Join WhatsApp https://www.whatsapp.com/channel/0029VaRVu9ICxoB1dyrmQB41

#AbhinaySir #SSCMisManagement #sscprotest #SSCReforms

#AdityaSir #SSCMisManagement #sscprotest #SSCReforms

Unplugged ft. Aditya Sir | SSC Protest | What triggered nationwide anger among aspirants and teachers

#sscmissmanagment #sscReforms2025 #AbhinaySir #SSCVendorFailure #sscpaperleak #neetumam #sanjeevsiriti #abhinaySharma

Shubhankar Mishra: A journalist who navigates the spectrum from Aajtak to Zee News, now independently exploring social media journalism, with a knack for engaging political figures in insightful podcasts.

Shubhankar Mishra has been diving deep into political debates, spiritual podcasts, Cricket Podcast, Bollywood Podcast.

पोस्टर बांटना, रिक्शा चलाना, भूखे पेट सोना वो ज्यादा दर्दनाक था या फिर 31 जुलाई को जो आपके साथ? देश में 5:00 बजे के बाद सुनवाई हो सकती है। तुम धरना क्यों नहीं दे सकते? बच्चों के लिए रो रहा हूं। तुम्हारे बच्चों के लिए रो रहा हूं। हुआ क्या था आपके साथ? सर, मेरे को दो बार डिटेन किया गया। एक अभिनव सर के हिस्से का भी डिटेन कर लिया गया। हां। मतलब वो बाउंसर है ना तो उनके पास वो चले गए। क्योंकि मैं कैमरे के सामने था तो टारगेट मेन था। इसको पहले पकड़ा। इसका मुंह बंद कर दिया तो बाकी बोल नहीं पाएंगे। आपको पड़ी थी लाठी? बिल्कुल सर। दर्द अब हो रहा है। एक टीचर ऐसे थे उनका हाथ भी टूट गया। बहुत गंदे तरीके से बस में ढके। अंदर गाली-वाली भी थी। बस के शीशे भी तोड़ दिए। ऐसा लग रहा था कि हम आतंकवादी हैं। इस प्रोटेस्ट की परमिशन मांगी थी आप लोगों ने? प्रोटेस्ट की परमिशन थी लेकिन हम प्रोटेस्ट करने नहीं गए थे। क्योंकि हम सर थक गए हैं। अब टीचर्स में यूनिटी है। जब बात बच्चों के हित की है तो यूनिटी है। जब मैंने Twitter पे पोस्ट किया तो मुझे याद है मुझे करेक्ट करने बहुत सारे बच्चे आए कि आप लोग इस प्रोटेस्ट को केवल एसएससी बेस्ड क्यों कर रहे हो? बाद में पता लगा कि नहीं इसमें बच्चों को बुलाया गया था वो अलग-अलग मसलों को लेकर आया गया था। हम भी ने भी ये एक्सपेक्ट नहीं किया था कि यह एसएससी डायरेक्टेड हो जाएगा क्योंकि एक महीने पहले रेलवे रिफॉर्म भी एक्सपेक्ट ट्रेंड कर रहा था। ऐसा नहीं है कि वो मुद्दा हमारा खत्म हुआ है। इन छात्रों के प्रोटेस्ट से मुझे सिर्फ हंगामा ही दिखा। ये तो नहीं कि मतलब जितना हंगामा होना चार दिन का बुलबुला फूट गया शांत। फिर अगर एडिक्वटी ने सेम काम किया तो 13 अगस्त से सीजीएल का पेपर शुरू होने वाला है। फिर वो किसी के कंट्रोल में जो अलग-अलग नौकरियों के एग्जाम्स हो रहे हैं वहां पर छात्रों को किन-किन तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा जिसकी वजह से यह पूरा प्रोटेस्ट चल रहा है। यूपी कांस्टेबल में 20,000 कांस्टेबल्स की नियुक्ति की बात की जाती है। लेकिन वो नियुक्ति कहां पर है कुछ नहीं पता। यूपीएसआई में 5000 दरोगा की भर्ती की बात की जाती है। लेकिन वो कब होगा क्या होगा? सर फरवरी से लेकर के अभी तक अगस्त आ गया लेकिन कोई चर्चा नहीं है। अब यूपीएससी में समस्या नहीं आती है। इन सारे एग्जाम्स में समस्या आती है। ये क्यों कि यूपीएससी वाले सरकार में ही काम करते हैं। लेकिन सर वो टॉप लेवल के लोग भी परेशान है। इस कंपनी से क्या दिक्कत है आप लोग को? को एडटी क्योंकि आपकी एक वीडियो मैंने सुना आपने कहा इसको हटाओ टीसीएस लाओ। एडिक्वटी को हटाना पड़ेगा, टीसीएस को लाना पड़ेगा। ब्लैक लिस्टेड कंपनी को आपने कैसे बिल्डिंग में पार्टिसिपेट करने दिया कि सीबीआई इंक्वायरी तक बैठ चुकी है शिवराज सिंह चौहान के सरकार में। तो आप उसको एसएससी जैसे बड़ी परीक्षा का कैसे दे सकते एडिक्विटी के पास में सेंट्री नहीं है। बात तो अब एक्सपोज हुई जाकर के एडिक्विटी ब्याह काहे नहीं हुआ? बहुत ऐसे काम है जो 2025 में अभी शुभारंभ करने हैं। खाने पे इसलिए मम्मी के साथ में नहीं बैठता हूं क्योंकि ये सवाल करेगी। आप लोग के यहां जीएस में क्वेश्चन भी अच्छे-अच्छे आते हैं। सबसे अजीबोगरीब सवाल क्या आया? सर हाइट पूछ ली जाती है कैटरीना कैफ की हाइट कितनी है? अब ये टीचर लोग आपस में उनसे बुराई क्या करते रहते हैं। ऑनलाइन क्लासेस में बच्चा लोग के सामने ही। सर वो भी तो बच्चे के सामने बोल देते तो दूसरा बोलता है हम काहे अकेले में फोन करें? भारत के एक महान सियासी शिक्षक ने एक पडकास्ट में हमसे कहा था कि शिक्षा शेरनी का दूध है। जो पिएगा वो दहाड़ेगा। इसे कहा गुरु सही था। वरना बिहार से एक लड़का जो एक जमाने में दिल्ली में सड़कों पर पोस्टर बांट रहा था। रिक्शा चला रहा था। भूखा बैठा था। वो अपना एक अंपायर नहीं खड़ा करता। और वह उस बात को समझ रहा था। इसीलिए 31 जुलाई को जंतरमंतर पर जब प्रदर्शन हो रहा था। तो वो आगे खड़ा था और आज वो हमारे साथ है। आर्य रंजन जी कैसे हैं आप? बहुत बढ़िया सर। सही कहा हमने। बिल्कुल। शिक्षा शेरनी का दूध है जो पिएगा दहाड़ेगा। बिल्कुल। 31 जुलाई को क्या हुआ था? क्योंकि आपके संघर्ष की कहानी है हमारे आज इस पॉडकास्ट के हिस्से में। लेकिन उसके ऊपर प्राथमिकता हम उस आंदोलन को दे रहे हैं। सेकंड हाफ में हम आपके ऊपर बात कर लेंगे। फर्स्ट हाफ में हम बात कर लेते हैं। क्या हुआ था? क्योंकि हमने जो देखा वह दुर्भाग्यपूर्ण था और मैंने अपने एक वीडियो में कहा भी था कि अगर शिक्षक और छात्र दोनों एक साथ सड़क पर चले आए तो फिर देश को सचेत होना चाहिए। समस्या देश की है। समस्या सिस्टम की है और इससे परेशान होना चाहिए। उस दिन आप लोग क्या-क्या परेशान हुए थे। सर हम तो बच्चों के लिए आवाज उठाने वहां पर गए थे और अपनी डीओपीटी तक बात पहुंचाने गए थे कि मिनिस्टर इस बात को समझ पाए कि किस तरीके से बच्चे काफी ज्यादा परेशान है और बहुत शांतिपूर्ण तरीके से हमने कहा कि चार शिक्षक को जाने दीजिए आप और मिलने दीजिए तो उन्होंने यह कहा कि यह सेंसिटिव एरिया है। आप यहां पर खड़े भी नहीं हो सकते। तो हमने कहा कि जिन मंत्रियों को हमने चुन करके भेजा उनके आगे अगर हम बात भी ना कह पाएं तो यह तो हमारा कोई अधिकार ही नहीं हुआ। फिर हमने क्यों चुन करके भेजा? तो नहीं सेशन चल रहा है आप नहीं जा सकते और फिर कुछ देर के बाद ये कहते हैं कि आप चार लोगों का नाम लिख करके दो हम भेजेंगे फिर नाम लिख के जब उसके बाद में देते हैं तो ऊपर से कॉल आ जाता है कि अलाउड नहीं है सारी चीजें नहीं है और वहीं पर एक ऐसा कमेंट पुलिस पास कर देती है कि जो हमारे एक मदानगी को लेकर मर्दांगी को लेकर के कि फिर वो थोड़ा सा सबके ईगो को हर्ट कर जाता है ईगो की बात नहीं मतलब सर वर्दी हमने भी पहनी है और हमने अपनी वर्दी उतारी इसीलिए कि हम दूसरों को वर्दी पहना पाए तो आप एक शिक्षक के लिए ऐसी जब गरिमा ऐसी जब आप शब्द इस्तेमाल करेंगे तो उसकी गरिमा को बहुत ठेस पहुंचेगा और यह नागुजार हुआ। फिर वहां से थोड़ा सा मुद्दा भटका। बहुत ज्यादा भड़क गया। सारे शिक्षक थोड़े से आक्रोश में आ गए इस बात को लेकर के कि आप ऐसा कह कैसे सकते हैं? हम जिस मुद्दे को लेकर के आपका उसके ऊपर में अटेंशन ना हो करके आप बाकी पर्सनल जा रहे हैं। तो यहीं से सर पूरा मुद्दा ब्रेकआउट होता है। फिर उसके बाद टीचर जब कोई बात कहने की कोशिश करते हैं तो मतलब विदिन सेकंड्स आप बिलीव नहीं करोगे। चार से 5 सेकंड के अंदर में ऐसा होता है। सोचने समझने का भी टाइम नहीं मिलता है। और लाठी चार्ज हो जाता है। आपको पड़ी थी लाठी? बिल्कुल सर। दर्द अब हो रहा है। क्या लाठी खाए थे? सर महसूस नहीं हो पाया कि कितना पड़ा था। मतलब भागमभाग में पड़ी तो है दो-तीन। दो दिन तक तो सर महसूस नहीं हुआ क्योंकि बॉडी गर्म था। लेकिन अब जैसे-जैसे ठंडा हो रहा है वैसे-वैसे दर्द हो रहा है। गले पे काफी निशान आया। मतलब जो नाखून के होते हैं वो थोड़ा सब ठीक हो गया। बहुत बुरा लगा वहां देख के कि चलो मेरा तो दो-तीन ही पड़ा। लेकिन एक टीचर ऐसे थे उनका हाथ भी टूट गया। और ये देख के लगा कि ये कैसे लोग हैं जो एक शिक्षक के ऊपर में इस तरीके से हाथ उठा रहे हैं। किस तरीके से यहां पर मतलब जैसे होता है ना कि सर ऐसा लग रहा था हम आंदोलनकारी ऐसा लग रहा था कि हम आतंकवादी हैं। जिस तरीके से मारा जा रहा है। बसों में ठूसा जा रहा है। गाली तक भी दिया गया। बहुत मां बहन वाली तो वो बहुत थोड़ा नागुजार हुआ। तो ये क्यों ऐसा हुआ? क्योंकि जो पुलिस वाला आपको मार रहा होगा कभी वो भी तैयारी कर रहा होगा। सर तैयारी भी उसने हम ही से की है। आदेश था ऊपर से इस तरीके से आदेश थे कि खड़े नहीं रहने देना किसी को भी। जैसे भी करके हो बसों के अंदर भरो ले जा कर के बाहर फेंको। इस प्रोटेस्ट की परमिशन मांगी थी आप लोगों ने? प्रोटेस्ट की परमिशन थी लेकिन हम प्रोटेस्ट करने नहीं गए थे। हम वहां पर बात करने गए थे कि किसी क्योंकि हम सर थक गए हैं। एक महीने से हम थक गए हैं। हमने Twitter कैंपेन किया। हमने एसएससी चेयरमैन साहब के ऑफिस में जाकर के बहुत विनम्र तरीके से बात करने की कोशिश की। कभी वो मिलते नहीं हैं। कभी उनके जगह पर कोई और सीआईएसएफ का बंदा मिल लेता है। ठीक है। वो यह आश्वासन देते हैं कि ठीक है कोई बात नहीं हम यह कंडक्ट कर देंगे। हम ये चीजें सुधार देंगे। लेकिन सर करते वो जस्टिस का विपरीत है। तो हम जाए तो किसके पास में जाएं? हमारे पास में कोई ऑप्शन भी तो नहीं था डीओपीडी के जाने के पास में। किससे बात करें? कोई मिनिस्टर से बात करे ठीक है हो जाएगा लेकिन कोई चीजें होती नहीं है। और आज शिक्षक वो स्तंभ है जहां से आप किसी चीज का निर्माण करते हो। देश का निर्माण होता है। अगर सही अधिकारी चुन करके डिपार्टमेंट में नहीं जाएगा तो फिर देश कैसे आगे बढ़ेगा? इन चीजों को लेकर के बहुत हमारा कंसर्न था। तो हमने कहा चलो सीधा मिनिस्टर से ही बात करते हैं। उनसे ही यहां पर अपने सवालों को रखते हैं और प्रॉब्लम बताते हैं। लेकिन जो हुआ वो कभी एक्सपेक्ट नहीं किया था हम लोगों ने। आप बिहार से आते हैं उस स्टेट से जहां पर नौकरी एक सपना है अपने परिवार का भविष्य बदलने का। खासतौर पर सरकारी नौकरी को लेकर जो मोह है जैसा मैंने शुरू में कहा आपने पोस्टर बांटे, रिक्शा चलाया। बहुत रिलेटेबल लग रहा था मुझे कि अगर आप उस दर्द को समझ रहे हैं। फिर भी मेरे मन में सवाल आ रहा है कि बीते कई सालों से मैंने शिक्षा प्रणाली को लेकर अच्छी खबरें नहीं सुनी। राजस्थान में पेपर लीक हो गया। यहां पेपर लीक हो गया। यहां अनियमिताएं पाई गई। यहां ये हुआ। कई बार इसका दूसरा वर्जन आता है कि जो लड़कों पेपर अच्छा नहीं गया वो भी हंगामा कर देते हैं कि पेपर लीक हो गया। कई बार सरकार कहती है नहीं लीक हुआ। आप लोग चिल्ला रहे हैं लीक हो गया। हम हर छ महीने में या तीन महीने में खबर आती है। हंगामा मचता है। शोरशराबा होता है। Twitter पे नंबर वन ट्रेंड होता है। फिर गायब हो जाता है। लोग भी कंफ्यूज हैं कि वाकई में असलियत है या अपनी-अपनी दुकान चलानी है। क्या चल रहा है ये? सर देखो हर बार पेपर लीक शब्द जो होता है वो नहीं आता है। अगर आप देखोगे तो हमने कभी ये नहीं कहा कि सीजीएल 2021 का पेपर लीक हुआ है। कभी यह नहीं कहा कि 22 का लीक हुआ है। 23 का हुआ है, 24 का हुआ। लीक शब्द वहीं पर आता है जहां कुछ ऐसे सबूत निकल कर के आते हैं। जैसे अगर आप देखो सेंटर पर मोबाइल ले जाना अलाउड नहीं है। ठीक है? और वहां के कॉपी निकल कर के फोटो निकल कर के आ रहे हैं। टेलीग्राम पर वायरल हो रहा है। हर जगह पर वायरल तो वहां पेपर लीक जैसे शब्द को लेकर के ट्रेंड किया जाता है। शुरू में सरकार इसको डिनाई करती है। सबसे बेहतर एग्जांपल मैं आपको बताता हूं। यूपी कांस्टेबल 2024 का जहां पर 60244 पद थे। जब पेपर पहले सेंटर से सारे बाहर आने लगे तो सरकार ने कहा कि नहीं नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है। यूपी भर्ती बोर्ड कहती है ऐसा कुछ भी नहीं है। लेकिन जब धरना होता है जब उसकी जांच होती है तो वहां पर वो मानते हैं और बाद में उसको कैंसिल कर देते हैं। तो पेपर लीक को लेकर के कभी कोई बिजनेस करने की कोशिश नहीं करता। अगर पेपर लीक होता है तब यह बात कही जाती है अन्यथा नहीं कही जाती। हां डिस्टरबेंस जो होता है सर वो आए दिन चलता रहेगा। दिल्ली में जो ये प्रदर्शन था यह खाली एसएससी वालों का था। नहीं ओवरऑल प्रदर्शन जो था वो एसएससी का भी था, रेलवे का भी था और स्टेट एग्जाम्स को लेकर के भी था। तीनों को लेकर के था। बट वो तो हाईलाइट हुआ ही नहीं। सर इसीलिए हाईलाइट नहीं हो पाया क्योंकि वैसे बात पहुंच नहीं पाई। ज्यादातर जो शिक्षक थे वो एसएससी के थे और जो बातें भी उन्होंने कैमरे के आगे रखी या मीडिया बाइट्स के आगे रखा तो वो एसएससी का ही ज्यादा रखा। तो बाकी बात क्योंकि मैंने जब सोशल मीडिया पर एक हैशटैग लगाया था तो मुझे कई बच्चों ने कहा कि सर ये एसएससी का सिर्फ नहीं था। पोस्टर बांटना, रिक्शा चलाना, भूखे पेट सोना वो ज्यादा दर्दनाक था या फिर 31 जुलाई को जो आपके साथ हुआ। दोनों अपने-अपने जगह पर सर लेकिन पहला वाला जो था वह हील तब हो गया जब हमने लाइफ में कुछ पा लिया। तो ऐसा लगता है कि हां वह एक संघर्ष था और उसको सुन करके उसको याद करके खुशी मिलती है। लेकिन जो अभी दूसरा वाला इंसिडेंट हुआ सर उसको अगर याद करे और अगर वो रिजल्ट में कन्वर्ट ना हो तो उसको दुखी माना जाएगा। अगर मेरे उतना करने से अगर मान लीजिए कि एसएससी एडिक्यूटी में सुधार लेकर के आ जाती है। चीजें बदल जाती है तो मैं उसको बहुत दर्दनाक नहीं मानूंगा। लेकिन इतना होने के बावजूद भी अगर वो रिजल्ट में नहीं आया तो शायद मेरे लिए बुरे सपने। हुआ क्या था आपके साथ? मेरे साथ भी थे और भी शिक्षक थे। हम बातें कह रहे थे जंतरमंतर के पास में सर मेरे को दो बार डिटेन किया गया पहली बार हम डीओपीटी ऑफिस से हुए तो वहां से डिटेन करके ले गए बवाना और बवाना एक अभिनव सर के हिस्से का कभी डिटेन कर लिया गया आपको हां मतलब तो उनको नहीं किया गया था ना वो बाउंसर है ना तो उनके पास वो चले गए वो कहते हैं कि मुझे कोई डिटेन नहीं कर सकता है तो इसीलिए बाकी हालत इसीलिए आपको डबल टाइम कर लिया वो उनके हिस्से का भी उनके हिस्से का भी मैच चला गया मैंने कहा सर कोई बात नहीं आपके हिस्से का मैच चला जाता आप भी मैथ पढ़ाते हैं वो भी मैथ पढ़ाते हैं तो मैंने कहा इक्वेशन बराबर कर देंगे सर दो लोग दो बार डिटेल सही रहेगा। तो पहली बार जब मैं गया तो बवाना साइड मुझे लेकर के गए और उनका उद्देश्य था कि बस भीड़ को अलग करो। इनको शहर के बाहर में छोड़ दो जो नॉर्थ दिल्ली एरिया है उसके बारे में इनको छोड़ दीजिए कि आएंगे ही नहीं दोबारा प्रोटेस्ट ही नहीं करेंगे। बट वहां जाने के बाद में जब उन्होंने छोड़ा उन्होंने कहा कि आप क्या ऊपर में एफआईआर हो रखा है सारी चीजें हो रखी हैं। और अगर आप दोबारा गए तो धारा हम और चढ़ा देंगे। तो मैंने कहा जब कर ही दी हो तो क्या दिक्कत है? फिर तो अब और करेंगे। फिर वहां से गाड़ी लिए आकर के तुरंत जंतरमंतर पे आए और यहां आने के बाद में हमने देखा कि जो स्टूडेंट हैं प्रोटेस्ट कर रहे हैं लेकिन पुलिस एक-एक करके डरा करके निकाल रही है। मुझे ऐसा लगा कि अगर वहां नहीं गए तो डरा के मतलब कैसे केस हो जाएगा 5:00 बज गए निकलो परमिशन नहीं है। ये नहीं है जल्दी से बाहर जाओ नहीं तो लाठी चार्ज कर देंगे। ऐसे-से करके वहां पर बच्चों को एक-एक करके टीचरों को निकालना शुरू कर रही थी। और मुझे ऐसा लगता है कि मतलब थोड़ा सा हिम्मत है कि मैं सामने बोल सकता हूं, रुक सकता हूं वहां पे। हमने कहा एक बार मिलने दीजिए लेकिन वो मिलने वहां नहीं दिए। तो हम वहीं पर नारा लगाना शुरू कर दिए। ठीक है? जो हमारा था कि एसएससी हाय-हाय और बाकी सारी चीजें तो वहां पर है ना