिन ये जो न्यूसेंस हो गया है ना पता है आपको जब हम ऐसे कालखंड में जी रहे हो ना जहां झूठ बोलना ही फैशन हो तो सच ढूंढना बहुत मुश्किल हो जाता बट फिर ये ट्रेंड खराब ट्रेंड नहीं हो जाएगा जैसे आज वहां आपकी सरकार है आप उन्होंने बोला इधर का बोला उन्हें गिरफ्तार कर लिया आप वाला बोलेगा वो आप पे चढ़ा देंगे हमारी सरकार तो फिर तो गिरफ्तारी गिरफ्तारी सरकार नहीं करती है कभी-कभी जो है कर देती होगी कि थोड़ा शक्ति संतुलन बना रहे हैं मीठामीठा गप गप तीखा तीखा थूक थूक हां नहीं नहीं करती है और नहीं करना चाहिए हां ये ये स्टेटमेंट ठीक था कि जो गलत है गलत है अगर आप विरोध करोगे मतलब हमको तो कोई विरोध करेगा तो हम तो किसी पे केस नहीं करेंगे हम किसी को ब्लॉकव्लॉक नहीं आप कम्युनिस्ट हो ना अभी आप अभी आप पूरे कांग्रेसी नहीं हुए हो ना अभी अच्छा तो तो आपको कम्युनिस्ट सरकारों के बारे में पता नहीं है। हां पता रे बंगाल में तो क्या किए हो आप लोग त्रिपुर में क्या किए हो? नहीं नहीं दुनिया में। जेएनयू वाले अब अब नए कम्युनिस्ट हो ना अब जेएनयू अब तो कम्युनिस्ट खाली जेएनयू तक मेरे लिए सही शब्द है कांग्रेट बुला के कांग्रेट हां लेफ्ट इन कांग्रेस वो सही शब्द है क्या कभी वामपंथी विचारधारा भारत की मुख्य विचारधारा बनेगी मतलब कई सालों से जो है मुख्य विचारधारा है वामपंथी साम्यवादी नहीं दोनों में फर्क है वामे बात वामपंथी रही है जब आप कहते हैं ना कि सब में बराबर वितरण होना चाहिए हम तो अपने आप आप में सोचिए कि भारत के संविधान में जो एक मूल बात है कि सबको बराबर का वोट का अधिकार दिया गया है। ये तो वामपंथी विचार है। साम्यवादी नहीं है। दोनों में फर्क है। कम्युनिस्ट और लेफ्टिस्ट उसमें एक फर्क है। और एकेडमिक्स में बहुत लंबा चौड़ा डिबेट है इसके ऊपर। लेकिन भारत का जो कॉन्स्टिट्यूशन है ना जहां सबके बराबरी की बात होगी ना वो अपने आप में जो है एक बमपंथी बात है और आप जान लीजिए मैं बड़ा इंटरेस्टिंग बात कहता हूं मोदी जी भी जब यह कहते हैं ना कि हम 5 किलो अनाज बांट रहे हैं तो यह बमपंथी बात है और एकेडमिक्स में यह डिबेट सेटल्ड है इसको लेफ्ट विंग पॉपुलिज्म कहते हैं। राइट विंग पॉपुलिज्म नहीं कहते हैं। राइट विंग पॉपुलिज्म क्या होता है? राइट विंग पॉपुलिज्म यह होता है जब एक पहचान के आधार पे खास तरह के वोट को साधने की कोशिश की जाए। वो राइट विंग पॉपुलिज्म है। लेकिन अगर अगर आप वेलफेयरिज्म की एडवोकेसी करते हैं तो वो लेफ्ट विंग पॉपुलिज्म है। ये एकेडमिक्स में डिबेट है। तो वेलफेयर की बात करना, बराबरी की बात करना, न्याय की बात करना यही तो वामपंथी धारा सबका साथ सबका विकास। भारत में वामपंथी धारा को अगर आप देखना चाहते हैं तो साम्यवाद उसमें एक धारा है। अंबेडकरवादी एक धारा है और समाजवादी एक धारा है। और ले देकर के आप देखेंगे जो नीति निर्धारण है उसमें बहुत सारा मेजर रोल जो है इसका है। नहीं तो जो है इक्वल वोटिंग राइट नहीं होता। नहीं तो अमीर और गरीब के अधिकार बराबर नहीं होते। क्यों? क्योंकि अगर आप दक्षिण पंथ को समझेंगे तो वह तो