जो पुलिस ऑफिसर थे ठीक है? उनको यह बात समझ में नहीं आया और उन्होंने सीधा वहां पे कहा चार्ज और चार्ज के पहले बहुत स्ट्रेटजिकल तरीके से वो क्या करते हैं कि रस्सी से घेरा बंधवा देते हैं कि अगर ये लोग भागेगा ना तो रस्सी में फंस के गिरेगा और उसके बाद और मारेंगे। फिर नीचे गिरेगा फिर टांग तो टांग पे मारेंगे तड़ा। तड़ातड़ मारेंगे वहां बच्चों के साथ में। तो जो शिक्षक थोड़े जानेमाने थे उनको तो कम पड़ी। लेकिन जिनको ज्यादा जानते भी नहीं थे तो बहुत आपको लग रहा आप कम फेमस थे इसलिए ज्यादा पिट गए हां सर कम तो ज्यादा थे दूसरा यह भी था कि मैं कैमरे के सामने था तो टारगेट मेन था कि इसको पहले पकड़ो इसका मुंह बंद कर दिया तो बाकी बोल नहीं पाएंगे इस तरीके से कि दो लोग थे मैं था विक्रमजीत सर थे हम दोनों को उसी तरीके से कि बस इनको शांत कराओ ये शांत हो गए सारी भीड़ भाग जाएगी और इसी वजह से फिर उसके जो चारप लोग लगे सर उठाने में ऐसे भी नहीं कि हां मतलब चले जा रहे हैं उठ के एक बार में पकड़ के लेके जा रहे हैं हम नारेबाजी वहां पर कर रहे हैं बहुत गंदे तरीके से बस बस में ढकेला पूरा गले वाले से यह सारा चल गया पूरा और जाने के बाद में अंदर गाली वाली भी थी और बस के शीशे भी तोड़ दिए और मीडिया वालों से हम बात करने की कोशिश कर रहे हैं तो बस का शीशा वो बंद कर रहे हैं कि नहीं तुम्हें बात नहीं करने देंगे। मैंने कहा मेरा अधिकार है यहां पर कि मैं उनको बता पाऊं कि हो क्या रहा है बात ही नहीं करने देंगे। तो ऐसा लग रहा था कि पूरा कंट्रोलोल्ड एनवायरमेंट है। इस तरीके से आदेश है कि ये कुछ मुंह भी खोलना चाहे तो इनको मत बोलने दो। आप टीचर्स में यूनिटी है। बिल्कुल जब बात बच्चों के हित के है तो यूनिटी है वहां पे सर। थोड़ी बहुत डिस्क्रिपेंसी हो जाती है लेकिन उसके अगेंस्ट में ये नहीं कह सकते कि हम बिल्कुल भी यूनाइटेड नहीं है। क्योंकि मार्केट में एक परसेप्शन ये भी चल रहा था कि बच्चों की समस्या का समाधान हो ना हो सारे टीचर्स के फॉलोअ बढ़ जा रहे हैं। सब दबा के दिनरा वीडियो बना रहे हैं 24 घंटा और उस इमोशंस को इनकैश करना चाह रहे हैं। और अलग-अलग पॉइंट ऑफ व्यू भी नहीं रखे जा रहे। एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बना के भी नहीं आए। वो स्ट्रेटजी भी कॉमन नहीं है। जितने टीचर उतनी बातें उतना एजेंडा। सर सबसे पहले मैं आपके एक पॉइंट का जवाब दूंगा कि यूनिटी वाली बात। मेरे लाइफ में काफी ऐसे टीचर्स हैं जिनके साथ में मेरी कंट्रोवर्सी भी हुई, कहासनी भी हुई। लेकिन जब बात बच्चों के हित की आई, तो वह भी हो या मैं भी हूं। हमने सामने से गले भी लगाया, हमने हाथ भी मिलाया। हमने वो कभी कैमरे के आगे नहीं दिखाया। बात यहां पर इसलिए थी क्योंकि हम मिल रहे हैं बच्चों के हित के लिए अपने हित के लिए नहीं मिल रहे हैं। तो जब बात बच्चों की आती है सारे गिलेश शिकवे दूर हो जाते हैं। ठीक है। दूसरा सर आपने कहा कि ऑनलाइन बहुत ज्यादा होड़ मची होती है फॉलोअ या वीडियोस की। हम ऑनलाइन के शिक्षक हैं। हमारे पास में जो मीडिया हमारा YouTube है। जहां से हमने बच्चों को जोड़ा है, जहां से हमने बच्चों को बताया है। तो ऐसा तो नहीं हो सकता ना कि पढ़ाते वक्त में हम ऑनलाइन जो है YouTube पर पढ़ाएंगे। अब प्रोटेस्ट का वीडियो जो है जाकर के हम यहां पर वीडियो में ही नहीं डालेंगे। इसलिए आया जैसे जैसे रेलवे वाले बच्चे नाराज थे। हां। सर उसके बाद अलग-अलग प्रोटेस्ट आए क्योंकि मैं खुद जब मैंने Twitter पे पोस्ट किया तो मुझे याद है मुझे करेक्ट करने बहुत सारे बच्चे आए कि आप लोग इस प्रोटेस्ट को केवल एसएससी बेस्ड क्यों कर रहे हो? और यह मुझसे उन्होंने कहा और मुझे उस वक्त ये डाउट हुआ कि बट यह प्रोटेस्ट तो सिर्फ उसी के बेस पे था हम क्योंकि मुझे दिखाई वैसा पड़ा टीवी पर हमने वैसे ही खबरें चलाई बाद में पता लगा कि नहीं इसमें जो कल बच्चों को बुलाया गया था वो अलग-अलग मसलों को लेकर आया गया था और उसमें जिन लोगों ने पेश किया वो एक तरह से बातें पेश नहीं की गई जिससे शायद बाद में कुछ बच्चे कुछ टीचर्स थोड़ा नाराज भी हुए थे। सर उनका नाराज होना लाजमी भी है क्योंकि हम भी ने भी ये एक्सपेक्ट नहीं किया था कि ये एसएससी डायरेक्टेड हो जाएगा क्योंकि जब सारे शिक्षक आए थे तो उद्देश्य एक ही था कि भारत के सारे शिक्षक मिलकर के डीओपीडी के मिनिस्टर से ये कह पाए कि आपके एजुकेशन सिस्टम में कितनी बड़ी लूप होल है। आप जो रेलवे की प्रक्रिया जो कि सर भारत में अगर सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी कोई देता है तो वो रेलवे है और रेलवे में अगर आप देखोगे तो चाहे ग्रुप डी की बात हो या एनटीपीसी की बात हो हर जगह पर दिक्कत है। कैलेंडर आ जाता है तो पेपर नहीं होता। पेपर हो जाता है यहां तो रिजल्ट की बारी नहीं आती। तो वो भी हमारा एक कंसर्न था जिसको लेकर के हमने सेपरेट ड्राफ्ट तैयार किया था। एसएससी में भी सेम इसी तरीके की प्रॉब्लम थी तो हमने उसका भी तैयार किया था। लेकिन जब मिनिस्टर मिले ही नहीं और वहां पर पूरा आउटब्रेक हो गया तो वहां पर फिर मतलब आउट ऑफ कंट्रोल हो गई सिचुएशन। फिर ऐसा हुआ कि जो रेलवे के शिक्षक आए थे उन्होंने भी अपनी बातें कही। ठीक है? जो एसएससी वाले आए थे उन्होंने भी अपनी बातें कही लेकिन डोमिनेट एक साइड का हो गया। बट इसका मतलब ये नहीं है कि हमारा मुद्दा खत्म हो गया। इसलिए क्योंकि बाकी टीचर के एसएससी पढ़ाने वाले थे। हां। ज्यादातर संख्या में जो टीचर थे वह एसएससी पढ़ाने वाले थे और दिल्ली का प्रोटेस्ट था दिल्ली के सारे शिक्षकों क्योंकि 1 महीने पहले रेलवे रिफॉर्म भी एक्सपेक्ट ट्रेंड कर रहा था और उस पे भी हमने सर काफी वीडियोस बनाई है उसके ऊपर में भी हमने सरकार को बहुत हद तक खींचा है। हमने सारी बातें रखी है और ऐसा नहीं है कि वो मुद्दा हमारा खत्म हुआ है। बस मेरी थोड़ी सी ये कोशिश है कि कहीं एक जगह पर भी जीत मिले ना तो हमारे लिए बड़ी जीत है। फिर एक भी अगर मिल गई तब तो फिर बाकी से बट जैसे वो शेर है ना कि सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं। हां। इन छात्रों के प्रोटेस्ट से मुझे सिर्फ हंगामा ही दिखा कि Twitter पे ट्रेंड हो गया। सोशल मीडिया पर आ गया। पहले तो टीवी नहीं उठा रहा था। इस बार आप लोग की थोड़ी जीत ये थी कि टीवी ने भी इस मसले को उठाया। हम लोगों ने दबा के हम लोगों ने इस पे स्टैंड लिया। बट इससे आगे क्या निकला है? 31 जुलाई से अभी तक क्या हासिल हुआ? आपको क्या लगता है क्या बदलाव हुआ? कल डीओपीटी मिनिस्टर साहब के साथ मीटिंग है। मान गए। हां बिल्कुल मान गए हैं। मतलब काफी लिंक्स लगाए हमने। काफी सारी चीजें की हैं। तब जाकर के वो माने हैं और सर मंत्रालय तक भी तो यह बात गई है। तो अब कल जब मीटिंग होगी तो वहां पर ये सारी बातें रखी जाएंगी और अगर वहां पर एक वैलिड तरीके से वो बातों को आगे लेकर के कैरी ऑन करते हैं। हमें आश्वासन भी देते हैं या उनकी बातों से ऐसा लगता है कि हां चेंजेस हो सकता है तो शायद ये हंगामा रुक जाए। लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो सर ये फिर किसी के हाथ में भी नहीं होगा। हंगामा रोकना या कुछ और क्योंकि सर एक लिमिट होता है। आप किसी को निचोड़ोगे ना तो उसका एक लिमिट है। एक पॉइंट पर वो भी इंसान टूट जाता है। हर चीज़ का एक पॉइंट है। आप किसी को इतना भी मत डरा दो कि उसके बाद डर ही खत्म हो जाए। तो बच्चे के अंदर में अब ऐसा है कि थोड़ा सह रहा है, थोड़ा सह रहा है, थोड़ा सह रहा है। बट अब सर सब कुछ उसके हाथ से जब खत्म होता हुआ दिखेगा ना, तो या तो वो तैयारी छोड़ देगा या फिर जो तैयारी करवा रहे हैं उनको फिर नहीं छोड़। इस देश के अगर कॉमन इंसान को आपको समझाना हो कि ये मुद्दा कितना बड़ा है और क्यों कॉमन इंसान को कनेक्ट होना चाहिए। आप कैसे बताओगे? सबसे पहले तो आप यह देखिए कि आप काफी वक्त लेते हैं छठी क्लास से लेकर के 10वीं क्लास तक की पढ़ाई करने में। आपके मन में हमेशा एक सपना यह होता है कि अब आगे चलकर के कुछ बड़ा हम बनेंगे, बड़ा अधिकारी बनेंगे। ठीक है? लेकिन आपके फाइनेंशियल्स डिसाइड करते हैं एक पॉइंट पर आकर कि आप आगे किस फील्ड में जाने वाले हैं। ज्यादातर भारत में जो आम लोग हैं उनके पास में इतने पैसे नहीं है कि हर कोई अपने बच्चे को इंजीनियरिंग करवा पाए, मेडिकल करवा पाए। तो ऐसे केस में एक मिडिल क्लास फैमिली का जो सपना बन जाता है वो सरकारी नौकरी की तरफ में झुक जाता है। कुछ लोगों के लिए पैशन भी होता है। कुछ लोगों के लिए अपने स्तर से उठकर के आगे बढ़ने के लिए एक जज्बा होता है। क्योंकि अगर आपने कई सारे कहानियां आपने सुना है कि पंचर बनाने वाला आईएएस बना। वो प्रेरणा देता है इस समाज को कि भाई ऐसा व्यक्ति जिसके पास में कुछ भी नहीं है वो भी इस देश के सबसे उछले पद तक जा सकता है और जब वो प्रेरणा के आधार पर वो तैयारी करने आता है और तैयारी करने में कई साल वो झोंक देता है अथा संघर्ष उसका होता है। कई रात ऐसे होते हैं जहां वो भूखे पेट सोता है। कई रात ऐसे होते हैं यहां पर कि रात भर लाइब्रेरी में निकल जाएगा। उसको अपने सेहत का नहीं पता। परिवार में शादी है, भाई-बहन की शादी है, कई सारे फंक्शन है, छठ है, दिवाली है, सब छोड़ना पड़ता है। छठ हमारे यहां का महापर्व होता है। हम उसको छोड़कर के भी लाइब्रेरी में बैठकर के दिन रात कलम घिस रहे होते हैं। और इतना मेहनत करने के बाद में जब आप जाते हैं और आपके साथ पेपर में नाइंसाफी होती है। सिर्फ 2 मिनट आपका माउस काम नहीं करता। मैं कहता हूं सर 30 सेकंड अगर आपका माउस काम नहीं किया ना सर आप फेल हो। बाहर हो आप। जनरल कंपटीशन है ये। यहां पर फाइट सेकंड का है। यहां पर फाइट नॉलेज का नहीं है। अगर हम एसएससी बाकी परीक्षाओं की बात करें। एक-एक सेकंड बहुत मायने रखता है। मैं हर वक्त पढ़ाते वक्त भी यह बात कहता हूं कि भाई मैं तुम्हें किसी क्वेश्चन को 10 सेकंड में भी उड़ाना सिखा दूंगा क्योंकि मांगता ही सर यह तैयारी वही है। और काबिलियत होने के बाद सिस्टम के फेलियर की वजह से अगर वो बच्चा आगे नहीं बढ़ता है तो सर वहां पर एक या दो दिन बर्बाद नहीं होते। पूरा पूरा एक साल बर्बाद होता है। और हर किसी के पास में इतना पेशेंस नहीं है कि वो वापस से तैयारी कर पाए। इसलिए लड़कियों के पास में तो बिल्कुल भी नहीं। सर मेरी स्टूडेंट थी कि यहां पे बहुत टैलेंटेड है। लेकिन वो हमेशा एक बात कहती थी कि सर देखो मेरे पास में 6 महीने हैं। नहीं तो मेरे घर वाले शादी करा देंगे। वो बहुत बढ़िया तरीके से तैयारी करके गई लेकिन सेंटर पर जाने के बाद में सर्वर काम नहीं किया। टैलेंटेड है सारी चीजें लेकिन घर वाले पेशेंस नहीं रख सकते थे और उसकी शादी हो गई और शादी होने के बाद में जो उसके लाइफ में हुआ सर वो नेक्स्ट लेवल का था। एक सुसाइडल पॉइंट तक वहां पर हुआ पाई। तब मैं बैठ कर के एक दिन सोच रहा था कि काश अगर थोड़ा सा जो है उस दिन गलती नहीं हुआ होता तो आज एक बड़ी अवसर होती और परिवार बढ़िया से चला पाती। तो इसका एक इंपैक्ट बहुत लार्जर लेवल पर हो सकता है अगर आपके तैयारी को अगर आपके मेहनत को एक सही दिशा ना मिले और सिस्टम के फेलियर की वजह से अगर आप खत्म हो जाए भारत में क्योंकि आपने कहा कि प्रोटेस्ट जो था ये अलग-अलग कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स को लेकर था। बिल्कुल किस-किस तरह की समस्या छात्रों को आ रही है आज के दौर में? सारे तरह के एग्जाम्स हैं। अगर हम शुरू करें तो सर पहले तो रेलवे हो जाता है। फिर उसके बाद में एसएससी हो जाता है। उसके बाद में स्टेट एग्जाम्स भी हो जाते हैं। बहुत बुरी हालत है। आप ऐसे मान करके चलिए कि रेलवे में आज आप जाते हैं। आपको दिखता है कि काफी सारे काम रेलवे स्टेशंस पर भी हो सकते हैं। ट्रेन के अंदर भी हो सकते हैं। डिपार्टमेंट में भी हो सकते हैं। इतने सारे एक्सीडेंट हो रहे हैं। सर कभी पीछे लोगों ने जानने की कोशिश की है कि क्यों हो रहा है। लोग नहीं है उतने। हम हर चीज धीरे-धीरे प्राइवेटाइज करते जा रहे हैं। सफाई वाला चाहिए तो हमने जो है सुलभ इंटरनेशनल को टेंडर दे दिया। बाकी चाहिए तो हम थोड़ा-थोड़ा करके प्राइवेटाइजेशन कर रहे हैं। आप प्राइवेटाइजेशन करो कोई दिक्कत की बात नहीं है। लेकिन लोगों के साथ आप कॉम्प्रोमाइज क्यों कर रहे हो? आपने हाल फिलहाल एक घटना सुनी जहां पर दो ट्रेन के बीच में एक व्यक्ति दब करके मर गया। क्यों लैक ऑफ ट्रेनिंग थी वहां? लोग नहीं थे। तो ये मुझे लगता है कि जब आपके पास में लोगों की कमी है। आप डिपार्टमेंट इस बात को जानती है। उसके बाद भी भर्ती निकालती है। अब आपको मजे की बात बताऊं। हूं। रेलवे ग्रुप डी में पहले मान लीजिए 20,000 की भर्ती आती है और उसके बाद में क्या होता है कि जब बच्चे इसके लिए प्रोटेस्ट करते हैं तो तुरंत उसको बढ़ा के 500 कर दिया जाता है। सर या तो भर्ती 500 होनी ही नहीं थी लेकिन अगर मान लीजिए कि प्रोटेस्ट के बाद में वो 500 कर रहे इसका मतलब उतने लोगों की जगह खाली थी तब तो वहां पर उन्होंने 500 किया। वो तो लाखों नौकरियां खाली थी। तो सर वो कॉम्प्रोमाइज क्यों कर रहे हैं? अगर मैं आपको डाटा बताऊं तो 2014 से लेकर के 2022 तक में लगभग 10 करोड़ फॉर्म भरे गए और नौकरी सिर्फ 7 लाख मिली है और 10 करोड़ से भी ज्यादा मैं आपको बता रहा हूं इतने सारे और सरकार क्या करती है कि नाम दे देती है कि हमने रोजगार दिया। अब 2 दिन में आपने किसी को काम दिया ना कोई छोटा सा ये मान लीजिए मनरेगा के अंदर भी अगर किसी को काम मिला है तो वो भी एक तरीके से नौकरी मानी जा रही है। जबकि यह गलत है। हम बिहार में ही बात कर ले कि सरकार ने पिछले मेनिफेस्टो में 50 लाख नौकरियों की बात की थी। लेकिन उतनी भर्तियां निकली कहां? किसी छोटे काम को जोड़कर के आप नौकरी नहीं कह सकते। तो रेलवे पूरी-पूरी चरमराई है। जितने लोगों की आवश्यकता है उतनी भर्तियां नहीं निकल रही हैं और उतनी भर्तियां नहीं हो पा रही है जिसके कारण हम धीरे-धीरे और डाउन मेरा सवाल जो था वो ये था कि जो अलग-अलग नौकरियों के एग्जाम्स जो हो रहे हैं वहां पर छात्रों को किन-किन तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा है जिसकी वजह से ये पूरा प्रोटेस्ट चल रहा है। सर एक-एक करके उसमें हम लोग अलग-अलग एग्जाम्स की बात करते हैं क्योंकि हर एग्जाम की कहानी अलग है। ठीक है। सबसे पहले अगर हम रेलवे की बात करें तो रेलवे में पहले तो 3 साल तक कोई पेपर ही नहीं हुआ। ठीक है? मतलब आया ही नहीं। फिर बहुत ज्यादा हंगामा हुआ। काफी सारी चीजें हुई जो आप कहते हैं ना कि अक्सर बच्चे हंगामा करते हैं। वो हंगामे के कारण ही फिर उसके बाद में रेलवे मंत्री आते हैं और वो ये कहते हैं कि अब हम हर साल रेलवे का कैलेंडर निकालेंगे। मजे की बात ये होती है कि हम सब आश्वस्तित हो जाते हैं कि चलो अब पेपर टाइमली होगा और कैलेंडर आ जाता है और कैलेंडर में एग्जाम्स के नाम भी दे दिए जाते हैं और मंथ दे दिया जाता है। बच्चे इस बात पे खुश हो जाते हैं कि चलो पेपर होगा। लेकिन सर एक पेपर तीन भाग में होता है। रेलवे है तो रेलवे सीबीटी वन एनटीपीसी का सीबीटी वन भी होगा और सीबीटी टू भी होगा। होगा प्री और मेंस एक तरीके से आप कह लीजिए प्री का डेट दिया गया है और वह भी एक डेडलाइन दिया गया है कि इतने महीने से इतने महीने तक होगा लेकिन फिक्स नहीं है और प्री होने के बाद में कहीं पर यह चर्चा नहीं है कि इसका मेंस कब होगा और इसके बाकी की प्रक्रिया कब होगी तो यानी कहीं ना कहीं गोली दे के छोड़ दिया गया और लटका दिया गया वहां पर कि चलो यह होगा अब क्या होता है सीबीटी वन का पेपर होता है बच्चा अब वेट में है वो तैयारी कर रहा है उसके पास इतना पैसा नहीं है साधन नहीं है कि वहां पर शहरों के रह के ₹100 का किराया वो दे पाए वो इंतजार यह कर रहा है कि भाई सीबीटी टू का पेपर आप ले लीजिए और कोई पेपर हो नहीं रहा है उम्र हमारी निकलते चलते जा रही है। जीवन में हमें और भी आगे बढ़ना है। लेकिन आगे कोई पेपर नहीं होता। तो रेलवे में क्या है कि यही इशू है कि कैलेंडर आ चुका है। पेपर बता दिया गया पहला भाग कब होगा लेकिन दूसरे का कहीं पर कोई अता-पता नहीं है। ये सबसे मेजर कंसर्न है रेलवे में। इसके अलावा जो आप जाते हो तो सिस्टम की भी फेलियर है। जहां पर आप जा रहे हैं जैसे साइको का ही टेस्ट हो गया। अब साइको के टेस्ट में बच्चों को इतनी सारी प्रॉब्लम आई है कि पूरा टैलेंट ही वहां पर खत्म हो गया है। तीसरा अगर आप जाते हैं मैनेजमेंट इश्यूज काफी ज्यादा हैं। ठीक है? तो ये रेलवे में ये सारे सारे बेसिक्स हो जाते हैं। इसके अलावा आप स्टेट एग्जाम में आ जाइए। आप बिहार में देख लीजिए बिहार एसएससी की भर्ती का क्या हाल है। 2014 की भर्ती जाकर के 2022 में पूरी हुई थी पिछली और उसमें भी दो बार पेपर लीक हो गया था। अब कितना पेशेंस बच्चा रखें मतलब पता चलता है कि यहां पर शादी भी हो गया, बच्चे भी हो गए और उसके बाद भी अभी तक तैयारी वो कर रहा है। एक बहुत अच्छा कवर किया था एक मीडिया ने झारखंड एसएससी के बारे में। जब वो लड़का अपने स्टार्टिंग उम्र में 21 साल में था तब उसने झारखंड एसएससी की तैयारी शुरू की और 30 साल तक हो गया तब तक उसकी तैयारी चल रही है। लोग इसमें ये भी बोलते थे कि इतना समय तक तुम तैयारी क्यों कर रहे हो? कोई और भी तो पेपर अपनाते लेकिन अगर ऑप्शंस ही ढूंढते रहेंगे तो भर्ती कब पूरी होगी? लोग डिपार्टमेंट को भी तो चाहिए ना लोग यहां पर काम करने वाले लेकिन वो हो नहीं रहा है। तो स्टेट बिहार में आप देखो एसएससी की बहुत बुरी हालत है। यूपी में आ जाइए। अभी हाल फिलहाल क्या होता है कि यूपी कांस्टेबल में 20,000 कांस्टेबल्स की नियुक्ति की बात की जाती है। लेकिन वो नियुक्ति कहां पर है कुछ नहीं पता। अभी तक कोई डेट नहीं आया। यूपीएसआई में 5000 दरोगा की भर्ती की बात की जाती है। लेकिन वो कब होगा क्या होगा? सर फरवरी से लेकर के अभी तक अगस्त आ गया लेकिन कोई चर्चा नहीं है। तो बच्चे इसी वजह से हंगामा कर रहे हैं ना कि या तो आप बताओ मत लेकिन अगर आप कहीं पर थोड़ी भनक दे देते हो। अब जिस दिन सर आज बता रहा हूं मैं यूपीएसआई की मान लीजिए अभी तुरंत सरकार जो है कह देती है कि इतने सारे भरत मतलब पदों पर भर्ती आएगी। अब एक बच्चा क्या करता है? उसके हिसाब से अपनी किताब खरीद लेता है। उसके हिसाब से अपना जो है कोर्स सेलेक्ट कर लेता है और वह तैयारी में लग जाता है। वो पढ़ रहा है आए दिन पढ़ रहा है। घर वाले पूछते हैं क्या कर रहे हो? तो पढ़ाई कर रहे हैं। किस एग्जाम की कर रहे हो? तो यूपीएसआई की कर रहे हैं। एक साल तक पेपर ही नहीं हो रहा है। वो ये देख रहा है कि उसके साथ के सारे के सारे दोस्त आगे बढ़ रहे हैं। कोई प्राइवेट नौकरी करके जीवन को अपने आगे बढ़ा रहा है। कोई बिजनेस करके आगे बढ़ा रहा है। लेकिन वहां पर वो क्या कर रहा है? तो सरकारी नौकरी की तैयारी और वैसे अपने आप को धीरे-धीरे धीरे-धीरे वो घोड़ते चला जाता है और एक एस्पिरेंट खत्म। यूपीएससी में समस्या नहीं आती है। यहां इन सारे एग्जाम्स में समस्या आती है। ये क्यों सरकार सर यही तो हमारा भी सरकार से सवाल है ना कि आप ही तो वो हो जो सारे पेपर करवाते हो। एक जगह समस्या नहीं आ रही। बाकी पर क्यों आ रही है? इसका जवाब मैं कैसे दे सकता हूं? यह तो गवर्नमेंट को देना चाहिए। आप आपने अपने एक्सपीरियंस से क्या इसका सर? मैंने अपने एक्सपीरियंस से एक ही देखा है कि उनको सिर्फ एक ही चीज से मतलब है कि यूपीएससी कॉन्स्टिट्यूशनल है तो इसको टाइमली करो। बाकी सब कोई फर्क नहीं पड़ता। भाड़ में जाए मतलब नहीं है। क्योंकि यूपीएससी वाले सरकार में ही काम करते हैं। उनको चाहिए ना सर स्क्रिप्ट लिखने के लिए। उनको चाहिए स्पीच देने के लिए। उनको चाहिए पूरा-पूरा सिस्टम मैनेज करने के लिए। तो टॉप लेवल की तो वो हायरिंग कर लेते हैं। लेकिन सर वो टॉप लेवल के लोग भी परेशान हैं। आप यह बताइए कि सिर्फ सारा काम एक आईएएस कर सकता है क्या? जब तक उसके नीचे का क्लर्क ना हो। तो यह जो हमारी प्रणाली बनी है ना इसमें हर एक प्लेयर बहुत मजबूत है। हर एक जरूरत है यहां पर। आप ऐसे नहीं कह सकते कि हमें आईएएस चाहिए और हमें इंस्पेक्टर नहीं चाहिए। सर आईएएस भी चाहिए, इंस्पेक्टर भी चाहिए, सब इंस्पेक्टर भी चाहिए, कांस्टेबल भी चाहिए। अलग-अलग लेवल के अलग-अलग काम होते हैं और कोई एक की भी कमी आती है। दूसरे के ऊपर में प्रेशर होता है सिस्टम फेल। इतने सालों से क्योंकि यह प्रोटेस्ट चल रहा है। इतने सालों से अनियमित हैं। जिस टीचर से पूछो कहता है 2013 के बाद से हम कर रहे हैं। कोई कह रहा है 15 से हम हैशटग चलवा रहे हैं। कुछ सबके अलग-अलग दावे हैं। बिल्कुल। अगर इतने सालों से समस्याएं हैं तो फिर ये बड़ी संख्या में एक साथ आए क्यों नहीं? ऐसा क्यों नहीं हुआ कि सारे छात्रों ने मिलकर एक साथ ये बताया हो सरकार को कि अल्टीमेटली लोकतंत्र में भीड़ मायने रखती है। अगर आप एक साथ उतरते हैं। आप लोगों ने इस बार ट्वीट किया उसका असर रहा। एटलीस्ट मीडिया ने आपकी खबरें दिखाई। सरकार आपसे बात करने को तैयार हुई। इतना लंबा समय क्यों लग गया? इतनी सारी परेशानियों को देखते हुए कि आप लोग एक साथ नहीं आ पाए। सर इसमें है ना मुद्दा भी अलग-अलग है। आप राज्य सरकार की जब बात करोगे तो जैसे जो राज्य सरकार की वैकेंसियां निकलती हैं वो सारे के सारे राज्य सरकार के कंट्रोल में है। और यहां पर क्या है कि जैसे अगर आप देखो सेंटर में मान लीजिए बीजेपी है। लेकिन झारखंड में अगर आप चले जाओगे तो वहां बीजेपी नहीं है। अब आप झारखंड की सारी भर्तियों को आ करके आप सेंटर में बात नहीं पूछ सकते। तो राज्य की जो भर्ती हैं आप वहां पर राज्य सरकार से ही सवाल कर सकते हैं। उसके ऊपर में ही पूछ सकते हैं। बीपीएससी का प्रोटेस्ट कभी ऐसा नहीं हो सकता कि दिल्ली में हो या झारखंड में हो यह नहीं हो सकता। बीपीएससी का होगा तो पटना में ही होगा। तो जो मार मार के पीठ पे पूरा पायदान बना दिया था। सर यही तो मतलब दुर्भाग्य है इस तस्वीरें देखी थी मैंने। बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण था। हमारे देश का लाठी मार मार के लड़कियों को भी मारा गया और दौड़ा करके मारा गया। कहीं ये नहीं देखा गया कि यहां पर वो एक लड़की है। थोड़ी सी रियायत उसको भी दे दी जाए। वो कोई आतंकवादी नहीं है सर। वो तैयारी करने वाली एक छात्रा है जो सिर्फ इस नारे पर आई है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ। लेकिन वो नारा दूर-दूर तक बस किताबों में रहा। तो फिर यह हो क्यों रहा? हकीकत में मतलब यह समस्या क्यों हो रही है? इसकी मूल जड़ क्या है इसकी? सर या तो सरकार यह कह दे कि हम चाहते ही नहीं है भर्ती निकालना। तो लोग यह मान करके बैठ जाए और पकोड़े छान करके अपना बिज़नेस शुरू कर दें। और नहीं तो अगर वो इस बात का आश्वासन देती है कि हमें भर्तियां पूरी करनी है तो उसको निष्पक्ष कराएं। हम भी बस यही बात कहते हैं कि आप ऐसा कर क्यों रहे हो? बट क्या यह संकेत है सरकार की तरफ से कि उनकी प्रायोरिटी में ये गवर्नमेंट जॉब्स नहीं है। वो चाह रहे हैं कि इधर इन्वेस्ट कम करें वो। सर प्रायोरिटी में तो यह नहीं कह सकते कि उनके प्रायोरिटी में है कि नहीं। मतलब मेरा यह है कि मैं आपको कैसे समझाऊं भाई क्या आपको लगता है कि सरकार बजट में कटौती के चलते सरकारी नौकरियों से ध्यान हटा रही है क्योंकि अग्निवीर के इशू में भी यही सवाल आए थे कि क्यों किया जा रहा है तो ये हुआ कि बजट बहुत ज्यादा जा रहा है कुछ लिमिटेड लड़के लाएंगे छांट के लाएंगे यहां पर भी हो रहा है पेंशन पहले सरकारों की प्रायोरिटी में नहीं रहा क्या बढ़ती आबादी और उसके चलते बढ़ता बजट सरकारी नौकरियों का क्योंकि प्राइवेट नौकरी में सस्ते में निपट जा रही है सरकार यह रीज़न हो सकता है बट यह वह कह नहीं एक यह रीज़न तो है लेकिन आपके पास में एक डाटा भी होना चाहिए। हालांकि पिछले दो सालों में सरकार ने बिल्कुल भी डाटा जाहिर नहीं किया है कि वह कितनी वैकेंसी उन्होंने निकाली है केंद्र के अंदर में। उसमें से कितनी भर्तियां पूरी हुई है और कितनी लटकी हुई हैं। तो बिल्कुल भी एक कारण यह हो सकता है यहां पे और इसके ऊपर मैं कहीं पर भी बिना रिपोर्ट के मुझे लगता है कि बात करना सही नहीं होगा। नहीं क्योंकि मैंने एक पॉडकास्ट किया था मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ और बार-बार मैं कोट करता हूं उस पॉडकास्ट को। मैंने उनसे स्पष्ट शब्दों में सवाल पूछा था। तो उन्होंने कहा कि सरकारी नौकरियां हमारी प्रायोरिटी में नहीं है। हम चाहते हैं कि हम आपके स्किल बढ़ा दें और मैं सरकार के जितने स्टेटमेंट सुनता हूं क्योंकि एस अ जर्नलिस्ट बिटवीन द लाइन पढ़ना भी जरूरी होता है। तो उसमें लगता है कि बार-बार स्किल इंडिया या स्टार्टअप की बातें वो करते हैं। सरकारी नौकरियों पर वो जोर कम देते हैं। उनके संवादों में या उनके भाषणों में भी वो शब्द कम सुनाई पड़ता है। जबकि हिंदुस्तान में माइंडसेट सरकारी नौकरी का और मोहन यादव से बातचीत में उस पॉडकास्ट में स्पष्ट शब्दों ने कहा कि हमारे आम सबको सरकारी नौकरी नहीं दे सकते। आपको भी अपनी प्रायोरिटी चेंज करनी पड़ेगी। सर एक बात बताओ मजे की बात यहां पर यह है कि जहां एक तरफ सरकार स्किल इंडिया और बाकी सारे प्रोजेक्ट लेकर के आती है जहां पर बढ़िया तरीके से कोचिंग उनके अनुसार दिया जाता है फ्री में दिया जाता है लेकिन बच्चा वहां पर नहीं जा रहा है और दूसरी तरफ जहां पर पैसे देकर के उसको पढ़ना पड़ रहा है वो वहां जा रहा है। इसका मतलब साफ अक्षरों में यह दिखता है कि जो वो तैयारी करवा रहे हैं वो परिपूर्ण नहीं है। अगर उनका स्किल इंडिया प्रोजेक्ट अगर अपने आप में बहुत हिट है। अगर वह बहुत बढ़िया तरीके से लोगों को सिखा करके जीवन में आगे बढ़ रहे हैं तो बच्चा धीरे-धीरे धीरे-धीरे ऑटोमेटिक यहां से छोड़ के वहां आगे बढ़ेगा। लेकिन सर प्रॉब्लम क्या हो रही है? गवर्नमेंट तो ये सोच रही है कि हम लोगों को स्किल दे देंगे। उनको अपने सशक्त बना देंगे। आत्मनिर्भर कर देंगे और धीरे-धीरे इसको कम कर देंगे। तो सर यहीं पर प्रॉब्लम आ जा रही है। वो सोच में प्रॉब्लम आ जा रही है। या तो पहले को इतना बेहतर कर दो कि दूसरे की आवश्यकता ना पड़े। आपने पहले का जुमला दे दिया और कुछ किया भी नहीं तो जाहिर सी बात है ना लोगों का रुझान इसके तरफ में जाएगा। और यहीं पर सारा का सारा गड़बड़ी निकल के आ रहा है। इस कंपनी से क्या दिक्कत है आप लोग को? एडुकेटी सर हमें कोई दिक्कत नहीं है। नहीं क्योंकि आपकी एक वीडियो मैंने सुना आपने कहा इसको हटाओ टीसीएस लाओ। सर शुरू में क्या लग रहा था कि जो पेपर हुआ हमारा और हमारे इमोशंस भी जुड़े हुए थे। 2018 के बाद से सारे के सारे पेपर जो एसएससी के करवाए हैं, वह टीसीएस ने कंडक्ट करवाए हैं। उसके बाद में उसका टर्म जो होता है 2024 में खत्म हो जाता है। उसके बाद भी वह उसको खींचते हैं। 25 तक लेकर के जाते हैं क्योंकि एसएससी को वेंडर नहीं मिलता है। 25 में बडिंग होती है और उसमें बडिंग में जो टीसीएस का कॉस्ट है वो 350 के अप्रोक्स में जाता है। एडिक्विटी का कॉस्ट जो है वो 200 250 के बीच में वहां पर जा रहा होता है। उसके बाद में एडिक्विटी टेंडर जीत लेती है। ट पेपर कराने का सारा का सारा जिम्मा उसके पास में आ जाता है। पेपर जब उसके बाद शुरू होता है ना सिलेक्शन फेज 13 का तब उसका असली रूप देखने को मिलता है। ऐसीऐसी जगह पर वह सेंटर डालते हैं। मैं आपको पूरा सिनेरियो समझाता हूं। मान लीजिए कि 100 बच्चे हैं। 100 बच्चे के केस में क्या होता है कि 30 बच्चों का सेंटर इन्होंने ऐसी जगह पर दे दिया जहां बच्चा पहुंच ही नहीं सकता है। जिसमें से कुछ बच्चों का सेंटर अंडमान निकोबार था। ₹100 फॉर्म की फीस है और अंडमान निकोबार जाने के लिए उसको जो है 20 से ₹ज़ खर्चा करना पड़ेगा। अगर इतना पैसा होता तो वह सरकारी नौकरी की तैयारी क्यों करता? इस फॉर्म में लड़कियों का फीस कोई होता ही नहीं है। फॉर्म भरने का कोई पैसा नहीं लगता है। लेकिन पेपर देने के लिए पता चल रहा है कि यहां पर जो कुछ गिरवी रख के पेपर देना जाना पड़ेगा। इससे उनका फायदा क्या हो रहा है? इससे सर उनके पास सेंटर ही नहीं है ना। एडिक्विटी के पास में सेंटर ही नहीं है। बात तो अब एक्सपोज हुई जाकर के एडिक्विटी कि उसके पास में इतने पर्याप्त सेंटर ही नहीं है कि लोगों को उनके अलॉटेड तीन जो सर हम फॉर्म भरते हैं तो तीन प्रेफरेंस मांगे जाते हैं। फर्स्ट, सेकंड, थर्ड। तीनों प्रेफरेंस में से कोई भी नहीं मिलता है और बच्चे को 400 500 कि.मी. दूर जाकर सेंटर दिया जाता है। कारण यह क्योंकि एडिक्वेटी के पास में सेंटर नहीं है। तो पहला वहां पर एडिक्वेटी वहां एक्सपोज होती है। दूसरा उसके बाद में एक्सपोज होती है सिक्योरिटी फेलियर में। मान लीजिए कि कोई बच्चा सेंटर पर पहुंच रहा है और पहुंचने के बाद में क्या होता है कि आपकी मोबाइल की चेकिंग होनी चाहिए। मतलब जस्ट पेपर के होने के 2 दिन पहले 35 नोटिस 35 पॉइंट्स का एक नोटिस जारी करती है एसएससी और जिसमें साफ लिखा होता है कि आप मेटल की चीजें पहन के नहीं जा सकते। नोस्पिन पहन के नहीं जा सकते। आप मोबाइल कैरी नहीं कर सकते, आप डिबार हो जाओगे। और ऐसा करके बच्चों को पूरी तरीके से वो धमका देती है। लेकिन जब सेंटर पर जाते हैं सिक्योरिटी गार्ड ही नहीं चेक करने के लिए। जो तीनचार लेयर ऑफ सिक्योरिटीज होते हैं उसमें सिर्फ एक गार्ड है और ऐसे-ऐसे सेंटर्स पे तो गार्ड देखिए सर एक हाथ में सिगरेट फूंक रहे हैं और एक हाथ में एडमिट कार्ड देख के जा रहे हैं। मतलब 16 16 17 साल के लड़कों को सिक्योरिटी गार्ड बना रखा है। जिनको यह तक नहीं पता कि चेक कैसे करते हैं। सोचिए सेंटर के अंदर जब बच्चा पेपर दे रहा है तो उसकी वीडियो बाहर कैसे आ जा रही है? यानी मोबाइल अलाउड है। मोबाइल बच्चा लेकर के जा रहा है। देख रहा है, वीडियो बना रहा है। सारी चीजें हो रही हैं। तो एकदम चरमराई व्यवस्था थी सिक्योरिटी की। तीसरा जो एग्जाम सेंटर्स के लोकेशन भी थे। आप ऐसी जगह पर उन्होंने लोकेशन दिया है खेतों के बीच में दे रखा है कि वह बहुत आराम से वह सेंटर कॉम्प्रोमाइज हो सकता है। बहुत तरीके से कॉम्प्रोमाइज हो सकता है। नीचे यहां पर आटा चक्की चल रहा है और ऊपर में सेंटर और सेंटर पता है सर कैसे मिला है? किसी के पास में 20 सिस्टम है। साइबर कैफे वो चला रहा था। उसने क्या किया कि एडिक्वेटर के साथ में टाई अप कर लिया। एडिक्वेटर ने 10 लाख में 12 लाख में उसको सेंटर दे दिए। और अब यहां पर एसएससी जैसे बढ़िया पेपर उसके पास में हो रहा है। टेक्निकल इशूज़ हैं। वाई-फाई उनके इतने स्ट्रांग नहीं है। सर्वर इशूज़ हैं वहां पे। ये सारा का सारा जो इशू निकल कर के आया ना सिलेक्शन फज़ 13 में इसने एडिक्विटी को एक्सपोज किया और तभी हमने कहा कि एडिक्विटी नहीं चाहिए। इसके अलावा पवन गंगा जैसा एक सेंटर होता है। सुबह में बच्चा वहां पेपर देने जाता है और पेपर देने के बाद में पता चलता है कि 1ढ़ घंटे तक तो पेपर ही नहीं हो रहा। फिर एंट्री जब उनकी कराई जाती है और जाकर के वो पेपर देने की कोशिश करते हैं। बीच में सर्वर ठप हो जाता है। 