ऊंचनीच को सही साबित करते हैं। क्यों? क्यों? क्योंकि वो कहते हैं कि पूर्व जन्मों का फल है। वो यह नहीं कहेंगे कि यह महत संयोग है कि आप मिश्रा जी हैं। वो कहेंगे कि आपका पूर्व जन्म का फल है। आप कुछ अच्छा काम किए थे इसलिए आप ब्राह्मण हुए हैं। यह फर्क है। जो कहते हैं ना कि तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पे यकीन कर। अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर। इसी जमीन को स्वर्ग बनाना है। यही लोगों को बराबरी का अधिकार देना है। महिला पुरुष को बराबर करना है। हर कोई जो कोई कहीं किसी कुल खानदान में पैदा हो गया है। ये उसकी गलती नहीं है। इस आधार पे उसके साथ कोई शोषण नहीं होना चाहिए। ये वामपंथी विचार है। इसीलिए जब मैं मुझे कोई कहता है ना बमपंथी तो मुझे ये गाली नहीं लगती है। मुझे ये स्वीकार है। खत्म काहे हो गई है धीरे-धीरे। कहां खत्म हो गई है। खाली केरल और जेएनयू तक थोड़ा बहुत रह गया। हम तो कह रहे हैं मोदी जी को अपने आप को साबित करना पड़ा। अच्छा क्या जरूरी था यह कहने का कि हम चाय बेचने वाला का बेटा है। गरीब होना क्यों फैशन हो गया राजनीति में? जब देखिए कि सब अपने आप को गरीब साबित करने लगता है। काहे भाई क्या जरूरी है? मतलब गरीबों का राज आया है ना। गरीबों का दखल आया है ना और आप तो मुझे याद है जब हम आए थे चर्चा कर रहे थे तो आपने कहा कि एक बार जब किसी के पास नंबर आ जाए वोट बन जाए तो फिर किसी की हिम्मत है कि कोई उसका विरोध करते। तो गरीबों की राजनीति में दखल क्योंकि उसके पास नंबर है। तभी तो अपने आप को लोग गरीब बनाते हैं। समझ रहे हैं? यह तो बमपंथी बात है। और अगर इस आधार पे इस देश का निर्माण नहीं होता। मैं बहुत इंपॉर्टेंट बात कह रहा हूं। अगर निर्माण नहीं होता अगर संविधान नहीं लिखे जाते, अगर उस संविधान सभा में अंबेडकर जैसे लोग नहीं होते, नेहरू जैसे लोग नहीं होते, तो शायद हमारे देश में भी इक्वल वोटिंग राइट नहीं मिलता। और इक्वल वोटिंग राइट नहीं मिलता। बट अंबेडकर जी तो अंबेडकर जी ने तो तो मोदी जी जो है देश के प्रधानमंत्री भी नहीं हो पाते। अंबेडकर जी मांग रहे थे कि वोटिंग राइट जो है थोड़ा ज्यादा हो। वो इस दलितों का कि उसका दो वोट अकाउंट हो। उनका लॉजिक था वही कि जब कोई इंट्रेंस्ड प्रॉब्लम हो तो आपको अफरमेटिव एक्शन लगता है। वो इस कॉन्टेक्स्ट में मांग रहे थे। जैसे जिस जिस लॉजिक के साथ जो है रिजर्वेशन पॉलिसी आई कि कोई मान लीजिए जनरेशनल वेल्थ है किसी के पास जो मैंने आपको कहा ना कि मेरी मां को पोलियो टीका लगेगा कि नहीं लगेगा इस पे निर्भर करता है कि मुझे पोलियो होगा कि नहीं होगा। तो कोई पैदा ही अगर बिना पहर का होगा तो इक्वल कंपटीशन कैसे होगा? किस कॉन्टेक्स्ट में हम पैदा हुए हैं? हमारी पढ़ाई लिखाई क्या है? हमारे मां को कैसा पोषाहार मिला था? उससे जब हमारी योग्यता तय होनी है। अच्छा इस पे एक बड़ा मेरिट पे एक बड़ा डिबेट है। एक लड़के को आपने सब कुछ दिया। टीचर दिया, बढ़िया घर दिया, एसी दिया, वो लाया 90 नंबर। एक लड़के को आपने कुछ नहीं दिया। वो