4 घंटे के बाद में बच्चे वहां से निकल रहे हैं और एट द एंड में पवन गंगा के बाहर यह नोटिस लग जाता है कि हम आज नहीं कल नहीं अगले 3 दिन तक पेपर कंडक्ट नहीं कराएंगे। ऐसे हालत में बच्चा पैनिकिक नहीं होगा तो और क्या होगा? उसको तो यह समझ ही नहीं आएगा कि उसका पेपर दोबारा कब होगा, होगा भी कि नहीं होगा। और ऐसे पूरा-पूरा यह सिचुएशन को आउटब्रेक कर देता है। टीसीएस के समय में ये चीज नहीं थी। इसी वजह से शुरू में जो है लोगों ने यह कहा कि टीसीएस लाओ। लेकिन बाद में हमने एसएससी से भी कहा कि हमें कोई टीसीएस लाने की डिमांड नहीं है। क्योंकि एसएससी ने नोटिस में यह जारी कर दिया और न्यूज़ में यह बयान दे दिया कि जो है ये लोग सारे के सारे टीसीएस के द्वारा फंडेड हैं। हम मतलब टीसीएस इनको फंड कर रही है कि तुम प्रोटेस्ट करो एडिक्विटी के अगेंस्ट यहां पे। तो हमने सीधा कहा भाई हमको टीसीएस भी नहीं चाहिए। हमें बस तुम एक कोई भी साफसथरा वेंडर ला करके दे दो जो पेपर कंडक्ट कराए। हमारा सगा ना एडिक्व्विटी है ना हमारा सगा। टीसीएस है हमारे सगे बच्चे हैं। उनके साथ में गलत ना हो। उनका पेपर सही तरीके से अनफॉर्चुनेट क्योंकि बीटेक जो लोग करते हैं आईटी के आई ए ट्रिपल ई के एग्जाम होते हैं। यूपीटी के एग्जाम होते हैं हमारे यहां पे। हमने कभी सोचा भी नहीं कि कौन एग्जाम करवा रहा है। फर्क नहीं पड़ता सर। हमारा मकसद था सेंटर कहां मिला। वहां गए पेपर दिया लौट आए। सर हमें तो यह बस हम गाली इतनी देते थे कि यार इस इस सेंटर में हमारे यहां पानी अच्छा मिल रहा था। वाशरूम साफ सुथरा था। वहां थोड़ा सा कूलर पंखा का इशू था। कहीं कहीं किसी अच्छा मिल गया। सर सेंटर पे तो ये सारे इशूज़ थे। बट सरकारी नौकरी जो तैयारी करता है ना सर बच्चा जनरली 90% वो अपने लाइफ में इतना कॉम्प्रोमाइज करके चल रहा है कि उसके पास में मतलब हम जब अपनी तैयारी करते थे सर ₹1500 की फोल्डिंग आती थी। अब मुझे उसको खरीदने में बड़ा मुंह लगता था। ₹300 का गद्दा लेके आएंगे बिछा के सो जाएंगे। बोले काम सस्ते में निपट गया। तो वैसे हैं कि हां भैया एसी तो जीवन में हमने कभी ये तैयारी में देखा ही नहीं कि एसी होता क्या है। पंखे लगा दिए दो चार रूममेट लोग हैं। मिलकर के रूम शेयर कर लिए रेंट बांट लिए। तो इस तरीके से हमारे हालात बढ़े हैं। मतलब पनीर भी हमारे यहां हफ्ते में एक ही बार बनाएंगे। हम लोग इतना कॉम्प्रोमाइज करके अपना लाइफ जीते थे। तो वो सेंटर पे जाता है तो वो ये नहीं देखता पंखा बहुत बढ़िया चाहिए। बट उसका इतना तो डिमांड रहता है कि जब टाइपिंग करवा रहे हो कीबोर्ड से तो इतना सस्ता कीबोर्ड भी मत दे दो कि वो मेरे टाइपिंग के स्किल को खत्म कर दे। मेरे टैलेंट वहां पर तुम्हारे इंफ्रास्ट्रक्चर से अगर खराब हो रहा है तो मेरा जीवन वहां व्यर्थ है। वह निकलने के बाद उसके दिमाग में यही चलता है। क्योंकि साल भर की मेहनत है। साल भर की मेहनत है। कड़ी तपस्या है। जीवन के कई सारे त्याग हैं और वो जाकर के खराब हो जाता है सर्वर पे। तो उसकी ये डिमांड है कि अपन अपना इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छा रखिए जिससे जो सही हकदार है उसको वो नौकरी मिल। ये रिसेंटली परेशानियां शुरू है या पहले से चल रही थी? पहले से चल रही थी। काफी मतलब टीसीएस के समय ही परेशानी थी। जैसे कीबोर्ड के इशज़ थे वहां। बच्चे टाइपिंग देने जा रहे हैं। कीबोर्ड में अब सर कीबोर्ड मैं अपना जब पेपर देने गया था। उल्टा करके उसको झाड़ रहे तो अंदर से कीड़े निकल रहे हैं। अब ये समझना चाहिए था तो हम ये सारी बातें हमने उस समय चेयरमैन साहब के आगे रखी थी। उन्होंने कहा भी था कि आगे इश्यूज नहीं आएंगे लेकिन मतलब और ब्लंडर हो गया जो हमने लाइफ में एक्सपेक्ट नहीं किया था। एक साधारण बच्चे को एसएससी सीजीएल क्रैक करने में कितना टाइम लगता है? औसतन कम से कम एक साल। यह मैं आपको मिनिमम बता रहा हूं। वो भी तब जब वो बच्चा काफी टैलेंटेड है, बीटेक कर चुका है या मतलब अच्छा उसका बैकग्राउंड ग्रेजुएशन का काफी अच्छा बैकग्राउंड है। काफी मेहनती भी है और साथ में साथ उसका लक भी उसके साथ में है। और नहीं तो सर ज्यादा तो ज्यादा हम कह ही नहीं सकते। उतना ये है। किस-किस तरह की परेशानियां होती हैं? सर तैयारी में काफी सारी चीजें मायने रखती हैं। पहला कि आपका जो भर्ती प्रक्रिया है वो कितने समय में होता है? जब मैंने पेपर दिया था तो उस समय सर मेरा पेपर हो गया। सारी चीज हो गई और आप बिलीव करोगे मेरे हाथ में जॉइनिंग लेटर 8 महीने के बाद आई थी। उसी 8 महीने के दौरान हमने पढ़ाना शुरू कर दिया। YouTube चैनल खोल के लोगों को पसंद आने लगा और पता चला कि जब तक हम अच्छे टीचर बन गए तब जाकर के मेरी जॉइनिंग लेटर आ रही है। आपने पहली बार शायद आप क्वालीफाई नहीं कर पाए थे। हां, पहली बार मैं 1.4 मार्क्स से रह गया था। उसमें भी सर बड़ा गेम था। शुरू-शुर में हमें लग रहा था कि हम क्वालीिफाइड हैं। हमें हमारा पोस्ट मिल जाएगा। लेकिन जिस रात रिजल्ट आने वाली होती है उस रात 50 वैकेंसीज कम कर दी जाती है और उसी 50 के दायरे में हम वहां चढ़ जाते हैं। तो यह हो जाता है। हालांकि उसको मुझे बिल्कुल भी दुख नहीं है सर। ऑनेस्टली बताऊं अगर मुझे मिल भी जाता पोस्ट तो मैं टैक्स असिस्टेंट ही बन पाता और वो मेरा कभी भी सपना नहीं था। तो मेरे लिए भगवान ने जो किया वो बहुत सही किया कि चलो तुम्हें एक चोट मिली। तुम दर्द सहो दोबारा बाउंस बैक करो और इतनी मेहनत करोगे फिर तब मैंने सर एक बार में एक महीने के अंदर पांच नौकरियां निकाली थी। जहां आईबी था, सीपीओ था, सीजीएल था, सारे पेपर्स थे मेरे। फेलियर लाइफ में क्या सिखाता है? फेलियर लाइफ में अपने कमियों के ऊपर में काम करना सिखाता है कि अभी आपको और मजबूत होना बाकी है। अभी आप जितना समझ रहे हैं कि आप इतने तक बहुत बेस्ट आ चुके हैं। आपको हकीकत आपका दिखाता है। फेलियर आपका वो आईना है जो साफ-सुथरा यह बता देता है कि तुम कैसे देखते हो। शरीर से नहीं अंदर से कैसे हो। मुझे मेरे फेलियर ने यही बताया कि अभी तुम्हें आदित्य बहुत काम करने की जरूरत है। शायद यहां पर आप अपने आप को अंदर से बेशक स्टार समझ रहे हो। लेकिन जब आपके रिजल्ट सामने आते हैं तो वो ये दिखा देता है सर क्योंकि है ना आपका भी रिजल्ट आ रहा है दूसरों का भी आ रहा है तीसरों का भी आ रहा है और जब आप देख रहे हो कि यार मेरे मार्क्स इतने रह गए फिर वहां पर रियलिटी में आपको लगता है यार फेल हुआ हूं अब काम करने की जरूरत है आप एक-एक स्टेप्स पे काम करते हो और उसके ऊपर में मेहनत करते हो जब रिजल्ट आता है तो बेहतर होता है। NDTV में मेरे शो में एसएससी के चेयर पर्सन ने बात की थी। हम्म। संतुष्ट थे आप लोग उस उनके बयान से? बिल्कुल भी नहीं है। बचकानी बात थी और ऐसा लग रहा था कि लगा ही नहीं कि वो चेयरमैन है। मतलब ऐसे लॉजिक्स देना अब एक कहां तक ये बात साबित फेयर है। वो ये कह रहे हैं कि हमने जो ये शुरू किया पहला पॉइंट सर मैं उनका टारगेट करता हूं कि ये एक ट्रायल वर्जन था। बच्चे एक्सपेरिमेंट करने वाले हैं। उन्होंने कहा ये पहला साल उनका था। कुछ गलतियां हुई उस पे हम पेनल्टी लगा देंगे। नहीं सर उसके ऊपर मैं पेनल्टी लगा दोगे। लेकिन जिन बच्चों का पेपर खराब हो गया। अब मैं सीधा सा एक बात पूछता हूं कि जिस बच्चे का यह आखिरी अटेम्प्ट था आप उसके लिए क्या कर पाएंगे आप? जिसके पास में अब कोई औपचारिकता ही नहीं बची। अब उसके पास में लाइफ में कुछ बचा ही नहीं। वो तैयारी बहुत अच्छी है। मॉक में उसके नंबर बहुत अच्छे आ रहे हैं। वो गारंटेड है कि पेपर में बैठता तो उसका सिलेक्शन होता। लेकिन वो बस वो एक एक्सपेरिमेंट का पात्र बन के रह गया। उसके लिए आप क्या कहेंगे? तो इन्होंने कहा हम एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं। अगर आप एक्सपेरिमेंट कर रहे हैं तो पेपर कैंसिल कराइए पीछे का। क्योंकि आपका एक्सपेरिमेंट कंप्लीट फेलियर है। आप यह बात कहिए कि हम सीजीएल के लिए पूरी तरीके से जब प्रिपेयर होंगे तो हम पेपर लेंगे। आप ये कहिए कि स्टेनो के लिए हम पूरी तरीके से प्रिपेयर होंगे तो कहेंगे। उन्होंने कहा कि अबकी बार दिक्कत आया आगे में नहीं आएगा और सर स्टेनो का भी एडमिट कार्ड कुछ लोगों का जो आया इतना बुरा हालत है कि केरला तक सेंटर दे दिया है। कैसे जाएगा कोई केरला? एक-ए दिन 2-द दिन का सफर है। कोई कैसे तय करेगा वहां पे? तो पहली बात तो यह दूसरी बात उन्होंने यहां पर यह कहा कि हां हमने एडिक्विटी को देखा है। एक्सेप्ट किया है कि वहां पर सिस्टम फेलियर है। हम उस पेल्टी लगा देंगे। सर जो बच्चा सेंटर के साथ ही वहां पर सिस्टम को कॉम्प्रोमाइज कर ले। जब कोई मोबाइल लेकर के जा सकता है पेपर देने तो आप कैसे गारंटी दे सकते हैं कि उसने पेपर बिना चीट के दिया होगा या यहां पर कई इनविजिलेटर ने उसको सपोर्ट नहीं किया होगा। तीसरी उन्होंने यहां पर ये बात कही और सर बहुत हंसी आएगी आपको। उन्होंने ही डायरेक्टर ने उनकी बात की। जब हमने उनसे ये सवाल कहा कि सर आज जैसे 100 क्वेश्चन आए। अब जनरली क्या होता है बच्चों में वो चर्चा हो जाता है आज क्या-क्या क्वेश्चंस आए। और ये सब्जेक्टिव तो है नहीं यूपीएससी की तरह कि तुम अलग-अलग आंसर दोगे और तुम्हारे लिखने की कला के ऊपर में जो है मार्क्स मिलेंगे। ऑब्जेक्टिव है। ऑप्शन बी इज़ द करेक्ट आंसर। तो वही होगा। ठीक है? अब नेक्स्ट डे क्या होता है? फिर से पेपर होता है और सारे के सारे वही 100 सवाल जो 60 60 70 क्वेश्चन वो जो है सेम दे देते हैं। अच्छा हम जब ये डायरेक्टर साहब से ये बात पूछते हैं कि ऐसा क्यों किया? तो उनका बड़ा ह्यूमरस आंसर होता है। वो ये कहते हैं कि देखो लोग ये एक्सपेक्ट करके गए होंगे कि अलग क्वेश्चन आएगा और हमने उनको सेम क्वेश्चन देके धप्पा दे दिया। मतलब एक नॉनसेंस रिप्लाई है ये। मतलब जाहिर से सबने पढ़ा होगा क्या आया? सर क्यों नहीं पढ़ा होगा? हर टेलीग्राम ग्रुप में आज के समय डिस्कशन होता है। हर टीचर ऑफलाइन में अपने कोचिंग में डिस्कशन करता है। ऑनलाइन में तो हमने काफी बोल-बोल के लोगों के ऊपर प्रतिबंध लगा दिया कि मत करिए ऐसा। ये बिल्कुल भी फेयर नहीं है। लेकिन आप उसको हर तरीके से रोक नहीं सकते ना। एक रूममेट दूसरे के साथ बिल्कुल शेयर करेगा जब उसका पेपर होगा तो। अब इसके में कहां तक फेयर सिलेक्शन हुआ? जो पहला दिन जो लड़का गया था वो पूरा मेहनत करके गया था। सिलेबस पढ़ के गया था तो वो 100 के 70 क्वेश्चन बना पा रहा है। दूसरे दिन जो मेहनत नहीं भी किया वो भी 100 के 70 क्वेश्चन बना रहा है। तो कैसे फेयर सिलेक्शन होगा? आंसर सबको पता ही होता है। आंसर सबको पता है। साल भर वही पढ़ा उसने। फिर उसके बाद आप यह कह के निकल जाते हैं कि हम जो है धप्पा मार रहे थे। बताइए। अब यह कोई बात थोड़ी होती है। तो सर बहुत लाचार व्यवस्था है और जिस तरीके से उन्होंने सारे अपने बातें कही वो अपनी टेक्निकल बातों को समझा रहे हैं लेकिन अपनी कमियों को छुपा रहे हैं। तो ये एसएससी चेयरमैन के लेवल पे इशू है या इशू उससे ऊपर है। सर वो तो चेयरमैन साहब ही बता पाएंगे कि किसका प्रेशर और कितना प्रेशर है। वो हम कैसे कह सकते हैं? हमारा तो अधिकार उनसे सवाल पूछना है। वो ये थोड़ी बोल देंगे कि हमको ऊपर से प्रेशर आ रहा है। बट अब जाहिर सी बात है मोदी जी कीबोर्ड तो चेक करने गए नहीं होंगे। हां। वो तो कंपनी के पास गया होगा। तो इसका जड़ आपको कहां लग नजर आ रही है? आप चेयरमैन साहब से जब पूछो कि ऐसा क्यों है? तो कहते जी हमने फेयर बीडिंग की है। आप जाकर के पोर्टल पे देख लो। सारी चीजें सही हुई है। आपने बडिंग फेयर की। आप हमको यह बता रहे हैं पोर्टल से देख लो। क्या आपने सेंटर्स फेयर था वो आपने चेक किया जाकर के। इतना तो एसएससी कर ही सकती थी कि अपने लोगों से कम से कम एक क्वालिटी मतलब एक सर पॉइंट्स होते हैं, पॉइंटर्स होते हैं कि ये ये चीजें आपके पास सेंटर में हो तो वो माना जाएगा नहीं तो नहीं माना जाएगा। बडिंग में ही सारी गलती हुई। ब्लैक लिस्टेड कंपनी को आपने कैसे बडिंग में पार्टिसिपेट करने दिया? आप ये तो चेक कर लेते वहां पे कि जिसके ऊपर में कई बार सवाल उठ चुके हैं। चाहे वो एमपी का पटवारी का पेपर हो या महाराष्ट्र का एमबीए का पेपर हो वहां पर। ठीक है? या फिर एमपी के टीचर का पेपर हो जिसके ऊपर में कई बार सवाल उठ चुके। सीबीआई इंक्वायरी तक बैठ चुकी है शिवराज सिंह चौहान के सरकार में। तो आप उसको एसएससी जैसे बड़ी परीक्षा का कैसे दे सकते हो? क्या इसके पीछे करप्शन हो सकता है? हो सकता है। बिल्कुल हो सकता है। बड़े लेवल का हो सकता है। लेकिन हो सकता है ये इसके ऊपर में जब तक हम कंफर्मेशन नहीं दे सकते जब तक हमारे पास कोई जैसे कई शिक्षकों ने कहा कि आप क्वेश्चन रिचेक करवाना हो तो शायद ₹100 जमा करने पड़ते हैं। सर इसका तो बुरा हाल ऐसा है ना कि मतलब आप यह समझ लो कि आप मेरी कमी को बताने के लिए मुझे पैसे दे रहे हो। यह काम एसएससी का है। पहली बार में आज मैं एक शिक्षक हूं। मैं 500 क्वेश्चन की शीट बनाता हूं। लेकिन मजाल है कि उसके अंदर में दो सवाल भी गलत निकल जाए। और इनसे 100 क्वेश्चन में गणित के चार 100 क्वेश्चन होते हैं और उसमें भी 133 सवाल यहां पर ये गलत सेट कर देते हैं। इतना बुरा सर इसका नुकसान झेलने को मिला है 2024 में मैं आपको बताऊं। होता क्या है कि पेपर होता है। 100 क्वेश्चन का आपका रहता है। मेंस में आपके रीजनिंग और रीजनिंग के और हिंदी के रीजनिंग के और मैथ्स के 30-30 सवाल आ रहे होते हैं। और उसमें भी मजे की बात ये है कि 13 सवाल गलत हो जाते हैं। 13 सवाल गलत होने के बाद में उसके नंबर यहां पर क्या करते हैं? मार्क्स टू ऑल कैंडिडेट यहां पर यह अवार्ड कर देते हैं। अब एक बात बताइए मान लीजिए कि वह 13 सवाल में सर 10 मुझे आते थे। तीन आपको आते थे। अब 13 के 13 में पूरे आपको नंबर भी मिल गए। पूरा मेरे को भी नंबर मिल गए तो कंपटीशन रहा कहां? फिर कंपटीशन कहां रहा? अच्छा वो कमी भी इनको बताने के लिए हमें क्या करना पड़ता है कि हमें पर क्वेश्चन ₹100 कैंडिडेट को इन्हें देना पड़ता है कि ये जी सवाल आपका गलत है यहां पर और इसको हम बता रहे हैं तो रिप्रेजेंटेशन के लिए हम ₹100 देंगे आपको। अच्छा इसमें एसएससी से पूछो कि आपने क्यों ₹100 रखे हुए हैं? फॉर्म का फीस भी ₹100 है और एक क्वेश्चन का फीस भी ₹100 है। तो वो ये कहते हैं कि सवाल जो है हर कैंडिडेट हर क्वेश्चन पे रिप्रेजेंटेशन ना लगा दे तो जब पैसा उसका लगेगा तो उसको महसूस होगा कि नहीं नहीं कहीं ज्यादा पैसा नहीं लग रहा तो हमने इसीलिए ये लॉजिक दे रखा है। बट कहां तक ये उचित है? आपकी कमी को बताने के लिए हम पैसा क्यों दें? हां उस पे भी लॉजिक दिया जैसे सड़क बन रही है। हां तो फिर वही सर लॉजिक्स का तो कोई है ही नहीं। अगर मुझे लगता है डिबेट करना चाहिए तो चेयरमैन चेयरमैन से करो आप। ऐसे-ऐसे लॉजिक्स एसएससी के पास में जिसका कोई तोड़ नहीं है। उनको ये नहीं दिखता वो सर जुड़ेंगे ना जब बच्चों के साथ में पता चलेगा। हम शिक्षक हैं। हम लोग जुड़े हुए हैं। हमें पता है जब बच्चा वहां पर आ रहा होता है हम देखते हैं वहां पर वो चप्पल कैसा पहना है। सिलवा करके पहन करके आया होता है। और आकर के हाथ जोड़कर के बोलता है गुरु जी देखिए हमारे पास पैसा नहीं है। बैठने का जगह दे दीजिए। रात में आप किसी कोचिंग में हम सो जाएंगे। झाड़ू पोछा सुबह में कर देंगे। और तैयारी करेंगे। बस यहां पर हमको जो है बड़ा आज से आए हुए हैं और एक साल के अंदर में हम सरकारी नौकरी लेना। आप जीवन में जो काम बोलेंगे हम वो करेंगे। बस अपने कोचिंग में रख लीजिए। हमको पढ़ा दीजिए। और वहां से हम उस बच्चे की मदद करते-करते हमने उसको इंस्पेक्टर बनते तक देखा है। और वहां पर सर जिस बच्चे ने इतनी मेहनत की है जमीन तक उसके साथ अगर सिस्टम धोखा कर दे तो वो कहां जाएगा? क्या होगा? क्या सशन है इसका? आप लोग तो आंदोलन कर रहे हैं। सॉलशन यही है कि सरकार को इसके ऊपर में थोड़ा स्ट्रिक्ट होना चाहिए। जितना आप देश को लेकर के होते हैं, जितने आप धर्म को लेकर के होते हैं, जितने आप पाकिस्तान और इंडिया के वॉर को लेकर के हो रहे होते हैं, उतना ही स्ट्रिक्ट आपको एजुकेशन को लेकर के होना पड़ेगा। सरकारी स्कूल बंद करने से, टीचरों की बहाली नहीं निकालने से, भर्ती प्रक्रिया को लेट करने से आप कुछ नहीं जीतने वाले। आप बाहर से विश्व गुरु दिखाएंगे अंदर से खोखला हो जाएगा भारत। ये बच्चा पढ़ेगा ही नहीं सर तो आगे कैसे बढ़ेगा? इंटेलेक्चुअल है ही नहीं। गुरु ही उसको सिखा रहा है। गुरु ही सारी चीजें उसको बता रहा है। तुम गुरु पर ही लाठी चलवा रहे हो। तो ऐसे कहां से अच्छे भारत की कल्पना करोगे आप? बट आमतौर पर जैसे प्रोटेस्ट थोड़ी संवेदनशीलता आती है। हम खासतौर पर शिक्षक हो गए, महिला हो गई उनको लेकर आती है। बिल्कुल। आप लोग पे बरसाया गया और हम कौन सा बंदूक लेकर के गए थे? लाठी लेकर के गए थे, किसी को मारने गए थे। इतना तो समझना चाहिए था कि टीचर्स हैं। बहुत विनम्र तरीके से भी तो बात रखी जा सकती है। एक डेलीगेशन आ सकता है, समझा सकता है, आश्वासन दे सकता है, रिटेन में कुछ यहां पर कह सकता है। कहां हुआ ऐसा कुछ भी शिक्षक तो इसीलिए आए थे ना कि वो अपने मिनिस्टर से वो बात कर पाए जिसके लिए उनको चुन करके भेजा गया। उनको क्या पता था कि आकर के हमको लाठी से बिटवा देंगे। और उसके ऊपर में भी सर मजे की बात यह होती है ना कि नेक्स्ट डे हमारे सांसद में चर्चा होती है और रवििशन जी जो है समोसे के साइज पे चर्चा करते हैं कि साइज क्या होनी चाहिए और रेट क्या होना चाहिए भर्ती पर तो कोई बट पार्लियामेंट में तो किसी ने चर्चा नहीं किया अब तक आपके बारे में कहां किया सर यही तो दुख है रेलवे रिफॉर्म पे भी कहीं चर्चा यही दुख है इसी वजह से मुझे लगता है कि मैं और आप हम साथ बैठे हैं। इसी वजह से एक खुशी है पहली बार कि हां नेशनल मीडिया ने इसको कवर किया है। नहीं तो अक्सर हमारे मीडिया से भी शिकायत होती है कि वो इसे कवर नहीं करते। छोड़ देते हैं। रेलवे रिफार्म वो भी नहीं कवर किया था? नहीं किया सर। मुझे याद है रेलवे रिफार्म है। सर Twitter को कम समझता है क्या कोई Twitter पे क्या ऐसा है कि हां ऐसे ही आ करके कोई भी सर उसको नंबर वन पे ट्रेंड करा देगा वो बच्चों की पीड़ा है और जब लोग यह कहते हैं कि हल्ला काट रहा है हल्ला काट रहा है तो उसके मैसेजेस को पढ़ो ना उसके तथ्य को पढ़ो ना उसके द्वारा शेयर किए गए वीडियो को पढ़ो ना देश का अटेंशन तभी क्यों आता है जब बीपीएससी में लड़कियों के ऊपर में लाठी चलती है जब तक लाठी से वो पिटेंगे नहीं क्या तब तक बीपीपीएससी का दर्द नहीं दिखेगा क्या मजबूर भी तो इसी बात पे किया जा रहा है कि तुम सड़क पर जब तक पिटोगे नहीं नेशनल मीडिया कवर नहीं करेगी सिस्टम भी तो यही है। नॉर्मल तरीके से भी तो बातें कही जा रही है। आप उसको सुनिए। आप उसके फैक्ट चेक को करिए कि बच्चा सही कह रहा है कि गलत कह रहा है। इसके ऊपर में एक डॉक्यूमेंट्री लेकर के आइए। वीडियो लेकर के आइए। तो इसको इसको जैसे आप लोग ये बिहार से लेकर यूपी यूपी हो गया, गुजरात हो गया, महाराष्ट्र, बंगाल हर जगह पर है। अपने-अपने लोकल सांसद विधायक क्यों नहीं परेशान करते लोग? सर, अभी कल वही करने जा रहे हैं। हम बोलने जा रहे हैं। लेकिन उनके पास में इतने मुद्दे होते हैं कि हमारे मुद्दे दब जाते हैं। तो अगर विधायक सांसद पास समय नहीं है तो फिर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के पास समय कहां से होगा? सर यही बातें तो उनको तो परेशान करना उनके विधायक को करना चाहिए कि आप लोग विधायक को परेशान कीजिए विधायक साहब को इतना परेशान कर दीजिए कि विधायक साहब आगे परेशान करें क्या साहब आपके हार जाएंगे जिस रोड से होकर के आए दिन हजारों की संख्या में लोग गुजरते हैं और वो रोड के कारण एक्सीडेंट्स भी होते हैं और विधायक को वो सड़क तक नहीं दिखती तो जो भर्ती अदृश्य है जहां पर वो डायरेक्टली जुड़ा नहीं है उसको भर्ती कहां से दिखेगी मुद्दे तो कई सारे हैं यहां पर जिसके ऊपर में बहुत संगीन संज्ञान लेना चाहिए लेकिन कहां होता है सर हमारी तो इसीलिए आवाज है तो एट द एंड में आप मुझे यह बता बता दूं सर कि हम शिक्षक हैं। हम पढ़ाने वाले लोग हैं। हम धरना देने वाले लोग नहीं हैं। हम कलम से क्रांति लाने वाले लोग हैं। लेकिन अगर शिक्षक को रोड पर आना पड़ रहा है तो कहीं ना कहीं जो पार्टी में हैं जो सत्ता में हैं उनकी भी कहीं ना कहीं कमियां हैं और जो विपक्ष में हैं उनकी भी कमियां है। अगर विपक्ष इतना मजबूत होता तो शायद शिक्षक जो है वो सड़क पे नहीं है। इसीलिए मैंने कहा था कि अगर शिक्षक और बच्चे दोनों एक साथ सड़क पे उतरे हैं तो सिर्फ ये परीक्षा का विषय नहीं है। बिल्कुल। अब ये देश की समस्या होनी चाहिए कि यार जिनको पढ़ना था वो Twitter पे अकाउंट बनवाया जा रहा है उनसे। एंड आई एम श्योर ये भी करना पड़ा होगा बहुत सारे बच्चे को पता ही नहीं कैसे करना है वो भी सिखाना पड़ता है कि अच्छा ये ट्वीट है ये जो ऐसे घूम रहा है ना इसको तुम दबा देना तो इसको रीट्वीट कहते हैं और ये रीट्वीट हो जाएगा मैसेज तक लिखना नहीं आता फिर वो रीट्वीट करते रहता है बच्चा हम ही लोग तो सिखाते हैं ना कि बेटा देख सोशल मीडिया से दूर रहे जिंदगी में कुछ पाना है तो वक्त जो बर्बाद करते हो तुम उससे दूर रहो तुम्हें कोई सोशल मीडिया प्लेटफार्म इंस्टॉल नहीं करता तुम्हें किसी की बातें नहीं सुननी तुम्हें अपने किताबों पे ध्यान देना है तुमने अपने जीवन पे ध्यान देना है तुम्हारे लाइफ में अगर है तो तुम अपने पढ़ाई पर ध्यान दो और फिजिकल पर ध्यान दो ये ये दो चीजें तुम्हारे लाइफ में तुम्हें आगे लेके बढ़ जाएंगी। लेकिन जब दोनों तरीके से तैयार होने के बाद में जब बच्चे की बात को नहीं सुना जाता है तब हमें तीसरा उसको डिजिटल लेकर के आना पड़ता है जो हमारे लिए भी नुकसान है। आप ये बताओ अगर ये सारी चीजें नहीं हो रही होती तो हम पढ़ा रहे होते बच्चा पढ़ रहा होता और आगे बढ़ते। सर जितनी तेजी से भर्ती प्रक्रिया निकलेगी दूसरा बैच आएगा, तीसरा बैच आएगा। हम भी तो आगे बढ़ेंगे। सर इंटेलिजेंस की तो ये कहानी है कि गवर्नमेंट इंटेलिजेंस इंटेलिजेंस लेना चाहती है लेकिन उसके पास में लोग नहीं है तो वो इंटरकलेलेक्ट नहीं कर पा रही है और इसी का कारण होता है कि बड़े-बड़े प्रोटेस्ट में भी सिस्टम फेलियर्स हो जाते हैं। अब किसान आंदोलन में जो सारी चीजें हुई वहां पर मुझे लगता है कि और लोगों की आवश्यकता थी लेकिन लोग नहीं थे तो वो डिले होता गया। काफी सारी छोटी-छोटी चीजें निकल कर के आ गई क्योंकि मेरे भी स्टूडेंट सिलेक्टेड हैं। अलग-अलग डिपार्टमेंट में हैं। मैं भी उनसे बात करता हूं। वो सीधा क्लियर बता रहे होते हैं कि सर लोगों की आवश्यकता है। भारती नहीं कर रहे। अब यहां से प्रोटेस्ट कैसे आगे बढ़ेगा आप लोग का? क्या प्लान है? प्रोटेस्ट में तो सर कल मिनिस्टर साहब मिलने वाले हैं। अगर वह मिल जाते हैं तो वेल एंड गुड है। नहीं मिलते हैं तो सर और भी तरीके हैं। शांतिपूर्ण तरीके हैं जिससे हम इस बात को करेंगे आगे रखेंगे और वो सारे शिक्षक मिलकर के डिसाइड करेंगे। ये तो नहीं कि मतलब जितना हंगामा होना चार दिन का बुलबुला फूट गया शांत फिर सर बुलबुला तो फूटेगा नहीं क्योंकि अगर एडिक्वटी ने सेम काम किया तो 13 अगस्त से सीजीएल का पेपर शुरू होने वाला है। फिर वो किसी के कंट्रोल में नहीं होगा। यूपीएससी के बाद में एसएससी सीजीएल एकमात्र ऐसी परीक्षा है जो अच्छे पद की है और जिसमें सबसे ज्यादा बच्चा जुड़ता है। कितने बच्चे हैं? लगभग 40 लाख फॉर्म भरने वाले। उसके बाद में रेलवे में आप चले जाओ तो ग्रुप डी और एनटीपीसी वो भी है। बट इनके दोनों के कॉमन क्राउड हैं 10 से 15 लाख जो ये भी पेपर देता है और वो भी पेपर देता है। तो अगर सीजीएल में गड़बड़ी हुई सर तो बहुत दिक्कत है। यानी 13 तारीख बिल्कुल इंपॉर्टेंट तारीख है। बहुत निर्णायक दिन होगा वहां पे। आप सोचो सिलेक्शन पोस्ट तो कुछ भी नहीं है। तीन अलग-अलग लेवल के पेपर मिलाकर के 30 लाख का क्राउड था। 10वीं, 12वीं ग्रेजुएशन और यहां पर तो सीजीएल में सिर्फ ग्रेजुएट लोग 40 लाख हैं। जहां पर यूपीएससी का भी क्राउड बैठता है। जहां पर एसएससी का भी बैठता है। ठीक है? अच्छा क्राउड होता है। मतलब डिसेंट जिसको आप कह सकते हैं कि उसके पास सोचने, समझने, पढ़ने, लिखने की बुद्धि है। लठ मार वाला क्राउड वहां पर नहीं है। और उसके साथ में अनफॉर्चूनेट कि 13 तारीख को पेपर है और लड़का बैठ के Twitter पे ट्वीट कर रहा है। बहुत मैं कह तो रहा हूं सर बहुत दुर्भाग्य की बात। 13 छोड़िए। सर अनफॉर्चूनेट तो यह भी है कि यह कह दिया गया कि आपका पेपर होगा 6 तारीख को। ठीक है? बच्चों के साथ में एडमिट कार्ड में ऐसा है कि 6 तारीख को आपका पेपर और मजे की बात ये है कि 5 तारीख के शाम तक उसके एडमिट कार्ड का नाम ही नहीं है। सेंटर का नाम ही नहीं है एडमिट कार्ड पे। अब वो क्या करें? कहां पेपर देने जाए? मतलब मेरा पेपर 6 तारीख को है। कहां है बस ये? ये भी एडिकुटी में हुआ है। बिल्कुल हुआ है। मतलब दो तरह की प्रॉब्लम है एडमिट का। मैं कह तो रहा हूं सर ऐसीऐसी चीजें निकल कर के आई है ना। आप जब सुनोगे तो आप बोलोगे भाई हो रहा है। पेपर ही हो रहा है क्या? और तब आपको समझ में आएगा कि बच्चों का ये गुस्सा जायज क्यों है? दो तरह की दिक्कत है। पहला क्या होता है? एडमिट कार्ड आ जाता है। पहले होता था टीसीएस में कि 7 दिन पहले एडमिट कार्ड आ जाता था। बच्चा निश्चिंत है। बेफिक्र है। अच्छा आगरा भरा है। आगरा आ गया। मैं अपनी तैयारी पर फोकस करता हूं। मॉक टेस्ट देता हूं अपना प्रिपरेशन। इसमें यहां पर इन्होंने ये कह दिया हम 3 दिन पहले देंगे। पूछा गया क्यों भाई 3 दिन पहले दोगे? तो नहीं बच्चे को पहले पता चल जाएगा ना सेटिंग कर लेगा। चलो मान लिया हम आपकी यह भी बात। अब आप 3 दिन पहले तो कम से कम सेंटर दे दो। 3 दिन पहले सेंटर देते हैं और कहां देते हैं? तमिलनाडु। कहां से 3 दिन में वो टिकट कराएगा। वो कहां से तमिलनाडु जाएगा? अब यहां पर वो ये सर्च करे कि भैया मैथ्स का ये सवाल जो मेरा अधूरा था मैं उसको कैसे पढूं या वो ये सर्च करे कि तमिलनाडु के जाने के रास्ते क्या है? जो भारत है जहां पर रेलवे टिकट कहीं मिलता नहीं सर वो भी तत्काल कर रखा है ना फ्लाइट खरीदने की औकात होती नहीं नहीं है आप एक बार ट्रेन में कैसे जा सकते हो मतलब उसमें भी पेनाल्टी है अगर आप मान लीजिए वेटिंग में चले गए तो चलती ट्रेन से उतार दें और अगर इतने दूर सेंटर होता है किसी लड़की का है तो जाहिर सी बात है वो अकेली नहीं जाएगी एक गाजिंग को लेकर के लड़कों में भी काहे जाएगा भाई लड़कों में भी मतलब जो ठीक-ठाक लड़कियां हैं क्यों जाएगा रात भजक के बाथरूम में बैठ के क्यों जाएगा वही सर दो नहीं लड़कियों के लिए इसलिए भी कह रहा हूं क्योंकि लड़का तो है कि जैसे एडजस्ट करके चला भी जाए अब लड़की अगर अपने मां-बाप के साथ में वहां पर जा रही है तो कम से कम एक सीट तो हो उसके पास में और ट्रेन में ऐसा है कि सर 2 महीने 3 महीने पहले ही सारी सीटें बुक हो जा रही है। आप जा ही नहीं सकते। रेलवे में तो टिकट मिलता ही नहीं है। पॉसिबल ही नहीं है सर। जिस दिन तत्काल सीट खुलती है उस दिन फुल हो जाता है। मतलब वो तो सबसे बड़ा मजाक है कि सुबह खुलता है 10 मिनट के लिए। वो कौन सर्वर हैक होता है? कहां से हैक होता है? क्या जुगाड़ है? हम छोटे तब भी वैसे हैक होता था। सर इसके ऊपर में भी मैंने जो है बिना दलाल के तो रेलवे टिकट कोई बुक कर दे तो इसके ऊपर नोबेल प्राइज मिलना चाहिए। इसके ऊपर मैंने एक इंटरव्यू लिया था जो टिकट काटती हैं मेरे स्टूडेंट ही रही वहां पे तो मैंने उनसे पूछा ये सारी चीजों को लेकर के तो उन्होंने कहा सर देखो हमें पता तो है कि ये सारा कॉम्प्रोमाइज्ड है लेकिन सरकार अलग-अलग तरीके से इसके ऊपर में काम करना शुरू करती है होता है लेकिन एक सिस्टम का ये फेलियर है बहुत तरीके से फेलियर है मैंने कहा ना कि सर जब लोग ही नहीं होंगे आपके पास में तो ट्रेन बनाएगा कौन जब लोग ही नहीं होंगे वहां पर तो पटरिया बिछेंगे कैसे जब लोग ही नहीं होंगे तो चलाएगा कौन वहां पे तो आप लोगों की तो भर्ती नहीं कर रहे मतलब वो 10 पौ:45 से मुझे याद है मैं टिकट जब बुक करता था तो मैं उसको रिफ्रेश करता था खुलेगा खुलेगा खुलेगा और जब जब तक उसने नाम डाला तब तक पता लगा गायब अब वो गया कहां मैंने कहा ये गजब है सर उसमें भी ये होता है ना कि हमने तो जीवन में ये मान लिया कि हम लोगों से जीवन में इस जन्म में तो तत्काल नहीं था और वही मेरे दलाल को पैसा दिया मैंने उसने खट से करके दे दिया मुझे और दलाल भी बढ़िया लेता है ना सर 500 का टिकट 2000 में हां और जिस ट्रेन में चाहोगे उस ट्रेन में मिल जाता था मुझे तो सर अब ये कैसे हो रहा है ये तो सरकार को सोचनी चाहिए हम लोगों के लिए तो बस और हर शहर में दलाल है हर शहर में नहीं सर मतलब मतलब आप हर ऐसे मान लीजिए कि 1 कि.मी. के अंदर हां ये कर लेते हैं। सरकार जानती भी है बात जानती भी है। फिर ये भी कहती है हम एक्शंस ले रहे हैं। ये भी कहती है कि हम इस तरीके से बदल रहे हैं। कहां बदला? बस उन्होंने नई ट्रेन बढ़ा दी। उसमें भी अब तो नई ट्रेनों में भी व्यवस्था हिसाब हो गया है कि वो एयरप्लेन वाला हो गया। जितना नजदीक आएगा उतना टिकट बढ़ता जाएगा। बढ़ता जाएगा। सर फेयर बढ़ रहा है और आप ये मान कर के चलो कि नॉर्मल ट्रेन को पॉलिश करके वंदे भारत बना दिया जा रहा है लेकिन समस्या नहीं सुधर रही है। बट ये सीरियस प्रॉब्लम है कि अगर तीन दिन पहले एडमिट कार्ड मिल रहा है। लोकेशन पता लग रही है। तीन दिन में इंसान कैसे प्लान कर लेगा। इसमें भी मैंने कहा ना कि दो केस है। पहला वाला केस तो चलो ये हो गया कि वो 3 दिन में प्लान कैसे कर लेगा। घरते गुजरते जैसे तैसे करके हो सकता है उसको अपना गहना गिरवी रखना पड़े। खेत गिरवी रखना पड़े। पैसा इकट्ठा करके प्राइवेट व्हीकल करके वह सेंटर पर जब पहुंच रहा है तो उसके साथ में पता है क्या हो रहा है? जाने के बाद में सेंटर वाली यह कह रहे हैं सॉरी आपका पेपर नहीं होगा। क्यों नहीं होगा पेपर? पेपर आज सर्वर की वजह से कैंसिल हो गया। कुछ में तो यह भी आ गया कि सर्वर ठीक चल रहा है। एक लड़की थी वो जाकर के सेंटर पर कहती है देखिए यह आप ही के सेंटर का नाम है और यहीं पर मेरा पेपर है। वहां का इन्वजिलेटर यह कहता है कि मेरे जो दीवार पे ये लिस्ट लगा हुआ है उसमें आपका नाम नहीं है तो आपका पेपर यहां नहीं होगा। आप एसएससी के वेबसाइट पे चेक करो और वो एसएससी के वेबसाइट पर जब वो चेक करती है तो वहीं पेपर दिखा रहा होता है और उसका मैसेज भी है मेरे पास में तुरंत वहां पर परेशान है वो कि सर मैं क्या करूं मुझे यह बताओ ना अभी मैसेज ऑफलाइन की स्टूडेंट थी वो कि सर सेंटर का नाम दिया है एडमिट कार्ड पे मैं सेंटर पे टाइम पर पहुंची हूं मुझे एंट्री नहीं दे रहे कह रहे हैं कि एसएससी का वेबसाइट चेक करो अब इससे ज्यादा बुरी हालत क्या होगी खेत बेच बैच करके गिरवी रख के जा रहे हैं सेंटर पे पेपर देना है बोलता है पेपर नहीं लेंगे और यही होने वाला है सर 13 अगस्त के बाद अगर नहीं सुधरा तो फिर तो मतलब इट्स वैरी अनफॉर्चुनेट ये सोच के ही लग रहा है कि यार 15 अगस्त को आजादी है और अभी भी बहुत बड़ी बात है आजादी दे तो रहे हैं यू नेवर नो कि कौन किस हालात में किसके लिए वो जीने मरने का सवाल है वो नौकरी किसी इंसान की जिंदगी शायद उसके बाद जिंदगी भर चौका बेलना में चली जाएगी या क्या पता वो अधिकारी बन सकती है किसके पिताजी ने कर्ज ले रखा है किसके यहां कौन है कौन इतना कमजोर है कि उसको डाइजेस्ट नहीं कर पाया। हर किसी के पास है ना सर मतलब इतना साधन नहीं है, बैकअप नहीं है। जब सिस्टम से कोई इंसान टूट जाता है तो उसके बाद में उससे आगे बढ़ने का ऑप्शन नहीं होता। वो हमेशा पीछे ही रह जाता है। अगर मैंने यूपीएससी की तैयारी की है, आईएस लेवल की तैयारी की है। मेरी किस्मत मेरी मेहनत अगर साथ देती तो आईएस होता। लेकिन अगर वहां सफलता नहीं मिली है। चाहे मेरी वजह से सिस्टम के फेलियर की वजह से तो मैं कभी भी जीवन में रहूंगा तो उससे नीचे रहूंगा। 