स्कूल आता है, जाता है, वापस काम करता है। उसके बाद भी वो लाया 50 नंबर। कौन ज्यादा मेरिटोरियस है? कॉन्टेक्स्ट होता है ना किसी चीज का। तो यह जो आज मोदी जी देश के प्रधानमंत्री हुए हैं, इसका एक कॉन्टेक्स्ट है ना? मतलब आप कह रहे हो वामपंथी वो भी है। इसका कॉन्टेक्स्ट वामपंथी है और मैं यह नहीं मानता हूं कि दुनिया में खत्म हो गई है। दुनिया में अगर खत्म हो गया होता ठीक है ना? तो फिर दुनिया में गरीबों की बात दुनिया में तो काफी हद तक आइसोलेट हो गया ना जो वामपंथी थे। अलग-अलग स्टेट से जैसे बंगाल से पूरा गायब हो गए। कम्युनिस्ट पार्टियां हां। साम्यवादी विचार फर्क है। मैं पहले ही से कहता हूं। एक जनरलाइजेशन है कि दोनों एक ही हैं। लेकिन जब आप एकेडमिक डिबेट में भी जाएंगे या एक्सपीरियंस भी देखेंगे तो उसमें फर्क है। लास्ट क्वेश्चन कन्हैया कुमार का भी मैंने एक वीडियो देखा। राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा। क्या गांधी परिवार के अलावा कांग्रेस में कोई और प्रेसिडेंट बन सकता है? अभी ही मलिकार्जुन खरगे जी बने हुए हैं। मलिकार्जुन की बात कर रहा हूं मैं। हां, क्यों नहीं बन सकता है? पहले भी बनते रहे हैं। पहले भी बनते हैं। एक माइंडसेट रहा कि वही बनता है जिसे कंट्रोल कर सकते हैं। पार्टी कब बनी? 1885 में। ठीक है। गांधी परिवार से तमाम लोग कितनी पीढ़ी मोतीलाल नेहरू जी की जवाहरलाल नेहरू जी की नेहरू जी इंद्रा जी इंदिरा जी राजीव जी ठीक है और राहुल जी पांच पीढ़ी हुई ना तो पांच पीढ़ी से तो ज्यादा पुरानी कांग्रेस पार्टी है मतलब ऑब्वियसली मतलब आजादी का सोनिया जी भी बहुत लंबे समय तक रही तो ऑब्वियसली जो है इनके अलावे बहुत सारे लोग जो है कांग्रेस के अध्यक्ष बने होंगे और जो भी कांग्रेस के अध्यक्ष बने ठीक है ना सोनिया जी जब बनी चुनाव हो करके बनी नेहरू जी बने चुनाव हो कर के बने बने इंदिरा जी जब बने बट तो फर्स्ट चॉइस होता है ना वही तो राजा का बेटा राजा हो गया और क्या हुआ नहीं आप फिर जैसे अटल मैं अटल जी की एक स्पीच सुन रहा था पुरानी स्पीच है अटल जी ने कहा कि इस देश में दो आईडियोलॉजीस हमेशा रहेंगी एक हमारी भाजपा जनसंघ वाली और एक वामपंथी उन्होंने कहा वो इसलिए रहेगी क्योंकि हमारे यहां इवॉल्व होते रहते हैं लोग आज एक नेता है आज मैं प्रेसिडेंट हूं कल कौन होगा नहीं बता सकते चेंज हो जाएगा बीजेपी इस बात को बड़ा गुरूर में भी लेती है कि अभी नड्डा जी हैं नड्डा जी के बाद कौन होगा यू नोबडी नोस वामपंथियों में भी कह कहते हैं। लेकिन वो कहते हैं बाकी पॉलिटिकल पार्टीज जो जिन पर वो डायनेस्टी पॉलिटिक्स या नेपोटिज्म लगाते हैं वो कहते हैं उनके यहां पक्का होता है कि अखिलेश जी के बाद यादव परिवार से कौन होगा? लालू जी के यहां कौन होगा या कांग्रेस में कौन होगा और जो अगर अलग बन भी गया तो पावर कहां होगा? देखिए अटल जी बहुत बड़े आदमी थे। मैं छोटा अदना सा आदमी हूं। लेकिन आज मैं ये बात कह रहा हूं रिकॉर्डेड कि कांग्रेस वो पार्टी है जिसमें श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी थे। कैबिनेट में अंबेडकर भी थे। उस टाइम सबको लिया गया। नेहरू भी थे। बट उस टाइम सबको लिया गया था ना कि सब आ जाओ। एक अच्छा मैसेज दें। सेकंड टाइम नहीं लिया गया। कांग्रेस वो है। मैं बस ये कह रहा हूं। हां बट चुनाव में कहां टिकट? जब पहली बार चुनाव हुआ तब तो सब अलग-अलग हो गए थे ना। हम कह रहे हैं कि कांग्रेस में ही ताकत है। तब तो देश की देश था कांग्रेस। हां मैं कह रहा हूं। तो कांग्रेस में ही ताकत है। और यह वाली कांग्रेस नहीं थी तब। यह तो अलग कांग्रेस है ना जो आज है। तो बाद में इंदिरा जी से टूटी अलग निकली। मैं यही कह रहा हूं कि कांग्रेस में ही वो ताकत है। कांग्रेस ही वह हो सकती है। मतलब जैसे आप रणवीर कपूर हो सकते हैं। हम नहीं हो सकते हैं। काहे नहीं हो सकते आप? अरे वो स्मार्टनेस ही नहीं है मेरे पास। सब आजकल सब टाइम हो गया। पैसा ताकत है। सांसद बनोगे पैसा आएगा। दबा के मंत्री बन जाओगे। फिर करवा लेना। माइकल जैक्सन देखो कितना सुंदर बन गया था। मतलब सांसद बनेंगे तो दबा के पैसा आएगा। आता ही है। यही देखा हमने दुनिया में। 100 गुना बढ़ता है। सीधे 200 गुना, 400 गुना, 400 गुना। आप बोलो जिस पार्टी के नेता का नाम बोलो। चलिए जब तक मंजिल पर पहुंच ना जाए तब तक दावा करना बेकार है। हम अभी संसद हो जाएंगे तब भी जीवन आएंगे हम भी कि देखिए कन्हैया कुमार का बड़ा वाला घर बना है ये तो आप कहना चाहिए बहुत मेहनत करे कमाए हैं। देखिए मेहनत तो करते हैं। हां लेकिन और एक बात बताइए आप और हम लगभग एक पृष्ठभूमि के हैं। तो आप अपने जीवन में जो आप सेटल किए हैं, अचीव किए हैं, उसको मानते हैं कि आपकी मेहनत है। दिन रात इतना इतना तो हम भी अपने जीवन में मेहनत किए ही होंगे। पॉलिटिक्स में पैसा सैलरी लिमिट होता है ना महाराज जिससे सांस कंगना जी भी कह रही थी कि सांसदिक पैसा इतना मिलता है कि ड्राइवर और मेस वाला रख दो उसके बाद खाली बिजली बिल भर का पैसा बचता है अगर दो नंबर से ना कमाओ हम कह रहे हैं कि जीवन की सामान्य यात्रा में भी अगर हम राजनीति में ना भी होते तो एक घर तो बना ही सकते थे बिल्कुल सही बात है बनना भी चाहिए तो इस इसकी तो कोई मुद्दा नहीं है नहीं नहीं वो हम वो वाले घर नहीं बात कर रहे हैं वो वो जो नेता लोग छाप देते हैं नहीं वो 100 करोड़ 200 करोड़ 400 करोड़ वाला की जरूरत नहीं है। ठीक है। साईं इतना दीजिए जामे कुटुंब समाए। मैं भी भूखा ना रहूं। साधु ना भूखा जाए। यही यही मिथित देता है। चलिए कन्हैया आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं बिहार चुनावों को लेकर। अच्छी बात यह थी मैं जिन पॉडकास्ट में सवाल नहीं पूछे जाते वहां मैं हमेशा इस बात का जिक्र कर देता हूं कि आपने भी हमसे नहीं पूछा था क्या पूछने वाले हैं। कई नेता हमें ऐसे मिले और अच्छा लगता है मुझे उन नेताओं से बात करना जो नहीं पूछते हैं क्या पूछने वाले और जो हर विषय पर खुलकर संवाद कर लेते हैं। मुझे लगता है एक अच्छी हेल्दी चर्चा लोकतंत्र को मजबूत बनाती है। आप इस परंपरा को कायम रखिए। मेरी शुभकामनाएं आपको और आपके दर्शकों को।