90% ऑफ़ द केसेस में होता है। 1% ही लोग ऐसे होते हैं जो उससे बाहर निकल के आदित्य रंजन बन सकते हैं या कोई इंडस्ट्रियलिस्ट बन सकते हैं या कोई सांसद बन सकते हैं या कुछ बन सकते हैं। लेकिन 99% जनता बट दैट्स ट्रू दब जाती है। दैट्स ट्रू। बिल्कुल। ये हमारे अपने जीवन में भी अनुभव है ये चीज है कि जब एक बार आप गिरते हो तो वहां से उठना बड़ा मुश्किल होता है। या तो आपकी सेल्फ विल पावर इतनी स्ट्रांग हो या कोई आपको मार्गदर्शक ऐसा मिल जाए। सर 1% ही है ना वो तो। उसमें भी अगर अच्छा गाइडेंस मिल गया तभी अदरवाइज नॉमिनी लोग बर्बाद ही हो जाते हैं। तो सर दुनिया में जब 99% लोगों के साथ में ऐसा हो रहा है तो एग्जांपल भी तो वही मिल रहा है। फिर कहानी और खत्म हो रही है। आपने कितने घंटे पढ़ाई की थी? सर मैंने कभी घंटे देख के पढ़ाई नहीं किया। जब पेपर नहीं होता था थोड़ा सा टाइम है तो 6 घंटे भी पढ़ लिए, 7 घंटे भी पढ़ लिए और जब पेपर आ जाता था तो पता ही नहीं चलता था कि वक्त कहां गया है। कब खाया था, कब चेहरा धुला था। मतलब 3-ती दिन हो जाते थे कि आप चेहरा धो भी रहे हो। आप कमरे से बाहर भी निकल रहे हो वहां पे। सर ऐसा सिचुएशन हो जाए। क्या बैकग्राउंड था आपके घर परिवार का? पापा मेरे किसान हैं। मम्मी मेरी हाउसवाइफ हैं। किस चीज किसान है? खेती करते हैं। कौन सी चीज की? सारी गन्ना होता है, मक्का होता है, आलू होता है हमारे यहां पे और धान होता है। मतलब हमने भी पापा के साथ खूब खेतों में हाथ बिठाया है। हमारे दादा जी भी रहे हैं। हां। जैसे हमारे यहां ये सब कपास और कॉटन और बाकी सब ये नहीं होता। हां थोड़ा सा यूपी बिहार में ही चलता है। गन्ना में मुख्यता गन्ना खेती होती है। सर पैसा ही हमारा वही आता है। अगर गन्ना और मक्का ना करे तो कभी इंसान बढ़ ही नहीं पाएगा। मतलब आप ये समझ लो कि हमको अभी भी याद है कि बचपन में जब ठंडी का समय होता था और जब चालान आता था मिल का जब चालान आता है। गन्ने का भी बड़ा बढ़िया लॉजिक है कि तुम गन्ना उगा लिया जब तक मिल से चालान नहीं आएगा तुम्हारा गन्ना खेत में रहेगा। अब जब मिल से चालान आ गया। अच्छा कई बार चालान नहीं आ रहा तो ₹2 ₹2000 में खरीदना पड़ता था दूसरों से। से भैया तुम चालानवा दे अपन तो ₹2000 दे दिए ₹3000 दे दिए चालान देगा। फिर उसके बाद में उसको ला दो। उसके बाद मिल में ले। वही टिकट जो ट्रॉली टिकट लेके आते हैं। कट्टे डालते हैं। कट्टे डालते हैं। हां हमको याद है। अब फिर उसके बाद में वो गन्ना जब मिल में जाएगा। अब मिल में जाने के बाद में भी इंस्टेंट पैसा आपको नहीं मिलेगा। आपको सारी खेती खुद के पैसे पे करनी है। चाहे आप ब्याज लेकर के करो। खेत बेच के करो, गहना गिरवी रख के करो। आप उसके बाद में जो है लेकर के सारे मिल तक भी आप खुद के पैसे से लेकर के जाओ। डीजल का भाड़ा, ड्राइवर का भाड़ा सब कुछ वहां पे लेबर का भाड़ा खाली भी आपका आ रहा है तो सारा पूरा किराया खुद लग रहा है। बीच में अगर एक्सीडेंट हो गया तो सारा खुद संभालो और कई महीनों के बाद में तब अकाउंट में पैसा आता है। तब तक जो मोर है उसका ब्याज ही इतना ज्यादा हो जाता है कि किसान को प्रॉफिट कम बचता है। तो बचपन के सारे कैलकुलेशन पापा के मेरे को याद रहते थे। ये हमको इसलिए याद है क्योंकि गोंडा जिले में जहां हमारा घर पड़ता है वहां चीनी मिल हमारे घर के पीछे है। हां तो एक तो रात भर भीड़ लगती थी वो ट्र एक तरफ डल्लफ वाली। एक तरफ ट्रॉली वाली एक तरफ ट्रक वाली। उसमें भी जितना दिन ड्राइवर रुक रहा है वहां पे तो हर दिन का दिहाड़ी जोड़ के लेगा और सोएगा भी कहां पुल बिछा गया साल ओढ़ के तो हर दिन का और भारी पड़ जाता था अगर दो दिन मिल में अटक गया लंबी लाइन की वजह से तो हम पे भरी भारी पर्ची का अपना एक अलग वहां ब्लैक का सिस्टम है हां कि पर्ची ब्लैक में खरीद किसान के पास ये भी नहीं है कि चार गो ट्रैक्टर है कि एक लॉट भेज दिया दूसरा भेजेगा जब तक पहला नहीं आएगा दूसरा नहीं जाएगा ये बहुत नुकसान करता है क्या सोच के आप दिल्ली आए थे यही कि सर थोड़ा अपने परिवार को आगे बढ़ा पाए ले आए थे पैसे का सर एक्सक्टली याद नहीं है क्योंकि कि मुझे लगता है जब आ रहे थे तो ट्रेन में मम्मी ₹1000 पकड़ाई थी। बाकी बोली अकाउंट में महीना में ₹5,000 डाल देंगे। तुम तैयारी करते रहना। लेकिन जब यहां दिल्ली आए तो शुरू-शुर में तो पैसे आए घर से। नो डाउट। जब मेरा भाई गया जब पंजाब में पढ़ने वहां पे तो थोड़े से पैसे कम आने लगे। जब बहन की भी बात आई दिल्ली को लेकर के आने तो बिल्कुल खत्म हो गए। तो सरकारी नौकरी की तैयारी के लिए बाकी सारी चीजों के लिए मैंने होम टशंस पढ़ाने शुरू किए। और मैं सागरपुर में रहता था। सागरपुर से धौला कुआं डेली मैं कॉलेज जाऊंगा। कॉलेज से उत्तम नगर से 711 724 बस जाती है और 740 भी है। तीन बसें हैं। तीनों को पकड़ के कोई भी मिल गया बस पास था डीटी अह स्टूडेंट वाला। तो उत्तम नगर ईस्ट जाएंगे। उत्तम नगर ईस्ट उतरेंगे। ईस्ट से लेकर के वेस्ट ₹5 किराया होता था हम देते नहीं थे। ₹5 बहुत है यार। 5- 5 ₹10 में तो सब्जी आ जाएगी। मतलब कोई ना कोई 10 मतलब 250 ग्राम इतना कि एक टाइम का खाना बन जाएगा। तो जाकर के फिर होम ट्यूशन पढ़ाएंगे। उसमें मिलता था ₹2000। और 2000 में ही अपना आकर के जैसे तैसे जो है रूम रेंट अपना निकल जाए। फिर धीरे-धीरे जब पढ़ाना शुरू किया और बच्चे जुड़ गए तो 67000 महीने के आराम से मिल जाते थे। मुझे बस इतना काम पकड़ना था कि मेरा पढ़ाई भी डिस्टर्ब ना हो और उसके बाद में जो है मेरा लाइफ जो चल रहा है वो ट्रैक पर चले। इतने पैसे आ जाए कि मैं अपना खर्चा निकाल पाऊं। तो मेरा उससे खर्चा निकल जाता था और मम्मी पापा मेरे भाई बहन को पढ़ा लेते थे। थोड़ी सी दिक्कत मुझे तब हो गई जब बहन दिल्ली आ गई पढ़ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में। तो उसके पीजी का जो किराया था वो ज्यादा था। क्योंकि लड़की थी कहीं पर भी रख नहीं सकते थे। रूम नहीं दे सकते थे तो पीजी में रखना पड़ा। अपर्णा गर्ल्स हॉस्टल है दिल्ली में यहीं पर उसका ₹10,000 जो है वो था तो उसके लिए मुझे और टशंस पकड़ने पड़े। वो थोड़ा सा मुझे और डिले कर गई। अगर वो ट्यूशन नहीं पकड़ना होता तो शायद मैं पिछले वाले पेपर में ही थोड़ा हिट कर जाता। अच्छा हम ₹40 का बस पास बन रहे थे। ₹40 और 50 का हमारे टाइम में आता था। आपका डेली का बनता था। लाल वाली बस में एसी वाले में 50 का बनता था। उसमें 40 का तो वो डेली का बस पास होता है। हां डेली का। स्टूडेंट वालों का केस क्या है? ₹515 में छ महीना। मतलब ऐसा है। ₹100 महीना लगता है। हां। तो हां लेकिन हमारे में अलाउड नहीं है सर इसी वाले में हम हरियर के में घूमेंगे तो हम भी हरे वाले में घूमते थे हालांकि उसमें खड़े दोनों जाना पड़ता है तो सीट कम मिला इतनी आबादी होती है सर धौला कुआं से पकड़ेंगे बैग ऐसे लटका लेंगे और पोल को ऐसे पकड़ लेंगे कि भाई झटका मारा तो आगे ना चल जाए मुंह हाथ फट गया तो दिक्कत हो जाएगा अब ऐसे पकड़े पकड़े हुए मैं लटक सो गए वहां पे कब 711 उत्तम नगर ईस्ट आ गया पता भी नहीं चल रहा और चलती बस में सट से चढ़ो एक साथ धक्का मार के उतरेंगे एक साथ अरे फोन भी चोरी हो जाता है सट से चढ़ने में मेरा जब पहला बार बड़ा खुश हुए लाइफ लाइफ में पहली बार हमको पापा बोले बेटा तुम है ना 12th में बहुत बढ़िया नंबर लेकर के आ जाओ पक्का तुम जो बोलोगे वो दिला देंगे 94% लेकर के आए दिल्ली यूनिवर्सिटी में एडमिशन भी हो गया बोले आप तो दे दो पैसा तो हुआ क्या पैसा दिए फोन भी हम खरीदे बहुत एक्साइटेड थे कि चलो कुछ तो अच्छा है मूवी भरवा करके आराम से जो है बोले आज थोड़ा सा मूवी देखेंगे रिलैक्स होंगे ₹-5 का मूवी भरा रहा था और जैसे बस में चढ़ते हैं भीड़ इतनी थी खींच के लेके चला गया अब वहां पर ऐसा लगा कि ले भाई मतलब क्या है काटो तो खून ने बस अब इससे ज्यादा ज्यादा दुख कुछ था ही नहीं। फिर दूसरी बार यहां पर यह हुआ कि चलो ठीक है। कुछ महीने की ट्यूशन पढ़ा-पढ़ा करके Nokia खरीदा हमने। ठीक है? कि अब हटाओ इसको यहां पे। 10,000 में बड़ा बढ़िया ऑरेंज ऑरेंज दिखता था। तो खरीद लिए Nokia। हमने कहा कि चलो ठीक है। अब इसको बहुत एकदम बढ़िया से सेफ रखेंगे। लेकिन जब आप बस में चढ़ते हैं ना तो बड़ा सावधानी से आपको दोनों पोल ऐसे पकड़ना पड़ता है। जैसे दोनों पकड़े मेरा मोबाइल पकड़ लिया। भाग गया। जैसे घुस रहे हैं अंदर तो सर हाइड्रोलिक सिस्टम है। गेट बंद हो जाता है। हम कह रहे हैं रोको रोको। कहता अगले स्टॉप पे रोकेंगे। अगले स्टॉप पे जब गए तब तक तो भाग गया फोन लेके। उसके बाद सर वहां इस मामले में हम होशियार थे। हमारा फोन हम छाती के अंदर चिपका बैठे थे। चाहे जो छोड़ेंगे नहीं। एक बार खाली हमारा फोन चोरी हुआ था दिल्ली में पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पे। जयपुर से लौटे थे। रात में बैग सर के नीचे बैग रख के सो गए। और बैग में रखे थे। गजब का चोर था साला ब्लेड से फाड़ सोते-सते मेरे आया होगा बगल में बैठा होगा। हल्का चीरा मारा और वो लिए थे नोट। Samsung का सेकंड हैंड फोन लिया था हमने। पहली बार नोट था। बड़ा मजा आता था पेन चलाने में। और चुरा ले गया। हमको पता नहीं बाद में हम ढूंढे तो वो चीरा लगा था। सर, कुछ नहीं मिलेगा। उसके बाद तो कसम खा ली है कि जब तक हम सिलेक्शन ना ले ले, उसके बाद हम कीपैड फोन से ही काम करेंगे। ₹1200 का Samsung गुरु का फोन खरीद करके इज्जत से देंगे। वो चोरी भी नहीं होता। उन्होंने कहा ले जा इसको और क्या करेंगे? फिर बोलेंगे कि दोस्त के रूममेट के फोन पे फोन कर ले तुम और इससे ज्यादा दुर्भाग्य मेरा क्या हो सकता है फिर? और उसको भी चुराने में शर्म आएगा कि चुरा क्या रहे हैं? हम्म। तो पोस्टर-वस्टर कब बांटी? ये जो काफी कहानी चलती है कि आपने पोस्टर बांटे रिक्शा सर ऐसा मतलब बहुत है जब हम कॉलेज के सेकंड ईयर में थे हम तो फर्स्ट ईयर से ही थोड़ी सी दिक्कतें आनी शुरू हो गई थी तो सेकंड ईयर में क्या है ना कि मेरा दोस्त है आशु है हम और अभी वो सर मेरे टीम में ही काम कर रहा है मेरे साथ ही काम कर रहा है तो आशु है तो आशु ने मेरे को बताया कि यार गुड़गांव में एक स्कूल खुला है और उसके इंक्वायरीज देने हैं 2 घंटे का काम है ₹400 देंगे हम खुश हो गए एकदम यार कि कैलकुलेट करने लगे 2 घंटे में 400 मिल रहा है उसके ऊपर से यह भी कहा कि उनकी गाड़ी आएगी धौला कुआ से निकलती है कैब और गुड़गांव लेकर के जाएगा महिपालपुर वाले रोड से और गाड़ी छोड़ के भी जाएगी हम और खुश हो गए और क्या चाहिए गाड़ी में बैठ के जाएंगे गाड़ी में बैठ के आएंगे ₹400 भी मिल रहा है दिक्कत क्या है तो खुश हो के आराम से बैठ जाते हैं गाड़ी में और जब ले के जाते हैं तो वहां पर वो बोलते हैं कि पैंपलेट पकड़ा दिए हाथ में तो हमको लगा कि ठीक है किसी को देने के लिए पकड़ाए होंगे पपलेट पकड़ाने के बाद में हुड़ा सिटी सेंटर जगह है वहां वहां पे ले जाकर के चौराहे पर रोक देता है बोलता है कि आप इसको पकड़े रहिए हम 2 मिनट में आते हैं तो हम बोले ठीक और 2 मिनट के बाद में फिर फोन आता है कि यह एक सादा पेपर होगा आपके पास में आप देखिए तो मैंने कहा हां है 30 लोगों का इसमें नाम रखवाना है लिखवाना है उनके मोबाइल नंबर होने चाहिए और उनके साइन वहां पर होने चाहिए और आपको क्या करना है कि यह प्लेट दे के बताना है लोगों को कि एक नया स्कूल खुला है और आप मान लीजिए 100 लोगों को बताएं हम वो काउंट नहीं करेंगे हमको यह 30 नाम चाहिए जेन्युइन नाम चाहिए फोन करें तो मिलना चाहिए इतना रिग्रेट हो रहा था कि हम लोगों से पहली बार जाकर के प्लेट पकड़ा रहे थे ना कि सर यह स्कूल स्कूल खुला है। भाग यहां से धक्का भी दे रहे हैं। गरिया दे रहे हैं। टाइम पास कर रहा है तो दिमाग खराब। क्योंकि सर हम लोग भी दूसरों के साथ भी वही करते हैं। हमारे लिए हमारा टाइम बहुतेंट होता है। हम गाली तो नहीं देते लेकिन हम ये भी नहीं करते हैं। अच्छा मेरे साथ में ये भी नहीं था कि हम प्लेट उड़ा दें। कि हां ठीक है देखो हम सारा प्लेट दे दिए। लोगों ने फेंका है क्योंकि हमको 30 को नाम भी चाहिए। वो भी होशियार था ना देने वाला। देने वाला भी था। हम जाकर के रिक्शा वाले से कह रहे सारा स्थिति बता भैया हां जोड़ है। आप अपना मोबाइल नंबर जो है दे दीजिए। इसमें फोन आएगा तो बोल दीजिएगा कि हां हां हमारा बच्चा जो है इस क्लास में पढ़ता है और हम इंक्वायरी करने के लिए एक छोटा सा मॉल था वहां पर वहां मैंने देखा कि लोग घुस रहे हैं वहां जा जा करके हमने रिक्वेस्ट करके जैसे तैसे हम 30 नाम भरवाएं रोते-रोते उसको फोन किया कि भैया मेरा पूरा हो गया आके ले जाओ तब आ करके वो हमको ले गया वो ₹400 आज भी बैग में रखे हुए हैं खर्चा नहीं किया वो आज तक वैसे ही पैसा वो रखा हुआ है तो वह बड़ा दयनीय स्थिति था इसके अलावा जब रूम चेंज करना था तो रूम चेंज करने के लिए जब ठेला वाले को जाकर के बोले कि भैया ऐसे-से करने का रूम शिफ्ट कर रहे हैं तो जो है मतलब एक बार आप इसको किराया शिफ्ट लेकर के चले जाओ तो ठीक रहेगा। तो उसने सीधा कह दिया कि ₹500 लेंगे। अब ₹2400 का मेरा रूम का रेंट है। 1200 हम देते हैं। 1200 हमारा दोस्त देता है। ₹500 ठेला वाला को हम कहां से दे दें? तो हम बोले ठीक है एक काम करो अपना ठेला ही दे दो वहां। ठीक है? तो बोला ठेला ले जाओगे तो ₹100 देना पड़ेगा। हम बोले हम खुद से ठेला चला लेंगे। लाओ 10 कि.मी. तक चला के अपना लेकर के खुद ही ठेला गया। जा के सारा सामान रूम में शिफ्ट किए। फिर लाकर उसको उसको ठेला भी दिए। और भी काफी सारे इंसिडेंट रहे हैं। मतलब गरीबी क्या सिखाती है? लड़ना सिखाती है, मजबूत होना सिखाती है और आपको यह सिखाती है कि जीवन में अगर कुछ भी नहीं हुआ तो भी आप वहां से आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों के पास ही ऐसा होता है। जिसके पास में ताकत है, जिसके पास में सब सहन करने की क्षमता है तो वह झेल लेता है। मैंने भी एक स्टोरी की थी जिसमें था कि आपकी बर्थ से ही तय हो जाता है कि आपका भविष्य क्या होगा। 60% आदमी जो गरीब पैदा होते हैं, वह जीवन भर में गरीब ही रहते हैं। यह सब कहने की बातें होती हैं कि आप पैदा गरीब हुए फर्क नहीं पड़ता। आप मरने गरीब नहीं। 60% आदमी का पहले डिसाइडेड होता है। जो मिडिल क्लास है वो मिडिल क्लास ही मरता है। अमीर है वो 50 60% अमीर ही मरता है। ऐसे गरीब का भी है। वो 40% लोग हैं जो लड़ झगड़ के हौसला दिखा के अपडेट कराते हैं। और इसके पीछे समान अवसर ना मिलना होता है। समान अवसर समान साधन। मान लीजिए कि परिवार में आज आप देखोगे कुछ ऐसे लोग हैं कई ऐसे राज्य भी हैं कई ऐसे जगह भी हैं जहां पर परिवार बहुत वेल टू डू है लेकिन सोच बहुत छोटी है तो वैसे केस में क्या होता है कि लड़की पढ़ना चाह रही है पढ़ने नहीं देते तो वहां पर क्या होगा कि वो सर पैसे से अमीर हो जाएगी लेकिन मेंटालिटी वो गरीब है मेंटली वो गरीब ही है दूसरे जगह पे आप अगर चले जाओ जैसे मेरी केस में मजबूरी क्या था टैलेंट बहुत है मेहनती हूं करना चाहता हूं पैसा नहीं है अब पैसा नहीं है तो मैं तो मेहनत करके आगे बढ़ गया मैंने भाई बहनों को अपना पढ़ा लिया लेकिन मुझे पता था। अगर सेम सिचुएशन मेरे भाई या बहन पर आती तो वह उसको टैकल नहीं कर पाते। इसी वजह से यहां पर क्या होता है कि जो आपने कहा ना 60% लोग वो दोनों उस 60 में आ गए। मैं उस चीज से बाहर निकल गया। हर किसी के पास में समान अवसर समान साधन समान शक्ति नहीं है। जिसके पास में यह है वो आगे बढ़ जाएगा। जिसके पास में नहीं है वो पीछे रह जाएगा। मैं भी इंग्लैंड की ट्रिप पर गया था और मैं कंपेयर कर रहा था कि इंडिया इंग्लैंड में क्या फर्क है। तो इंग्लैंड में टैक्सेस ज्यादा हैं। बहुत टैक्सेस लगाते हैं वो लोग। बट वहां मैंने जितने भी कैब ड्राइवर या बाकी लोगों से बात की। हालांकि वहां के कैब ड्राइवर जो होते हैं वो हमारे आपके जैसे नॉर्मल लोग होते हैं जो एक जॉब करते हैं और कैब में बहुत पैसा वहां पर है। तो अच्छा खासा बनाते हैं क्योंकि वहां रेंट रूम रेंट बहुत ज्यादा वहां पर है। हम बट उन सब ने एक कॉमन बात कही कि इंग्लैंड के अंदर एजुकेशन सिस्टम शानदार है। आप कितने भी गरीब हो या कितने भी रईस हो वहां पर 90% लोग सरकारी स्कूल में जाते हैं और वो सरकारी स्कूल भी डिसाइडेड है कि आपके घर के 3 कि.मी. के दायरे में स्कूल जो होगा ऐसा नहीं कि आप कोई भी स्कूल ले सकते हैं। सेम हॉस्पिटल का था। तो मैंने उनसे पूछा कि किन तरह के लोगों विदेश से जो लोग आते हैं किस तरह के लोगों के लिए अच्छा यह शहर है? तो उन्होंने कहा कि देखो मिडिल क्लास के लिए बहुत अच्छा नहीं है। बट अगर आप लोअर क्लास के हैं तो आपके लिए बहुत ही शानदार शहर है क्योंकि ये शहर आपको मरने नहीं देगा। जिंदा रखेगा। यह शहर आपको अवसर देगा कि अगर आप अपनी जिंदगी बदलना चाहते हैं तो यहां से आप बदल सकते हैं। एजुकेशन और हेल्थ को बहुत प्रायोरिटी देते हैं। वो ये मानते हैं कि ये बेसिक नीड है। हिंदुस्तान में मुझे लगता है कि सबसे महंगी चीज यही है। नहीं हिंदुस्तान में भी ये चीजें फैसिलिटी मिलती है। बस इंग्लैंड में और भारत में फर्क यही है कि इंग्लैंड में वो फैसिलिटी सारे के सारे आम नागरिक को मिलती है और भारत में वो सारी फैसिलिटी सरकारी नौकरी वाले को मिलती है। सरकारी नौकरी का पहला ही यहां पर है कि आपको हेल्थ बेनिफिट मिलेगा। आप कहीं पर भी ट्रीटमेंट करवा लीजिए दिक्कत नहीं है। आपके बच्चे जो हैं वह अच्छे स्कूल में पढ़ेंगे। विदेश मंत्रालय का आप देखिए कितनी शानदार उसकी सुविधा है कि आप अपने बच्चों को जो है उस एरिया के सबसे टॉप स्कूल में पढ़ पढ़ा सकते हैं। सरकार जो है वो खर्चा उठाएगी। अब जो महीने का ₹0000 कमा रहा है तुम उसको यह बेनिफिट दो या ना दो ज्यादा फर्क उस पे नहीं पड़ेगा। आपको यह बेनिफिट तो उसको देना चाहिए ना जो यहां पर नहीं क्षमता उतनी रखता है जिसके पास में उसकी ताकत नहीं है लेकिन उसकी सोच बहुत बड़ी है उसकी मेहनत बहुत बड़ी है तो आप आज के सरकारी स्कूल में जब बच्चे पढ़ते हैं अनफॉर्चूनेट अनफॉर्चुनेट टू से कि वो मिड डे मील के लिए पढ़ते हैं। पढ़ कहां रहे हैं सर? छत के नीचे दब के मर रहे हैं वो। पढ़ना तो वो होता है ना जहां पर शिक्षा दी जाए। मरने के लिए बच्चे जा रहे हैं। खाने के लिए बच्चे जा रहे हैं। सोच कहां? पढ़ाने के लिए तो है ही नहीं। टीचर छुट्टी पे है। ये तो सब व्यवस्था सब पूरे सरकार को पता है। सब चीजें पता है वहां पे कि कितने लोग अपनी ड्यूटी पे जाते हैं। कितने लोग नहीं जाते हैं। जाते हैं तो कितने बढ़िया तरीके से वहां पर पढ़ाया जाता है। मैं सभी लोगों को तो ऐसा नहीं कहूंगा लेकिन सर 10% ईमानदारी हालांकि इसमें दोष शिक्षकों का भी है। मैं अभी यूपी की बात कर रहा था। पंच मशीन लग रही थी। सारे शिक्षक विरोध में आ गए। सर कि 10 घंटे की ड्यूटी देनी पड़ती उनको। आदत बिगाड़ दिया गया ना। आदत बिगाड़ दिया गया इस तरीके से कि आप टाइम ही नहीं है आपके आने का टाइम ही नहीं है आपके जाने का रिपोर्टिंग का नहीं है गलती से किसी के ऊपर में कोई केस हो जाता है छोटा-मोटा अगर इंक्वायरी बैठ जाती है तो पैसे में अपना सेटल कर लेता है तो कहां से होगा इतना मान करके चलिए सर कि जिस दिन जो ये सारे के सारे अफसर हैं जो नियम बनाते हैं उनके बच्चे उस स्कूल में पढ़ने लगे जहां आम नागरिक का बच्चा पढ़ रहा है उनके बच्चों की या उनके खुद की ट्रीटमेंट उस अस्पताल अस्पताल में होने लगी जहां नॉर्मल लोगों की ट्रीटमेंट हो रही है तो उस दिन आपका भारत आगे बढ़ जाएगा बट ये पॉसिबल थोड़ी ना नहीं है पॉसिबल कुछ तो अप्लाई कर सकते हैं। मान लीजिए कि जो टीचर है वहां पे अगर उसके दो बच्चे हैं, तीन बच्चे हैं। कुछ महीनों के लिए कुछ साल के लिए अपने एक बच्चे का तो एडमिशन उसमें मैंडेटरी कर दें। बस वो तो और जुगाड़ लगाता है कि हमारा बड़के वाले स्कूल में करवा दीजिए। हमारे यहां तो ये सिस्टम है ना कि एक किडनी बेच के भी स्कूल का एडमिशन कराना हो और स्कूल भी आजकल गजब सर जब टीचर अपने पढ़ाए गए स्कूल में अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकता है तो फिर बाकी लोगों के लिए क्या है? ये तो मेरे कजिन है। वो ऑस्ट्रेलिया में रहते हैं और वो लौट कर आए और उन्होंने कहा मैं हिंदुस्तान नहीं लौटूंगा। तो मैंने कहा क्यों नहीं लौटोगे अब आप? तो उन्होंने कहा यार मैं अपनी बच्ची का एडमिशन करवाने गया था और उसके साथ एक उसके जो पेरेंट्स आए थे तो उनके पेरेंट्स ने दिखाया कि बेटा ये साइन देख रहे हो? ये तुम्हारे ग्रैंडफादर के टाइम में लगाया था। तो ही सेड आई वास शॉक्ड कि यार ये तीन-चार पीढ़ी से एक ही स्कूल में पढ़ रहे हैं। तो उन्होंने कहा यार हमारे यहां सवाल ही नहीं पैदा होता। किसी फैमिली में आप उठा लो। जो मेहनत करके आगे बढ़ गए उसमें भी और जो पीछे रह गए उसमें भी कि एक ही स्कूल में हम पढ़ते चले गए हो। देन ही सेड कि हमारे यहां दुनिया में हम जेरिक दवाइयां बांटते हैं। जैसे अभी मैंने एक स्टोरी एनडीt पे फर्स्ट डे की थी कि अमेरिका में हम जेरिक दवाइयां बांटते हैं और हमारे यहां उन्हीं जेरिक दवाइयों को हम नहीं यूज़ करते क्योंकि हमारे यहां एक्सपेरिमेंट होता है मल्टीपल लेवल पे। हर जगह पर एक्सपेरिमेंट ही है सर। आप दवाई की बात कर लो, आप शिक्षा की बात कर लो, आप पेपर की बात कर लो। बस एक्सपेरिमेंट के पात्र अगर है तो मतलब सिलेबस क्या चेंज हुआ आप बताओ ना आप स्कूल की फीस देखो और सिलेबस देखो कितना सिलेबस चेंज हो गया मुझे लगता है सिलेबस हल्का ही हुआ है हमारे टाइम से सीबीएसई में तो सिलेबस बहुत हल्का हो गया सिलेबस भी हल्का हुआ है टीचिंग आर्म्स भी हल्के हुए हैं प्रेशर भी बच्चों के ऊपर में कम करने की कोशिश की गई है लेकिन फी कितना बढ़ा है नहीं नहीं सिखाया गया ना फी तो बढ़ा दिया गया आप देखो ना अभी नर्सरी में तो नया-नया ट्रेंड निकल रहा है कि उस स्कूल में लोग जो है अपने प्ले स्कूल में उस में एडमिशन करवाने जा रहे हैं जहां पर ज्यादा गेम है मैं अभी हाल फिलहाल मेरे एक सर हैं वहां पे तो मैंने उनसे पूछा कि बच्ची अब बड़ी हो गई है तो कहां एडमिशन करवाया? तो दिल्ली में दो तीन ही प्ले स्कूल हैं। वहां वाले पे हम गए तो एक वो खिलौना रखा हुआ था। लेकिन दूसरे वाले में गए तो वहां पे चार गो रखा हुआ था। तो हम उसमें एडमिशन करवाए। तो लोगों को है ना मतलब पैसा देने को वो तैयार है। उनको यह नहीं दिख रहा कि हां हमें एक्स्ट्रा क्या मिलेगा? नॉलेजेस क्या मिलेंगे? खिलौने के नाम पर अगर प्ले स्कूल में आप एडमिशन करा रहे हो। जबकि बाकी चीजों को आप ध्यान ही नहीं दे रहे कि वहां टीचर ध्यान दे पाएगा। कुछ नहीं दे पाएगा। टाइम आपके बच्चों को दे पाएगा, नहीं दे पाएगा तो कैसे होगा? स्कूल में जाने के बाद में भी जो व्यवस्था है एग्जाम्स को लेकर के सीरियस ना होना। आप उसके बाद में बात करिए जब पेपर होता है तो सरकारी स्कूल में कितनी बार पैरेंट टीचर मीटिंग होती है? वहीं टीचर अगर खुद का अपना प्राइवेट स्कूल खोल लेता है तो वो सारी चीजें अप्लाई करना शुरू कर देता है। इंफ्रा पर ध्यान देता है। टीचिंग्स पर ध्यान देता है। रेगुलर टीचर्स की मीटिंग लेता है। बच्चों के साथ मीटिंग लेता है। पेरेंट्स के साथ में मीटिंग लेता है। लेकिन जब वही सरकारी नौकरी की वहां बात आ जाती है तो थोड़ा वो डिले। प्राइवेट में वही टीचर स्कूल में नहीं पढ़ाता है। शाम कोचिंग पढ़ा देता है। बेहतर पढ़ा देता है और कहता है शाम को आना। लड़का भी खुश रहता है कि मास्टर साहब पढ़ा देंगे। उन्हीं दिन में पीठ थपा देता है। ये तो हमारे टाइम में भी रहा है कि हमारे वाले फलाना टीचर जो है शाम कोचिंग पढ़ाते हैं। पढ़ाते हैं। इनके यहां पढ़ेंगे तो एग्जाम में पता भी लगता है क्या-क्या आ जाएगा। 60 70% बता भी देते थे। बता भी देते थे। इनडायरेक्ट में हम बता देते थे तो पढ़ के चले जाओ। हां। लेकिन ऐसे आगे नहीं बढ़ सकते ना सर। मतलब हमारा तो पूरा एजुकेशन सिस्टम ही स्कैम लगता है मुझे। ऐसा नहीं है। कुछ चीजें बहुत अच्छी हैं। अगर आप आईटी को देखो तो बहुत अच्छा कर रहे हैं। वहां पे आप एक से एक लोगों का सर वहां पर एलट क्लास में उन्होंने कंट्रोल कर रखा है। जहां से देश के सर्वश्रेष्ठ दिमाग निकलने वाले हैं। यूपीएससी हो गया, आईआईटी हो गया वहां पे कंट्रोल कर रखा है। मेडिकल कॉमाइज नहीं है। वहां कॉम्प्रोमाइज नहीं किया है। मीडियाकर लोगों के लिए पूरा एकदम खत्म कर दिया है। सर तो वहां पर जाने के लिए भी तो इसी से हो के गुजरना पड़ेगा ना। तुम इसी को पूरा खत्म कर दोगे तो पहुंचेंगे कहां पे? केदारनाथ जाना है। मंदिर बहुत अच्छा है। रास्ता खराब है। तो कहां से पहुंच जाओगे? हर किसी के पास चौपर से जाने का पैसा है क्या? 90% लोग तो पैदल चल के जाते हैं। अब बोलो रास्ते टूट गया। कैसे जाएंगे? तो हो गया काम खत्म। फिर ऊपर बना के क्या बेहतर कर लोगे? हर कोई थोड़ी ऊपर जाता है। हर कोई आईटी में एडमिशन लेता है क्या? बहुत ऐसे लोग हैं वहां पर आईटी की सोचते हैं, तैयारी करने जाते हैं, पेपर देते हैं। नहीं होता उनको एसएससी में आना पड़ता है। उनको बाकी एग्जाम्स में आना पड़ता है। तो इसका मतलब दिमाग में यह बच्चा बिठा ले। आईआईटी हो गया तो ठीक है। नहीं तो जीवन मेरा खत्म है। अनफॉर्चूनेट बट ठीक है। आपके कई सारी रील्स मैंने देखी। एक रील थी आपकी गर्मी बहुत है। हम पढ़ाई कैसे करें? वो रील हमने बनाई थी बच्चों को थोड़ा मोटिवेट करने के लिए। असल में एक मैं भी रात में ऐसे बहुत रील देखते रहता हूं। तो मैंने वहां पर देखा कि एक स्टूडेंट है परेशान है और उसको ऐसा लग रहा है भाई गर्मी बहुत है। मैं नहीं पढूंगा। लेकिन जस्ट उसी के साथ में अटैच करके दिखा दिया जाता है कि इसी गर्मी में तुम्हारे पिता देखो कितनी ईंट उठा रहे हैं। तुम्हारे पिता रिक्शा चला रहे हैं। तुम्हारे पिता ये काम कर रहे हैं। मैंने तुरंत रात को अपनी टीम को कहा कि बस यहां पर उस लड़के का अगर हम वीडियो डाल दिए तो कॉपीराइट मार देगा। उसकी जगह मैं एक्टिंग कर लेता हूं और बाद वाला पार्ट रख दो ताकि उद्देश्य सिर्फ यह हो कि बच्चे को यह समझ में आ पाए कि परिस्थितियां दोनों लोगों के लिए समान है। एक का हिम्मत हार गया तो वो रुक गया। दूसरे ने अपनी हिम्मत से जीत हासिल कर ली। तो एक संदेश था। व्हिच इज़ ट्रू आल्सो कि बेटा आज इस घर में पढ़ लो। हम नहीं तो कल को यह करना पड़ेगा। वह ज्यादा तकलीफ देगा। ज्यादा तकलीफ देगा। ओके। सरकारी नौक नौकरी लोग क्यों लेते हैं भारत में? या क्यों सरकारी नौकरी का मोह है? खासतौर पे यूपी, बिहार जैसे राज्यों में सर एक तो शुरू से क्रेज रहा है। बीवी अच्छी मिलती इसलिए नहीं बिल्कुल नहीं। बीवी के लिए पढ़ना सर जरूरी नहीं है। मुझे लगता है कि एक रील आपने उसके लिए बनाई थी। एक खूबसूरत महिला दिखा दी थी। हां। हां आप ही की एक रील है। उसमें खूबसूरत महिला आती फिर आता है कि नहीं नहीं पढ़ाई उसके लिए करो। अरे वो खूबसूरत हमने नहीं बनाया वो। फैन क्लब्स वाले जो चैनल है यहां पर वो बनाया। हाल फिलहाल वो खूबसूरत महिला का हमने पडकास्ट भी लिया। वो भी वायरल होते आ गए वहां पे। तब हमने जिस दिन मिले हम उनसे तो हमने कहा कि देखिए आपके साथ मेरा एक ऐसा रील वायरल हुआ था जिसप हम कॉपीराइट मार के हटवाएं। 10 मिलियन व्यूज था उस पे। अभी देखा गायब नहीं हुआ है। तो दूसरे वाले ने अपलोड कर दिया। हां उस पे भी 10 मिलियन है हमने देखा था। पता नहीं। तो सर हमने डिलीट करवा दिया एक। भेजिएगा उसपे भी हम कॉपीराइट मार देंगे। ठीक है। क्योंकि ये गलत मैसेज आता है ना। मेरे लिए भी वो इमेज की थोड़ी खराब बातें हो जाती है। ब्याह नहीं हुआ आपका अभी ना? नहीं अभी नहीं हुआ। इसीलिए गलत मैसेज आपको डर लग रहा होगा कि अगली वाली आएगी तो दिक्कत हो जाएगा। नहीं दिक्कत की बात नहीं है। मतलब गलत वे में है बस ये। मुझे लगता है आप सही तरीके से जोड़िए ना और भी चीजें हैं। मोटिवेट थोड़ा कर दीजिए। गैंग्स ऑफ वासीपुर देख रहे हो आप? हां। उसमें एक डायलॉग है। कितना बड़ा हो गया ब्याह नहीं हुआ तुम्हारा। आपका भी लड़का लोग हमसे कहा था हम कि ब्याह काहे नहीं हुआ आपका? अभी सर मुझे लग रहा है कि थोड़ा सा 2025 में जो है ग्रह भी सही नहीं है और जिस तरीके से भारत में शुरू-शुर में सारी चीजें हुई मैंने कहा अभी डिसीजन लेने का टाइम बिल्कुल भी नहीं है और बहुत ऐसे काम है जो 2025 में अभी शुभारंभ करने हैं। हालांकि मम्मी हमारी कह रही होंगी ससुर तुम पूछ रहे हो अपना काहे नहीं किए हो? सर मेरा भी तो सेम सवाल है। आप भी कर लो। हां तो इसीलिए हमने कहा ना इसलिए उन्होंने पहले टोक देगी। फिर सर कमेंट सेक्शन में वो लिखें। हम खुद ये कहते हैं कि भाई घर में सर मम्मी लोगों का बहुत प्रेशर होता है। मैं मतलब आप बिलीव करो शाम को अगर खाने बैठ जाऊं ना तो मैं खाने पे इसलिए मम्मी के साथ में नहीं बैठता हूं क्योंकि सवाल करेगी। मैं तब खाना खाता हूं जब सो जाएगी। हमारे पिताजी करते हैं। बहुत सवाल होता है। नरक कर देते हैं एकदम शादी ब्याह शादी ब्याह शादी ब्याह। बट इसको इसका जवाब मेरे पास है। हां। किसी भी परिवार में जो पहला व्यक्ति घर की परिस्थितियां बदलता है उसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। उसे ज्यादा समझौता करना पड़ता है। बिल्कुल सही है। आज आपके परिवार का जो स्टैंडर्ड बदला होगा जो एक अपग्रेड आपने किया वो इसी मेहनत इसी त्याग व्यवस्था था। अगर वो सारे सुख आप लेते तो आपका परिवार आज उन लाभ को नहीं ले पाता। तो कई बार एक व्यक्ति समझौता करता है ताकि उसके परिवार में उसके खानदान में या उससे जुड़े हजारों लाखों लोग उसका बेनिफिट उठा पाए। अपने आप को तपाना पड़ता है दूसरों को उठाने के लिए। हां, वह जो हमारे गांव लोग कहते हैं कि भैया एक हम टीवी देख रहे थे, वह एक दिन की तपस्या नहीं है। नहीं है। उसके पीछे कई दिन की कहानी है। तो उस कहानी में अगर मौज काट रहे होते तो हम भी गांव बैठे होते। सर हमारे ऊपर में थोड़ी सी भूख भी बहुत बड़ी है। मुझे ऐसा लगता है कि ये चीज प्राप्त कर ली तो दुनिया को लगता है ये बहुत बड़ी है। मेरे केस में ऐसा है कि मुझे छोटी चीज नजर आती है। मुझे लगता है कि यार अभी पाया ही क्या है। थोड़ा और मेहनत करते हैं। और शादी के लिए मैं मेंटली प्रिपेयर्ड नहीं हूं। मुझे लगता है कि मैं उतनी मेहनत नहीं कर पाऊंगा। अभी रात में 11:00 बजे आपके साथ में रह के शायद पडकास्ट नहीं होता। हम भी नहीं होते तो इतना आ रहा होता कि यहां टन टन कहां पर हो, किसके साथ हो? तो भाई दिमाग सारा टाइम ये चल रहा हो गल जल्दी घर जाना है। आज हम एक दिन में तीन पॉडकास्ट निपटा दे दो ढाई ढाई घंटे के। संडे के दिन में होते हैं। हां। तो सर फिर संडे के दिन तो पहले क्लेश हो जाता है ना कि घूमने चलना है। क्लेश नहीं चाहिए ना। हां। काम करना चाहिए। घर से हर आदमी दुनिया नहीं जीत पाता। बस सर मन से भी हर आदमी नहीं जीत पाता है और मन हरा देता है घर में ही। तो जैसे खान सर अपना ब्याह किए अभी। उनकी तो मम्मी चूज़ कर ली मम्मी की बात मान लिए वो हालांकि हमने उनसे पूछा हमने कहा गर्लफ्रेंड वर्फ थी क्या नहीं थी लेकिन आसपास बहुत लोग रोए थे तो हम सीख गए थे जरूरी है सर डर लगता है आपको शादी ब्याह से थोड़ा सा लगता है सर अगर गलत पार्टनर अगर मिल गया तो फिर खत्म यही हाल है बहुत सर डर लगता है क्यों हमने जीवन में सब कुछ कुर्बान किया इतनी मेहनत की इतना मतलब अंपायर अपनी चीजें बनाई बच्चों का प्यार कमाया और एक इंसान गलत आने की वजह से ना सिर्फ आप फाइनेंसियली टूटते हो