33 Comments

  1. Ye army wali baat pe palat gaya.. 😅😅😅 nakli pan saaf dikh jata hai iska, bol bhi dhang se nahi pa raha tha safayi dete samay.

  2. Kanhaiya illogical baat aur cheep comment se baaz nahi aata. Aur baat ghatiya tareeke se gumana nahi chhodta bhale hi pakda jaaye. Subhankar such a brilliant anchor. He leaves many things on audience to understand. Good job.

  3. Jeb ki baat to sahi hai ki nonveg kha liye, to Delhi mein aaj kal vegetarian gareeb to mar chuke honge. Kuchh bhi logic pel do. 55:15

  4. Convenience ke hisaab se kuchh bhi bol do. Gair zimmedarana attitude isko nark mein hi daalega.

  5. Direct he bol raha hai Indian armed forces ab armed forces army nahi hai to iske Ghar Wale hain kya?? Kitna jhootha aadmi hai.

  6. Bhai direct video dikhane ke baad bhi besharmo ki tarah defend kar raha hai, Subhankar ji aapko strictly bolna chahiye aise time ki bhai video suna Diya ab bakwas mat karo.

  7. Lalu jail gaya par is aadhar pe usko corrupt na bolo kya logic hai iska, wahi ghoda gadha mein Lalu ko bhi ghoda bana diya.

  8. Lalu ke bare mein achchha bolna chahte hain par modi Inka pichhwada noch liya hai ekdam hi sarkaar. Bahot sahi. Baat gareeb banne ki to rahul gandhi bhi kurte ki fati pocket dikha rahe the.

  9. Jairam mahto from jharkhand, ek podcast please Bhaiya jee ❤❤❤❤❤kabhi hamari jharkhand ki bhi bato ko to suniye .

  10. He literally implied that indian army encourages soldiers to rape local kashmiris and repeated the same again here by saying it's a war tool. Still people are supporting him. But not apologising for that statement broke the false persona for me. I hope the people supporting him can see the truth.

  11. भाई इसे कोई नहीं फ़सा सकता
    नेक्स्ट लेवल इंसान हैं ।।।

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