आप मेंटली इतने टूट जाते हो कि आपको आपके काम पे फोकस नहीं होता है। आप सुबह निकलते हो तो एक लड़ाई के साथ में आप शाम को आ रहे हो तो उस चीज के साथ में सर वो तोड़ देता है इंसान को। उसके बाद उसका टैलेंट पर कम ध्यान होता है। तो फिर गुरु जी के पास का क्या समाधान है? गणित का समाधान तो है सर वो तो किस्मत की बात है। समाधान किसी के पास नहीं है। नहीं तो हमारे यजुवेंद्र चहल जी काहे इतना मतलब जा रहे होते। खुश है आजकल वो। सर कुछ पल की है। अरे भाई विवादित हो जाएगा। नहीं एक बात कह रहे हैं। सर कुछ पल की इसीलिए है ना क्योंकि शादी जब तक मुकम्मल मुझे लगता है कि नहीं होती है ना तब क्या कहें सर? छोड़िए हटाइए। ठीक है। अ पहले लड़की या पहले नौकरी? पहले नौकरी काहे सर? क्योंकि वो एक ऐसी चीज है जो मेरे साथ-साथ मेरे आने वाले कई सारे पुश्तों को भी आगे बढ़ा सकती है। जो एक ऐसी चीज है यहां पर जो मेरे मां-बाप के सपने को पूरा कर सकती है। वो एक ऐसी चीज है जिसके आधार पर मेरे मां-बाप दम पर यह बात किसी के आगे भी यह कह सकते हैं कि हां ये मेरा लड़का है। कुछ छात्रों के लिए हमने सवाल रखे थे। सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू करने वाले नए छात्रों को क्या कहेंगे? Twitter अकाउंट बना के आओ। नहीं बिल्कुल नहीं। मैं उनसे यही बात कहूंगा कि देखिए जो सारी चीजें चल रही हैं इसके ऊपर में अगर आप कंप्लीट फोकस कर जाते हैं तो शायद मुझे लगता है कि आप पहले टूट जाएंगे। आप पहले नेगेटिव हो जाएंगे। आप वो मत होइए। क्योंकि ये एक चीज है जो चल रही है लेकिन जरूरी नहीं है कि हमेशा ऐसा होता रहेगा। एक वक्त आएगा जब यह खत्म होगा। लेकिन उस बीच में अगर आप अपनी तैयारी को छोड़ देते हैं तो बहुत नुकसान हो जाएगा। तो तैयारी करने आ रहे हैं तो थोड़ा सा मेंटली समय का बैकअप लेकर के आइए कि हां एक साल की जगह हो सकता है 14 महीना लग जाए 16 महीना लग जाए लेकिन अगर आप अपने आप को तोड़िए मत ठीक है तो इतना समय आप अपने आप को लेकर के आइए और सर तैयारी ईमानदारी से करिए चीजें हो रही है ठीक है गणित में कोई छात्र कमजोर हो तो कैसे अपने आप को सुधारे सबसे पहले तो उसको यह काम करने की जरूरत है कि उसकी जानकारी कहां तक है मान लीजिए कोई आर्ट्स बैकग्राउंड का है कोई बायो बैकग्राउंड का है तब तो उसको एकदम गणित बिल्कुल बेसिक से पढ़ने की जरूरत है। फिर वह एक ऐसे टीचर को पकड़े, एक ऐसे सोर्स को पकड़े जहां पर उसको बेसिक से सारी बातें सिखाई जाती हैं। अगर कोई अच्छा स्टूडेंट है वहां पर तो उसको पढ़ने के साथ-साथ उसको प्रैक्टिस के ऊपर में भी ध्यान देना चाहिए। अभी के समय में थोड़ी दिक्कतें यहां पर ये बच्चा खाली पढ़ना चाहता है। प्रैक्टिस भी नहीं करना चाहता तो वो थोड़ा सा उसके लिए नुकसान है। और बाकी सर ये एक ऐसी चीज है कि अलग-अलग बच्चों के लिए अलग-अलग ट्रीटमेंट है। आप एक दवाई हर किसी को नहीं दे सकते। कुछ बच्चों का कैलकुलेशन खराब है उन्हें कैलकुलेशन पे काम करना है। कुछ के कांसेप्ट खराब है वो कांसेप्ट पे काम करें। तो सर डिपेंड कर जाता है। परीक्षा के दिन सबसे महत्वपूर्ण सलाह क्या? मन शांत करके जाओ। बहुत मन शांत होना जरूरी है। घर पे ज्यादा से ज्यादा बात करके जाओ। लोगों से ज्यादा से ज्यादा मिलो। झड़प मत करो। ऑटो वाले से ₹10 ₹20 की किराए के लिए जाकर के वहां परेशान मत हो। मतलब वो ऑल इज वेल वाला वो कहना पड़ेगा कि ऑल इज वेल। इल वेल। असली ऑल इज वेल यहां काम करता है। सर दिमाग में प्रेशर हो जाता है। नहीं हुआ तो क्या होगा? नहीं हुआ तो हमको एक साल लग जाएगा। नहीं हुआ तो मेरी शादी हो जाएगी और वो पेपर खराब कर देता है। बिलीव करो सर मैंने पहली बार जब पेपर दिया था सीएचएसएल का मैं इतना रिलैक्स हो के गया। हमको पेपर देना नहीं था सीएचएसएल का। हम इस बात से मेंटली प्रिपयर्ड थे। हो भी गया तो नौकरी नहीं लेंगे। हम सीजीएल के लिए बने हैं। सीएचएसएल के लिए नहीं बने हैं। और वो पेपर एकदम रिलैक्स हो के चप्पल लोअर पे जा रहे हैं। एडमिट कार्ड जो है वहीं से फोटोकॉपी करवा लिए। आधार कार्ड जेब में रहता था। सेंटर पे पहुंच गया। पेपर दे के निकल रहे हैं तो मेरे तीन सब्जेक्ट में 50-50-50 हैं। उस दिन मैंने सीखा वहां पर कि जिस चीज को लेकर के हम सबसे ज्यादा सीरियस हो जाते हैं नुकसान भी वही होता है। कंफर्ट रहो, रिलैक्स रहो होगा। चाहे जिंदगी है लड़की? बिल्कुल। सर एक स्टूडेंट है मेरी बहुत टैलेंटेड है। वो इतनी टैलेंटेड है कि आप यह मान करके चलो बिठा के किसी को जीएस पढ़ा सकती है। 3 साल से वो पेपर दे रही है और पेपर क्लियर नहीं हो रहा। कारण यही है। पेन पकड़ते नहीं है कि उसका हाथ कांपना शुरू हो जाता है। नर्वसनेस बहुत बुरा मारती है। अच्छा आप लोग के यहां जीएस में क्वेश्चन भी अच्छे-अच्छे आते हैं। एक क्वेश्चन कहीं मैंने पढ़ा था इंटरनेट पे कि आदित्य सिंह बिष्ट डीजे वाले बाबू में कौन है? सबसे अजीबोगरीब सवाल क्या आया? सर हाइट पूछ ली जाती है कैटरीना कैफ की हाइट कितनी है? अब बताओ यह जीएस का हमारा सवाल है। दुर्भाग्य है कि पेपर सेट करने वाले का कि ऐसे सवाल मिल रहा है। अब हमें समझ में नहीं आता है कि हम लोग क्या पढ़े क्या पढ़ाएं। मैथ्स में तो ऐसे हालत है वहां पर कि एक सवाल एक जो रेलवे है उसको सही मानती है तो एसएससी उसको गलत मान देती है और मैथ्स में तो सर मैं मजे की बात बताऊं कुछ सवाल तो इस बार ऐसे थे जो सही थे बच्चों ने रिप्रेजेंटेशन डाल दिया और उसके बाद में एसएससी ने कहा नहीं इतने सारे बच्चों ने कहा है तो गलत नहीं कहा होगा अपना इंटरल चेक नहीं करेगी वो गलत नहीं कहा होगा सही कहा होगा पक्का क्वेश्चन गलत है गलत मान के सबको नंबर दे दिए अभी तक मामला कोर्ट केस में चल रहा है ₹100 ज्यादा पा गए होंगे हां ₹100 पा गए बाद में बरगला देते हैं अच्छा अच्छा ये जो कोचिंग है ये जरूरी है या बच्चे स्कूल लेवल पे कॉलेज लेवल पे या तैयारी के लिए या सेल्फ स्टडी इतना बेसिक स्ट्रांग होना चाहिए एजुकेशन सिस्टम को कि जरूरत ना पड़े नहीं सेल्फ स्टडी सर है ऐसा नहीं कह सकते कि कोई बच्चा अगर सिलेक्शन लेना चाहता है तो कोचिंग के माध्यम से ही ले सकता है। बस थोड़ा सा जो होता है ना वो शॉर्टकट एक बना देती है कोचिंग। सेल्फ स्टडी से जो चीज आप 6 महीने में सीखोगे कोचिंग में वो टीचर आपको एक महीने में सिखा देगा क्योंकि उसने खुद बहुत मेहनत की है। मान लीजिए कि एक क्वेश्चन है आप अपना दिमाग लगाएंगे ना तो आपको हो सकता है एक छोटा सा रास्ता मिले। मैं अगर उसके ऊपर मैं अपना दिमाग लगा दूंगा तो मैं उसके चार तरीके आपको बता दूंगा कि कैसे बन सकता है क्योंकि मैं आए दिन वहीं पढ़ा रहा हूं। मेरा आए दिन गणित पर ही दिमाग चल रहा है। तो यहां बच्चे का समय बच जाता है और सरकारी नौकरी की तैयारी करना लगभग हर बच्चा कर सकता है क्योंकि फीस बहुत कम होती है। यहां हम यहां लाखों रुपए का फीस नहीं देना पड़ता। मतलब आप अपने जीवन में अगर सबसे कम कहीं पर पैसा दे रहे हो ना तो अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर आ करके दे रहे हो। यहां की तैयारी ₹1000 में सर चारों सब्जेक्ट आप पढ़ सकते हो। और सोचिए यहां ₹1000 तो महीने का ट्यूशन का फीस हम लोग देते थे। ये टीचर लोग आपस में मुझसे बुराई क्या करते रहते हैं। कई बार किसी के ऑनलाइन क्लासेस में किसी के विचार किसी से नहीं मिले तो हो जाता है। बच्चा लोग के सामने ही सर वो भी तो बच्चे के सामने बोल देते तो दूसरा बोलता है हम काहे अकेले में फोन करके बोले? हम भी बच्चे के सामने ही बोलेंगे। इसमें मजा आता है इन लोग को मजा नहीं आता अपना ईगो सेटिस्फाई करते या बच्चा लोग कमेंट सेक्शन में आके डालता है जानबूझ के अच्छा लोग भी मजा लेता होगा ये सब का थोड़ा एंटरटेनमेंट मिल जाता है उनको होना नहीं चाहिए मुझे लगता है कि सारी चीजें फोन पे सुलटा दो तो ठीक है कुछ लोग इसके ऊपर काम कर रहे हैं अब बेहतर है इंटरेस्टिंग इंटरेस्टिंग सबसे बड़ा सबक क्या रहा जिंदगी में आपका सर सबसे बड़ा सबक मेरे लिए टीचिंग लाइफ में अगर आप बोलेंगे तो कंट्रोवर्सी रहा मैंने ऐसे छोटी सी कुछ गिफ्ट की बात की थी बच्चों को कि अगर अगर आप सेलेक्ट हो जाते हैं तो मैं आपको यह दूंगा। हालांकि वो एक मेरी बचकानी सी चीज थी। मुझे लगता है कि जब नया-नया जोश होता है ना तो हम बहुत कुछ करने की कोशिश करते हैं और उसी में से एक वो भी था। उसके बाद कंट्रोवर्सी हुई। काफी सारी चीजें हुई। लोगों ने अलग-अलग तरीके से मुझे ट्रोल भी किया, वीडियोस भी बनाए, सारी चीजें की। तो वहां पर मम्मी ने समझाया बहुत सारी बातें कि कई बार आपको जीवन में ठहर करके बोलेरो वाला आप ही का था क्या? हां बोलो और थार था। तो यहां पर वो उन्होंने मुझे काफी कुछ समझाया। अच्छा मैं किसी और टीचर की तैयारी कर रहा था। उन्होंने मजाक उड़ाया था इसका याद आ गया। बहुत सारी चीजें थी। तब सर मैंने सीखा कि जिंदगी में जरूरी नहीं है कि किसी बात को एकदम आवेश में आकर के आप जोश में कह दीजिए। हालांकि मैं कैपेसिटी रखता था बट वहां से सर बहुत कुछ सीखने को मिला। थोड़ी गंभीरता सीखने को मिली कि आप थोड़ा गंभीर बनिए तो ज्यादा अच्छा है। आवेश में मत आ जाइए। तुरंत किसी को रिप्लाई मत दे दीजिए। थोड़ा वक्त लीजिए, सोचिए, समझिए। कहीं पर अगर आपकी गलती नहीं भी है तो गलती मान करके चलिए। आगे बढ़ने में बहुत मदद मिलेगा। मेहनत या किस्मत? लास्ट क्वेश्चन। मेहनत मैं हमेशा मेहनत को आगे बढ़ाऊंगा किस्मत के आगे। किस्मत रही एक जगह पर मौका दे सकती है। मेहनत रही तो हर जगह पर तुम्हें उठाएगी। मैंने ग्रेजुएशन में मेहनत की थी। उसका परिणाम मुझे बहुत अच्छे तरीके से सरकारी नौकरी की तैयारी में मिला। सरकारी नौकरी की तैयारी बहुत अच्छी की जिसमें गणित बहुत शानदार तरीके से मैंने सॉल्व किए। क्वेश्चंस के नए-नए मेथड निकाले तो उसने मेरे टीचिंग में मदद की। तो मेहनत हमेशा सर्वोपरि होती है। ओके। अगर एक यंग आज से 15 साल पहले अपने आपको सलाह देनी हो 15 साल पुराने वर्जन को क्या सलाह देंगे आप? सलाह ये दे रहे होते कि थोड़ा सा जो है और कर्जा बेशक ले लिए होते मंजूर होता लेकिन ये कोचिंग पढ़ाने में जो टाइम वेस्ट किए वो नहीं किए होते। तुरंत यहां और पहले उम्र में और जल्दी जो है सक्सेसफुल हो जाते और चीजों को हम आगे बढ़ा पाते। तो जो मैंने बाकी चीजों में समय दिया बाकी के पार्ट टाइम के जॉब्स में बाकी की चीजों में वहां पर वो अगर मुझे नहीं मिलता तो शायद मैं और आगे होता। देश का सबसे अच्छा शिक्षक कौन है? सर एक नाम नहीं ले सकते। कई सारे शिक्षक हैं जो देश को आगे बढ़ा रहे हैं। आप यूपीएससी अगर आपके फेवरेट में से यूपीएससी कोचिंग के लिए बात कर लेते हैं हम। मेरे फेवरेट में आप बात करोगे तो विकास दिव्य कीर्ति सर। काहे विकास दिव्य कीर्ति? चलो मैं तीन ऑप्शन देता हूं। खान खान सर विकास दिव्य कीर्ति या ओझा? सबसे फेवरेट टीचर कौन है? सर सारे ही फेवरेट है। ऐसा नहीं है। मतलब खान सर भी बहुत अच्छे दोस्त भी हैं। शादी में गया भी था मैं उनके। हम्। उनकी भी विचारधारा अलग है। उनकी विचारधारा जमीन वाले बच्चों को जोड़ने में बहुत ज्यादा मदद करती है। वह बातों को इतनी सरलता से समझा पाते हैं कि बच्चा कनेक्ट कर पाता है। टेक्निकली वो राफेल को भी ऐसे बता देंगे कि बच्चे को चार पांच पॉइंट याद हो जाएगा। नक्शे से वो बता देंगे भारत कहां पर है? आसपास क्या है। इंटरन इंटरनेशनल रिलेशंस जो है वो सारा सारा बता देंगे। और विकास देवी कीर्ति सर की बातें इसलिए अच्छी लगती है क्योंकि वह हवा-हवाई बातें नहीं करते। वह जीवन की वास्तविकता के ऊपर में बात करते हैं। कठिन परिस्थितियों से अपने आप को निकालने की बात करते हैं। देश के शिक्षा व्यवस्था के बारे में बात करते हैं। और ना सिर्फ उनकी वीडियो बच्चे देखते हैं बल्कि मां-बाप भी देखते हैं। उनके तो मुझे इसलिए भी बहुत अच्छे लगते हैं। तो एक चुनाव ओझा विकास देवी कीर्ति खान सर। सर जिस उम्र में मैं हूं इस उम्र में जो मेरी सीखने की चीजें हैं वो मैं विकास सर से नहीं सीख पाऊंगा। तो मेरे लिए वही है। ओके। इंटरेस्टिंग चॉइस। हमारे ओझा जी भी जिंदाबाद। हालांकि पहला शेर ओझा जी का ही था। अच्छा शेरनी का दूध है। ओझा जी पॉलिटिकल हो गए ना अब थोड़ा सा बहुत मोटिवेशन रहता था लेकिन थोड़ा सा ये हो जाता है कि सर अभी पॉलिटिकल हो गए हैं और थोड़ा सा पढ़ाई से मुझे लग रहा है कि दूर हो गए हैं। हालांकि वो बहुत अच्छे शिक्षक हैं। मैं बहुत पहले उनसे मिला हुआ हूं। मुझे ऐसा लगता है कि जब अनअकडमी का हमारा एक मीट अप था तो मैंने सर से कहा था सर एक सेल्फी चाहिए मुझे आपके साथ में। तो उन्होंने कहा हां ले लो बढ़िया बढ़िया बढ़िया है सारी चीजें बढ़िया है लेकिन जब चुनाव के दौरान थोड़ा सा क्या होता है ना सर चाहे मैं हूं या स्टूडेंट भी है गुरु के लिए एक अलग आदर्श सम्मान होता है लेकिन जब आप पार्टी से जुड़ जाते हैं तो वहां पर कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जो उस पार्टी को सपोर्ट नहीं करते वो कट जाते हैं। हालांकि ऐसी बातें निकल जाती हैं जो आपको पार्टी को खुश करने के लिए कहना पड़ता है तो वो थोड़ा सा वो इमेज को थोड़ा कम करता है। चलिए आप लोग को आपके आंदोलन के लिए बहुत सारी शुभकामनाएं और हमारे स्तर पर कोई सहयोग रहेगा हम सो बताइएगा टीवी के माध्यम से सोशल मीडिया के माध्यम से क्योंकि लड़ाई महत्वपूर्ण है। आपकी कहानी भी इंस्पायरिंग है और मुझे लगता है कि आप जैसे लाखों बच्चे होंगे एक परीक्षा सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं उसके पूरे परिवार की कहानी बदल सकती है। और ये ये हक कम से कम फेयर उसे मिलना चाहिए। सर मेरा बस एक ही रिक्वेस्ट है आपसे यहां पर कि अगर कभी भविष्य में हमारे डीओपीटी मिनिस्टर साहब यहां पर आते हैं तो उनसे सवाल पूछिएगा कि जो सरकारी नौकरी तैयारी करने वाला छात्र है उसको किस हद तक आप यहां पर परेशान करेंगे। किस हद तक का पेशेंस उसको लेकर के आना पड़ेगा या कभी ये क्या यह व्यवस्था सुधरने वाली भी है कि नहीं है? क्योंकि हमने तो सर बहुत कोशिश कर ली उनसे मिलने की। हमने बहुत कोशिश कर ली उनसे बात करने की लेकिन उन्होंने वक्त नहीं दिया। तो या तो माइंडसेट ऐसा है कि ध्यान ही नहीं देना है। अगर यह नहीं देना तो प्रत्यक्ष रूप से कह दें तो बच्चा इसको स्वीकार कर लेगा। बच्चा इसको मान लेगा और जीवन में कोई दूसरा उद्देश्य करके वो आगे बढ़ेगा। उनसे पूछिएगा जरूर कि ये व्यवस्था ऐसी क्यों है? करेंगे सवाल। अच्छा बिल्कुल उनको हम कोशिश करेंगे लाइन अप करने की और जिस दिन भी लाइन अप करेंगे इस चर्चा में या आप जैसे शिक्षकों ने जो भी विषय उठाए हैं उन सवालों को उन तक रखेंगे। यह हम आपको आश्वासन देते हैं। जिस दिन भी करेंगे अब करना ना करना उनकी मर्जी है। लेकिन जिस दिन सामने आएंगे यह पूछिएगा जरूर। उस दिन जरूर पूछेंगे सवाल। कि सरकारी नौकरी की तैयारी करना गुनाह है क्या? बिल्कुल बड़ा अनफॉर्चूनेट है। ये सोचना भी मतलब हम कहते हैं युवाओं का देश है भारत। हम युवा ही 247 विकसित भारत बनाएंगे। और वही युवा शिक्षणों का सड़कों पर लाठी खा रहे हैं। बस यही है। चलिए ऑल द बेस्ट। थैंक यू। आपको और आपके सभी बच्चों को और उम्मीद करते हैं कि 13 तारीख को वो नौबत ना आए कि जिसके बाद हमको 15 अगस्त को फिर बैठना पड़े आपके साथ। बिल्कुल सर होप फॉर द बेस्ट। बस यही कह सकते हैं। थैंक यू। थैंक यू।

23 Comments

  1. मैं उस देश के उज्ज्वल भविष्य की
    सिर्फ प्रार्थना ही कर सकता हूं,
    जहां सड़कों पर छात्र और अध्यापक
    लाठीचार्ज के पात्र हैं
    और संसद में समोसा चर्चा का विषय ।।

  2. Please sir naveen sir ki saath ek podcast hona chahiye please sir real hero in up police paper leak re exam karne wala sir hai please podcast hona chahiye sir

Write A Comment